Wednesday, March 9, 2022

हिमालय की गोद में... (कुमाऊँ में रोमांचक भ्रमण) १५ (अन्तिम): हिमालय से वापसी...

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९ नवम्बर को पाताल भुवनेश्वर की रमणीय यात्रा हुई| अब हिमालय से विदा लेने का समय आ रहा है! लेकीन १५ दिनों तक हिमालय में रह पाया और हिमालय का सत्संग ले सका! निरंतर बने रहनेवाले घाट की सड़कें, शानदार ट्रेक, रमणीय हिमशिखर, गूंजी की रोमांचक यात्रा, नए जगहों पर भ्रमण, रात में उमड़नेवाली तारों की बारात! लेकीन मज़े की बात है कि हिमालय से विदा लेते समय पहले जैसा होता था, वैसा अब होमसिक नही हो रहा है| स्पीति में‌ साईकिल चलाने के बाद हिमालय की आज्ञा ली थी, तो लगा ही नही था कि मै बिछड़ रहा हूँ| हिमालय जैसे साथ ही रहा| खैर| १० नवम्बर को बाकी लोगों को एक जगह जाना था, इसलिए उनकी यात्रा शुरू हुई| अदू हमारे साथ वापस नही आनेवाली थी, इसलिए वह सत्गड में ही ठहरी और मै उसके साथ एक और दिन सत्गड में ठहरा| दिनभर अदू पास पड़ौस के बच्चों से खेलती रही| खेत, आँगन में झरना, पेड़ और छत! पूरे दिन बन्दरों की एक टोली आयी थी| आँगन के पेड़, खेत की फसल आदि का बहुत नुकसान कर रही थी| लेकीन अदू को जैसे बन्दरों की लॉटरी लग गई! सब जगह वही थे! वह भी बिना डरे उनके पास जा रही थी| बहुत उपद्रव हुआ, तब कुछ लोगों ने घर में होनेवाली एअरगन से उन्हे डराया| लेकीन फिर भी शाम तक वे वहीं पर थे| शाम को अदू और दूसरों के साथ सत्गड में ही एक छोटा ट्रेक किया| शाम की रोशनी में शिखर लाल दिखाई दे रहे थे| दूर से ही उन्हे अलविदा कहा| अन्धेरा होते होते उस ट्रेक से घर लौटे और अदू एकदम से रोने लगी| दिनभर तो वह खेलने में व्यस्त थी| लेकीन रात में उसे माँ की एकदम से याद आ गई| उसकी माँ और नानी दूसरे स्थान पर गए थे, मौसी भी साथ नही थी| इसलिए एकदम उसके आँसूओं का बांध टूट गया| उसे ऐसे रोता देख कर शक हुआ कि क्या वह हमारे जाने के बाद भी यहाँ रह लेगी? उसका ऐसा रोना देख कर एक बार तो तय भी किया कि हमारे फ्लाईट का टिकिट कैंसिल कर उसके लिए ट्रेन का ही टिकिट निकालूँगा| रात में उसका सामान भी पैक कर के रखा|



 



अगले दिन लगभग रात के अन्धेरे में ही सत्गड से नीचे उतरे| अन्धेरे में ही यह ट्रेक हुआ! सुबह साड़े छह की बस है| अदू अब शान्त है और कह रही है कि शायद यहीं वह ठहरेगी| सत्गड से पिथौरागढ़ आए और वहाँ टनकपूर की बस मिली| बाकी लोग टनकपूर के पास- हिमालय के बेस पर हैं| मै, अदू और अन्य कुछ लोग बस से निकले| यह छह घण्टों की बस यात्रा है! जब यह यात्रा पूरी होगी, तब हम हिमालय के बेस पर पहुँचेंगे और फिर से धरती माता से मिलना होगा! पिथौरागढ़ से निकलते निकलते सुबह की ताज़गीभरे माहौल में सड़क से सटी खाई में कोहरे का जैसे समुन्दर दिखाई दिया! वाकई, समुन्दर ही है! यह बस यात्रा भी कम रोमांचकारी नही है| कितने स्थानों पर सड़क अब भी टूटी है| कई जगहों पर पत्थर गिर रहे हैं| सब तरफ लैंडस्लाईड के निशान दिखाई दे रहे हैं| हिमालय उतरते समय भी लगातार लहराती- चढ़ती- उतरती सड़क! एक के बाद एक पहाड़ उतरने का अनुभव| यहाँ लोहाघाट नाम की जगह लगती है| पास में ही विवेकानन्द का मायावती आश्रम है| कभी अवसर नही आया वहाँ जाने का| आगे चंपावत में प्रसिद्ध बाल मिठाई ले ली| अब इन्तजार है धरती से मिलने का! हिमालय से लौटते समय जमीन के पास आने का अनुभव भी अनुठा होता है| पहले तो चारों ओर पहाड़ ही पहाड़ होते हैं| जहाँ नजर जाती है- पहाड़ ही पहाड़| लेकीन धीरे धीरे तीन तरफ पहाड़ दिखाई देते हैं और एक तरफ से गढ़्ढा जैसा हो जाता है| जब विजिबिलिटी अच्छी होती है, तो ४०- ५० किलोमीटर की दूरी से भी जमीन पर कोहरे का समुन्दर दिखाई देता है! हिमालय से नीचे आ कर जमीन से टच डाउन होना, यह भी एक ध्यान का क्षण है! एक सन्धि काल| टनकपूर पहुँच गए| टनकपूर के पहले भी एक जगह नदी पर का ब्रिज बहने के कारण सड़क अस्थिर बनी हुई थी| पहाड़ में जीवन कितना कष्टपूर्ण है, इसका ये सब सड़कें प्रतिक हैं|




दोपहर टनकपूर के पास बनबसा गाँव में रिश्तेदारों के यहाँ आराम किया| हिमालय से उतर कर एकदम नीचे आने से अटपटा सा लग रहा है| वहाँ के पहाड़, नीला आसमाँ यहाँ नही है| अदू उसकी माँ और नानी से मिली| उसे फिर बताया कि वह रुकनेवाली थी, इसलिए उसका प्लेन का टिकिट नही निकाला है| अब नया निकालना या कैंसल करना बहुत महंगा होगा| वह रूकती है तो उसे और भी हिमालय देखने को मिलेगा| आखिर वह मान गई| क्यों कि उसे भी बाकी चीज़ें तो पसन्द आ ही रही थी| सिर्फ भावना का उद्रेक था, अन्यथा वह रूकने का मन बना कर ही आई थी| शाम को वहाँ के रिश्तेदार से बात करते समय एक जानकारी मिली| जब मैने २६ किलोमीटर का ट्रेक किया था, तब मै ग्वेता नाम के गाँव से गुजरा था| वे रिश्तेदार पहले उसी गाँव के पास पहाड़ में रहते थे| उन्होने कहा कि अब पहाड़ के इतने अन्दर और वन में रहनेवाले लोग कम हुए हैं| क्यों कि लोग अब गाँव छोड़ कर शहरों में आ रहे हैं| जैसा बनता है वैसे वे दिल्ली, मुम्बई जैसी जगहों पर जा रहे हैं| इस कारण अब उनके मूल गाँव में और अन्दरूनी क्षेत्रों में उतने लोग ही नही रहते हैं| उन्होने कहा कि शेर की मौजुदगी बढ़ने का यह भी एक कारण है| पहले वहाँ मनुष्य ज्यादा रूकते थे, खेती भी करते थे| अब लोग इतने अन्दर ज्यादा जाते नही हैं| इसलिए शेरों पर से जैसे नियंत्रण हट गया| और जब जैव व्यवस्था में एक बदलाव होता है, तो उससे कई बदलाव होते हैं| शायद पहले जो वृक्ष संवर्धन स्वाभाविक रूप से (सामाजिक रिवाजों का और लोगों की संस्कृति के हिस्से के तौर पर) होता था, वह अब नही होता है| इसलिए यहाँ वन में पेड़ कम हुए होंगे| उस कारण शेरों को आसरा कम मिलता होगा और वे अन्यत्र जाने के लिए बाध्य होते होंगे| ऐसा बहुत कुछ बदला होगा| खैर| रात में हम बनबसा से बस से दिल्ली के लिए निकले| अदू को बाय बाय करना कठिन गया| लेकीन उसकी मौसी, नानी और अन्य रिश्तेदार थे, इसलिए वह शान्त थी|
 


रात की बस यात्रा बहुत पीड़ादायक रही| एक तो भीड़ अत्यधिक थी और सोने की सुविधा नही थी| सामने ही ड्रायवर ने पूरी रात ऊँची आवाज में गाने लगा रखे थे! इससे नीन्द तो आई ही नही| हिमालय की यादें मन ही मन सम्हालते हुए वह रात निकल गई| बनबसा में कुछ घण्टे रूके नही होते तो पिथौरागढ़ से दिल्ली लगातार यात्रा और भी ज्यादा थकाती| सुबह होते होते दिल्ली में आनन्द विहार टर्मिनस पहुँचे| मेट्रो से एक जगह गए| मेट्रो की यात्रा बहुत अच्छी रही| इतनी अच्छी कि बाद में दिल्ली- पुणे हवाई जहाज की यात्रा भी उतनी अच्छी नही लगी! उस हवाई जहाज की यात्रा से अधिक रोमांच तो समय रहते एअरपोर्ट पहुँचने में और टैक्सी ढूँढने में आया था! पुणे में रात पहुँचे और लगा कि अक्लमटाईज होने के लिए दो दिन तो लगेंगे ही! इस तरह हिमालय की यात्रा पूरी हुई| उधर बाद में अदू बिल्कुल रोई नही| बनबसा के पास नानकमत्ता गाँव में घूमने के लिए गई थी| दो- तीन दिन बनबसा में रहने के बाद वापस सत्गड गई| उसे हिमालय में और कुछ दिन रहने का अवसर है| ठण्ड की दिक्कत तो है, लेकीन वह खुश है|
 




और एक या दो महिने वह वहीं रहेगी ऐसा लग रहा था, लेकीन नवम्बर खत्म होने के समय ओमीक्रॉन का उद्रेक शुरू हुआ| उस समय तक उसके बारे में कुछ भी स्पष्ट नही था| माहौल ऐसा था कि शायद दूसरी लहर जैसी स्थिति न बने, इसलिए सरकार जल्द सब कुछ बन्द कर देगी| और अगर फिर दूसरी लहर जैसी स्थिति आती है तो महिना- दो महिना सभी यात्रा आदि बन्द हो सकती है| यह सब सोच कर अदू को वापस लाने का निर्णय लिया| धीरे धीरे वह वहाँ भी बोअर हो रही थी| फिर भी वह पहले तो आने के लिए तैयार ही नही हुई| टिकिट निकालने के बाद भी कैंसल कर, यही कह रही थी| लेकीन आखिर ओमीक्रॉन का उद्रेक और बढ़ने की आशंका देखते हुए ७ दिसम्बर को हमारा दिल्ली- परभणी ट्रेन का टिकिट निकाल लिया (जैसा मिल रहा था)| अदू की मौसी और मौसाजी उसे छोड़ने के लिए दिल्ली आए|



दिल्ली में उनसे विदा लेते समय भी उसे बहुत रोना आया! छोटे बच्चे कैसे प्यार करते हैं! अदू को मै अकेला ही ट्रेन से लानेवाला था| उसके साथ अकेले की हुई यात्रा भी एक अलग ही रोमांचकारी अनुभव रहा| उसके बारे में लिखने का स्थान ऐसे तो उसके अगले जन्मदिन का पत्र ही है! लेकीन सब सामान के साथ उसे ले कर निजामुद्दीन में ट्रेन में बैठना भी एक कठिन काम जैसे लगा| महिलाएँ छोटे बच्चों को ले कर कैसी यात्रा करती हैं, इसकी एक झलक मिली| अदू पिथौरागढ़ से बिना रूके दिल्ली आई थी| निजामुद्दीन में एक कमरे में कुछ देर उन्होने आराम किया और वहीं पर मै उसे मिला| रात १० बजे की ट्रेन थी और अदू इतनी थक गई थी कि शाम को ८ बजे ही उसे नीन्द आने लगी थी| और उसकी भीतरी घड़ी तो सत्गड की थी जहाँ लोग सब काम ७ बजे खतम करते हैं और ८ बजे सो जाते हैं| जैसे तैसे उसे जगा रखा| कई साइकिल यात्राएँ और ट्रेकिंग आदि करने के बाद भी उसे ले कर ट्रेन में बैठने का जैसे एक प्रेशर सा बन गया था| लेकीन अदू साथ में थी और चीज़ें होती गई| छोटी बैग उसने पीठ पर रखी और मेरा हाथ पकड़ कर चलती रही| संयोग से ट्रेन भी डेढ़ घण्टा पहले आयी थी! ट्रेन में बैठने के बाद और सब सेट होने के तुरन्त बाद वह सो भी गई! और तब मै रिलैक्स हुआ! चौबीस घण्टों की यह यात्रा थी| सुबह उठने पर उसके मुझे निन्नू पुकारने से और सफाई से मराठी के साथ हिन्दी बोलने से, उसकी ऊर्जा और उसकी मस्ती देख साथ के यात्री चकित हुए! यात्रा अच्छी रही| प्लेन के मुकाबले निश्चित ही शानदार हुई! बीच में लगनेवाले गाँव और नदियों के बारे में अदू को बता सका| उसके साथ बहुत बातें हुई| उसका खेलना चल रहा था| कहानियाँ और गाने कहती थी, सुनती भी थी| अगले दिन देर रात परभणी में हम पहुँचे| ट्रेन जब प्लैटफॉर्म पर आ ही रही थी, तब अदू को उल्टी हुई! लेकीन उसने कुछ भी शिकायत नई की| ऐसी यह यात्रा पूरी हुई! २४ अक्तूबर से ११ नवम्बर तक उत्तराखण्ड की यात्रा हुई और बाद में अदू को वापस लाने की यात्रा भी उतनी ही रोमांचकारी हुई! हिमालय आ सत्संग, गूंजी का रोमांच, कई रोमैंटीक ट्रेक और लगातार साथ देनेवाले हिमशिखर! अब इन सब यादों को विराम देता हूँ! यह सब पढ़ने के लिए और इस यात्रा में साथ देने के लिए आपको भी बहुत बहुत धन्यवाद!




मेरे ध्यान, हिमालय भ्रमण, साईकिलिंग, ट्रेकिंग, रनिंग और अन्य विषयों के लेख यहाँ उपलब्ध: www.niranjan-vichar.blogspot.com फिटनेस, ध्यान, आकाश दर्शन आदि गतिविधियों के अपडेटस जानना चाहते हैं तो आपका नाम मुझे 09422108376 पर भेज सकते हैं| धन्यवाद|



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