Saturday, December 8, 2018

एचआयवी एड्स इस विषय को लेकर जागरूकता हेतु एक साईकिल यात्रा के अनुभव: ५. बार्शी से बीड

५. बार्शी से बीड
 

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१६ नवम्बर, आज इस यात्रा का पाँचवा दिन है| कल का दिन साईकिलिंग के लिहाज़ से बहुत बढिया रहा| अब साईकिल चलाना वाकई आसान हो गया है| अब किलोमीटर की‌ दूरियाँ महसूस ही नही हो रही है| कल की चर्चाएँ भी अच्छी हुई थी|‌ अब आज बार्शी से बीड के पास पाली में होनेवाले बाल गृह में जाना है| आज की दूरी लगभग ९५ किलोमीटर होगी| हर रोज की तरह सुबह उजाला होते होते बार्शी से निकला| बार्शी काफी बड़ा शहर है| कैंसर हॉस्पिटल से आगे आगळगाँव की‌ सड़क पूछते पूछते आगे बढ़ा| यहाँ से कुछ दूरी तक बहुत साधारण सड़क है| और अन्दरूनी सड़क होने के कारण बीच में टूटी भी होगी! कुछ दूरी पार करने के बाद ठीक कल जैसी सड़क! लेकीन आसपास नजारे बेहद अनुठे हैं| अब धीरे धीरे सोलापूर जिला समाप्त हो रहा है| दूर कुछ पहाड़ दिखाई‌ दे रहे हैं| उसके आगे पहले उस्मानाबाद और बाद में बीड जिला शुरू होगा| टूटी सड़क जल्द ही खत्म हुई| हालांकी सड़क का निम्न स्तर आगे भी‌ बना रहा|









एक जगह पर चाय- बिस्कूट लिए और आगे बढ़ चला| लगभग ३३ किलोमीटर के बाद मुझे अच्छा हायवे मिलनेवाला है| लेकीन उसके पहले सड़क बहुत विरान क्षेत्र से गुजर रही है| भूम जिले के तरफ जानेवाले एक मोड़ के बाद सड़क पर यातायात बहुत कम हुई| यहाँ एक बहुत दुर्गम गाँव लगा| गाँव पार करने के बाद जैसे जंगल आया| हालांकी अब सूखे का क्षेत्र शुरू होने जा रहा है, इसलिए हरियाली बेहद कम हुई है| जंगल में सड़क धीरे धीरे उपर चढ़ने लगी! मैप में देखा था वैसे ही यहाँ पर एक छोटा घाट मिला| निम्न दर्जे की सड़क से यह घाट थोड़ा कठिन हुआ है| लेकीन चूँकी इतने दिनों से साईकिल चला रहा हूँ, इसलिए आसानी से बढ़ता गया| घाट के टॉप पर पहुँचने पर अच्छे खासे नजारे दिखे| पवनचक्कियाँ भी दिखी, लेकीन वे बन्द पड़ी हैं| अब यहाँ से मै पश्चिम महाराष्ट्र प्रदेश छोड कर मराठवाड़ा क्षेत्र में प्रवेश करूँगा| लेकीन कितनी अन्जान दुनिया में से गुजर रहा हूँ! वाह!





कुछ देर चलने के बाद सोलापूर- बीड हायवे लगा| वाकई यह हायवे बहुत सुन्दर बना है| कुछ कुछ जगहों पर सड़क पर अब भी काम चल रहा है, इसलिए मुझे बड़ी लेन में सुकून से साईकिल चलाने का मौका मिला| लेकीन मुझे इस समय चाय- बिस्कीट की बहुत आवश्यकता है| एक धाबे पर चाय तो मिल गई, लेकीन बिस्कीट नही थे| इसलिए वैसे ही कुछ दूरी तक जाना पड़ा| लेकीन क्या मज़ा आ रहा है ऐसे हायवे पर साईकिल चलाने में! वाह! उसके साथ कुछ उतराई भी है| देखते देखते पन्द्रह किलोमीटर और हो गए| एक जगह पर चाय- बिस्कीट- चिप्स का अच्छा नाश्ता किया| अब तक पचास किलोमीटर हो गए हैं और लगभग पैतालिस बाकी है| लेकीन अब आगे सड़क बहुत शानदार है, इसलिए अधिक कष्ट नही होगा| दोपहर की धूप से लेकीन हर रोज थोड़ी तकलीफ हो रही है| इसके लिए आगे एक गाँव में एनर्जाल लेना पड़ेगा| इस हायवे पर वैसे बहुत कम ही गाँव लग रहे हैं| दो दिनों से साधारण और निम्न साधारण सड़कों के बाद आज इस हायवे का बहुत मज़ा आ रहा है| चढाई पर भी अच्छी रफ्तार मिल रही है|



चौसाला गाँव में एनर्जाल लिया| अब सिर्फ पच्चीस किलोमीटर बचे हैं| मुझे बीड शहर के १० किलोमीटर पहले पाली गाँव में हिल पर बंसे इन्फैंट इंडीया बाल गृह में जाना है| उसके ठीक पहले एक घाट उतरना है| इसलिए आज ९० किलोमीटर से अधिक होंगे, फिर भी रिलैक्स हूँ कि आखरी छह- सात किलोमीटर उतराई होगी| मांजरसुंबा का छोटा मगर सुन्दर घाट! कल सुबह मुझे यही घाट चढ कर जाना है| घाट के बाद उतराई खतम होते होते पाली गाँव आया| यहाँ एक छोटे हिल पर यह बाल गृह है| कच्ची सड़क और तिखी चढाई| इसलिए पैदल जाना पड़ा| लेकीन शानदार परिसर है, नीचे बिन्दुसरा लेक और सामने हिल! उपर चढते समय ही बच्चे मिलने लगे| उनके साथ बाल गृह में पहुँचा| आज लगभग ९५ किलोमीटर साईकिल चलाई| बीच की सड़क को देखा जाए तो यह भी अच्छी सड़क पर १०० किमी से बड़ी राईड होगी| और आज तो बीड जिले में अर्थात् मेरे होमटाऊन के करीबी जिले में आने से एक तरह से मानसिक रूप से इस यात्रा का तनाव समाप्त ही हुआ है, ऐसे लग रहा है! आगे साईकिल तो चलानी होगी, दिक्कतें भी आएंगी, लेकीन अब मानसिक चुनौति समाप्त सी हो गई है| खैर|



पहुँचने के बाद पहले तो बीड जिले के एचआयवी पर काम करनेवाले सरकारी कर्मचारी और स्वास्थ्य कर्मी से मिलना हुआ| ये लोग मेरे लिए यहाँ बहुत देर से प्रतीक्षा कर रहे हैं| बाल गृह का कैंपस बहुत शानदार है| इसमें ही एक स्थान पर सब लोग बैठे थे| पहले वहीं पर जा कर उनके साथ चर्चा की| एचआयवी पर काम करनेवाले प्रोजेक्ट अफसर, काउंसिलर्स आदि लोगों ने अपने अनुभव बताए| सरकारी कर्मी होते हुए भी इनको एचआयवी विषय पर काम करते समय बड़ी कठिनाई होती है| इस चर्चा में दो अनुभव बहुत विशेष लगे| एक सदस्य ने बताया कि पुलिस की प्रवेश प्रक्रिया में एचआयवी टेस्ट होती है| एक महिला का पुलिस प्रवेश प्रक्रिया में चयन हुआ था, लेकीन वह पॉजिटीव थी| अत: उसे प्रवेश से और सर्विस से दूर रखा गया| फिर इस विषय पर काम करनेवालों ने उसके मुद्दे को उठाया| वह पुलिस पात्रता के लिए फिट थी| एचआयवी होनेवाले व्यक्ति को प्रवेश नही है, ऐसा कोई नियम नही था| बाद में बात और आगे बढ़ी, मानव अधिकार का मुद्दा उपस्थित हुआ और तब जा कर उसे सर्विस में लिया गया| आज वह महिला पॉजिटीव होने के बावजूद फिट है और पुलिस में सेवा दे रही है| ऐसा और भी एक किस्सा सुनने में आया| कुछ कर्मचारी जब एक जगह पर स्वास्थ्य शिविर और टेस्टिंग ले रहे थे, तब उन्हे किसी ने बताया कि आप यहाँ टेस्टिंग कर रहे हो और शिविर ले रहे हो, आपको ये तो बैंक के कर्मियों के साथ करना चाहिए| फिर उस व्यक्ति ने बताया कि किस तर बैंक के प्रोबेशन पर आए अधिकारी बार में जाते हैं; उनका वर्तन कितने रिस्क में है| उस व्यक्ति ने इसकी पड़ताल की और इसे सही पाया| बाद में बड़ी मुश्कील से बैंक में इस विषय पर वर्कशॉप लिया गया| पहले तो सब विरोध करते रहे कि हमें इसकी जरूरत नही| लेकीन फिर धीरे धीरे उनकी समझ बढ़ी और लोग टेस्टिंग के लिए आए और जागरूक भी हुए|





काफी देर तक यह चर्चा का कार्यक्रम चला| उसके बाद फिर नहाना- भोजन और विश्राम हुआ| दोपहर का विश्राम बहुत आवश्यक है| अगर एक दिन भी सही विश्राम नही हुआ तो अगला दिन मुश्कील में पड़ेगा! इसलिए विश्राम करने में कोई कसर नही छोड़ी| संयोग से मेरे असाईनमेंटस भी इस तरह आए कि मेरा विश्राम होता रहा| यह बाल गृह श्री दत्ता बारगजे जी ने खड़ा किया है|‌ वे स्वयं डीएमएलटी है और महाराष्ट्र के दुर्गम गडचिरोली जिले में वे स्वास्थ्य कर्मी के तौर पर काम कर रहे थे| वहाँ से फिर वे प्रकाश आमटे जी के सम्पर्क में आए, कुछ साल उन्होने उनके साथ काम किया| और फिर अन्त में सरकारी नौकरी‌ छोड कर अपना पूरा जीवन इस कार्य के लिए लगा दिया| उनकी पत्नि प्रोफेसर थी, उन्होने भी उनके साथ यह जिम्मेदारी ली| एक व्यक्ति का बड़ा योगदान और उसे समाज के सदस्यों द्वारा दिए गए योगदान के साथ यह बाल गृह खड़ा हुआ| किसी ने यह जमीन दे दी, किसी ने साहित्य, उपकरण दिए| कई लोगों के सहभाग से यह काम खड़ा हुआ| आज भी दत्ता बारगजे जी कहते हैं कि हमें कुछ माँगने की जरूरत नही है| यहाँ जो बात आवश्यक होती है, अपने आप आ जाती है| इस बाल गृह को देखते हुए दत्ता बारगजे जी और उनकी सहचारिणी का योगदान साफ दिखाई देता है| दत्ता बारगजे जी बीड के ही केज के निवासी है| अनाथ और एचआयवी होनेवाले बच्चों पर काम करते हुए वे यहाँ पर पहुँचे हैं| यहाँ सभी तरह के पीडित एचआयवी और अन्य दिव्यांग बच्चे भी आते हैं| दत्ता जी ने बताया कि एक मानसिक रूप से दिव्यांग बच्चा है| उसे कहीं पर भी नही लिया गया था| हर तरफ से रिजेक्ट हो कर वह यहाँ पर आया| चलता- फिरता है, लेकीन अपना होश नही है| सब कुछ दूसरों को करना पड़ता है| खाना भी खिलाना पड़ता है| शरीर विकलांग है| कभी कभी अचानक भाग निकलता है| इसलिए कुछ बच्चे उस पर निगरानी करते हैं| शाम को बच्चों से जब मिलना हुआ तब उसे भी मिला| जब सब बच्चे नाच- गाने में झूमने लगे, तब वह भी नाचने लगा! उसे नाचता हुआ देख कर सब चकित हो गए! विकलांग होने के बावजूद नाच रहा है, खुश हो रहा है! ऐसे में लगा कि इस लड़के के लिए सबसे बड़ी ट्रीटमेंट यही होगी कि उसे नॉर्मल जैसा रहने दिया जाए| नाचने में उसका शरीर व्यक्त होने लगा| दत्ता जी ने बताया कि कुछ दिनों पहले तक तो यह बैठ भी नही सकता था| यहाँ के वातावरण ने उसे ठीक करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है| यहाँ सभी एचआयवी बच्चों की सही ट्रीटमेंट पर ध्यान दिया जाता है| उसके साथ योग और नैच्युरोपैथी भी अपनायी जाती है| बच्चों को शिक्षा के साथ कौशल वृद्धि में भी तैयार किया जाता है|



बच्चों के साथ नाच- गाना होने के बाद यहाँ की टीम के साथ चर्चा हुई| दत्ता जी ने और सबने बाल गृह कैसे चलता है, यह बताया| यहाँ अच्छी टीम दिखी| कई तरह से लोग जुड़ते गए हैं| कुछ लोग तो एचआयवी होनेवाले बच्चों के अभिभावक भी हैं| वो भी यहाँ रहते हैं और यहीं पर काम भी करते हैं| जो बच्चे बड़े हुए हैं, अब वे भी बाल गृह के प्रबन्धन में सहयोग देते हैं| और बच्चे खुद भी बहुत सहभाग लेते हैं और स्वावलम्बी भी हैं| चर्चा में एक बात यह पता चली कि अब जैसे ट्रीटमेंट विकसित हो रही है, माता से शिशु में एचआयवी संक्रामण होने की सम्भावना बहुत कम हुई है| हालांकी इसके लिए शिशु के पहले अठारह महिनों तक बहुत सख़्ती से ट्रीटमेंट आवश्यक होती हैं| स्वास्थ्य कर्मी और सम्बन्धित संस्था को बच्चे पर ध्यान देना होता है| ऐसे में अगर कोई पॉजिटीव माता का बच्चा अठारह महिनों बाद निगेटीव पाया जाता है, तो सबकी खूशी आसमां को छुती है| संस्था में ऐसा ही एक बच्चा सबके साथ खेल रहा था! उम्मीद है कि जागरूकता- पॉजिटीव माता- पिताओं में भी और सब स्वास्थ्य कर्मियों में भी बढ़ती रहेगी तो अधिक से अधिक बच्चों को जन्मजात एचआयवी संक्रामण नही होगा|

इस बाल गृह का कार्य कुल मिला कर नीचे जो बिन्दूसरा सरोवर है, उसके जैसा ही है| बून्द बून्द मिलने पर ही सरोवर बनता है! बिन्दू से ही सर बनता है| वैसे ही यह काम कई लोगों के योगदान का परिणाम है|‌ इस बाल गृह की और एक खास बात यह है कि यहाँ परिसर बहुत रमणीय है| तो इसे टूरीस्ट पॉईंट भी बनाया जा सकता है| लोग टूरीजम के बहाने आएंगे और इस विषय से परिचित होंगे| दत्ता जी भी इस विचार से सहमत हैं| इतना काम जान कर मुझे इसमें सहभाग लेने की इच्छा हुई| डोनेशन भी किया, लेकीन दत्ता जी ने प्यार से इसे अस्वीकार कर दिया| इतना सब काम होने के बावजूद अब भी समाज मानस में गलत धारणाएँ बहुत हैं| आसपास के लोग अब भी इसे विपरित नजरिए से देखते हैं| आज भी मृत बच्चों को अन्तिम संस्कार को जगह नही मिलती है| इसी परिसर में एक हिस्से में उनका अन्तिम संस्कार करना पड़ता है... इस बाल गृह के बारे में अधिक जानने के लिए और इस कार्य में किसी रूप से सहभाग लेने के लिए सम्पर्क कर सकते हैं- 

इन्फँट इंडिया, आनंदवन, बिंदुसरा लेक के सामने, राष्ट्रीय महा मार्ग क्रमांक - २११, पाली, बीड, महाराष्ट्र|
दूरभाष: (०२४४२) २७६६२१, २७६६२२
मोबाइल: ०९४२२६९३५८५
वेबसाइट: www.infantindia.org
ई-मेल: infantindiapali@gmail.com

अगला भाग: एचआयवी एड्स इस विषय को लेकर जागरूकता हेतु एक साईकिल यात्रा के अनुभव ६. बीड से अंबेजोगाई

मेरी पीछली साईकिल यात्राओं के बारे में आप यहाँ पढ़ सकते हैं: www.niranjan-vichar.blogspot.com

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