Friday, December 8, 2017

योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा ८: सातारा- कास पठार- सातारा

योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा १: असफलता से मिली सीख
योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा २: पहला दिन- चाकण से धायरी (पुणे)  
योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा ३: दूसरा दिन- धायरी (पुणे) से भोर  
योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा ४: तिसरा दिन- भोर- मांढरदेवी- वाई  
योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा ५: चौथा दिन- वाई- महाबळेश्वर- वाई
योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा ६: पाँचवा दिन- वाई- सातारा- सज्जनगढ़
योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा ७: छटा दिन- सज्जनगढ़- ठोसेघर- सातारा
 

८: सातारा- कास पठार- सातारा
इस यात्रा का सम्बन्ध ध्यान- योग से किस प्रकार है, यह जानने के लिए यह पढ़िए|

४ अक्तूबर की सुबह| आज इस यात्रा का एक बहुत ही अहम पड़ाव है! सातारा का खूबसूरत कास पठार देखने जाना है| इसे महाराष्ट्र का वैली ऑफ फ्लॉवर्स भी कहा जाता है| जरूर यह इस यात्रा का सबसे रोमांचक पड़ाव होगा! आज भी लगभग ५२ किलोमीटर साईकिल चलाऊँगा और आधे रास्ते तक चढाई होगी और वापसी में उतराई|










सातारा गाँव से निकलते ही यवतेश्वर चोटी की चढाई शुरू हुई| यहाँ एक स्थान से सज्जनगढ़ के तरफ के पहाड़ भी दिखाई दे रहे हैं| अच्छी खासी चढाई है लेकीन कोई तकलीफ नही हो रही है| सातारा में एक मशहूर मिलिटरी स्कूल भी है| वहाँ दिए जानेवाले ऑर्डर्स यहाँ तक सुनाई दे रहे हैं! बहोत से लोग मॉर्निंग वॉक करनेवाले हैं| सातारा से पाँच- छह किलोमीटर तक वे दिखाई दे रहे हैं| एक स्थान पर बहुत ही प्रोत्साहन देनेवाला दृश्य दिखा! एक साईकिलिस्ट एक जगह पर बैठ कर ध्यान कर रहा है! यह तो इस योग- ध्यान की साईकिल यात्रा का रोल मॉडेल मिल गया! जाकर उनसे थोड़ी बातचीत करनी चाही, लेकीन वे सच में ध्यान में डूबे थे| एक पल आख खोल कर मेरी तरफ देखा और फिर आँख बन्द कर ली! वाह!





जल्द ही वह स्थान आ गया जहाँ पर सड़क का कुछ हिस्सा टूटा हुआ है| समाचार में ऐसा बताया गया था कि आधी सड़क टूटी है| लेकीन मामुली हिस्सा ही टूटा है| हिमालय में ऐसी टूटी सड़कों पर बहुत चला हूँ, इसलिए कुछ भी महसूस नही हुआ और आगे बढ़ चला| लेकीन इस तथा कथित टूटी सड़क के कारण एक चीज़ बहुत अच्छी हुई है कि सिर्फ छोटी गाडियाँ ही सड़क पर मिलेगी| अर्थात् मुझे काफी हद तक सुनसान सड़क मिलेगी! वाह! यवतेश्वर की चोटी आते आते मन्जर बिल्कुल सुहावना हो गया है| और आज मौसम भी बहुत सुहावना है- बारीश का माहौल, लेकीन बारीश नही! ठण्डी हवा! जो कमी महाबळेश्वर में थी, वह शायद आज दूर होगी! ऐसे मौसम और माहौल में साईकिल चलाना!







धीरे धीरे सड़क सुनसान क्षेत्र से गुजरने लगी है| बीच बीच में कुछ होटल और रिजॉर्ट लगे| उसके बाद तो कुछ भी नही! अब मुझे नाश्ता करना है| लेकीन वैसा होटल नही मिल रहा है| अब एक तरफ से उरमोडी नदी का डैम दिखाई दे रहा है और दूसरी तरफ और एक डैम! यानी यह सड़क अब पहाड़ की धार पर से जाएगी, दोनों तरफ वैली दिखेगी! काफी कुछ देर के बाद कुछ होटल मिले- लेकीन वे सब के सब हाईफाई| इसलिए आगे बढ़ता रहा| जरूर सादा वाला होटल जल्द ही आएगा और आया| यहाँ दो वडे और चाय बिस्कुट का नाश्ता किया| सुबह से लगभग डेढ घण्टे में पन्द्रह किलोमीटर हुए हैं| यहाँ से कास पठार दस- ग्यारह किलोमीटर है| चढाई होने के कारण अधिक समय जरूर लग रहा है, लेकीन वह वापसी में कवर हो जाएगा| नजारों का क्या कहना! एक झलक आप ही देख लीजिए!













 
जैसे जैसे कास पठार करीब आता गया, नजारे और सुन्दर होते गए| ठण्ड भी होने लगी| इस क्षेत्र की ऊँचाई भी समुद्र सतह से १००० मीटर से अधिक है| इन सबके साथ बहुत ही शानदार सड़क और ना के बराबर यातायात! अब इसका अधिक वर्णन शब्दों से नही करूँगा|

दीवाना हुआ बादल सावन की घटा छाई
यह देख के दिल झूमा ली प्यार ने अंगडाई
दिल आज ख़ुशी से पागल है
ऐ जान ए वफ़ा तुम खूब मिले









कास पठार में वैसे तो पर्यटक शुल्क सौ रूपए है, लेकीन साईकिल होने के कारण मुफ्त में प्रवेश मिल गया| यहाँ देखने के लिए बहुत कुछ है| और सबसे सुन्दर फूल तो इस घाटी में अन्दर पैदल जा कर दिखाई देंगे| लेकीन मुझे वापस जा कर काम भी करना है| इसलिए सिर्फ सड़क पर दिखनेवाले फूल ही देखे| थोड़ा आगे जा कर कास तालाब तक पहुँचा| बीच बीच में तेज़ चढाई और उतराई है ही| कास तालाब के पास पहुँच कर लगा जैसे इस पूरी यात्रा का शिखर आ गया| समय की कमी के कारण तुरन्त वापस लौटा| लेकीन बीच बीच में लगनेवाले सुन्दर फुलों ने रोकने को मजबूर किया| कुछ सुन्दर फूल तो सड़क पर भी दिखे| बड़े कष्ट से वहाँ से लौटने लगा| चढाई में २५ किलोमीटर के लिए लगभग तीन घण्टे लगे थे, वापसी में यही दूरी डेढ घण्टे में तय हुई और लगभग ग्यारह बजे तक मै वापस सातारा में हूँ| लेकीन क्या मन्जर देखने को मिले!!! आज का दिन ही इस पूरी यात्रा का सर्वश्रेष्ठ दिन रहा|

ये रात ये खामोशी, ये ख्व़ाब से नज़ारें
जुगनू हैं या जमीं पर उतरे हुए हैं तारें
बेख़ाब मेरी आँखे, मदहोश है ज़माना
मौसम है आशिकाना…





अब सिर्फ एक ही जगह बची है- अजिंक्यतारा किला| कल वह देख कर वापस जाऊँगा| लेकीन सारा सातारा देखने के बाद यही लग रहा- ये सातारा वो तारा हर तारा! देखो जिधर भी लगे है प्यारा! अब बाकी रहा सिर्फ अजिंक्यतारा!


यवतेश्वर से दिखता सातारा शहर और अजिंक्यतारा किला


आज कुल ५१ किलोमीटर साईकिल चलाई और चढाई ११४१ मीटर थी





अगला भाग- योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा ९ (अन्तिम): अजिंक्यतारा किला और वापसी

5 comments:

  1. बहुत सुन्दर चित्र सुन्दर वर्णन।

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (10-12-2017) को "प्यार नहीं व्यापार" (चर्चा अंक-2813) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. बहुत सुन्दर चित्र और वर्णन

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  4. वा निरंजन. प्रवासवर्णन आवडलं. हिंदी वाचण्याची फार सवय नाही, त्यामुळं आणखी मजा आली. तुझं वाचून अशी भटकंती आपणही करावी, असं वाटतंय. पण सायकलवरुन मला नक्कीच जमणार नाही. :)

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  5. एका फोटोत तू 51 किलोमीटर सायकल चालवल्याचं दिसतंय. पण त्यानंतरही फक्त 814 कॅलरीजच कमी झाल्यात. हे अॅप गंडलंय का??

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