१५. यात्रा के अनुभवों पर सिंहावलोकन
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एचआयवी और स्वास्थ्य इस विषय पर की हुई साईकिल यात्रा मेरे लिए बहुत अनुठी रही| मुझे बहुत कुछ देखने का और सीखने का मौका मिला| यह सिर्फ एक साईकिल टूअर नही रहा, बल्की एक स्टडी टूअर भी हुआ| यह समस्या कितनी बड़ी है और इस पर काम भी कितना चल रहा है, यह मै समझ पाया और उसमें थोड़ा सहभाग भी ले सका| कई मायनों में मेरे लिए यह यात्रा अनुठी रही| साईकिलिंग के सम्बन्ध में भी बहुत कुछ सीखने को मिला| आज तक की सबसे बड़ी और लगातार ज्यादा दिनों की साईकिल यात्रा हुई| और यह काफी चुनौतिपूर्ण भी रही| शारीरिक कष्ट तो अभ्यास से हो जाते हैं, लेकीन मानसिक रूप से मै इतनी दूरी तक साईकिल चला पाया, यह मेरे लिए सन्तोष की बात है| कई बार ऐसा लगा कि मेरी साईकिल यात्रा से लोग अपनी प्रसिद्धी भी चाह रहे हैं| लेकीन फिर सोचा कि चलने दो, क्या हर्ज है| मुझे इस यात्रा में इतना आनन्द आ रहा है, उन्हे उसमें आता होगा| कई बार ऐसे परीक्षा के क्षण आए जहाँ मन में लगा कि क्या वाकई मै साईकिल से प्रेम करता हूँ? साईकिल के प्रेम की कसोटी पर तो मै खरा उतरा! इस लिहाज़ से तो मै इस यात्रा में साईकिल की एक कक्षा से पास हो कर अगली कक्षा में पहुँचा! कई ऐसे क्षण आए जहाँ साईकिल चलाना कठिन हुआ| कई बार लगा भी कि यात्रा पूरी नही हो पाएगी| शुरू के दिन ऐसी कठिन स्थिति थी| पंक्चर ने भी तकलीफ दी, लेकीन इस यात्रा के बाद अब पंक्चर का डर कभी नही लगेगा| कई दिनों तक लगातार चलनेवाली साईकिल यात्रा के लिए किस तरह शारीरिक एवम् मानसिक तैयारी करनी चाहिए, इसका बहुत अच्छा उदाहरण मुझे मिला|
अब बात करता हूँ इस पूरे विषय की| किसी भी समस्या या समाधान के लिए समाज की मानसिकता में गहराई तक जाना होता है| यह पूरा विषय कई मायनों में अन्य कुछ विषयों से जुड़ा है| जैसे स्त्री- पुरुष सम्बन्ध, स्त्री- पुरुष समानता और हमारे समाज की परिपक्वता| इसलिए इन पर भी थोड़ा विचार करना चाहिए| कुछ दशक पहले तक भारतीय सिनेमा में चुम्बन के दृश्यों पर सेंसॉर की पाबन्दी थी| लेकीन हत्या या गोली से मार डालने के दृश्यों पर कभी भी पाबन्दी नही थी| यह गलत तो है ही, लेकीन ऐसा क्यों है, यह भी समझना चाहिए| समाज में जिस चीज़ की बहुत छुपी आकांक्षाएँ होती हैं, दमन होता हैं, उसी को हम औपचारिक या सामाजिक मंच में गाली देते हैं; निन्दा करते हैं| स्वाभाविक प्रेम के अनुभव के प्रति समाज में बहुत ज्यादा दमन का भाव है| और शायद इतने ज्यादा दमन के कारण ही कुछ समय तक इस तरह के प्रेम- दृश्यों पर पाबन्दी होती थी या आज भी समाज की आँखों में ऐसे दृश्यों पर अलिखित पाबन्दी होती ही है| आज भी 'प्रेम' को एक सामाजिक मूल्य के रूप में देखा नही जाता है| प्रकृति की तरफ से देखा जाए तो पुरुष और स्त्री एक ही अखण्ड के दो खण्ड हैं और उनमें एक दूसरे के प्रति आकर्षण होता ही है| प्रकृति भी उन्हे पास लाना चाहती है| लेकीन हमारे आधुनिक समाज में कई बार बचपन से बच्चे- बच्ची एक दूसरे के साथ नही रहते हैं| साथ रहना मतलब सिर्फ घर में साथ होना नही है, बल्की साथ खेलना, साथ सोना, साथ रहना भी है| ऐसा न होने पर दोनों में एक दूरी और एक खाई बनती है| बाद में इसी के कारण तरह तरह के अफेअर्स होते हैं, महिलाओं पर अन्याय होता है; अत्याचार होता है| लेकीन एक उल्लेखनीय यह बात है कि आज भी जिन समुदायों में बचपन से बच्चे- बच्ची साथ रहते हैं और बाद में भी युवा लड़कें- लड़कियाँ पास ही रहते हैं; एक दूसरे के निकट होते हैं; वहाँ महिला अत्याचार का अनुपात बहुत ही कम है| आज भी ऐसे कई ग्रामीण और आदिवासी समाज हैं| जहाँ प्रकृति को जिस तरह स्त्री- पुरुष निकटता चाहिए वैसी रखी गई है, तोड़ी नही गई है, वहाँ हमें महिला पर अत्याचार या महिला पुरुषों से पीछड़ी होना आदि चीजें सुनने में भी नही मिलेगी| क्यों कि दोनों बिल्कुल साथ ही है| अगर लड़की लड़के के पास ही होती है, तो उसे उसके साथ छेडखानी की जरूरत ही नही पड़ेगी| जहाँ स्वाभाविक रूप से हाथ हाथ में लिया जा सकता हो, वहाँ छेडना असम्भव हो जाता है| लेकीन हम इतने प्राकृतिक ढंग से जीने से भटक चुके हैं| कई चीजें प्यार से; सॉफ्ट तरीके से की जा सकती हैं- जैसे दो बर्तन आपस में फंस जाते हैं| हम क्या करते हैं? थोड़ी देर उन्हे निकालने की कोशिश करते हैं और फिर ठोक- पीट करने लगते हैं| लेकीन अगर हम प्यार से उन्हे अलग करें, तो ठोक पीट की जरूरत भी नही होती है|
१४. रिसोड से परभणी
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२५ नवम्बर की सुबह! इस यात्रा का आखरी दिन है| आज परभणी में समापन कार्यक्रम होनेवाला है| इस साईकिल यात्रा में अन्तिम दिन कब आता है, यह डेस्परेशन तो बिल्कुल नही था, लेकीन एक रोमांच जरूर है| और यह रोमांच आज भी जारी रहेगा| क्यों कि आज कुछ दूरी मुझे अज्ञात सड़क से पार करनी है| अज्ञात या जिसकी स्थिति अज्ञात है, ऐसी सड़क| और आगे भी बीच बीच में कम दर्जे की सड़क मिलेगी, जिससे आज का यह चरण थोड़ा अधिक समय लेगा| रिसोड ग्रामीण रुग्णालय में श्री निखाडे सर के घर चाय पी कर निकला| कल निखाडे सर ने बताया था कि एक जमाने में जब रिसोड अकोला जिले में था, तब यहाँ की पोस्टींग पनिशमेंट समझी जाती थी! क्यों कि रिसोड एक तरह से काफी दूर दराज का इलाका है| उजाला होते होते निकला| रिसोड से साखरा और हत्ता गाँव की सड़क से येलदरी जाऊँगा| शुरू में लोणार की ओर जानेवाली सड़क है| लेकीन क्या माहौल है! बिल्कुल सुनसान सड़क, बहुत देर में कोई वाहन मिल रहा है| और सब तरफ खेत- कुदरत का राज! कुछ किलोमीटर तक तो सड़क अच्छी है, यह पता था| असली मज़ा उसके बाद शुरू होगा!
१३. अकोला से रिसोड
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२४ नवम्बर की सुबह| आज अकोला से निकलना है| अन्तिम दो दिन बचे हैं और दोनो दिन मै शतक करूँगा| आज रिसोड तक १०५ किलोमीटर हो जाएंगे| लेकीन इसमें मुझे काफी हद तक चढाई होगी| कल शाम की चर्चा अब भी याद आ रही है| शिवराज पाटील जी ने कहा था कि महाराष्ट्र में ऐसे एचआयवी बच्चों के १९ बाल गृह है| उनमें से कुछ तो बन्द भी हो चुके हैं| ये सब निजी हैं, एक भी सरकारी नही है| हालांकी सरकार से इन्हे कुछ सहायता जरूर मिलती है| कल श्रीकान्त जी से मिलना हुआ था, वे आज भी सुबह मुझे सड़क दिखाने के लिए आए| यह अकोला के एक तरफ पड़ता है, यहाँ से वाशिम हायवे तक का शॉर्ट कट वे बताएंगे| उनके साथ साईकिल चलानी शुरू की| कुछ दूरी तक मुंबई- नागपूर हायवे पर साईकिल चलाई| कोहरा है और सभी वाहनों के लाईटस जल रहे हैं| थोड़ी देर में वाशिम हायवे के मोड़ पर पहुँचा| मुझे सड़क दिखा कर श्रीकान्तजी ने विदा किया| कुछ कच्ची सड़क से साईकिल चलाई और फिर हायवे पर आ पहुँचा| यहाँ से मालेगांव जहांगीर तक कल वाली ही सड़क है| आज शनिवार है, इसलिए थोड़ी राहत महसूस कर रहा हूँ| चढाई से अधिक समय लग भी गया तो कोई दिक्कत नही है| आज सड़क पर मुझे कुछ लोग भी मिलेंगे, छोटी मुलाकात होगी|
१२. वाशिम से अकोला
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२३ नवम्बर की सुबह| आज वाशिम से अकोला जाना है और चौथे बाल गृह को विजिट करना है| यह इस यात्रा का एक वाकई चरम बिन्दू होगा| सुबह की ठण्डक में वाशिम में विहान प्रोजेक्ट ऑफीस से निकला| वहाँ देवानन्द जी ने मुझे विदा किया| उसके पहले सवेरे जल्द उठ कर कॉफी भी पिलाई थी| यह ऑफीस अकोला कॉर्नर पर ही है, इसलिए मुझे तुरन्त हायवे मिल गया| आज काफी उतराई भी मिलनेवाली है और कल कुछ दूरी तक इसी सड़क पर वापस आऊँग, तो वह चढाई बन कर मिलेगी| मन ही मन सोच रहा हूँ क्या सफर रहा है यह अब तक| साईकिल ने क्या खूब साथ निभाया है! यकीन नही होता| शुरू के चार पाँच दिन तो जैसे मै बहाव के विपरित तैर रहा था| लेकीन उसके बाद एक बहुत प्रबल बहाव पैदा हुआ है| शरीर और मन की एक पूरी धारा बन गई है| अब सब कुछ जैसे अपने आप हो रहा है| सुबह साढ़ेचार बजे आराम से नीन्द खुलती है, शरीर अपने आप साईकिल चलाता है और मन भी बिल्कुल तैयार रहता है| पानी की जैसे लकीर बनती है और पानी उसी लकीर में से गुजरता है, वैसे ही शरीर और मन इस क्रम में बिल्कुल स्थिर हो गए हैं| या युं कहूँ तो ठीक रहेगा- मै ठहरा रहा, जमीं चलने लगे| इतना सब आसान हुआ है| आज का दिन तो बढिया रहेगा, आज वैसे ८४ किलोमीटर साईकिल चलानी है, लेकीन कुछ ढलान भी होगी| इसलिए मज़ा तो पूरा आएगा| साथ ही आज कई दिनों बाद बाल गृह में बच्चों से मिलना भी होगा|
११. कळमनुरी से वाशिम
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२१ नवम्बर को कळमनुरी में अच्छा कार्यक्रम तो हुआ ही, साथ में कई लोगों से मिलना हुआ| शाम को भी कार्यक्रम में आए डॉ. धाण्डे जी मिलने के लिए आए| आज २२ नवम्बर को हिंगोली में भी कुछ लोग मिलेंगे| कळमनुरी से सुबह निकलने में थोड़ी देर हुई| कल अधिक ऊर्जा देनेवाले लड्डू थोड़े ज्यादा खाए थे, जिससे पेट को तकलीफ हुई थी| और कळमनुरी में जहाँ रूका था, वह गेस्ट हाऊस ठीक हायवे पर ही है, इसलिए पूरे उजाले का इन्तजार किया और आगे बढ़ा| यहाँ का परिसर बहुत अच्छा लग रहा है| यह एक हिली एरिया ही है| कुछ लोगों को शायद लगता होगा कि हर रोज साईकिल चलाने में क्या विशेष अनुभव आता होगा, क्या अलग होता होगा| मेरा तो यही अनुभव है कि हर दिन और हर राईड अलग होती है| हर दिन के दृश्य अलग होते हैं, हर दिन हमारा मन और हमारे मन में दिखनेवाले दृश्य भी अलग ही होते हैं| और इस यात्रा में तो हर दिन नए लोगों से मिलना हो रहा है| और रोज के साईकिलिंग या रनिंग के बारे में तो मेरा यही अनुभव है कि हर कोई राईड या रन बिल्कुल अलग ही होता है| चाहे रूट एक ही हो, समय एक ही हो, वातावरण एक जैसा हो, हर दिन का अनुभव अलग होता है| बस उसे देखना आना चाहिए| उपर से बोअरिंग जैसा दिखाई देनेवाला यह क्रम बिल्कुल भी बोअरिंग नही होता है| बस उसके भीतर छिपी चीज़ें हमें दिखाई पड़नी चाहिए|
१०. नान्देड से कळमनुरी
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२१ नवम्बर, इस यात्रा का दसवा दिन| नान्देड में सुबह निकलते निकलते एक योग शिक्षिका से थोड़ी देर मिलना हुआ| इस पूरी यात्रा में कई जगहों पर लोगों से मिलना हो रहा है| यह क्रम इतना लगातार जारी रहा कि २५ नवम्बर को यात्रा पूरी होने के बाद भी कई दिनों तक इसी यात्रा के सपने आते रहे और सपने में यात्रा में कुछ कुछ स्थानों पर लोगों को मिल रहा हूँ, ऐसा लगता रहा! नान्देड के भाग्यनगर से निकला, एअरपोर्ट के रास्ते अर्धापूर की तरफ जानेवाले हायवे पर आया| कुछ दूरी तक उतराई मिली| सुबह की ताज़गी और ठण्डक भी! उसके साथ शानदार मख्खन जैसा हायवे! घी में शक्कर! अभी साईकिल चलाना मानो महसूस ही नही हो रहा है| पहले योजना बनाई थी कि नान्देड से हिंगोली जाऊँगा और अगले दिन हिंगोली से वाशिम जाऊँगा| लेकीन इसमें नान्देड- हिंगोली ९२ किलोमीटर होते और अगले दिन हिंगोली- वाशिम सिर्फ ५१ किलोमीटर ही होते| इसलिए इस असमान चरण को थोड़ा सुधारा और हिंगोली के १८ किलोमीटर पहले कळमनुरी रूकने की योजना बनाई| हिंगोली जिले का केन्द्र था, लेकीन वहाँ का कार्यक्रम कळमनुरी में करने के लिए सभी लोग राज़ी हुए| इससे आज मै सिर्फ ६८ किलोमीटर चलाऊँगा और कल भी लगभग इतने याने ६६ किलोमीटर ही चलाऊँगा| और बाद में ऐसा कुछ हुआ जिससे यह निर्णय बहुत सही साबित हुआ!
९. अहमदपूर से नान्देड
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२० नवम्बर, इस यात्रा का नौवा दिन| अहमदपूर में सुबह निकलते समय आसमां बिल्कुल साफ है| संयोग से मै यहाँ जिनके पास ठहरा था, वे आज परभणी मेरे पिताजी के पास जा रहे हैं| इसलिए कुछ वजन उनके पास भेज दिया| साईकिल पर लगभग बारह किलो का सामान होगा, उसमें से एक- डेढ किलो कम हुआ| सामान अगर ठीक से रखा जाए, तो महसूस भी नही होता है| और अब इतने दिनों के बाद मुझे बिल्कुल भी महसूस नही होता है| आज का चरण भी छोटा ही है| यहाँ से नान्देड तक ७४ किलोमीटर साईकिल चलाऊँगा| आज के दिन की खास बात यह रहेगी कि नान्देड मेरा ननिहाल है और आज मै मामा के घर पर ठहरूँगा| इस स्वप्नवत् यात्रा का और एक सुनहरा दिन!
८. हसेगांव (लातूर) से अहमदपूर
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कल रात भर अच्छी बारीश हुई| कल मै जहाँ ठहरा था, वहाँ गर्मी और मच्छरों ने नीन्द नही लेने दिया| लगभग पूरी रात जगा रहा| सुबह चार बजते ही संस्था के एक कार्यकर्ता मिलने आए| फिर कुछ देर उनसे बात हुई, अन्धेरे में ही थोड़ा टहलना भी हुआ| संस्था के कार्य के बारे में बात होती रही| बाद में उन्होने मेरे लिए बड़े प्यार से पोहे भी बनाए| अब भी बारीश का मौसम बना है, इसलिए सुबह उजाला होते देर लगी| इसलिए १९ नवम्बर हर रोज के बजाय कुछ देरी से निकला| निकलते समय भी रवी जी ने और बच्चों ने बड़े जोश से मुझे विदा किया| सेवालय में यह विजिट इस यात्रा का शायद सबसे बड़ा अनुभव रहा! बहुत कुछ देखने को और समझने को मिल रहा है! और सेवालय में आने के बाद यहाँ से जाना कठिन होता है, यह सुना था, अब उसका अनुभव ले रहा हूँ| एक तो मौसम आज कुछ अलग है और रात में विश्राम न होने से भी थकान हो रही है| आज वैसे तो मुझे छोटा ही चरण है| ७६ किलोमीटर ही चलाने है| अब अगले शनिवार तक ज्यादा बड़े चरण नही है| अब धीरे धीरे यात्रा अपनी समाप्ति की तरफ बढ़ रही है|
७. अंबेजोगाई से हसेगांव (लातूर)
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१८ नवम्बर की भोर, यात्रा का सांतवा दिन| आज रविवार है और आज का चरण वैसे छोटा भी है| आज ७५ किलोमीटर साईकिल चलानी है और लगातार कई दिनों तक साईकिल चलाने से ये ७५ किलोमीटर अब सिर्फ लग रहे हैं| जैसे एक पेडल मारने से साईकिल अपने आप कुछ आगे जाती है, एक पेडल का मूमेंटम दूसरे पेडल में मिलता है, उसी प्रकार कई दिनों का मूमेंटम अब मेरे पास है| बस डर एक ही है कि आज के रूट पर भी कुछ हद तक निम्न दर्जे की सड़क है| ठीक सवा छह बजे अंबेजोगाई से निकला| यशवंतराव चव्हाण चौक में कल मेरा स्वागत हुआ था, वहीं से लातूर रोड़ की तरफ बढ़ा| शहर से बाहर निकलने तक सड़क ठीक है, लेकीन जब पहला मोड़ आया, तो सड़क बिल्कुल टूटी फूटी मिली| लेकीन यहाँ के लोगों ने बताया कि जल्द ही अच्छी सड़क मिलेगी, इस सड़क का लगभग काम पूरा हो चुका है| और मै अब तक ऐसी ऐसी सड़कों से गुजर चुका हूँ कि मुझे सड़क कम दर्जे की हो तो कुछ फर्क ही नही लग रहा है| उसका भी अभ्यास हो गया है| इसलिए पथरिली सड़क पर भी आराम से आगे बढ़ा| दूर से गिरवली सबस्टेशन का परिसर और अंबेजोगाई- परली रोड़ पर स्थित टीवी टॉवर दिखा| बचपन में अक्सर यहाँ आया करता था! उस परिसर का दूर दर्शन कर यादों को ताज़ा कर लिया| थोड़ी ही दूरी पर अच्छा दो लेन का हायवे मिला| अब लातूर तक अच्छा हायवे होगा|
६. बीड से अंबेजोगाई
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१७ नवम्बर की भोर| इन्फँट इंडिया बाल गृह से निकला| निकलते समय दत्ताजी और सब बच्चों ने मुझे विदा कहा| बड़े प्यार से मेरे लिए बहुत जल्द उठ कर भोजन भी बनाया| इस हिल से उतरते समय नीचे के सरोवर का परिसर बहुत सुन्दर लगा! कल की मुलाकातें याद करते हुए आगे बढा| आज भी मेरे लिए कुछ बहुत निम्न स्तर की सड़क लगनेवाली है| आज ऐसा तीसरा दिन होगा जब शुरू के तीस- पैतीस किलोमीटर तक ऐसी सड़क होगी और उसके बाद बेहतर सड़क मिलेगी| सोच रहा हूँ या उम्मीद कर रहा हूँ कि सिर्फ पैतीस किलोमीटर तक ही ऐसी सड़क मिले| आज सबसे पहले मुझे तो मांजरसुंबा घाट पार करना है| हायवे पर आते ही घाट की चढाई शुरू हुई| घाट तो मामुली ही है| लेकीन घाट में टैफिक जाम है! एक पल के लिए डर लगा कि कहीं फंस तो नही जाऊँगा? लेकीन हाथ में साईकिल है, इसलिए कुछ देर तक ट्रकों की कतार के दाए तरफ से आगे बढा और जब सड़क सँकरी हुई, तब बाए तरफ से आगे बढ़ा| सड़क के किनारे से आगे निकला| छोटा ही हो, घाट तो है ही| लेकीन उससे ज्यादा डरावनी बात काँच के छोटे टूकडे हैं जो जगह जगह फैले हुए हैं| उन पर से साईकिल चलाते समय वाकई डर लग रहा है| अगर घाट में साईकिल पंक्चर हुई तो??... लेकीन ऐसा हुआ नही| आसानी से छोटी सी जगह से आगे निकला और फिर स्लो हुए ट्रक्स को ओवरटेक भी करता गया| कुछ ही मिनटों में घाट पार हुआ और मांजरसुंबा चौराहे पर पहला ब्रेक लिया|
४. पंढरपूर से बार्शी
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१५ नवम्बर| कल लगातार दूसरे दिन पंक्चर होने से एक तरह से अब भी अस्वस्थ हूँ| पंक्चर तो मैने ठीक कर दिया है, लेकीन फिर होने का डर है| कल सोने में बहुत देर होने पर भी सुबह फ्रेश लग रहा है| सुबह बच्चों से विदा लिया, पालवी संस्था की दिदी से विदा लिया| अच्छी खासी ठण्ड लग रही है| पंढरपूर गाँव में से शेटफळ की सड़क पूछ कर आगे निकला| जब इस यात्रा का रूट प्लैन बनाया और योजना बनाई, तो हर दिन लगभग ८०- ८५ किलोमीटर साईकिल चलाने का लक्ष्य रखा| ऐसे रूट बनाते समय कई बार बहुत इंटेरिअर की सड़के लेनी पड़ी| आज भी मुझे ऐसी ही सड़क से जाना है| पंढरपूर गाँव के बाद चंद्रभागा नदी का पूल पार करते ही ऐसी ही सड़क लगी! पंढरपूर इतना बड़ा तीर्थ क्षेत्र और उसके बाद दिया तले अंधेरा! देखा तो पूरी तरह उखाड़ दी है! नई सड़क बनाने के पहले पुरानी को तोड़ दिया है! मन ही मन उम्मीद कर रहा हूँ कि आगे जा कर कुछ ठीक होगी|
चन्द्रभागा और पण्ढरपूर!
३. इन्दापूर से पण्ढरपूर
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१४ नवम्बर की भोर| आज बाल दिन है और आज मुझे पहले बाल गृह में पहुँचना है| आज इस साईकिल यात्रा का तिसरा दिन है| इसलिए शरीर कुछ लय में आ गया है| सुबह की ठण्डक में इन्दापूर महाविद्यालय से निकला| सुबह घुमनेवाले लोगों को सड़क पूछ कर आगे बढ़ा| कल के हायवे के मुकाबले इन्दापूर- अकलूज सड़क काफी शान्त लगी| अब वाकई लग रहा है कि मै ग्रामीण क्षेत्र में पहुँच गया हूँ| जल्द ही पुणे जिला समाप्त हुआ| अकलूज में पहला ब्रेक लिया| पहले दो दिनों के अनुभव के बाद मै नाश्ते के लिए सिर्फ केला, चाय- बिस्कीट, चिक्की (गूड़पापडी) और चिप्स इनको ही ले रहा हूँ| पेट के लिए हल्का होता है| डबल चाय- बिस्कीट के दो ब्रेक मेरे लिए पर्याप्त होते हैं| साथ ही चिक्की/ बिस्कीट पास रखता हूँ, उन्हे बीच बीच में खाता हूँ| पानी में इलेक्ट्रॉल डाला ही हुआ है| लगातार चलाने के कारण धीरे धीरे मेरे लिए साईकिल चलाना और आसान होता जा रहा है|