Tuesday, December 4, 2018

एचआयवी एड्स इस विषय को लेकर जागरूकता हेतु एक साईकिल यात्रा के अनुभव: ३. इन्दापूर से पण्ढरपूर

३. इन्दापूर से पण्ढरपूर
 

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१४ नवम्बर की भोर| आज बाल दिन है और आज मुझे पहले बाल गृह में पहुँचना है| आज इस साईकिल यात्रा का तिसरा दिन है| इसलिए शरीर कुछ लय में आ गया है| सुबह की ठण्डक में‌ इन्दापूर महाविद्यालय से निकला| सुबह घुमनेवाले लोगों को सड़क पूछ कर आगे बढ़ा| कल के हायवे के मुकाबले इन्दापूर- अकलूज सड़क काफी शान्त लगी| अब वाकई लग रहा है कि मै ग्रामीण क्षेत्र में पहुँच गया हूँ| जल्द ही‌ पुणे जिला समाप्त हुआ| अकलूज में पहला ब्रेक लिया| पहले दो दिनों के अनुभव के बाद मै नाश्ते के लिए सिर्फ केला, चाय- बिस्कीट, चिक्की (गूड़पापडी) और चिप्स इनको ही ले रहा हूँ| पेट के लिए हल्का होता है| डबल चाय- बिस्कीट के दो ब्रेक मेरे लिए पर्याप्त होते हैं| साथ ही चिक्की/ बिस्कीट पास रखता हूँ, उन्हे बीच बीच में खाता हूँ| पानी में इलेक्ट्रॉल डाला ही हुआ है| लगातार चलाने के कारण धीरे धीरे मेरे लिए साईकिल चलाना और आसान होता जा रहा है|






सुबह के नजारे बहुत अच्छे लग रहे हैं| अब सड़क पर यातायात कम है| हरे भरे खेत चारों ओर हैं| सड़क के दोनो तरफ भी ऊँचे पेड़ है जिससे सड़क और रोमँटीक लग रही है| पण्ढरपूर महाराष्ट्र का सम्भवत: सबसे बड़ा तीर्थ स्थान है| वहाँ जानेवाले तीर्थ यात्री जगह जगह मिल रहे हैं| कुछ समय बाद हायवे शुरू‌ हुआ| पण्ढरपूर जल्द पास आ रहा है| शायद मै आज अपेक्षा के पहले वहाँ पहुँच जाऊँगा| एक जगह पानी पीने के लिए रुका था, तो टायर चेक किया| पीछले टायर पर काँच के छोटे टूकड़े लगे हैं| उन्हे हटा दिया| एक टूकड़ा लगभग टायर के अन्दर तक गया है| उसे निकलने के लिए उस टायर की‌ हवा छोडनी पड़ी| फिर टायर को दबा कर धीरे से उसे भी निकाल दिया| तुरन्त हवा भी भर दी| एक पंक्चर को बचाने की खुशी के साथ आगे बढ़ा| लेकीन... लेकीन पण्ढरपूर पहुँचते पहुँचते सामने का टायर पंक्चर हुआ|





पंक्चर शायद कुछ पहले हुआ होगा, उसका पता पण्ढरपूर पहुँचने पर चला| वैसे मै लगभग हर आठ- दस किलोमीटर पर हवा का प्रेशर चेक करता ही हूँ| चूँकी पण्ढरपूर पहुँच चुका हूँ, इसलिए सोचा कि जल्द ही ठहरने की जगह होगी, इसलिए पंक्चर निकालने या ट्युब चेंज करने की बजाय हवा भर दी और आगे बढ़ा| मुझे रिसीव करने के लिए पण्ढरपूर में एचआयवी पर काम करनेवाले डाप्कू के अफसर पहुँचे हैं| कराड़ रोड़ पर आगे बढता रहा| लेकीन हर दो- तीन किलोमीटर पर हवा भरनी पड़ रही है| जल्द ही‌ उन लोगों के पास पहुँचा| उनके साथ प्रभा हिरा प्रतिष्ठान के पालवी बाल गृह की तरफ बढ़ा| फिर एक बार हवा भरनी पड़ी| लगातार दूसरे दिन पंक्चर की तकलीफ से बहुत असहज महसूस कर रहा हूँ| लेकीन अब पास पहुँचा हूँ|

प्रभा हिरा प्रतिष्ठान का पालवी बाल गृह! पण्ढरपूर- कराड़ रोड़ पर संस्था का कँपस है| यहाँ साथ आए गायकवाड सर और कदम सर ने तथा संस्था की मंगल दिदी ने मेरा स्वागत किया| बच्चे भी साईकिल देख कर उमड़ पड़े| कुछ देर तक डापकू के लोगों‌ से मिला| डापकू अर्थात् District AIDS prevention and control unit. मेरे यात्रा के उद्देश्य, उसका स्वरूप और अब तक की यात्रा के बारे में उन्हे बताया| इस यात्रा की भुमिका बताई| उन्होने उनका परिचय दे कर उनके कार्य के बारे में बताया| ये लोग इस बाल गृह से परिचित है| उन्होने आपस में भी चर्चा की| उसके बाद बाल गृह की संस्थापिका मंगल दिदी से बातचीत की| बाल गृह के रिसेप्शन कक्ष में ही काफी सारी चीजें रखी है| बच्चों द्वारा बनाए गए गिफ्ट आर्टिकल्स्, कागज से बनाए गए फूल, ग्रीटींग कार्ड, दीपावली के खास फूड आयटम्स आदि सब वहाँ दिखे| सितम्बर में जन्म दिन पर मेरी बेटी ने जो बर्थडे कॅप पहनी थी, वैसी ही एक कैप यहाँ पर दिखी!



कुछ देर बातचीत कर मुझे दीपक नाम के एक बच्चे ने मेरा रूम दिखाया| इसी कँपस में और भी एक बड़ा भवन है| वहाँ भी बच्चे रहते हैं और पढ़ाई भी करते हैं| वहीं मै ठहरूँगा| थोड़ा विश्राम किया| मेरे पंक्चर के बारे में और पालवी बाल गृह पहुँचने के बारे में मेरे साईकिल मित्र डॉ. पवन सर से बात की| यहाँ किसी दुकान में मेरे साईकिल का टायर रिप्लेस भी हो सकता है, यह भी पूछा| कदम सर से भी पण्ढरपूर के साईकिल दुकानों के नंबर्स पूछे हैं| लेकीन यहाँ मेरी साईकिल का टायर मिलने की सम्भावना न के बराबर है| उन दुकानों में बात कर यही बात पक्की हुई| अब जो कुछ है, मुझे ही करना होगा| विश्राम और भोजन के बाद पंक्चर निकाला| टायर चेक किया| तब पता चला कि कल जहाँ पंक्चर हुआ था, वहीं पर यह हुआ है| उसी जगह पर एक बहुत पतला सा तार का टूकड़ा मिला| कल टायर जाँचने में यह छूट गया था| धीरे से उसे निकाल कर सुरक्षित बाहर फेंक दिया| ध्यानपूर्वक पंक्चर ठीक किया| वैसे तो यह काम बहुत मामुली सा है, लेकीन बहुत सावधानी से करना होता है| इसके लिए बहुत संयम भी चाहिए| बहुत आसान लेकीन फिर भी कठिन हुनर है| लगभग दस बार इसमें फेल होने के बाद इस हुनर को कुछ हद तक आत्मसात किया है| पंक्चर ठीक किया, लेकीन ट्युब फिट नही की| न जाने, हवा उतर गई तो फिर से जाँचना होगा| 



आज ७७ किलोमीटर हुए| तीन दिनों में २४६ किलोमीटर|

शाम को बच्चों से बातचीत करने के लिए गया| इन दिनों दिवाली की छुट्टी चल रही है, इसलिए बच्चे फ्री थे|‌ बाल गृह की शीतल दिदी से कुछ बातचीत हुई| संस्थापिका दिदी शाम को मिलेंगी| इतने में मुझे क्लाएंट के फोन कॉल्स आए और लैपटॉप पर काम करना पड़ा| अर्जंट सबमिशन! लगभग पूरी यात्रा में इस बात की भी चिन्ता है कि साईकिल चलाने के समय ही सबमिशन तो नही आएंगे! इसीलिए दोपहर के पहले ही साईकिल रोक कर ठहरने की‌ योजना है| जिससे मै यात्रा और मिलने- जुलने के साथ मेरा काम भी कर सकूँगा| बाल गृह की दिदी को बता कर लैपटॉप पर काम करने के लिए रूम में गया| उसे पूरा कर बाहर आते आते साढ़े सांत हो गए| बच्चों का भोजन हो चुका है| रात आठ बजे से दस बजे तक बच्चों का 'जल्लोष' कार्यक्रम होता है| इसमें वे खेलते हैं, नाचते हैं, कून्दते हैं, गाते हैं! मै भी इसमें बच्चों के साथ शामील हुआ| पहले तो बच्चे मुझे कोई सर या गेस्ट ही मान रहे थे| लेकीन जैसे मैने कुछ बच्चों के साथ नाचना शुरू किया, सब बच्चे अचंभित हुए! फिर धीरे धीरे उन्होने मुझसे बात करनी शुरू की|

यहाँ सौ से अधिक एचआयवी होनेवाले बच्चे रहते हैं| सभी उम्र के हैं| कुछ तो एक दिन के शिशु भी हैं| यह एचआयवी होनेवाले बच्चे और महिलाओं का केअर और रिहैबिलीटेशन सेंटर है| यह बाल गृह पूरी‌ तरह प्रायवेट डोनेशन्स के सहयोग से चलता है| सरकार की कोई ग्रांट नही मिलती है| दूसरी बात यह की, महाराष्ट्र में एक भी सरकारी एचआयवी बच्चों का बाल गृह नही है| सरकार से यहाँ के बच्चों को चिकित्सकीय सेवा नि:शुल्क मिलती है| बातचीत में बच्चों में एक वयस्क जैसी सोच दिखी| अपनी किस्मत ही ऐसी खराब है, क्या करे! समाज से नकारे होने के कारण उनमें एक तरह का रोष भी दिखाई देता है| ज्यादातर बच्चे अनाथ या एक अभिभावक होनेवाले हैं| एचआयवी इस शब्द और उसके साथ आए भेदभाव और घृणा के भाव ने उन्हे अपने परिवारों से दूर किया| अब बच्चे यहाँ एचआयवी की ट्रीटमेंट लेते हैं, उनके शिक्षा की यहाँ सुविधा है|‌ पालवी की अपनी दसवी तक स्कूल है| कुछ बच्चे आगे भी पढ़ते हैं| सही ट्रीटमेंट और देखभाल के कारण ये बच्चे अब बिल्कुल 'नॉर्मल' जैसा जीते हैं| एचआयवी इन्फेक्शन पर अगर सही ट्रीटमेंट हो, सही देखभाल हो, तो इसे लम्बे समय तक एड्स में रुपान्तरित होने से रोका जा सकता है|

बच्चों से बातचीत करते हुए और उनका नृत्य- खेलना देखते देखते मंगल दिदी भी आ गई| लगभग साठ से अधिक उम्र में भी वे खुद व्हैन चला कर आई! वाकई समाज की सोच के विपरित जा कर इतना बड़ा काम करना बहुत दुर्लभ है! पहले वे पण्ढरपूर के बस्तियों में पढ़ाने के लिए जाती थी| फिर अनाथ बच्चों के लिए काम करने लगी| बाद में उन्हे एचआयवी होनेवाले बच्चों की समस्या का पता चला| धीरे धीरे उन्होने इस दिशा में काम करना शुरू किया| एक छोटे से शेल्टर से शुरू हुआ यह कार्य अब सौ से अधिक बच्चों का बाल भवन है| उन्हे और भी बहुत आगे जाना है| क्यों कि यह समस्या भी बहुत बड़ी है| मंगल दिदी के अनुसार महाराष्ट्र में लगभग सत्तर हजार एचआयवी होनेवाले बच्चे हैं| मंगल दिदी की बेटी डिंपल जी भी उनके इस कार्य में उनके साथ है| ये दोनो सेवाव्रती इस कार्य के दो आधार स्तंभ है| मंगल दिदी अब एक बहुत बड़े कैंपस की योजना बना रही है| ऐसा बड़ा कैंपस या केन्द्र जहाँ और भी अधिक संख्या में बच्चों को सब तरह की सुविधाएँ मिल सकेगी| उसके लिए उन्हे रूपए पाँच हजार का योगदान देनेवाले दस हजार डोनर्स चाहिए|




कई बाल गृहों के साथ काम करनेवाली संस्था HARC का ब्रॉशर

आज यहाँ दिदी की निगरानी में बच्चे खुशी से जी रहे हैं| लेकीन अब भी समस्याएँ बहुत हैं| अब भी उनके बाल गृह पर पत्थर फेंके जाते हैं| यहाँ कर्मचारी मिलने में दिक्कत होती है| समाज से भेद भाव अब भी जारी है| कुछ ही साल पहले बच्चों को एक बार आँख का संक्रमण (कंजक्टीवायटीस) हुआ| तब एक डॉक्टर बड़ी मुश्कील से संस्था के गेट तक आया और उसने सिर्फ एक ही बच्चे को जाँचा| जहाँ डॉक्टर इतना डरते हो, भेदभाव करते हो, वहाँ और समाज का क्या कहना! मैने दिदी से यह भी पूछा कि शायद इसी वजह से यह पण्ढरपूर गाँव से दूर तो नही है? तब उन्होने कहा कि उस कारण से ऐसा नही है| एचआयवी होनेवाले बच्चों को टीबी होने की सम्भावना होती है| इसके लिए उन्हे खुली हवा अनुकूल होती है| इसलिए यह कैंपस गाँव के बाहर है| यहाँ अब कुछ लड़के- लड़कियाँ वयस्क हो गए हैं| बाल गृह उन्हे रोजगार के लिए भी सहायता करता है और शादी के लिए भी| जिन बच्चों के परिवार हैं और वे वहाँ जा सकते हैं, ऐसे बच्चे कभी कभी अपने घर जाते हैं| संस्था उन्हे बाहर भी ले जाती है| ऐसी बातों के बीच ना तो ढलती रात का अहसास हुआ और ना ही थकावट महसूस हुई| इस कार्य में मैने भी छोटा डोनेशन दिया| दिदी का यह कहना है कि समाज की‌ सोच बदलनी चाहिए| समाज के एटीट्युड में बदलाव आने चाहिए| समाज में अच्छे लोग भी बहुत है| कुछ बच्चों को अपने घर से बाहर जाना पड़ा, लेकीन पडौसी उन्हे प्यार देते हैं| कई संवेदनशील लोगों की सहायता से ही यह बाल गृह चल सकता है| आप भी चाहे तो इस कार्य को और जान सकते हैं, कभी पण्ढरपूर आने पर यहाँ आकर बच्चों से मिल सकते हैं और इस कार्य में यथा इच्छा सहभाग भी ले सकते हैं|

सम्पर्क: Palawi Project Address : Prabha-Hira Pratishthan. Plot no.33, gat no.461/2/c, Takali. Pandharpur. Dist-Solapur, Maharashtra, India. PIN - 413304 दूरध्वनी- मंगल शहा- ९८८१५३३४०३, डिंपल घाडगे- ९८६००६९९४९, पालवी परिवार- ९६७३६६४४५५ पालवी बाल गृह का फेसबूक पेज: https://www.facebook.com/PalawiProject

अगला भाग: एचआयवी एड्स इस विषय को लेकर जागरूकता हेतु एक साईकिल यात्रा के अनुभव ४. पंढरपूर से बार्शी

मेरी पीछली साईकिल यात्राओं के बारे में आप यहाँ पढ़ सकते हैं: www.niranjan-vichar.blogspot.com

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