Thursday, March 28, 2019

“भाग दौड़" भरी ज़िन्दगी ३: धिमी रफ्तार से बढते हुए

डिस्क्लेमर: यह लेख माला कोई भी टेक्निकल गाईड नही है| इसमें मै मेरे रनिंग के अनुभव लिख रहा हूँ| जैसे मै सीखता गया, गलती करता गया, आगे बढता गया, यह सब वैसे ही लिख रहा हूँ| इस लेखन को सिर्फ रनिंग के व्यक्तिगत तौर पर आए हुए अनुभव के तौर पर देखना चाहिए| अगर किसे टेक्निकल गायडन्स चाहिए, तो व्यक्तिगत रूप से सम्पर्क कर सकते हैं|

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जून २०१७ की गर्मी में बहुत दिनों के बाद रनिंग किया| रनिंग सीख तो गया हूँ, लेकीन फिर भी अभी भी इतना आसान नही लगता है| जैसे साईकिल कभी भी चला सकता हूँ, सोचने की भी जरूरत नही है, वैसे रनिंग का नही है| लेकीन एक बार जिस चीज़ का स्वाद मिला हो, उसे कैसे छोड सकते हैं... इसलिए अगस्त में रनिंग में कुछ नियमितता आ गई| और मेरा रनिंग नियमित और अधिक व्यवस्थित होने में दो रनर मित्रों का बहुत योगदान रहा| उनके बारे में भी बताता हूँ| परभणी के एक मित्र हैं- संजयराव बनसकर जी| पेशे से स्कूल के शिक्षक हैं, लेकीन दिल से बहुत कुछ हैं! वे मेरे रनिंग के मित्र और मार्गदर्शक बने| हालांकी उनके साथ रनिंग करना कठीन था, क्यों कि वे तो मलझे हुए रनर थे| और मै बिल्कुल नौसिखिया था| फिर भी उनके साथ दौड़ने से हौसला बढ़ा| एक तरह से पार्टनरशिप सी शुरू हुई| रनिंग करने की मन की तैयारी होती गई|





बहुत दिनों का अन्तराल होने के बावजूद जल्द ही फिर अच्छी किलोमीटर रनिंग कर पाया| हालांकी समय बहुत लग रहा है और इतने दिनों के अन्तराल के कारण शुरू में पैर भी बहुत दर्द करते हैं| एक तरह से थकान भी ज्यादा हो रही है| शरीर को तो दिक्कत हो रही है, लेकीन मन में और दौड़ने की इच्छा हो रही है| और अगर किसी भी चीज़ को करने के लिए मन थोड़ा सा भी अनुकूल हो, तो हम उसे धीरे धीरे कर सकते हैं| जब रनिंग की तुलना साईकिलिंग से करता हूँ, तो बहुत अच्छा लगता है| क्यों कि अगर मै अधिक दौड़ सकता हूँ, तो साईकिल चलाने में इसका बहुत लाभ होगा|

रनिंग के शुरुआती दिनों में हालांकी पेस की परिभाषा समझ में नही आती थी| रनिंग अक्सर 'पेस' में देखा जाता है| पेस का मतलब एक किलोमीटर दौड़ने के लिए लगनेवाला समय है| शुरू में यह परिचित न होने के कारण पेस से स्पीड निकाल कर देखता था| जैसे ८ मिनट/ किमी का पेस है, तो स्पीड करीब साढ़ेसात किमी/ घण्टा की होगी| जैसे बार बार रनिंग करता रहा, स्पीड थोड़ी बढ़ी और पेस की भाषा में एक किलोमीटर दौड़ने के लिए कम समय लगा| रनिंग में नया हूँ, लेकीन साईकिल का अच्छा अनुभव है, जिससे पता है कि स्पीड जल्दी नही बढ़ेगा| धीरे धीरे ही बढेगा| स्पीड के बजाय मुझे सातत्य पर नज़र रखनी चाहिए थी| साईकिल चलाने से यह भी पता था कि स्पीड- टाईमिंग आदि देखने के बजाय प्रोसेस पर ध्यान देना चाहिए और उसे एंजॉय करना चाहिए! रनिंग की सबसे खास बात यह लगी की इससे फिटनेस के व्यायाम में और विविधता प्राप्त हुई| और मज़ा आने लगा| बरसाती मौसम में रनिंग करते समय तो बहुत मज़ा आ रहा था| रनिंग भी साईकिल जितना ही रोमँटीक है जी! छोटी चोटी पर या ट्रेल पर भी रनिंग करने में बड़ा मज़ा आता है|





इसी वक़्त मेरे अन्य एक मित्र- हर्षद पेंडसे जी के अभियान के बारे में पता चला| वे लदाख़ में खर्दुंगला में ७२ किलोमीटर दौड़नेवाले थे और इसके साथ वे एक सामाजिक विषय में भी योगदान दे रहे थे, एक अभियान चला रहे थे| उनकी तैयारी, उनका तीस- चालीस- पचास किलोमीटर तक दौड़ना देखने के बाद मन में इच्छा हुई कि उनके इस अभियान में सहभाग लेने के लिए मुझे भी कम से कम २१ किलोमीटर दौड़ना चाहिए| ११ किलोमीटर तक आसानी से दौड़ पाया था| इसलिए कठिन होने के बावजूद मुमकीन लगा| लगातार छोटे रन्स करने के बाद १५ किलोमीटर भी दौड़ पाया, लेकीन समय दो घण्टा ग्यारह मिनट का था! (आज इतने ही समय में शायद मै इतनी ही दूरी चल कर पार कर सकूँगा!) और जैसी मेरी संजय बनसकर सर से दोस्ती हुई, रनिंग के नए नए पहलू समझ में आ रहे थे| क्या स्ट्रेचिंग करना चाहिए, क्या तैयारी होने चाहिए आदी सीख रहा था| इसलिए अब मेरे रनिंग का पहला लक्ष्य २१ किलोमीटर का तय किया| हर्षद पेंडसे जी लदाख़ के लिए निकलने के पहले का दिन तय किया| छोटे छोटे रन्स जारी रखे| 

अगला भाग: “भाग दौड़" भरी ज़िन्दगी ४: पहली निजी हाफ मॅरेथॉन

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