Tuesday, November 26, 2024

"क्रिया" से "शुक्रिया" तक की यात्रा: ध्यान शिविर

"क्रिया" से "शुक्रिया" तक की यात्रा: ध्यान शिविर

करूं ओशो तेरा शुक्रिया... तुने जीवन को उत्सव बना दिया

आनन्द क्रिया योगाश्रम में हुआ ध्यान शिविर

अहोभाव और कीर्तन से शुरूआत

संगीत, नृत्य, भाव और मौन के साथ "सत् नाम" की खोज

सक्रिय ध्यान, नादब्रह्म ध्यान और अन्य विधियों का अभ्यास

ओशो तुने हमको जीना सीखा दिया

आनन्द क्रिया योगाश्रम- ऊर्जा का क्षेत्र

गुफा में ध्यान

कुछ नही हाथ आयेगा यहाँ फिर भी ऐ ज़िंदगी तेरा शुक्रिया

 

सभी को प्रणाम! अक्सर तो हम ज़िन्दगी से शिकायत करते रहते हैं कि हमें यह नही मिला, वो नही मिला या हमारे साथ ऐसा हुआ| लेकीन कभी कभी ज़िन्दगी ऐसा सौभाग्य देती है जिससे हमारी शिकायतें खो जाती हैं और हम अहोभाव से भर जाते हैं| ऐसा ही अवसर इस ध्यान शिविर के रूप में मिला जिसका अनुभव आपके साथ शेअर करना चाहता हूँ| पुणे से 35 किलोमीटर दूर प्रकृति की गहराई के बीचोबीच का यह आश्रम- आनन्द क्रिया योगाश्रम! पहले इस अनुठे आश्रम के बारे में बताता हूँ| परमहंस योगानन्द के शिष्य स्वामी क्रियानन्द (मूल नाम जेम्स डोनाल्ड वॉल्टर) ने योगानन्द जी, उनके गुरू श्री युक्तेश्वर गिरी और क्रिया योग परंपरा की धारा को आगे बढ़ाने के लिए विश्व भर में कई जगह आश्रम खड़े किए| पुणे के पास का यह आश्रम भी उनमें से एक है| क्रिया योग की परंपरा का होने के कारण इसका नाम "आनन्द क्रिया योगाश्रम" है| यहाँ के क्रिया योग मन्दिर में महावतार बाबाजी, लाहिरी महाशय (उन्नीसवी सदि के गुरू), श्री युक्तेश्वर गिरी, परमहंस योगानन्द, जीसस और कृष्ण की प्रतिमाएँ विराजमान है| इसी क्रिया योगाश्रम में इस शिविर में "क्रिया" से "शुक्रिया" तक की यात्रा ओशो और उनके दिवानों के साथ शुरू हुई!










 22 नवम्बर की दोपहर को चिंचवड में स्वामी एकान्त जी, स्वामी उज्ज्वल जी, मा प्रतिमा जी और अन्य साधकों से मिलना हुआ| स्वामी एकान्त जी की शायरी सुनने का अवसर मिला और उनके हस्ताक्षर में लिखी गई ओशो वाणि को पढ़ने का मौका मिला! स्वामी एकान्तजी के यहाँ कुछ साधक इकठ्ठा हुए और वहाँ से शिविर के स्थान के लिए निकले! धीरे धीरे रोजमर्रा के जीवन क्रम को एक तरफ रख दिया| मोबाईल को हवाई जहाज (एअरप्लेन मोड) पर रख दिया और मौन होने का प्रयास शुरू किया!


स्वामी एकान्त जी और स्वामी उमंग जी ने यह स्थान इस शिविर के लिए चुना है! चारों ओर पहाड़ और सन्नाटा! यहाँ जाने की सड़क भी वाहन के लिए दुभर है! कार को भी जैसे ट्रेकिंग करना पड़ रहा है! लेकीन एक बार पहुँचने के बाद इस रमणीय परिसर को देख कर बहुत सुकून मिला! यह आश्रम और ध्यान रिट्रीट केन्द्र बहुत फैला हुआ है! कई सारे कमरें, कक्ष, ध्यान कक्ष हैं! ठहरने का कमरा ढूँढने के लिए कुछ समय लगा| शाम को 6 बजे तक सभी साधक आते गए और धीरे धीरे ध्यान के लिए तैयार हुए|


व्हाईट रोब ध्यान सत्र- कीर्तन और शिथिलीकरण


स्वामी उमंग जी ने सभी का अहोभाव से स्वागत किया| स्वामी कुन्द कुन्द जी सभी से मिले और फिर इस महफील की शुरूआत हुई! मौन में ही साधकों को प्रणाम किया| पीछले वर्ष लोणावळा के पास हुए ध्यान शिविर का आखरी बिन्दु अहोभाव था| उसी अहोभाव के साथ स्वामी कुन्द कुन्द जी ने इस शिविर का आरम्भ किया| सभी गुरूओं को वन्दन कर श्वेत वस्त्र में सभी साधक ध्यान में डुबने के लिए तैयार हुए| "सत् नाम सत् नाम वाहे गुरू - हर पल जपां तेरा नाम" गीत के साथ कीर्तन शुरू हुआ! मन को आल्हादित और शान्त करता हुआ संगीत! कुछ देर खड़े रह कर झूमने के बाद स्वामीजी और ओशो के निर्देश के साथ सभी साधकों ने शरीर को शिथिल किया| आती- जाती साँस के प्रति सजग होने का प्रयास किया| पूरे शरीर को रिलैक्स किया| इन्स्ट्रुमेंटल संगीत से बड़ी मदद हुई! एक गहरे विश्राम की स्थिति का अनुभव मिला| कुछ पल इस स्थिति का आनन्द ले कर साधक खड़े हुए|


"एक तेरा साथ हमको दो जहाँ‌ से प्यारा है

ना मिले संसार, तेरा प्यार तो हमारा है"


इस अत्यधिक मिठे गीत के साथ अहोभाव और गहराई का अनुभव हुआ| इन गीतों ने ध्यान के माहौल को और गहरा किया! कुछ चर्चा और निर्देश के बाद यह सत्र समाप्त हुआ| जब ध्यान कक्ष से बाहर निकले, तो बड़ी ठण्ड से ठिठुरन का अनुभव हुआ! किसी से कोई बातचीत किए बिना भोजन लिया और इस परिसर का और सन्नाटे का कुछ क्षण आनन्द लिया| यह परिसर एक छोटी पहाड़ी पर स्थित है| मेरा कमरा कुछ चढ़ाई पर है| यहाँ चलते समय पैरों की गति कम महसूस हो रही है| जैसे ध्यान बढ़ता है, वैसे चीज़ें धिमी हो जाती हैं| आकाश में तारों की रोशनी दिखाई दे रही हैं! बृहस्पति (गुरू) सबसे अधिक चमक रहा हैं| एक एक कदम होश से चलने का प्रयास करते हुए कमरे पर लौटा और नीन्द की ओर बढ़ा|


शिविर का दूसरा दिन- 23 नवम्बर


सुबह जल्दी आँख खुली| फटाफट तैयार हो कर बाहर निकला| 6 बजे भी घना अन्धेरा है| आसमान में चाँद, गुरू और मंगल भी हैं! लेकीन ठण्ड! ठिठुरते हुए क्रिया योग मन्दिर की‌ ओर बढ़ा| कुछ साधक टहल रहे हैं| लेकीन जैसे स्वामीजी ने कहा था और मैने भी तय किया था- किसी से कोई बात नही की| यहाँ दो दिन ऐसे रहना है कि हम सब बिल्कुल अकेले हैं| अगर बातें करनी ही हो, तो प्रकृति से ही करनी है| कुछ देर चलने के बाद ठण्ड कुछ कम लगने लगी| धीरे धीरे पूरब में रोशनी आने लगी| सुबह की ताज़गी और ओस! पंछी चहचहाने लगे, पेड़ों के पत्ते हिलने लगे| पास की पहाड़ी का विहंगम दृश्य दिखाई देने लगा|


यह एडव्हान्स शिविर है, तो सभी साधक पुराने हैं अर्थात् पहले दो शिविर किए हुए| और शिविर के लिए मरून रोब और श्वेत वस्त्र आवश्यक है| पहली बार जीवन में मरून रोब परिधान किया| इस रोब को ले कर मन में कुछ भय भी है कि इसे कैसे पहनें, ठीक तो रहेगा ना| स्वामी उमंग जी ने शिविर के आयोजन की व्यस्तता के बीच मेरे लिए इसका प्रबन्ध किया है| वैसे तो यह है कुर्ते जैसा ही| लेकीन बहुत बड़ा| पैरों तक आ रहा है| कुछ कुछ गाऊन या साड़ी जैसे भी लग रहा है! मन में आनेवाली अस्वस्थता को देखता रहा| धीरे धीरे सहज महसूस होने लगा|


अब आज का पहला सत्र है सक्रिय ध्यान! सक्रिय ध्यान वाकई बहुत ऊर्जादायी अनुभव होता है| पीछले शिविर में बहुत मज़ा आया था| स्वामी कुन्द कुन्द जी ने इसके निर्देश दिए| इसमें चार चरण हैं- पहले अनियंत्रित साँसे लेना (केओटीक ब्रीदिंग), फिर चिल्लाना- जोर से चीखना (रेचन), फिर हु- हु का प्रबल उच्चारण और फिर शरीर को एकदम छोड़ देना और अन्तिम पाँचवा हिस्सा अहोभाव- कृतज्ञता के साथ झूमना| "मै मेरी पूरी शक्ति ध्यान में लगाऊँगा" इस संकल्प के साथ और ओशो की वाणि के साथ इसकी शुरूआत हुई! अपेक्षाकृत इस सक्रिय ध्यान में बहुत मज़ा आया| इस ध्यान को करने के लिए ग्रूप बहुत उपयोगी है| एक दूसरे की उपस्थिति से रेचन को और खुद को छोड़ने के लिए बल मिलता है| अनियंत्रित और तेज़ साँसे लेने लगा| कुछ दिनों में मेरे साईकिलिंग और अन्य व्यायाम में कुछ कमी हुई है! इसलिए नाभी की गहराई तक साँस धकेलने में दिक्कत हुई! अगर व्यायाम का अच्छा क्रम रहा होता, तो ज्यादा आसानी से और ज्यादा शक्ति से यह चरण कर पाता| खैर!


दूसरे चरण में तेज़ चीखना- चिल्लाना! मानो ध्यान के कक्ष में सैंकड़ो भेडिए, शेर, लोमड़ीयाँ और तरह तरह के जानवरों का पहाड़ ही टूट पड़ा! इस माहौल में धीरे धीरे मुझसे भी ऐसी ही आवाजें निकलने लगी! जो भी भीतर से व्यक्त होना चाहे उसे व्यक्त करना होता है| दस मिनट तक यह गर्जनाएँ होती रहीं! आश्रम में होनेवाले कुत्ते जरूर हैरान हुए होंगे कि यह हो क्या रहा है! उसके बाद हू- हू का चरण! बीच बीच में और तेज़ करने के लिए पुकारते ओशो और स्वामीजी! बीच बीच में शरीर कुछ थक रहा है, साँस धिमी हो रही है| फिर कुछ क्षण के बाद जोर से हू- हू! इस हू- मन्त्र की चोट नाभी पर करनी है| इससे अवचेतन में छिपा तनाव और अस्वस्थताओं का रेचन होता है| शरीर में बन्द ऊर्जा प्रवाहित होने के लिए मदद होती है| दस मिनट हू- हू करने के बाद जैसे ही ओशो ने "स्टॉप" कहा, वैसे ही रूक गया| शरीर जिस स्थिति में है, उसे वैसे ही छोड़ दिया| पैर इस तरफ, हाथ उस तरफ! लेकीन फिकर नही| शरीर और मन में जो हो रहा है, उसका साक्षी बनने का प्रयास किया| सक्रिय ध्यान के बाद गाल पर संवेदना हुई| शरीर में सूक्ष्म ऊर्जा सी महसूस हो रही है| और इस बवंडर के बाद का सन्नाटा! आँधी के बाद की शान्ति! कुछ मिनटों तक इसका आनन्द लिया और फिर स्वामीजी के निर्देश के साथ आँखे बन्द रख कर सभी झूमने लगे| इस गहराई को आगे ले जाने के लिए इन्स्ट्रुमेंटल संगीत से बड़ी सहायता मिली! "मेरे ओशो" गीत पर झूमते हुए इस सत्र का समापन हुआ|


7 चक्र और तन्त्र साधनाएँ


चाय और नाश्ता करने के बाद कुछ समय परिसर में टहलने का आनन्द लिया| किसी से बात किए बीना अपने में डूबने का आनन्द ही कुछ और है! मोबाईल भी पूरी तरह चूप होने का भी कितना आनन्द है| बाहरी दुनिया से कोई सम्पर्क नही! बहुत दिनों बाद "एकान्त" का यह मौका मिला और अब उसका पूरा लुत्फ लेना है!


दिन के दूसरे सत्र की शुरूआत "नई सुबह की नई किरण, चलो रे पंछी पार गगन" इस गीत के साथ हुई| कितना भाव और मिठास! पूरा समा बन्ध रहा है अब! इस सत्र में स्वामीजी ने सांत चक्रों पर बात की| कुछ चर्चा भी हुई| सांत चक्र तथा हर एक चक्र और हर इन्द्रिय से जुड़े तंत्र योग के बारे में स्वामीजी ने बताया| जैसे मूलाधार चक्र- कर्म योग, स्वादिष्ठान चक्र- हठ योग, मणिपूर चक्र- ध्यान योग, अनाहत चक्र- भक्ति योग, विशुद्धी चक्र- राज योग, आज्ञा चक्र- ज्ञान योग और सहस्रार चक्र- सांख्य योग| हर चक्र से जुड़े सा रे ग म प ध नी सा स्वरों पर बात की| साथ ही हर एक इन्द्रिय के आलम्बन के द्वारा कैसे भीतर जाया जा सकता है इस पर चर्चा की|


साथ ही स्वामीजी ने तरह तरह की परंपराएँ और प्रणालियों के बारे में भी बताया| जैसे कि अघोरपंथी साधू! सभी लोग तो ऐसे सुव्यवस्थित ढंग से ध्यान में जाने के लिए तैयार नही होते हैं| उन लोगों का क्या होगा जो समाज से दूरी रखते हैं, कूड़े- कचरे में रहते है या गन्दगी में जीते हैं? उन तक भी ध्यान को ले जाना होगा ना| और ध्यान की कसौटी भी ऐसी स्थिति में करनी होगी| क्या लाशों और कब्र के बीच मन शान्त रह पा रहा है? क्या भय और घृणा के पार ध्यान जा रहा है? तो ऐसी प्रणालियाँ और विधियाँ खोजी गई| स्वामीजी जब यह बता रहे हैं, तब ओशो द्वारा हिप्पी लोगों को दिया गया ध्यान याद आया! अघोरपंथियों के समान नागा साधू प्रेत- योनि की चेतनाओं को आमन्त्रित कर अपने ध्यान की कसौटी करते हैं| स्वामीजी ने बताया कि ये अलग अलग प्रणालियाँ हैं और हमें इनके बारे में भी अवगत होना चाहिए| दूसरी प्रणालियों का भी हम आदर कर सके, उनमें जो essence है, उसे समझ सके| हर स्थिति से, हर माध्यम से खुद के बीच जाने का मार्ग ढूँढा जा सकता है| स्वामीजी का निवेदन बहुत स्वयंस्फूर्त है| बिना कोई कागज़ या नोटस या किसी उपकरण का सहारा लिए हुए वे निवेदन कर रहे हैं| निवेदन नही, बस संवाद कर रहे हैं, बोल रहे हैं!


स्वामीजी ने सभी साधकों से प्रेम पर चर्चा की| प्रेम, भक्ति और श्रद्धा पर विस्तार से बात की| प्रेम किसें कहें, क्या प्रेम नही है और क्या सिर्फ लेन देन है यह बताया| बिना किसी लेन- देन के और अपेक्षा के जहाँ सिर्फ दिया जाता है, उस प्रेम की बात की| अरविंद हिंगे स्वामी जी ने अपने विचार व्यक्त किए| प्रेम कैसे श्रद्धा बनता है और श्रद्धा कैसे भक्ति बनती है, यह भी स्वामीजी ने बताया| संन्यास लेने का महत्त्व भी बताया| इस पूरी चर्चा के समय में भी एक तरह से ध्यान जारी रहा| शरीर को स्थिर रखा और मन को सिर्फ सुनने पर लगाया| बीच बीच में कुछ विचार और प्रतिक्रियाएँ आ रही हैं| उनको भी देखता रहा| इस चर्चा के सत्र का समापन संगीत और नृत्य के साथ ही हुआ| जब यह गीत सुनाई दिया तो पीछले शिविर की याद ताज़ा हो गई-


ये मत कहो खुदा से मेरी मुश्क़िलें बड़ी हैं

इन मुश्क़िलों से कह दो मेरा खुदा बड़ा है


शिविर में अब एक भाव तरंग की धारा बन रही है| मौन रह कर और इसी में मन को align कर इसका अधिक से अधिक आनन्द लेने का प्रयास कर रहा हूँ| सत्र के बाद भी इसी धारा में ठहरने का प्रयास कर रहा हूँ| ब्रेक में आश्रम के परिसर में टहलते समय अन्य साधकों को बात करते हुए, हंसी- मजाक करते हुए या फोन पर बोलते हुए देखा| ध्यान के माहौल को इससे बाधा होते दिखाई दी| यहाँ आश्रम में भी निर्देश है कि मौन ही रहना है| स्वामीजी ने भी कहा है कि ज्यादा से ज्यादा मौन ही रहें| फिर भी इतने पुराने साधक रोज के जीवन की तरह ही बातचीत कर रहे हैं, बड़े कैज्युअल हैं| इससे थोड़ी पीड़ा भी हुई| अपने लिए भी और उनके लिए भी| कितना बहुमोल यह अवसर, लेकीन कैसे इससे लोग चूक रहे हैं! मन में आनेवाले इन विचारों को भी देखता रहा और ज्यादा से ज्यादा प्रकृति के पास जाता रहा|


क्रियाओं के साध ध्यान को जोड़ना


अगले सत्र में स्वामीजी ने ध्यान के कुछ अभ्यास हमसे करवाए| चलना, स्पर्श करना, सूँघना, स्वाद लेना आदि क्रियाओं के साथ ध्यान को जोड़ने का अभ्यास करवाया गया| आदतवश हम क्रियाएँ बड़ी यन्त्रवत् करते हैं या तेज़ी से और अन्जान रह कर करते हैं| लेकीन वहीं क्रियाएँ हम सचेत हो कर करते हैं तो उनमें गहराई आती है| यंत्रवत् चलना और एक एक कदम होश के साथ रखते हुए चलने में बड़ा फर्क है| जहाँ भी हमारा होश या ध्यान align हो जाता है, उस चीज़ की गुणवत्ता में सुधार हो जाता है| हमारा खुद का चलना और ऐसे चलना जैसे मानो किसीने हमारा हाथ थामा है और हमें ले जा रहा है! जैसे ही हम "खुद के अहम् होने को" एक तरफ रख देते हैं, वैसे ही बहुत हल्के हो जाते हैं| इस सत्र में हर चक्र के स्थान पर हाथ रख कर सा, रे, ग, म, प, ध, नी के उच्चारण का अभ्यास भी करवाया गया| इसके बाद संगीत के साथ बहुत विश्राम का अनुभव हुआ|


नाद ब्रह्म ध्यान- भंवरे की गुंजन


इस सत्र की भी प्रतीक्षा थी| ओशो जी ने जो ध्यान की ढेर सारी विधियाँ खोजी है, उसमें नाद ब्रह्म ध्यान बड़ा अनुठा है| कुछ विधियाँ सक्रिय ध्यान की है और कुछ विपश्यना जैसी निष्क्रिय (पैसिव) ध्यान की विधियाँ है| इसमें नाद ब्रह्म ध्यान बिल्कुल मध्य में आता मालुम पड़ता है| हम् उच्चारण के साथ थोड़ा यह सक्रिय है, लेकीन उतना ही पैसिव भी है| दिन के चौथे सत्र में स्वामीजी ने यह ध्यान करवाया| इस ध्यान में हम्- ध्वनि की चोट से भीतर जाया जाता है| भंवरे की गुंजन! आधे घण्टे तक यह गुंजन किया| हम् ध्वनि का आनन्द लिया और उसका कम्पन भी शरीर में महसूस किया| अगले चरण में इन्स्ट्रुमेंटल संगीत के साथ हाथों को आगे ले जा कर बाहर ऊर्जा देने का और फिर अगले चरण में ऊर्जा प्राप्त करने का भाव किया| यह इन्स्ट्रुमेंटल संगीत बहुत गहरी शान्ति दे रहा है| अन्तिम चरण में सिर्फ शान्त बैठ कर साक्षीभाव का अनुभव किया| ध्यान की विधि- टेक्निक कौन सी भी हो, हर विधि- टेक्निक में "होश" या "साक्षीभाव" या देखना ही सबसे महत्त्वपूर्ण सूत्र होता है| कुछ मिनटों तक इस गुंजन से शरीर और मन में हुए परिवर्तन को देखते रहा| फिर धीरे धीरे स्वामीजी के निर्देश के साथ संगीत के साथ झूमने लगा| शिविर में हर सत्र का समापन गीत और नृत्य के साथ ही होता है! और ऐसे गीत तो इस माहौल को और पुलकित करते हैं, और प्रफुल्लित बनाते हैं-


और कुछ ना जानूँ, बस इतना ही जानूँ

तुझमें रब दिखता है यारा मै क्या करूं!

शिविर करने के पहले तो लगा था कि शायद एक एक सत्र कब बहुत लम्बा होगा| ऐसा लगेगा कि मानो कब यह खत्म होगा! लेकीन यहाँ तो समय का पता ही नही चल रहा है| एक के बाद एक सत्र होने लगे हैं और अब दूसरे दिन का अन्तिम सत्र भी आ रहा है| ब्रेक के समय इस आनन्द क्रिया योगाश्रम के परिसर की प्रकृति को भी महसूस किया| स्वामीजी ने बताया भी‌ था कि पेड़- पौधों का स्पर्श महसूस कीजिए| यहाँ कई सारे पेड़ है| मुझ जैसे पेड़ों के बारे में कुछ भी न जाननेवाले को भी कई पेड़ पहचान में आ रहे हैं| कई पौधों पर सुन्दर फूल खिले हैं| यहाँ सिर्फ होना भी ध्यान से कम नही हैं| बशर्तें हम रोजमर्रा की व्यस्तताओं को पूरी तरह छोड़ आते हैं|


कीर्तन और ध्यान


दिन का अन्तिम सत्र श्वेत वस्त्र में किया जानेवाला ध्यान सत्र है| इसमें शुरू में स्वामीजी ने दीक्षा लेने का और जीवित गुरू के सत्संग का महत्त्व बताया| श्वेत वस्त्र अर्थात् व्हाईट रोब का भी महत्त्व बताया| हर परंपरा के सद्गुरू भविष्य में आनेवाले साधकों के लिए कुछ सूत्र दे जाते हैं जिससे भविष्य में भी उनकी मौजुदगी और उनका मार्गदर्शन मिलता रहता है| बुद्ध के रेलिक्स या बुद्ध व्यक्तियों की समाधि या मन्दिर इसी लिए होते हैं| इस सत्र में स्वामीजी ने साधना को गहरे ले जाने की जरूरत के बारे में भी बताया| उन्होने याद दिलाया कि जीसस और मन्सूर जैसे ज्ञानी और संबुद्ध व्यक्तियों को भी जीवन के अन्तिम क्षण तक परीक्षा देनी पड़ी थी| तो हमें भी बहुत मेहनत करनी चाहिए और पूरा प्रयास करना चाहिए| चार साधकों ने संन्यास दीक्षा ली|


सभी परंपरा के बुद्ध व्यक्ति और तीर्थंकरों को नमन करते हुए इस सत्र में ध्यान की शुरूआत हुई| कीर्तन के माध्यम से भीतर जाने का प्रयास किया गया| संगीत के साथ साक्षीभाव को बढ़ाने का प्रयास किया गया| बाद में साँस के साथ शरीर को विश्राम दिया गया| आती- जाती साँस को देखने की विधि अर्थात् आनापान सति योग भी किया गया| सत्र के अन्त में स्वामीजी जो गीत लगा रहे हैं, उससे भी‌ गहरे जाने में सहायता हो रही है| जैसे यह गीत-


हर पल यहाँ जी भर जियो, जो है समा कल हो ना हो!


ओशो की सीख की कूँजि हर पल के क्षण में जीना यह है| और हमारे पास सिर्फ एक क्षण तो होता है| अगले क्षण का क्या भरोसा! कल का क्या भरोसा! कल होगा या नही भी होगा! हर पल को गहरा करो और हर पल को सजगता के साथ जिओ, यही तो ओशो का सन्देश है! जीने के साथ मरने की भी कला सीखानेवाले ओशो! इस सत्र का अन्तिम गीत जैसे इस पूरी शिविर की रूपरेखा जैसे लगा| कितने भावपूर्ण और गहरे स्वर! हम कितने सौभाग्यशाली है!


करूं ओशो तेरा शुक्रिया तुने हमको जीना सीखा दिया

अब नाचती मेरी धडकनें तुने कैसा जादू जगा दिया

हर रहगुजर हर रास्ता तुने ओशो हमको दिखा दिया

करूं ओशो तेरा शुक्रिया तुने हमको जीना सीखा दिया

तुने ध्यान की ऐसी आंख दी तुने प्रेम की‌ वो आंख दी

जीवन को उत्सव बना दिया

करूं ओशो तेरा शुक्रिया तुने जीवन को उत्सव बना दिया


इस माहौल में गहरी डुबकी लगती गई| आँसू आने लगे| ध्यान की इस धारा के साथ दूसरा दिन सम्पन्न हुआ|


शिविर का तीसरा दिन- 24 नवम्बर


शिविर का अन्तिम दिन! आज कुछ ज्यादा ही ठण्ड है| भोर के अन्धेरे में टहलने के लिए निकला| पौधों के पत्तों पर ओस अर्थात् शबनम दिखाई दे रही है| और यहाँ ध्यान में आँखें कृतज्ञता से नम है| कोहरा है जैसे अज्ञान का साया| लेकीन ध्यान करनेवाले हर एक का कोहरा एक दिन ढलने को है| जैसे रोशनी आने लगी, वैसे धीरे धीरे सभी सृष्टि जी उठी| दूर से उड़ते हुए आनेवाले एक पंछी की गूँज सुनाई दी| पास के पहाड़ों में वह आवाज प्रतिबिम्बित हुई और उसकी अनुगूँज भी सुनाई दी! ओशो के प्रवचन का वाक्य याद आया- जब कोई बुद्ध होता है, तो उसकी अनूगूँज पूरी पृथ्वी पर होती है और एक जब जागता है तो कई सोनेवालों की नीन्द खुलने का समय आता है!


कुछ साधकों के अनुरोध पर स्वामीजी ने सक्रिय ध्यान सत्र लिया| शुरू में मन में इस सत्र को ले कर कुछ अस्वस्थता और डर है| क्यों कि हम इसके आदि नही हैं| अपने को खुल कर व्यक्त करने के लिए और अपने अवचेतन को खाली करने के लिए हम तैयार नही होते हैं| लेकीन ध्यान शिविर का अवसर, संगीत और साथी साधकों की मौजुदगी के कारण यह सरल होता है| एक बार शुरू होने पर इस ध्यान में उतर पाया| शुरू‌ में इसके चरण बड़े लगे, लेकीन आसानी से पूरे हो गए| चार चरण पूरे होने के बाद का अन्तिम हिस्सा- कृतज्ञता या उत्सव- उसमें बड़ी शान्ति मिली| इस समय बजनेवाले इन्स्ट्रुमेंटल संगीत का वर्णन कैसे करूं! बस अद्भुत!


नाम ध्यान और सहज योग


अगले सत्र की शुरूआत "पधारो म्हारो देस" गीत के साथ हुई| पंछियों की चहचहाट और मोर का गुंजन होनेवाला यह गीत बहुत आल्हादित कर गया| इस सत्र में स्वामीजी ने संन्यास लिए साधकों को उनके नए नाम बताए| उनके द्वारा स्वामीजी को प्रणाम करना और उनसे दीक्षा लेना एक देखने जैसा अनुभव लगा| सभी साधक बिल्कुल स्तब्ध हो कर इस पल के साक्षी बने| संन्यास की दीक्षा अर्थात् नए जीवन की शुरूआत| पुराने जीवन का ढाँचा और आदतें तोड़ कर होशपूर्वक जीने की नई शुरूआत करने के लिए नया नाम सहायक होता है| इसके लिए नया नाम दिया जाता है| संन्यास लेनेवाले साधकों की खुशी और चेहरे पर होनेवाली शान्ति देखने जैसी है| पुराने संन्यासियों ने अपने परिवार में आए इन नए सदस्यों का स्वागत किया| एक दूसरे के गले लग कर आत्मीयता प्रकट की गई! कई साधकों ने अपने मनोगत भी व्यक्त किए| दो दिन के शिविर में कैसा लग रहा है, यह भी कहा| कुछ साधकों ने अपनी समस्याएँ भी बताई और उस पर भी स्वामीजी ने मार्गदर्शन किया| अपनी खुशी लेन- देन और शर्तों पर निर्भर मत होने दीजिए, दूसरा कैसे भी वर्तन करता हो, आप होश से काम लीजिए, यह उनका कहना है| साधना और ध्यान के लिए मेहनत तो करनी होगी, इस पर वे जोर दे रहे हैं| वे बता रहे हैं कि पुराने दिनों में भी बड़े बड़े ऋषियों को चौदह- चौदह साल तपश्चर्या करनी पड़ी थी| तो हमें बिल्कुल आलस नही करना है| साधकों की सरलता के लिए स्वामीजी बीच बीच में शायरी भी कह रहे हैं! और कहानियाँ भी बता रहे हैं!


इसी सत्र में नाम ध्यान अर्थात् ओंकार या अनहद ध्वनि पर ध्यान करने के बारे में विस्तार से बात की| जब हम बाहर की सभी ध्वनियों को एक तरफ रख कर भीतर निरंतर चलनेवाले अनाहत नाद को सुन पाते है, तो यह ध्यान किया जा सकता है| भीतर यह अनाहत नाद निरंतर चलता ही रहता है| रात के झिंगूर या हल्की सी हमिंग ध्वनि जैसा यह नाद सुना जा सकता है| स्वामीजी ने इसका भी अभ्यास सबको करवाया| इसके लिए सुफी इत्र की भी मदद ली गई| लगभग सभी साधक इस महिन नाद को पकड़ पाए| स्वामीजी ने सहज योग के बारे में भी बात की| इस सत्र का समापन सुफी शैलि का गीत मेरे ओशो के साथ हुआ! उल्हास और उत्सव के ये पल हैं!









गुफा में ध्यान- गुमराहों के हमराही


दोपहर में भोजन के बाद गुफा में जाना है| इस शिविर के आयोजन की पूरी तैयारी स्वामी उमंग जी और स्वामी एकान्त जी ने की है| स्वामी एकान्त जी की पत्नि मा प्रतिमा जी और स्वामी उमंग जी की पत्नि मा प्रेम सम्पत्ति जी तथा बेटी (छोटी मा) ऋद्धि भी आयोजन में सहभाग ले रही है| साथ ही ध्यान भी कर रही है और प्रश्न- उत्तर में भी सहभाग ले रही है| कितने सौभाग्यशाली हैं ये सब!


इस आनंद योग क्रियाश्रम के पास ही एक प्राकृतिक गुफा है| क्रिया योग परंपरा के लाहिरी महाशय को उनके गुरू महावतार बाबाजी ने हिमालय के पास रानीखेत में एक गुफा के पास दर्शन दिया था| इसी परंपरा से आनेवाले और इस आश्रम का निर्माण करनेवाले स्वामी क्रियानंद को ऐसी ही एक प्राकृतिक गुफा पास ही मिली| गुफा वाकई देखने जैसी तो है ही, लेकीन ध्यान स्थल भी है| स्वामीजी के साथ साथ पैदल चलते हुए वहाँ गए| यह एक छोटा लेकीन सुन्दर ट्रेक हुआ| स्वामीजी ने मौन रहते हुए हर एक कदम को और प्रकृति को महसूस करते हुए चलने के लिए कहा| प्रकृति का आनन्द लेते हुए धीरे धीरे सब गुफा तक पहुँच गए| सभी 30 साधक भीतर बैठ सकें, इतनी यह गुफा चौड़ी है| यहाँ पर भी स्वामीजी ने ध्यान करवाया| आँख बन्द कर ध्यान करने के बाद एक साधिका ने पाया कि यहाँ ऊर्जा फैली हुई है| बाद में स्वामीजी ने भी बताया कि यह गुफा भी ध्यान का एक एनर्जी फिल्ड है| जब स्वामीजी के कहने पर स्वामी एकान्त जी ने यह भजन गाया तो अत्यधिक शान्ति महसूस हुईं और आँखें नम हुईं-



हर युग में तुम जैसों को आना पड़ेगा

गुमराहों के हमराही होना पड़ेगा



विदाई का क्षण


गुफा से लौटने के बाद अन्तिम सत्र का समय आया! जीवन कितना बड़ा अवसर है, हमारा वर्तमान कितना बड़ा अवसर है, इस पर स्वामीजी ने बात की| उन्होने कहा कि हो सकता है हम में‌ से सभी फिर कभी शायद ना मिले| हम बड़े सौभाग्यशाली है कि हम इस ध्यान के पथ पर आए हैं| उन्होने बार बार जोर दे कर कहा कि वस्तुत: हम आए नही हैं, हमें बुलाया गया है! कभी ना कभी, किसी ना किसी जनम में हमने साधना की है, इसी लिए हम यहाँ आ पाए हैं| आगे भी जुड़े हुए रहना है, उनका भावपूर्ण निवेदन है| इसी भाव को कहने के लिए उन्होने यह गाना चुना-


तो क्या हुआ मुड़े रास्ते कुछ दूर संग चले तो थे

दोबारा मिलेंगे किसी मोड़ पे जो बाकी है वो बात होगी कभी

चलो आज चलते हैं हम


विदाई के ठीक पहले स्वामीजी ने और एक बात कही| जिन्दगी में कुछ नही मिलता है, फिर भी तेरा शुक्रिया है ज़िन्दगी! यहाँ मिलता कुछ नही, लेकीन इन्सान सीखता जाता है| और इसी की ओर इंगित करनेवाले भावपूर्ण गीत के साथ शिविर का समापन हुआ-


कुछ नही हाथ आयेगा यहाँ

फिर भी ऐ ज़िंदगी तेरा शुक्रिया


बड़ी ही मुश्किल से एक दूसरे को प्रणाम करते हुए, गले लगाते हुए सभी क्रिया योग मन्दिर से बाहर निकले| नम आँखों से शिविर स्थल से बाहर निकले| बस दो- ढाई दिनों का यह शिविर! लेकीन बड़ा ही गहरा अनुभव दे गया! हालांकी एक शिविर करने से सिर्फ शुरूआत होती है| इस प्रक्रिया को- इस ध्यान के अभ्यास को आगे भी जारी रखना चाहिए| स्वामीजी जैसे कहते हैं, दिन में कम से कम एक घण्टा अपनी पसन्द का ध्यान करना चाहिए| और सबसे बड़ी बात, खुद के आनन्द के लिए समय निकालना चाहिए| आनन्द क्रिया योगाश्रम में हुए शिविर की क्रिया

से शुक्रिया तक की यात्रा ऐसी रही!


शिविर में कितनी शान्ति मिली थी, इसका एक प्रमाण वहाँ से निकलने के बाद मिला| पूरे दिन ध्यान करते करते मन बहुत शान्त हो जाता है| शिविर से निकलने के तुरन्त बाद बाहर की बातचीत और शोर बहुत विपरित मालुम पड़ा| एक तरह से शान्त हुए मन पर इससे बड़ा आघात भी हुआ| जैसे चोट पड़ी| एक तरफ तो मन चाह रहा है कि उन किमती सन्नाटे के पलों को संजोए रखे| और ऐसे में भीड़ का यह शोरगुल! लेकीन फिर विचार आया कि इसे ध्यान की कसौटी की तरह देखा जा सकता है| क्या ऐसी भीड़ और शोर में शान्ति बनी रह सकती है? तो ही वह शान्ति असली है| फिर धीरे धीरे साक्षीभाव लौट आया| अब यहाँ जो शान्ति मिली है, उसे आगे बनाए रखना है और संसार की कसौटी पर इस ध्यान को कसते जाना है|


यह पढ़ने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद| सभी सद्गुरूओं को वन्दन कर मेरी लेखणि को विराम देता हूँ| सभी को प्रणाम और सभी के प्रति कृतज्ञता|



- निरंजन वेलणकर,

पुणे. 09422108376


26 नवम्बर 2024

Wednesday, November 6, 2024

Festival of light in the sky!

Sky watching event in Anjanvel near Lonavala!

✪ Finally the comet is seen!
✪ Star show in a dark night sky
✪ Thrill to watch a shadow on Jupiter surface caused by its moon
✪ Rain of stars in the sky
✪ Wonderful landscape in the mountains
✪ Bedsa caves- two thousand years back!
✪ Anjanvel- the week-end spent well!

Hello. Recently we could experience the light festival in the sky. We could enjoy sky watching in a serene campus of Anjanvel agro tourism near Lonavala, Maharashtra, located amid wonderful mountains and forts. We could also share this joy of sky watching with others. Hereby I wish to share the experience with you. After many cloudy nights, me and my friend Gireesh Mandhale reached Anjanvel farm house. Glorious mountains and wonderful terrain! Crystal clear blue sky is assuring us that sky watching would be excellent here! We reached when it was getting dark. Venus is already shining in the west. In a hurry we set up the telescopes and prepared ourselves for the comet! Slowly faint stars appeared in the sky. As the darkness grew, small stars started shining! And yes, here is the comet C/2023 A3 (Tsuchinshan- ATLAS) at its expected position! With a large 8" aperture, a modest 4.5 " aperture telescope and a 15 X 70 binocular, it was clearly visible. As the eyes adjusted gradually, its tail is also visible. It was not visible to the naked eyes.