१: ए दिल है मुश्किल जीना यहाँ, जरा हट के जरा बच के ये है बम्बे मॅरेथॉन!!
नमस्ते! कल २० जनवरी को मुंबई में मैने मेरी पहली मॅरेथॉन की| ४२ किलोमीटर दौडने के लिए ५ घण्टे १४ मिनट लगे| बहुत अद्भुत अनुभव रहा! बहुत रोमांचक और विलक्षण माहौल था| इस अनुभव के बारे में और मेरी भाग- दौड की यात्रा कैसी शुरू हुई, इसके बारे में विस्तार से लिखूँगा|
मेरी भागने की- रनिंग की यात्रा साईकिल के कारण ही शुरू हुई| साईकिल अच्छी चलाने के लिए स्टैमिना बढ़ाना चाहता था| इस कारण एक साईकिल एक्स्पिडीशन की तैयारी के लिए २०१६ में रनिंग शुरू की| बाद में वह एक्स्पिडीशन तो नही हो पाई, लेकीन रनिंग जारी रही| धीरे धीरे इसके गुर्र सीखता चला गया, बाद में हाफ मैरेथॉन की और अब फुल मॅरेथॉन! मेरी यात्रा बताने के पहले कल के अनुभव के बारे में बताना चाहूँगा|
टाटा मुंबई मॅरेथॉन! वास्तव में धावक या रनर्स लोगों का एक मेला! इस पुरी ईवंट में ४६ हजार से अधिक रनर्स आए थे| उनमें से ८७०० रनर्स फुल मॅरेथॉन के लिए दौड़े! इस मॅरेथॉन में भाग लेने के पीछे मेरा कारण समुद्र तट के पास और खास कर मुंबई के सी- लिंक पर दौड़ना यह था| हाफ मॅरेथॉन पूरी करने के बाद इस फुल मॅरेथॉन के लिए क्वालिफाय हुआ| वैसे तो मॅरेथॉन का मतलब फुल मॅरेथॉन ही होता है| लेकीन कई बार लोग हाफ मॅरेथॉन को भी मॅरेथॉन कहते हैं या किसी ने दस किलोमीटर के रन में हिस्सा लिया हो तो उसे भी मॅरेथॉन कहते है जो कि गलत है| इसलिए फुल मॅरेथॉन कह रहा हूँ|
२० जनवरी के मॅरेथॉन के लिए १८ जनवरी को मुंबई में पहुँचा| समुद्र तट के पास आर्दता या ह्युमिडिटी बहुत होती है| साथ में पुणे- से यात्रा करने के बाद कुछ विश्राम करना चाहिए, ऐसे लगा| इसलिए दो दिन पहले गया| पहुँचने पर पहले बिब कलेक्शन किया (मॅरेथॉन में जो नंबर पहनते है वह नंबर और चिप)| मेरे मित्र प्रकाश जी और रनिंग के गुरू बनसकर सर भी यहाँ मिले| यहाँ मुझे एक किट दिया गया| मेरी पहली ही मॅरेथॉन थी, इसलिए मुझे ज्यादा पता नही था| मैने समझा की किट और दी गई थैली में ही टी- शर्ट भी होगा| लेकीन वह उसमें नही था| इसलिए अगले दिन ठाणे से वापस वहाँ जाना पड़ा| मुंबई में पीडादायक यात्रा करनी पड़ी| इसलिए मॅरेथॉन को जाते समय यही गाना बार बार मन में आ रहा था-
ए दिल है मुश्किल जीना यहाँ!
जरा हट के जरा बच के
ये हैं बम्बे मॅरेथॉन!
ठाणे में रहनेवाले मेरे जिजाजी भी कई सालों से यह मॅरेथॉन करते हैं| इसलिए उनके साथ ठहरा| उन्होने ५० किलोमीटर का अल्ट्रा रन भी किया है| उन्होने कईं सारी चीजें बताई| बाकी की तैयारी उनके साथ होती रही| १८ जनवरी को पुणे से मुंबई और वहाँ से ठाणे की यात्रा में बहुत ज्यादा थक गया| और अब तो मॅरेथॉन का एक तरह का टेन्शन भी आने लगा| जैसे सवेरा होने के घण्टा- डेढ घण्ट पहले उजाला हो जाता है, वैसे मॅरेथॉन पास आने के साथ एक तरह का तनाव- एंक्सायटी का अनुभव होने लगा| उसी कारण रात में नीन्द भी बहुत थोड़ी हुई|
१९ जनवरी की सुबह मेरे जिजाजी के ग्रूप के साथ एक सेशन किया| यह अनुभव बहुत अच्छा रहा| ठाणे का स्ट्रायडर्स ग्रूप है| उन्होने शुरू में कई स्ट्रेचिंग के एक्सरसाईजेस लिए| फिर आधे घण्टे तक वॉक- जॉग लिया| उसके बाद फिर अलग अलग स्ट्रेचिंग एक्सरसाईजेस किए| उनमें कुछ योगासन भी थे- जैसे धनुरासन और पश्चिमोत्तानासन और पवन मुक्तासन श्रेणि की कुछ क्रियाएं| मैने जो स्ट्रेचिंग के एक्सरसाईजेस सीखे हैं वे इसके समान्तर ही है| साथ ही मेरे योगाभ्यास ने शरीर को लचीला बनाया है| इसलिए ये सब स्टेप्स करने में कोई दिक्कत नही आई| कुछ नई स्टेप्स/ पोजिशन्स भी सीखने को मिली| डेढ घण्टे के इस सेशन के बाद काफी फ्रेश महसूस होने लगा| रातभर की बैचेनी जैसे महसूस नही होने लगी| उसके तुरन्त बाद टी- शर्ट लेने के लिए फिर मुंबई में बिब- कलेक्शन सेंटर पर जाना पड़ा| वहाँ ठेट पहुँचानेवाली बस मिलने की सम्भावना के कारण यह यात्रा बस से की| टी- शर्ट तो तुरन्त मिल गया, सिर्फ टी कहना चाहिए, टी- शर्ट नही| यहाँ रनर्स का अच्छा तांता लगा है| मेला कहना चाहिए! लेकीन बिब कलेक्शन का आखरी दिन होने के कारण कल की भागदौड़ के पहले यहाँ पर अब भगदड होने आसार दिखे! दस मिनट में काम हुआ और वापस निकला| लौटते समय लोकल ट्रेन से आने के बारे में सोच रहा था, तभी एक काफी करीब ले जानेवाली बस मिली| लेकीन फिर बस की यात्रा को बहुत देर लगी| एक घण्टे तक बस भाण्डूप में ट्रैफिक में फंसी| एक पल के लिए लगा कि ऐसी ही देर होती रही तो मुझे मॅरेथॉन के पहले कुछ भी विश्राम नही मिलेगा| बस से ही एक बिल्डिंग दिखी जहाँ पर लिखा था- मॅरेथॉन हाय! बाद में ठाणे का मॅरेथॉन चौक भी लगा| ये सब मुझे बार बार याद दे रहे हैं- ए दिल है मुश्किल यहाँ, जरा हट के जरा बच के! वापस पहुँचने में सात घण्टे लगे| कल भी लगभग दिन भर ऐसी यात्रा की थी और आज मॅरेथॉन के एक दिन पहले भी पीडादायक यात्रा! काफी थकान महसूस होने लगी| और पक्के तौर पर लग रहा था कि मॅरेथॉन में जितना नही थकूँगा, उतना लगातार दो दिनों तक थक गया हूँ| अब मुझे अच्छा विश्राम चाहिए, नही तो जो मॅरेथॉन मुमकीन है, वह भी बहुत मुश्किल हो जाएगा!
शाम को बाकी तैयारी की| जल्दी भोजन कर लिया| अब मुझे कम से कम ४- ५ घण्टों की नीन्द चाहिए| नही तो बहुत तकलीफ होगी| क्यों कि लगातार दो दिन मै थक गया हूँ- बिना विश्राम के| अगर नीन्द हुई, तो लगातार दो दिन हुई भाग- दौड़ वॉर्म अप जैसी उपयोगी होगी| क्यों कि शरीर कि रिचार्ज होने का मौका मिलेगा और तिसरे दिन भी शरीर ऐसी दिक्कत के लिए तैयार रहेगा| शाम को अच्छा महसूस कर रहा हूँ| सुबह के सेशन के कारण और बार बार मॅरेथॉन पर चर्चा होने के बाद धीरे धीरे मन उस विषय को थोड़ा दूर रख पा रहा है| अब नॉर्मल महसूस कर रहा हूँ| फिर नीन्द आई भी| सोते समय बार बार मन में दोहराया- मुझे कल अच्छा भागना है और मेरे पैरों में दर्द नही होनेवाला है| इसी विचार को मन में दोहराते हुए ही सो गया और यही विचार उठने पर मन में था| साढे आठ बजे से लगभग रात के साडे बारह तक चार घण्टा अच्छी नीन्द आई| दो बजे उठ कर तीन- सवा तीन बजे बस से मुंबई के लिए मै और जिजाजी दोनों निकले| दिदी ने रात को ढाई बजे उठ कर चाय- नाश्ता बना दिया| ब्रेड के साथ पीनट बटर सँडविच बहुत अच्छा लगा| वाकई जिजाजी और दिदी ने जो साथ दिया, मदद की और हौसला बढाया, उससे भी हिम्मत मिली| दिदी बाद में हमें चीअर करने के लिए मॅरेथॉन के रूट पर भी आएगी| मेरे परिवार के सदस्य भी आएंगे|
रात के अन्धेरे में ही अन्य रनर्स के साथ बस से मुंबई पहुँच गया| यहाँ वाकई बहुत बड़ा मेला लगा है| देश और विदेश से भी रनर्स आए हैं| एक अद्भुत माहौल की शुरुवात हुई| मेरे रनर मित्र और रनिंग के गुरू बनसकर सर भी यहाँ फिर एक बार मुझे मिले| बहुत उत्साह वर्धक माहौल था| अलग अलग जगहों के और ग्रूप्स के कई हजार रनर्स! साथ में म्युजिक और नाच गाना! स्ट्रेचिंग! ठीक साढ़े पाँच बजे शुरू हुई टाटा मुंबई मॅरेथॉन! शिवाजी महाराज की जय, गणपती बाप्पा मोरया! सेक्शन बी से मैने स्टार्ट किया| आयोजन इतना बेहतर है कि बिल्कुल भी भीड नही हुई और शुरू से दौड़ने के लिए जगह मिली| लेकीन शुरुआत के किलोमीटर में ही ह्युमिडिटी का एहसास हुआ| बहुत ज्यादा पसीना बहने लगा| उसने थोड़ा डराया भी| लेकीन इतने लोगों के साथ दौड़ते समय एक धारा बन जाती है- एक वातावरण बनता है| अकेले तैरना और ग्रूप के साथ धारा के साथ तैरने में बहुत फर्क होता है| मैने ज्यादा तर सोलो रन ही किए थे| इसलिए यहाँ मुझे बेहद आसान लगा| और इतने सारे लोगों को दौड़ता देख एक तरह का सम्मोहन भी बनता है| इससे आसानी से बढ़ता रहा| रनर्स में ६०- ७० उम्र के बुजुर्ग और कई लडकियाँ- महिलाएँ भी हैं| जगह जगह पर लोग चीअर कर रहे हैं, हौसला बढा रहे हैं| बीच बीच में ऑर्केस्ट्रा, बँड- बाजा भी बज रहा है| यह माहौल तो सिर्फ अनुभव लेने जैसा है| अन्धेरे में ही समुद्र तट- मरीन ड्राईव्ह से आगे बढने लगा| हाजी अली- वरळी से सि लिंक पर पहुँचा! वाकई अद्भुत अनुभव है! जिजाजी ने खजूर् का पैकेट दिया है, उसे हर सात किलोमीटर के बाद खाने लगा| जगह जगह लोग पानी, इलेक्ट्रॉल, केला आदि लिए खड़े हैं| लगभग निरंतर लोग- छोटे बच्चे से लेकर बडों तक- चीअर करने के लिए खड़े हैं| व्यवस्था का इन्तजाम बहुत बढिया है|
हाफ मॅरेथॉन के चरण तक आते आते थकान शुरू हुई| फिर भी बिना ब्रेक लिए आगे बढ़ता रहा| बीच बीच में इलेक्ट्रॉल- एनर्जाल लेता रहा, घूंट घूंट पानी पिता रहा| २५ किलोमीटर के बाद बिल्कुल थकान होने लगी| पैर थोड़े सख़्त होने लगे| इसलिए एक बार स्ट्रेचिंग किया| कुछ देर तक राहत मिली| लेकीन २९ किलोमीटर के बाद दौड़ना कठिन होने लगा| अब सूरज की रोशनी भी आ गई है| मेरे जैसे बाकी भी लोग अब धीरे धीरे चलते दिखाई दे रहे हैं| इसी चरण पर एलिट या रेसर रनर्स पीछे से आ कर ओवरटेक कर गए| रेसर्स तो लगभग दो घण्टे देरी से निकलते हैं और एमेच्युअर रनर्स के दो घण्टे पहले पहुँच जाते हैं! पहली बार विदेशी एथलीटस को देखने का मौका मिला| उसके बाद भारतीय एलिट एथलीटस भी दिखे जिनमें परभणी की ज्योति गवते भी है जिसने पीछली बार भारतीय एलिट महिलाओं में तिसरा स्थान प्राप्त किया था|
मॅरेथॉन के अन्तिम दस किलोमीटर बहुत कठिन गए, अपेक्षा थी ही उसकी| २९ के बाद बीच बीच में चलना अनिवार्य हुआ| लेकीन अच्छी बात यह थी कि रनिंग बिल्कुल बन्द नही किया| वॉक- जॉग शुरू किया| इसी चरण में मुझे चीअर अप करने के लिए ठाने की दिदी और मेरे परिवारवाले भी मिलनेवाले थे, उससे भी थोडी हिम्मत बढ़ी| फुल मॅरेथॉन वैसे तो टेस्ट क्रिकेट जैसा धैर्य का खेल है| बहुत संयम चाहिए| सिर्फ कोहली से काम नही चलता है, पुजारा तत्त्व भी चाहिए! एक एक कदम बढाता रहा| पानी पिता रहा, खजूर और चिक्की अन्तराल के बाद खाता रहा| २१ किलोमीटर तक मुझे लगभग सवा दो घण्टे लगे थे, ३० किलोमीटर तक भी सवा तीन घण्टे ही लगे| इसलिए यह विश्वास जरूर आया कि मै साढ़ेपाँच किलोमीटर के अन्दर ही मॅरेथॉन पूरा करूँगा| ३४ वे किलोमीटर पर दिदी मिली, उन्होने चीअर किया, जिजाजी भी यहाँ मिले| इसका मतलब हम लगभग पास पास ही जा रहे थे! उसके बाद ३८ वे किलोमीटर पर मेरे परिवारवाले भी मिले! अदू ने भी मुझे चीअर अप किया! और पूरे रूट पर बाकी लोग लगातार चीअर अप करते ही रहे| गो गो, यू कॅन डू ईट, बस चार किलोमीटर बाकी है, जाओ ऐसे कहते रहे| बीच बीच में म्युजिक भी आता रहा| मेरे रनिंग के आदरणीय मित्र हर्षद पेंडसे जी भी सड़क पर मिले| उनके साथ भाग सकता हूँ, इससे भी बहुत हौसला बढ़ा| आगे शरीर को तकलीफ जरूर हो रही थी, फिर भी आराम से बढता रहा| छोटे छोटे चरण कर कर वॉक- जॉग जारी रखा| अन्त में फिनिश का एक किलोमीटर भाग कर ही पूरा किया| मेरा टायमिंग ५.१४ आया! अगर कल- परसो ज्यादा आराम और नीन्द होती तो शायद ५ घण्टे के भीतर पूरा कर सकता था| खैर, मुझे टायमिंग में इतना इंटरेस्ट नही है| मै सिर्फ मेरी सहज गति के अनुसार बढता रहा|
मॅरेथॉन पूरी हुई! मुझे खुशी तो बहुत हुई, एक तरह से इतने कम समय में पूरी होने का अचरज भी लगा| क्यों कि मै तो मान रहा था कि मुझे कम से कम साढ़े पाँच घण्टे लगेंगे ही| उससे बहुत ही कम समय लगा| हौसला भी बहुत बढ़ा| लेकीन अचिव्हमेंट जैसा नही लगा| क्यों कि मै तो मानता हूँ कि अचिव्हमेंट से बढ कर SOP होता है- स्टँडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर| हर चीज़ करने का ठीक तरीका होता है| हर चीज़ उस तरीके से की जा सकती है| बस उसका प्रोसेस कोड हमें पता होना चाहिए, हमें उसमें रूचि होनी चाहिए| खैर| मेरे विचार से १ से ४२ किलोमीटर की दूरी के बजाय ० से १ किलोमीटर की दूरी सबसे बड़ी होती है| पहला कदम उठाना ही कठिन होता है| ० से १ तक की मेरी दौड़ने की यात्रा और फिर १ से ४२ तक की यात्रा के बारे में अगले लेख में बात करूँगा| मेरे लिए यह मॅरेथॉन इस विश्वास के साथ इस वातावरण के लिए भी
नमस्ते! कल २० जनवरी को मुंबई में मैने मेरी पहली मॅरेथॉन की| ४२ किलोमीटर दौडने के लिए ५ घण्टे १४ मिनट लगे| बहुत अद्भुत अनुभव रहा! बहुत रोमांचक और विलक्षण माहौल था| इस अनुभव के बारे में और मेरी भाग- दौड की यात्रा कैसी शुरू हुई, इसके बारे में विस्तार से लिखूँगा|
मेरी भागने की- रनिंग की यात्रा साईकिल के कारण ही शुरू हुई| साईकिल अच्छी चलाने के लिए स्टैमिना बढ़ाना चाहता था| इस कारण एक साईकिल एक्स्पिडीशन की तैयारी के लिए २०१६ में रनिंग शुरू की| बाद में वह एक्स्पिडीशन तो नही हो पाई, लेकीन रनिंग जारी रही| धीरे धीरे इसके गुर्र सीखता चला गया, बाद में हाफ मैरेथॉन की और अब फुल मॅरेथॉन! मेरी यात्रा बताने के पहले कल के अनुभव के बारे में बताना चाहूँगा|
टाटा मुंबई मॅरेथॉन! वास्तव में धावक या रनर्स लोगों का एक मेला! इस पुरी ईवंट में ४६ हजार से अधिक रनर्स आए थे| उनमें से ८७०० रनर्स फुल मॅरेथॉन के लिए दौड़े! इस मॅरेथॉन में भाग लेने के पीछे मेरा कारण समुद्र तट के पास और खास कर मुंबई के सी- लिंक पर दौड़ना यह था| हाफ मॅरेथॉन पूरी करने के बाद इस फुल मॅरेथॉन के लिए क्वालिफाय हुआ| वैसे तो मॅरेथॉन का मतलब फुल मॅरेथॉन ही होता है| लेकीन कई बार लोग हाफ मॅरेथॉन को भी मॅरेथॉन कहते हैं या किसी ने दस किलोमीटर के रन में हिस्सा लिया हो तो उसे भी मॅरेथॉन कहते है जो कि गलत है| इसलिए फुल मॅरेथॉन कह रहा हूँ|
२० जनवरी के मॅरेथॉन के लिए १८ जनवरी को मुंबई में पहुँचा| समुद्र तट के पास आर्दता या ह्युमिडिटी बहुत होती है| साथ में पुणे- से यात्रा करने के बाद कुछ विश्राम करना चाहिए, ऐसे लगा| इसलिए दो दिन पहले गया| पहुँचने पर पहले बिब कलेक्शन किया (मॅरेथॉन में जो नंबर पहनते है वह नंबर और चिप)| मेरे मित्र प्रकाश जी और रनिंग के गुरू बनसकर सर भी यहाँ मिले| यहाँ मुझे एक किट दिया गया| मेरी पहली ही मॅरेथॉन थी, इसलिए मुझे ज्यादा पता नही था| मैने समझा की किट और दी गई थैली में ही टी- शर्ट भी होगा| लेकीन वह उसमें नही था| इसलिए अगले दिन ठाणे से वापस वहाँ जाना पड़ा| मुंबई में पीडादायक यात्रा करनी पड़ी| इसलिए मॅरेथॉन को जाते समय यही गाना बार बार मन में आ रहा था-
ए दिल है मुश्किल जीना यहाँ!
जरा हट के जरा बच के
ये हैं बम्बे मॅरेथॉन!
ठाणे में रहनेवाले मेरे जिजाजी भी कई सालों से यह मॅरेथॉन करते हैं| इसलिए उनके साथ ठहरा| उन्होने ५० किलोमीटर का अल्ट्रा रन भी किया है| उन्होने कईं सारी चीजें बताई| बाकी की तैयारी उनके साथ होती रही| १८ जनवरी को पुणे से मुंबई और वहाँ से ठाणे की यात्रा में बहुत ज्यादा थक गया| और अब तो मॅरेथॉन का एक तरह का टेन्शन भी आने लगा| जैसे सवेरा होने के घण्टा- डेढ घण्ट पहले उजाला हो जाता है, वैसे मॅरेथॉन पास आने के साथ एक तरह का तनाव- एंक्सायटी का अनुभव होने लगा| उसी कारण रात में नीन्द भी बहुत थोड़ी हुई|
१९ जनवरी की सुबह मेरे जिजाजी के ग्रूप के साथ एक सेशन किया| यह अनुभव बहुत अच्छा रहा| ठाणे का स्ट्रायडर्स ग्रूप है| उन्होने शुरू में कई स्ट्रेचिंग के एक्सरसाईजेस लिए| फिर आधे घण्टे तक वॉक- जॉग लिया| उसके बाद फिर अलग अलग स्ट्रेचिंग एक्सरसाईजेस किए| उनमें कुछ योगासन भी थे- जैसे धनुरासन और पश्चिमोत्तानासन और पवन मुक्तासन श्रेणि की कुछ क्रियाएं| मैने जो स्ट्रेचिंग के एक्सरसाईजेस सीखे हैं वे इसके समान्तर ही है| साथ ही मेरे योगाभ्यास ने शरीर को लचीला बनाया है| इसलिए ये सब स्टेप्स करने में कोई दिक्कत नही आई| कुछ नई स्टेप्स/ पोजिशन्स भी सीखने को मिली| डेढ घण्टे के इस सेशन के बाद काफी फ्रेश महसूस होने लगा| रातभर की बैचेनी जैसे महसूस नही होने लगी| उसके तुरन्त बाद टी- शर्ट लेने के लिए फिर मुंबई में बिब- कलेक्शन सेंटर पर जाना पड़ा| वहाँ ठेट पहुँचानेवाली बस मिलने की सम्भावना के कारण यह यात्रा बस से की| टी- शर्ट तो तुरन्त मिल गया, सिर्फ टी कहना चाहिए, टी- शर्ट नही| यहाँ रनर्स का अच्छा तांता लगा है| मेला कहना चाहिए! लेकीन बिब कलेक्शन का आखरी दिन होने के कारण कल की भागदौड़ के पहले यहाँ पर अब भगदड होने आसार दिखे! दस मिनट में काम हुआ और वापस निकला| लौटते समय लोकल ट्रेन से आने के बारे में सोच रहा था, तभी एक काफी करीब ले जानेवाली बस मिली| लेकीन फिर बस की यात्रा को बहुत देर लगी| एक घण्टे तक बस भाण्डूप में ट्रैफिक में फंसी| एक पल के लिए लगा कि ऐसी ही देर होती रही तो मुझे मॅरेथॉन के पहले कुछ भी विश्राम नही मिलेगा| बस से ही एक बिल्डिंग दिखी जहाँ पर लिखा था- मॅरेथॉन हाय! बाद में ठाणे का मॅरेथॉन चौक भी लगा| ये सब मुझे बार बार याद दे रहे हैं- ए दिल है मुश्किल यहाँ, जरा हट के जरा बच के! वापस पहुँचने में सात घण्टे लगे| कल भी लगभग दिन भर ऐसी यात्रा की थी और आज मॅरेथॉन के एक दिन पहले भी पीडादायक यात्रा! काफी थकान महसूस होने लगी| और पक्के तौर पर लग रहा था कि मॅरेथॉन में जितना नही थकूँगा, उतना लगातार दो दिनों तक थक गया हूँ| अब मुझे अच्छा विश्राम चाहिए, नही तो जो मॅरेथॉन मुमकीन है, वह भी बहुत मुश्किल हो जाएगा!
शाम को बाकी तैयारी की| जल्दी भोजन कर लिया| अब मुझे कम से कम ४- ५ घण्टों की नीन्द चाहिए| नही तो बहुत तकलीफ होगी| क्यों कि लगातार दो दिन मै थक गया हूँ- बिना विश्राम के| अगर नीन्द हुई, तो लगातार दो दिन हुई भाग- दौड़ वॉर्म अप जैसी उपयोगी होगी| क्यों कि शरीर कि रिचार्ज होने का मौका मिलेगा और तिसरे दिन भी शरीर ऐसी दिक्कत के लिए तैयार रहेगा| शाम को अच्छा महसूस कर रहा हूँ| सुबह के सेशन के कारण और बार बार मॅरेथॉन पर चर्चा होने के बाद धीरे धीरे मन उस विषय को थोड़ा दूर रख पा रहा है| अब नॉर्मल महसूस कर रहा हूँ| फिर नीन्द आई भी| सोते समय बार बार मन में दोहराया- मुझे कल अच्छा भागना है और मेरे पैरों में दर्द नही होनेवाला है| इसी विचार को मन में दोहराते हुए ही सो गया और यही विचार उठने पर मन में था| साढे आठ बजे से लगभग रात के साडे बारह तक चार घण्टा अच्छी नीन्द आई| दो बजे उठ कर तीन- सवा तीन बजे बस से मुंबई के लिए मै और जिजाजी दोनों निकले| दिदी ने रात को ढाई बजे उठ कर चाय- नाश्ता बना दिया| ब्रेड के साथ पीनट बटर सँडविच बहुत अच्छा लगा| वाकई जिजाजी और दिदी ने जो साथ दिया, मदद की और हौसला बढाया, उससे भी हिम्मत मिली| दिदी बाद में हमें चीअर करने के लिए मॅरेथॉन के रूट पर भी आएगी| मेरे परिवार के सदस्य भी आएंगे|
रात के अन्धेरे में ही अन्य रनर्स के साथ बस से मुंबई पहुँच गया| यहाँ वाकई बहुत बड़ा मेला लगा है| देश और विदेश से भी रनर्स आए हैं| एक अद्भुत माहौल की शुरुवात हुई| मेरे रनर मित्र और रनिंग के गुरू बनसकर सर भी यहाँ फिर एक बार मुझे मिले| बहुत उत्साह वर्धक माहौल था| अलग अलग जगहों के और ग्रूप्स के कई हजार रनर्स! साथ में म्युजिक और नाच गाना! स्ट्रेचिंग! ठीक साढ़े पाँच बजे शुरू हुई टाटा मुंबई मॅरेथॉन! शिवाजी महाराज की जय, गणपती बाप्पा मोरया! सेक्शन बी से मैने स्टार्ट किया| आयोजन इतना बेहतर है कि बिल्कुल भी भीड नही हुई और शुरू से दौड़ने के लिए जगह मिली| लेकीन शुरुआत के किलोमीटर में ही ह्युमिडिटी का एहसास हुआ| बहुत ज्यादा पसीना बहने लगा| उसने थोड़ा डराया भी| लेकीन इतने लोगों के साथ दौड़ते समय एक धारा बन जाती है- एक वातावरण बनता है| अकेले तैरना और ग्रूप के साथ धारा के साथ तैरने में बहुत फर्क होता है| मैने ज्यादा तर सोलो रन ही किए थे| इसलिए यहाँ मुझे बेहद आसान लगा| और इतने सारे लोगों को दौड़ता देख एक तरह का सम्मोहन भी बनता है| इससे आसानी से बढ़ता रहा| रनर्स में ६०- ७० उम्र के बुजुर्ग और कई लडकियाँ- महिलाएँ भी हैं| जगह जगह पर लोग चीअर कर रहे हैं, हौसला बढा रहे हैं| बीच बीच में ऑर्केस्ट्रा, बँड- बाजा भी बज रहा है| यह माहौल तो सिर्फ अनुभव लेने जैसा है| अन्धेरे में ही समुद्र तट- मरीन ड्राईव्ह से आगे बढने लगा| हाजी अली- वरळी से सि लिंक पर पहुँचा! वाकई अद्भुत अनुभव है! जिजाजी ने खजूर् का पैकेट दिया है, उसे हर सात किलोमीटर के बाद खाने लगा| जगह जगह लोग पानी, इलेक्ट्रॉल, केला आदि लिए खड़े हैं| लगभग निरंतर लोग- छोटे बच्चे से लेकर बडों तक- चीअर करने के लिए खड़े हैं| व्यवस्था का इन्तजाम बहुत बढिया है|
हाफ मॅरेथॉन के चरण तक आते आते थकान शुरू हुई| फिर भी बिना ब्रेक लिए आगे बढ़ता रहा| बीच बीच में इलेक्ट्रॉल- एनर्जाल लेता रहा, घूंट घूंट पानी पिता रहा| २५ किलोमीटर के बाद बिल्कुल थकान होने लगी| पैर थोड़े सख़्त होने लगे| इसलिए एक बार स्ट्रेचिंग किया| कुछ देर तक राहत मिली| लेकीन २९ किलोमीटर के बाद दौड़ना कठिन होने लगा| अब सूरज की रोशनी भी आ गई है| मेरे जैसे बाकी भी लोग अब धीरे धीरे चलते दिखाई दे रहे हैं| इसी चरण पर एलिट या रेसर रनर्स पीछे से आ कर ओवरटेक कर गए| रेसर्स तो लगभग दो घण्टे देरी से निकलते हैं और एमेच्युअर रनर्स के दो घण्टे पहले पहुँच जाते हैं! पहली बार विदेशी एथलीटस को देखने का मौका मिला| उसके बाद भारतीय एलिट एथलीटस भी दिखे जिनमें परभणी की ज्योति गवते भी है जिसने पीछली बार भारतीय एलिट महिलाओं में तिसरा स्थान प्राप्त किया था|
मॅरेथॉन के अन्तिम दस किलोमीटर बहुत कठिन गए, अपेक्षा थी ही उसकी| २९ के बाद बीच बीच में चलना अनिवार्य हुआ| लेकीन अच्छी बात यह थी कि रनिंग बिल्कुल बन्द नही किया| वॉक- जॉग शुरू किया| इसी चरण में मुझे चीअर अप करने के लिए ठाने की दिदी और मेरे परिवारवाले भी मिलनेवाले थे, उससे भी थोडी हिम्मत बढ़ी| फुल मॅरेथॉन वैसे तो टेस्ट क्रिकेट जैसा धैर्य का खेल है| बहुत संयम चाहिए| सिर्फ कोहली से काम नही चलता है, पुजारा तत्त्व भी चाहिए! एक एक कदम बढाता रहा| पानी पिता रहा, खजूर और चिक्की अन्तराल के बाद खाता रहा| २१ किलोमीटर तक मुझे लगभग सवा दो घण्टे लगे थे, ३० किलोमीटर तक भी सवा तीन घण्टे ही लगे| इसलिए यह विश्वास जरूर आया कि मै साढ़ेपाँच किलोमीटर के अन्दर ही मॅरेथॉन पूरा करूँगा| ३४ वे किलोमीटर पर दिदी मिली, उन्होने चीअर किया, जिजाजी भी यहाँ मिले| इसका मतलब हम लगभग पास पास ही जा रहे थे! उसके बाद ३८ वे किलोमीटर पर मेरे परिवारवाले भी मिले! अदू ने भी मुझे चीअर अप किया! और पूरे रूट पर बाकी लोग लगातार चीअर अप करते ही रहे| गो गो, यू कॅन डू ईट, बस चार किलोमीटर बाकी है, जाओ ऐसे कहते रहे| बीच बीच में म्युजिक भी आता रहा| मेरे रनिंग के आदरणीय मित्र हर्षद पेंडसे जी भी सड़क पर मिले| उनके साथ भाग सकता हूँ, इससे भी बहुत हौसला बढ़ा| आगे शरीर को तकलीफ जरूर हो रही थी, फिर भी आराम से बढता रहा| छोटे छोटे चरण कर कर वॉक- जॉग जारी रखा| अन्त में फिनिश का एक किलोमीटर भाग कर ही पूरा किया| मेरा टायमिंग ५.१४ आया! अगर कल- परसो ज्यादा आराम और नीन्द होती तो शायद ५ घण्टे के भीतर पूरा कर सकता था| खैर, मुझे टायमिंग में इतना इंटरेस्ट नही है| मै सिर्फ मेरी सहज गति के अनुसार बढता रहा|
मॅरेथॉन पूरी हुई! मुझे खुशी तो बहुत हुई, एक तरह से इतने कम समय में पूरी होने का अचरज भी लगा| क्यों कि मै तो मान रहा था कि मुझे कम से कम साढ़े पाँच घण्टे लगेंगे ही| उससे बहुत ही कम समय लगा| हौसला भी बहुत बढ़ा| लेकीन अचिव्हमेंट जैसा नही लगा| क्यों कि मै तो मानता हूँ कि अचिव्हमेंट से बढ कर SOP होता है- स्टँडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर| हर चीज़ करने का ठीक तरीका होता है| हर चीज़ उस तरीके से की जा सकती है| बस उसका प्रोसेस कोड हमें पता होना चाहिए, हमें उसमें रूचि होनी चाहिए| खैर| मेरे विचार से १ से ४२ किलोमीटर की दूरी के बजाय ० से १ किलोमीटर की दूरी सबसे बड़ी होती है| पहला कदम उठाना ही कठिन होता है| ० से १ तक की मेरी दौड़ने की यात्रा और फिर १ से ४२ तक की यात्रा के बारे में अगले लेख में बात करूँगा| मेरे लिए यह मॅरेथॉन इस विश्वास के साथ इस वातावरण के लिए भी
यादगार रहेगी| लगातार कई घण्टों तक चीअर अप करना, सड़क पर धूप में खड़े रह कर पानी, नमक लगाए हुए केले, इलेक्ट्रॉल आदि देते रहना, हौसला बढ़ाना कोई आसान बात नही है|
अगला भाग: “भाग दौड़" भरी ज़िन्दगी २: लडखडाते कदम!
अगला भाग: “भाग दौड़" भरी ज़िन्दगी २: लडखडाते कदम!
Wow no doubt you are champion man. Very proudfull moment for us. Feeling happy & exacited to read your experience of full Marathon Mumbai.
ReplyDeleteआज सलिल वर्मा जी ले कर आयें हैं ब्लॉग बुलेटिन की २३०० वीं बुलेटिन ... तो पढ़ना न भूलें ...
ReplyDeleteछुटती नहीं है मुँह से ये काफ़िर लगी हुई - 2300 वीं ब्लॉग बुलेटिन " , में आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !