Friday, June 4, 2021

"राज" और "सिमरन": एक प्लॅटफॉर्म की कहानी


किसी रेल्वे जंक्शन का प्लॅटफॉर्म| वहाँ कई लोग ट्रेन में बैठ कर  यात्रा के लिए निकलते हैं| भागे भागे प्लॅटफॉर्म पर आते हैं, ट्रेन पकड़ते हैं और आगे निकल जाते हैं| पर यह सिर्फ रेल्वे स्टेशन पर ही नही घटता है| जीवन में ऐसे कई जंक्शन्स और अनगिनत प्लॅटफॉर्म होते हैं| प्लॅटफॉर्म एक माध्यम है जो हमें आगे ले जाता है| कभी स्कूल एक प्लॅटफॉर्म होता है और वहाँ विद्या मिलती है| कभी दु:ख एक प्लॅटफॉर्म होता है जो हमें आगे जाने के लिए सीखाता है|

जीवन भी एक प्लॅटफॉर्म है| ज्ञानी कहते हैं कि जीवन एक युनिवर्सिटी है| यहाँ इन्सान सीखते सीखते आगे जाता है| उसे एक प्लॅटफॉर्म से दूसरा ऐसे कई प्लॅटफॉर्म और कई ट्रेनें मिलती जाती हैं| ऐसे ही आगे बढ़ते हुए एक दिन साधक या शिष्य को गुरू की ओर ले जानेवाला प्लॅटफॉर्म मिलता है| यह कहानी उस प्लॅटफॉर्म की है| जब पहली बार गुरू साधक को पुकारता है, तब उसे तो भ्रम ही लगता है| लेकीन धीरे धीरे गुरू पुकारता रहता है| उसके बाद अदृश्य जरियों से गुरू शिष्य से मिलता है और उसका साथ देता रहता है| अहंकार और अज्ञान से भरा हुआ शिष्य का घड़ा गुरू एक एक अंजुली से खाली करता जाता है| और यह करते समय छलकने की आवाज़ भी नही होने देता है, कौन जाने, शिष्य नाराज होगा! ऐसा एक न दिखाई देनेवाला सत्संग शुरू होता है| एक सूक्ष्म शल्य- क्रिया शुरू होती है| और जब गुरू शिष्य को अपने पास पुकारता है, तो शिष्य को आना ही होता है| उसे गुरू के पास जाते समय कई बाधाएँ बीच में आ जाती है| उसका पूरा अतीत उसे रोकता है| लेकीन जब गुरू पुकारता है, तो उसे आना ही पड़ता है| शिष्य की इच्छा और आकांक्षाएँ गिर जाती है और सिर्फ गुरू के प्रति समर्पण की इच्छा बचती है| शिष्य की भाव दशा ऐसी हो जाती है-

मेरा है क्या, सब कुछ तेरा

जाँ तेरी, साँसें तेरी

तुने आवाज़ दी देख मै आ गई

प्यार से है बड़ी क्या कसम

या

मेरी आँखों में आँसू तेरे आ गए

मुस्कुराने लगे सारे ग़म

अब यहाँ से कहाँ जाएँ हम

तेरी बाँहों में मर जाएँ हम