Tuesday, September 15, 2020

बेटी को दूसरे जन्म दिन पर लिखा हुआ पत्र: बच्चे मन के सच्चे. . .

१८ सितम्बर २०१६

प्रिय अदू. . . .
 

पहले साल का पत्र

कल तुम्हारा दूसरा जन्मदिन था! तुम दो साल की हुई! कल का तुम्हारा नाचना, सेलिब्रेशन में हंसना, सब के साथ खेलना, गोल- गोल घूमना और बिना थके अथक स्टैमिना होना. . . असल में शब्द बहुत पीछे छूट जाते हैं| मुझे कल तुम्हारी और एक चीज़ बहुत विशेष लगी| वह तुम्हारे स्वभाव का ही हिस्सा है! तुम्हारी सरलता! सहज भाव! कैसे किसी का मन इतना सरल और शुद्ध हो सकता है? हाँ, हो सकता है| तुम्हे देखते हुए इसका अनुभव आता है| इसलिए कल की बर्थडे पार्टी बहुत ही मिठी थी|


अदू, विगत दो सालों में ऐसे कई अवसर आए जब जीवन सार्थक लगा| एक एक दृश्य आँखों के सामने प्रत्यक्ष अनुभव करता हूँ| जब तुम बहुत ही छोटी थी, तब तुम मेरी तरफ देख कर मुस्कुराई; हमने जीभ की भाषा में बात की! जब तुम्हे पहली बार उठाया वह क्षण| ऐसे अनगिनत क्षण तुम ले कर आई| तुम्हारे बारे में लिखते समय आँखें गिली हो जाती है| शब्द नही आ पाते है| तुमने कहा हुआ पहला शब्द! तुम्हारी हर एक लीला! वास्तव में नवसंजीवनी जैसा कुछ होगा तो वह तुम्हारा चैतन्यमय अस्तित्व! और सोने पर भी तुम्हारा शान्त और सन्तोषभरा चेहरा! अनगिनत यादें! पर लिखते समय शब्द नही फूटते है अदू|
 

असल में पालक के तौर पर तुम हमें ढाल रही हो| Child is the father of man. तुम्हारे जन्म के साथ हमारा भी पालक के तौर पर जन्म हुआ| और पालक ही नही, बल्की जीवन में नई दृष्टि लाने के सम्बन्ध में ही तुमने हमें जैसे नया जन्म दिया| आज तुम्हारे जन्म दिन के अवसर पर हम तुमसे क्या क्या सीख रहे हैं और सीख सकते हैं, यह तुमसे कहना चाहता हूँ| पीछली बार के पत्र में जो कहा था, उसे जोड़ कर आगे कहना चाहता हूँ|
 

बच्चों को ईश्वर द्वारा भेजे गए फूल क्यों कहते हैं, इसकी प्रतिति तुम्हे देखते समय आती है| शुद्धता क्या होती है, शान्ति- सन्तोष क्या होता है, यह तुम्हे देखते हुए पता चलता है| अब इसे शब्दों में कैसे कहूँ? तुम्हारे पहले मैने ज्यादा बच्चों को इतना करीब से देखा नही था| पर मुझे लगता है जो चैतन्य तुममें‌ है, जो प्रगाढ़ शान्ति है, वे सभी में होती है| अदू, मुझे याद है पीछले साल दिवाली के समय तुम पटाखों की आवाज सुनने जितनी बड़ी हो गई थी| पहली दिवाली को तो तुम बहुत छोटी गुडिया थी! इसकी वजह से तुम्हारे कान में रुई‌ डाली थी| लेकीन पीछली दिवाली के समय तुम ठीक से पटाखों की आवाज सुन पाई| और तुम भी उन्हे सरलता से सुनती थी| तुम्हे जैसे डर का पता ही ना हो| जिसके बारे में सम्भवत: छोटे बच्चे डरते है; उसे तो वो चाहिए होता है| फिर वह कोई जानवर होगा, अन्धेरा होगा या भूभू (कुत्ता) होगा! पटाखों के फूटने पर डरने के बजाय तुम मुस्कुराती थी! धुडूम! तुम्हारी यह सहजता मुझे सम्मोहित करती है अदू!
 

 

हमेशा देखा है कि तुम्हारे मन में सामने होनेवाली चीजों के बारे में एक सकारात्मक ओपननेस होता है| बहुत ही कम बार तुम किसी चीज़ को देख कर नही कहती हो या रोती हो| दुनिया की तरफ किस स्वस्थ दृष्टि से देखना चाहिए, यह तुमसे सीखना चाहिए| अगर कोई कुत्ता भौंक रहा हो या अचानक बिजली चली गई हो, तो भी तुम उतनी ही‌ प्रसन्न होती हो! प्रसन्नता यही तुम्हारा वास्तविक नाम होना चाहिए! अदू, मेरे लिए यह शब्दों में लिख पाना कठिन है| पर प्रयास करता हूँ| पीछले जन्म दिन के पश्चात् लगातार कुछ दिनों तक तुम्हारी सेहत स्वस्थ नही थी| चार- पाँच दिन तो तुम बहुत ही वीक हो गई थी| दिन भर सब तरफ भागदौड़ और शोरगुल करनेवाली तुम एकदम कमजोर हो गई, तुम्हारी किलकारियों की गूँज भी रूक गई थी| बाहर चलिए ना, कहनेवाली तुम बिल्कुल शान्त हो कर दिनभर सोती थी| उस समय चाहे तुम्हारा बोलना- हंसना कम हुआ हो, लेकीन फिर भी तुम्हारे चेहरे की मुस्कान कायम थी| उस समय भी भाई की तरफ देख कर तुम मुस्कुराती थी|


अदू, मुझे लगता है कि तुम्हारी प्रसन्नता अकारण है, इसलिए बाहर कुछ भी हो, तुम्हारा मन प्रसन्न ही रहता था और अब भी वैसा ही है| हमारी नजर में जहाँ खुशी की कोई किरण नही होती है, वहाँ भी तुम मुस्कुराती रहती हो| मुझे याद आता है, तुम जब बहुत छोटी थी, तब तुम साँप जैसे रेंगते रेंगते दूसरे कमरे में आती थी और मुझे ढूँढती थी| और मै दिखने पर कितना मुस्कुराती थी! कैसे प्यार करें, यह तुमसे सीखना चाहिए| पीछले साल में अनगिनत बार तुमने इस तरह ऊर्जा दी है| आज इन चीजों पर गौर करते हुए एक अर्थ में बहुत पश्चात्ताप होता है| अन्दर से तकलीफ होती है| तुम इतनी प्रसन्न, शान्त और आनन्दमय होते हुए भी हम हमारी सारी चिन्ताएँ, हमारे अनगिनत टेन्शन्स और जीवन के सभी प्रेशर्स- सब कुछ रबिश ले कर तुम्हारे तरफ जाते थे| कई बार तो तुमसे दूर जाना पड़ता था| और हर रोज के कामों में तुम्हे मनचाहा समय भी नही दे सकते हैं| हम मन में इतने तनाव लिए हुए होने पर भी तुमने कभी भी शिकायत नही की| को- ऑपरेटीव यह कोई उचित शब्द नही है, पर तुम बहुत को- ऑपरेट करती हो| एक बार तुम्हे बताने पर तुम समझ लेती हो| इसीलिए तुम्हे नानी के पास छोड़ कर हम दिनभर दूर जा सकते है, या युं कहना चाहिए कि तुम हमें जाने देती हो| इतना तुम्हारा मन बड़ा है; इतनी शान्ति तुम्हारे पास है| हमें बाय करते समय तुम्हे तकलीफ तो होती ही है| वह स्वाभाविक है| पर दूसरे पल तुम प्रसन्न चित्त होती हो|‌ चीज़ें जैसी हो, उन्हे उसी तरह से कैसे स्वीकारें, यह कला हमे भी सीखाओ ना! पीज अदू!

जीवन के संघर्ष, अनगिनत शोरगुल, मन के अनगिनत तनाव, विकार आदि से झुझने पर भी तुम्हे मिलने के बाद एक पल में वह सब कुछ भुलाया जाता है| अदू, हम जब छोटे थे, तब कॉमिक्स में पढ़ते थे कि कुछ ऐसे विलैन होते थे जिन पर वार करने पर वे अदृश्य या ट्रान्समिट हो जाते थे| उसी तरह हमारे मन के विकार और तनाव तुम्हे मिलते समय अदृश्य हो जाते है! ऐसा तुम्हारा पारस स्पर्श है कि लोहा होने के बावजूद उसका भी सोना होता है! तुमसे मिलने पर तुम्हे होनेवाला हर्ष, तुम्हारा खुशी से झूमना और भागना!! Really, child is the father of man. जैसे मैने पीछले पत्र में कहा था, हम तुम्हारे जितने लाड़- प्यार करते होंगे, उससे बहुत ज्यादा तुम ही हमें करती हो| तुममें होनेवाली अखण्ड प्रसन्नता और ऊर्जा! 

पालक कैसे होना चाहिए, यह तुम ही मुझे सीखा रही हो| अदू, मुझे याद आता है, जब मैने अकेले तुम्हे संभालना सीखा, तब शुरू में मुझे बहुत टेंशन था| मै वास्तव में घण्टे घण्टे का प्लैन करता था- तुम्हे पाँच मिनिट खिलौना दूंगा, दस मिनिट गैलरी में ले कर खड़ा रहूँगा, दस मिनिट खिड़की से सड़क दिखाऊँगा, पन्द्रह मिनिट घूमने ले जाऊंगा ऐसे! लेकीन तुमने उंगली थामी और एक एक चीज़ इस तरह सीखाई की सब कुछ आसान होता गया| मेरे बहुत से डर तुमने झूठे सिद्ध किए| पहले तुम्हे लेकर खिड़की या रेलिंग के पास खड़े रहने में मुझे बहुत डर लगता था| लेकीन तुमने सब कुछ आसान बना दिया| तुम्हारे कारण एक तरह का अनुशासन सीखना पड़ा और आगे भी सीखना होगा| क्यों कि तुम प्रकाशमान लौं जैसी तेजस्वी हो, वहाँ अन्धेरा ठहर ही नही सकता है| जहाँ तुम खेलती हो- बैठती हो, वहाँ तुम्हे ऐसी चीजें देनी होगी जिससे तुम्हे रोकनी की जरूरत ही नही हो| ‘यह करो,’; ‘यह मत करो' ऐसा किसी भी प्रकार से न बताते हुए तुम्हे मुक्त तरीके से खेलने देने की अरेंजमेंट करनी चाहिए| यह दृष्टि ही तुमने दी| और हमने तुम्हे जो भी कहा, तुमने कभी भी नही टाला| अदू, आज भी तुम्हारी आवाज उतनी ही‌ प्यारी और इनोसंट होती है, तुम आसानी से कहती हो- मै कुर्सी पर बैठूं? तेदी लाऊं? एक बार तुम्हे समझाने के बाद और तुम्हारी उस पर की स्वाभाविक प्रतिक्रिया आ जाने के बाद कभी भी तुमने किसी भी चीज़ के बारे में शिकायत नही की| वाकई, “इस क्षण में कैसे जीना चाहिए", यही तुमने दिखाया|


अर्थात् अब समाज में और जीवन के ढाँचे में आनेवाली चीजें तो आती हैं| कई बार वे अपरिहार्य भी होती हैं| समाज में रहते समय कई चीजें सीखनी होती है| इस कारण ऐसे अवसर पर तुम्हे रोकना और कई बार मना करना भी अपरिहार्य है| और तुम इतनी शार्प हो, इतनी तेज़ हो, कि जिससे तुम्हे अलग सीखाने या समझाने के बजाय तुम हमारे बर्ताव से ही बहुत कुछ लेती हो| जब हमारा कहा हुआ ही तुम कहती हो, तब तो हमें तुम्हे 'ऐसा मत कहो,’ कहना पड़ता है| जैसे हम ही तुम्हारे सामने "चूपचाप बैठो,” कहते हैं और बाद में तुम भी हमें वही सुनाती हो| उस समय हमे तुमसे कहते है कि ऐसा तो नही कहना चाहिए| यह एक उदाहरण है कि किस तरह खुली हुई सोच सिमट जाती है| जब तुम हवाई जहाज़ की आवाज सुनती हो तो चिल्लाती हो कि हवाई जहाज आया! उत्तेजित होती हो| लेकीन तुरन्त बाहर देखे बिना तुम ही कहती हो कि वह तो दिखता ही नही, बादलों में हैं! अदू . . .

अद्विका- अदू, स्वरा, गोड, साखर, छकुली, मनुली, पिकू ऐसे तुम्हारे कितने कुछ नाम है! जब तुम नन्ही सी थी, तब मुझे निन्ना कहती थी! कितनी मिठी आवाज में मुझे पुकारती थी, निन्ना! और अब निन्जन कहती हो| छोटे बच्चों को जन्म से ही‌ हर चीज़ में होनेवाला चैतन्य दिखाई देता है! तुम्हे भी वह दिखता है| इसलिए तुम्हे 'डरावने' खूंखार कुत्ते से भी डर नही लगता है| भौंकनेवाले डरावने कुत्ते के पास जा कर भी कितने प्यार से तुम उससे बात कर सकती हो! अदू, अच्छा शिक्षक वह होता है जो छात्रों की भी सही पहचान करा देता है और खुद को भी उनके सामने खोल देता है, खुद की भी पहचान करा देता है| इसी तरह तुम एक एक चीज़ें सिखाती हो जिसे पालक बनने का शास्त्र ही कहना चाहिए! शुरू में बहोत सी छोटी चीजें भी मुश्कील लगती थी| तुम्हे संभालते समय अगर तुम रोई, तो मै क्या करूं, ऐसा सवाल मन में आता था| पर अब बहुत आसानी से तुमने मुझे सीखाया कि क्या करना है| वही चीज़ है तुम्हारी पॉट्टी साफ करने की| लर्निंग बाय डूईंग! और यह करते समय हमेशा तुम साथ होती हो, तुम्हारी मुलायम पुकार होती है- ‘निन्ना!’ हमेशा तुम जिसकी बौछार करती हो, वह प्यार और अपनापन होता है. .
 

अदू! कई चीजें आँखों के सामने आती है| एक कार्यक्रम में तुम्हारा खिलना- हंसना और दौड़ना! और जब यह बच्ची दौड़ कर थक गई, तो वो रेंगनेवाली छोटी नन्ही परी हो गई! या एक टोपी पहनने के बाद तुम्हारा और भी छोटी बेबी जैसा दिखना! तुम्हे जब पहली बार मोटर साईकिल पर ले गया, तब का अनुभव! हर बार तुम्हारा खुशी से भर जाना! तुम्हे संभलते समय शुरु के दिनों में बहुत टेंशन होता था| जल्द ही तुमने हर एक चीज़ मुझे सीखाई| निन्जन, पानी दो, निन्जन बाहार चलें . . .
 

अदू, दो बार तुम बहुत बीमार हुई थी| उस समय भी तुम गोद में लेटते हुए कहती थी कि कौनसा गाना सुनना चाहती हो| दादी को गाना कहने के लिए कहती थी| बीमार होने के बावजूद भी कभी भी तुम लगातार रोती नही रही| हर समय तुम्हारी शान्ति कायम रहती थी| कड़वी दवा लेते समय भी तुम बहुत सहज होती हो| तुम उसे फैंक नही देती हो| या उससे रोती भी नही हो| इंजेक्शन भी हो, तुम सिर्फ एक मिनिट रोती थी| उसके बाद तुरन्त शान्ति और चेहरे पर मुस्कान! दादा के साथ और सबके साथ हमेशा तुम खेलती हो| तुम्हे लोग पसन्द आते हैं| और अदू, उस दिन तुमने जब घोषणा ही कर दी- "माँ, मुझे स्कूल जाना है!" मुझे बहुत ही अचरज हुआ!
अदू, तुम्हे कई बार हमारे कारण बहुत दूर दूर तक यात्राएँ करनी पड़ी| कई बार दिनों दिनों तक मम्मी से दूर रहना पड़ा| पर कभी भी तुमने शिकायत की नही| मन में आनेवाली प्रतिक्रिया कहने के बाद तुम हमेशा शान्त रह कर मुस्कुराती हो! मुझे याद है- घर में दु:खद घटना घटी थी, घर शोकमग्न था| पर सिर्फ तुम्हारी उपस्थिति के कारण ही वह वातावरण सहन किया जा सका| सब लोग बहुत दु:खमग्न थे, लेकीन तुम्हारी उपस्थिति मुस्कुराहट ले ही आई|
 

अदू, तुम्हारे साथ ट्रेकिंग करने में भी बड़ा मज़ा आता है! सड़क पर आनेवाली मज़ेदार चीज़ें तुम बहुत एंजॉय करती हो| कुत्ते, पंछी, तितली, पेड़, पहाड़, किड़े, घास, गाडियाँ, चाँद, तारे! और जम तुम्हे ले जाते समय मुझे पसीना आता है, तब कहती हो कि मै पोछ देती हूँ! और अक्सर कहती हो, नीचे छोड़ो, मै चलूँगी! चलाओ ना, चलाओ ना! मम्मी के साथ हिमालय में घूमते समय भी तुम कहती हो, नीचे छोड़ो, चलाओ ना| पास- पडौस के परिसर से तुम्हारा रिश्ता बिल्कुल पक्का है| चाहे वे खिलौने होंगे, कागज़ का टुकड़ा हो या तुम्हारा तेडी (टेडी बीअर) हो! तुम हम पर भी‌ उतना ही प्यार करती हो| हर एक में तुम्हे वही चैतन्य नजर आता है|
 

और छोटी चीज़ों में तुम्हे तो बहुत आनन्द आता है| पास से गुजरनेवाले जेसीबी का आवाज आने पर तुम दौड़ी चली आती हो! उसकी घर्र घर्र आवाज तुम्हे दूर से ही पता चलती है और तुम दौड़ी आती हो! फिर हम खिड़की में जा कर जेसीबी देखते हैं| जैसे ही‌ वह पास से गुजरता है, तुम उसे देख कर मुस्कुराती हो| धीरे धीरे वह आगे बढ़ता है| उसमें अक्सर गाना भी लगा हुआ होता है| (एक बार तो क्या कहूं मेरे बचपन का पसन्दीदा गाना लगा था- घूंघट की आड से! उस समय मैने जो महसूस किया, वो कह नही सकता . . !) और जेसीबी जाने तक तुम टकटकी लगा कर देखती रहती हो| अदू, तुम इतनी निष्पाप हो कि तुम्हे भौंकनेवाले कुत्तों से भी तकलीफ होती है| हमने रोने की सिर्फ एक्टींग भी की, तो तुम्हे सच में रोना आता है| खिलौनों में भी तुम्हे वही चैतन्य नजर आता है| तुम बताती हो, खिलौने को नीन्द आ रही है| फिर उसे गोद में ले कर तुम सुलाती हो! बाहर जाते समय तुम अक्सर कहती हो, मत जाओ, मत जाओ ना! इतना तुम्हारा प्यार है . . . जब टीवी पर सैराट का गाना लगता है, तब तुम फुदकती फुदकती नाचने लगती हो! जिंग जिंग कह के खुशी से झूम उठती हो! और मुझे उठा कर लेने के लिए कहती हो और हम साथ नाचते हैं! छोटी छोटी चीज़ों में इतना बड़ा चैतन्य देखने की सूक्ष्मदर्शी जैसी सूक्ष्म दृष्टि हमें तुमसे कैसे मिले, यह बड़ा प्रश्न है|
 

यह दृष्टि वैसे तो बहुत सीधी और वैसे बहुत कठीन भी है| क्यों कि हम वे ही चीजें देख सकते हैं जिनके लिए हमारी आंखों की खिडकियाँ खुली हुईं होती हैं और हमारी परिस्थिति उसके लिए अनुकूल होती है| अदू, तुम्हारा साथ मिलने के पहले मै छोटे बच्चों में होनेवाला चैतन्य इतना नही देख पाता था| जीवन के हर एक मोड़ पर हमारी दृष्टि अलग अलग होती है| हम जीवन के क्रम में जहाँ होते हैं, वहाँ से अगले पड़ाव के दृश्य हम देख सकते हैं| हमारी जो वासनाएँ होंगी, बलवान आवेग जिस तरह के होंगे, उस तरह हमारी दृष्टि होती है| एक ही बगीचे में अगर एक वैज्ञानिक और कवि साथ साथ जाते हैं, तो वे बिल्कुल ही अलग किस्म की चीजें देखेंगे| और यह भी होता है कि हम वही देखते हैं जिसे देखने की हमें इच्छा होती है| और जो देखने की हमारी इच्छा नही होती है, उसे हम देख नही पाते हैं| पर अदू, तुम्हारे साथ जीवन में पहले कभी भी जो नही देखा था, वह बहुत बड़ा दालन अब दिखाई देने लगा है! अनक्लटर्ड माइंड क्या होता है, शुद्ध ऊर्जा क्या होती है, यह देखने का मौका मिला है. . .
 

अदू, तुम्हारे प्यार और ममता से इतना भर जाता हूँ कि वास्तव में नतमस्तक होता हूँ| खाते समय तुम हमेशा एक निवाला हमें देती ही हो| इतनी तुम्हारी ममता है| इतनी आत्मीयता है| सिर्फ नतमस्तक होता हूँ| फिर समझ आता है कि तुम ही हमारी पालक हो, हमारी मार्गदर्शक हो| इसके बदले में तो कुछ भी नही किया जा सकता| और वह पात्रता अर्जित करना भी कठीन है| वह निर्दोष दृष्टि, वह शुद्ध और वर्तमान में होनेवाला मन! इसे कैसे ला सकता हूँ! इतनी अद्भुत सरलता! वाकई तुम्हारे खिलौने भी तुम्हारे लिए जीवित होते हैं| तुम इतनी निर्मल- निष्पाप हो, लेकीन मेरे मन में तो वासनाएँ और विकारों का घना जाल| तुम्हे तो हर चीज़ में चैतन्य नजर आता है, पर मुझे तो हर चीज़ में दोष नजर आता है| तुम्हारे पास हर एक चीज़ के लिए स्वीकृति है, तो मुझे हर चीज़ में कुछ अखरता है!
अदू, तुम्हारी बुद्धी इतनी तेज़ है कि तुम्हे हर चीज याद रहती है| जहाँ से हम वडा पाव लाते हैं, वहीं से जाते समय तुम अक्सर पूछती हो, वदा पाव लाओगे? गाना सुनते समय अपने आप तुम्हारे हाथ भी दाद देते हैं| तुम्हारे सारे बाल- गीत तुम्हे याद है और तुम्हारे कारण घर में सभी को भी! तुम लोगों को भी ऐसा ही याद रखती हो! और तुम मुझसे बहुत ज्यादा सोशल हो, इसकी सभी लोग सराहना करते हैं! मोबाईल में रिंगटोन के तौर पर कभी पहले लगाया हुआ गाना अचानक से बजा, तो भी तुम तुरन्त पहचानती हो और कहती हो- फोन आयी! गण बाप्पा के सामने से जाते समय तुम ही मुझे कहती हो, ‘जय बाप्पा करो!’ तुम इतनी तेज़ हो कि हम तुम्हारे सामने जो बोलते हैं, तुम्हे जो एक बार बताते हैं वो तुम पूरा याद रखती हो| इस कारण हमें जिम्मेदारी के साथ तुम्हारे सामने बोलना चाहिए| उतनी सजगता रखनी चाहिए|
 

विपश्यना साधना करते समय शुरू में मन के सब विकार उपर आ जाते हैं और अटके गटर में जैसे दुध की बून्द गिरी हो, उस तरह मन के दोषों की पृष्ठभूमि में जैसे सजगता का बिन्दू दिखाई देता है| लेकीन साथ ही वह उस गटर को मूल रूप में भी दर्शाता है| इसी तरह तुम्हारे साथ मन में होनेवाले अनगिनत विकार वाकई में महसूस होते हैं और वे विकार हैं, इसका पता चलता है| ऐसा इसलिए क्यों कि हमें‌ चीजों में फर्क समझने के लिए काँट्रैस्ट आवश्यक होता है| ब्लैकबोर्ड पर काले चॉक से लिखा तो उसे पढ़ा नही जा सकता है| ब्लैकबोर्ड पर लिखने के लिए सफेद चॉक ही आवश्यक होता है! तुम्हारा साथ होना इस सफेद चॉक जैसा है! मन में होनेवाले अनगिनत विकार तुम्हारी शुभ्रता में वास्तविक रूप से दिखने लगते हैं . . .
 

और ये विकार, ये तनाव और मन की अशान्ति और ये दोष सिर्फ दिखना काफी नही है| अखण्ड सजगता यह बिल्कुल अलग चीज़ हैं| विचारों के स्तर पर हम सब समझ रहे होते हैं| लेकीन उस पर वास्तविक अमल नही कर सकते हैं| हम अक्सर कहते हैं कि क्रोध बुरा होता है या क्रोध निरर्थक है| लेकीन ठीक समय पर क्रोध हमें अपने कब्जे में कर ही लेता है| अदू, एक कहानी तुम्हे कहता हूँ| बड़ी होने पर तुम उसे समझ पाओगी| एक गाँव में एक पुजारी रहता था| सबको लगता था कि वह बड़ा धार्मिक आदमी है| दिन रात वह उसके घर के सामने के मन्दीर में बालाजी इस देवता का जाप करता था| भोर में तीन घण्टे और शाम को तीन घण्टे उसका यह जाप और भजन बड़े शोरगुल के साथ चलता था| पास पडौस के लोगों को उससे बहुत तकलीफ होती थी| पर ईश्वर का भजन है, इसलिए कोई कुछ नही कहता था| उसके पास ही एक युवक रहता था| वह इस आदमी को जानता था| उसका वास्तविक नाम किसी को भी पता नही था, लेकीन वह बालाजी की अविरत उपासना करता था, इसलिए सभी लोग उसे बालाजी ही कहते थे| एक बार उस युवक ने तय किया कि उस आदमी को एक पाठ पढ़ा कर ही रहेगा| उसने कुछ दोस्तों को इकठ्ठा किया और उन्हे कुछ बताया| 

बालाजी के घर के सामने एक छोटा कुआ था| बालाजी रात में आंगन में ही खाट पर लेटा था| उस युवक ने देर रात दोस्तों को इकठ्ठा किया|‌ उन्होने बालाजी को खाट सहित चूपचाप उठाया और धीरे से उठा कर कुए के पास रख दिया| बालाजी नीन्द में ही था| फिर वे लोग कुछ दूरी पर जा कर रूके और उन्होने एक पत्थर फैंक कर बालाजी को जगा दिया| जिस क्षण वह जग गया, उसने कुआ देखा और जोर से दहाड़ मारी! उसकी चीख़ सुन कर आसपास के लोग जग गए! वह डर के मारे काँप रह था| तब वह युवक सामने आया और उसने बालाजी को पूछा, अब बताईए, आपने चीख क्यों मारी? आपको आपका बालाजी याद नही आया? आप उसकी इतनी भक्ति करते हैं, तो तुम्हे वह क्यों याद नही आया और डर ही क्यों लगा? बालाजी पहले तो बड़ा नाराज हुआ, लेकीन फिर शर्मिन्दा हुआ| हर रोज चिल्ला चिल्ला कर किया हुआ जाप भी मेरे मन में गहरे में नही जाता है और वहाँ का डर जस का तस रहता है, यह उसके समझ में आया| इसके बाद एक औपचारिकता जैसा किया जानेवाला उसका जाप उसने बन्द ही किया! और कुछ समय के बादतो वह बिल्कुल अलग इन्सान बन गया!
 

इस कारण से विचार और बुद्धी के स्तर पर ऐसी चीज़ों के बारे में सजग होना आसान है; लेकीन अन्तर्मन की गहराईयों में वह सजगता रखना बहुत कठीन है| और उसके लिए अविरत साधना और अविरत रिमाइंडर आवश्यक है| तभी यह सजगता गहरी जा सकेगी और किसी भी कठीन प्रसंग में- जागते हुए या नीन्द में भी- वह टिक सकेगी| अदू, तुम्हारी शुद्धता- तुम्हारी शुभ्रता आज है उसे वैसे ही बनाए रखना, उस पर कोई भी दाग़ या अन्धेरा न आने देना और निसर्ग ने तुम्हे हमे जिस शुद्ध स्वरूप में दिया है, उसे आगे भी सुरक्षित रखना, यह हमारी सच्ची जिम्मेदारी है| हालांकी कहते हैं ना कि प्रकृति में हर कोई मूल रूप से शुद्ध ही होता है, जन्म के समय शुद्ध ही होता है| लेकीन आगे बढ़ते हुए प्रकृति द्वारा दिया गया शुद्ध वस्त्र गन्दगी से मैला हो जाता है| प्राकृतिक नही, लेकीन यह सामाजिक नियम जैसी ही बात है| कोई विरले कबीर होते हैं जो अपना मूल स्वरूप प्राप्त करते हैं और कहते हैं 'ज्यों की त्यों धर दिनी चदरिया!' प्रकृति ने जो मूल स्वरूप दिया था, उसे वे कष्ट और साधना से फिर प्राप्त करते हैं| पर अदू, तुम्हारे कारण एक 'आशा' हमें मिली है कि जैसा तुम्हारा शुद्ध स्वरूप है, वैसा हमारा भी कभी था| आज उस पर धूल और मैल की कई पर्तें चढ़ी हुई है और गटर बहुत जाम हो गया है, लेकीन एक समय शुद्ध स्वरूप था, यह आज भी याद आता है| बचपन की धुन्धली यादें आज भी कहती हैं कि एक समय मुझे भी हर चीज़ में यही चैतन्य नजर आता था| अदू, तुम्हारे साथ होते हुए वह निर्मल दृष्टि हमें जरूर मिल सके, इतना आशीर्वाद तुम हमें जरूर देना. . .

इनको किसी से बैर नहीं
इनके लिए कोई गैर नहीं
इनका भोलापन मिलता
है सबको बांह पसारे
बच्चे मन के सच्चे. .  
सारी जग के आँख के तारे. .

धन्यवाद! 



3 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (16-09-2020) को  "मेम बन  गयी  देशी  सीता"    (चर्चा अंक 3826)        पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --  
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
    --

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  2. बहुत दिनों के बाद ? सुन्दर सृजन। हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं।

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    1. जी सर! धन्यवाद! आपको भी शुभकामनाएँ!

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