Sunday, March 28, 2010

वेल डन "वेल डन अब्बा !"

"वेल डन अब्बा" यह हिंदी फिल्मी दुनिया से निकली एक नयी फिल्म है । कई मायनों मे यह फिल्म एक आनंदायदायक तथा प्रेरक अनुभव है, जो हमारा उत्साहवर्धन करती है । स्वदेस, रंग दे बसंती जैसी फिल्मों की श्रेणी में यह निश्चित रूप से आती है ।

यह फिल्म कई तरह से एक क्लासिक उदाहरण की प्रस्तुति करती है । सामाजिक पृष्ठभूमि में आज हम कई सारे मुद्दे, अनसुलझे सवाल तथा दिक्कतें देखते है । कई तरह की समस्याएं, प्रॉब्लेम्स, परेशानीयां हम भुगतते है । यह फिल्म इनमेंसे कई मुद्दों को बहुत सराहनीय एवं सरल तरिके से प्रस्तुत करती है । भ्रष्टाचार, सरकारी योजनाओं का जमिनी सच, ब्युरोक्रासी की सच्चाई, ग्रामीण लोगों की समस्याएं तथा इश्युज, इतनाही नहीं, सामाजिक संबंध, मुस्लीम समाज की परिस्थिती, उससे जुडे हुए जेंडर (लिंग-भेदभाव) इश्युज इन सभी का बहुत सराहनीय चित्रण इस फिल्म में किया गया है ।

आज की फिल्म इंडस्ट्री में इतनी सामाजिक संवेदनावाली फिल्म पाना एक सुखद अनुभव है । फिल्म ने सिर्फ जमिनी सच्चाई का चित्रण ही नही है, अपि तु इस परिस्थिती का सामना करने के तरिके भी बताए गए है । इस नजरिए से यह फिल्म एक जागरूकता के साधन से बिलकुल कम नही है । इसमें सूचना का अधिकार (राईट टू इन्फॉर्मेशन), सामाजिक आंदोलन का प्रयोग कैसे किया जाता है, यह दिखाने का रोचक प्रयास किया गया है ।

इस फिल्म की कहानी आंध्र प्रदेश के एक गाँव की है । इस गाँव में किस तरह बावडी- कुआँ बनाने की योजना का क्रियान्वयन किया जाता है, उसमें किस तरह का भ्रष्टाचार होता है, लाभार्थियों को कैसी कैसी दिक्कतों का सामना करना पडता है, यह दिखाया गया है । सिर्फ दिक्कतें नही; उसकों ठीक करने के प्रयास भी दिखाए गए है । इस प्रक्रिया से जुडे सभी मुद्दे फिल्माए गए है ।

इसके अलावा ग्रामीण सामाजिक जीवन में महिलाओं की स्थिती, मुस्लीम महिलाओं की दुनिया, उनकी बदलती सोच, उनके ख्वाब, उनके व्हॅल्यूज भी दर्शाए गए है । वंचित, पीडित अवस्था में भी कुछ करने का जस्बा क्या होता है, इसका एक उदाहरण दर्शाने का प्रयास यह फिल्म करती है । मनुष्य के आपसी नाते- रिलेशन्स, उनका बढना, जुडना भी बहोत अच्छे से दर्शाए गए है ।

ऐसा कहते है, की बंद मानसिकता को शिक्षा या ज्ञान से आज़ाद करने में दिक्कतें आती है । जहाँ ज्ञान पहुंचना कठिन है, वहाँ इस तरह फिल्म के माध्यम सें विचार पहुंचते है; तो नि:संदेह वे ज्यादा प्रभावी परिणाम ला सकते है । वास्तव जीवन को इतने खूबी से दर्शाया गया है, कि नि:संदेह लोग उसे खुद के जीवन से जोड सकते है । अगर इस फिल्म को जगह जगह दिखाया जाता है; तो नि:संदेह पुराने खयालात एवम् परंपरा के बंधन में जकडी हुई मानसिकता से खुद को आज़ाद करने की प्रक्रिया को बढावा मिलेगा । क्यों की इसकी परिभाषा तथा मॅसेज अत्यंत रोचक, सरल चित्रण द्वारा दिया गया है । अत: इस फिल्म को अवश्य देखना चाहिए; तथा उसे औरों को दिखाना चाहिए जिससे इसके मॅसेज को तथा इसकी प्रेरणा को बांटा जा सके ।

3 comments:

  1. Very well written Niranjan. I have not seen the movie yet, but after going through ur blog, I am certainly keen to watch it. I agree with u, such movies which touch upon some serious real life issues but in a simple and sensitive manner are rare. These movies often fail commercially but have some really serious messages to convey. I am definitely going to watch this movie now.

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  2. धन्यवाद छाया जी !

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  3. निरंजन चांगलं लिहिलंस. मस्त. मला आवडलं.
    सिनेमा पहायलाच हवा हा...

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