Saturday, October 3, 2015

अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: ९ ऋषीकेश से प्रस्थान

१. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: १ हिमालय की गोद में . . . 
२. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: २ नदियाँ पहाड झील और झरने जंगल और वादी  
३. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोS हिमालय: ३ चलो तुमको लेकर चलें इन फिजाओं में   
४. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोS हिमालय: ४ जोशीमठ दर्शन 
५. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: ५ अलकनन्दा के साथ बद्रिनाथ की ओर    
६. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: ६ औली जाने का असफल प्रयास और तपोबन यात्रा     
७. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: ७ हिमालय की आज्ञा ले कर ऋषीकेश की ओर 
८. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: ८ ऋषीकेश दर्शन
 

ऋषीकेश से प्रस्थान
२१ दिसम्बर सुबह जल्दी ऋषीकेश से ट्रेन लेनी है| ऋषीकेश से सुबह करीब सात बजे दिल्ली के लिए एक पॅसेंजर चलती है| इस ट्रेन से मुझे गाज़ियाबाद जंक्शन तक जाना है जहाँ परिवार के अन्य सदस्य मुझे मिल जाएंगे और वापसी की यात्रा शुरू होगी| ऋषीकेश स्टेशन यहाँ से करीब चार किलोमीटर दूर है| सोचा कि यह पैदल ही चलूँ| इस पूरी यात्रा में सम्भवत: चलने को प्राथमिकता दी थी, इसलिए आज भी पैदल चलना है| स्टेशन कितना दूर है, यह ठीक पता नही है, इसलिए सुबह सवा पाँच बजे ही निकला| बाहर बिल्कुल रात का अन्धेरा छाया है| 

धीरे धीरे चलने के कारण ठण्ड कम हुई| पीठ पर बड़ी सी बॅग है, इसलिए पसीना भी आया| थोड़ी देर में रोशनी फूटने लगी| लोग दिखने लगे| धीरे धीरे कोहरे से ढके पहाड़ भी दिखने लगे| आज इनसे विदा लेना है| मन में एक तरह की अशान्ति और इस बिरह के कारण खेद है| वाकई पिथौरागढ़ से शुरू हुई इस यात्रा में यहाँ तक बहुत कुछ देखने को मिला| इनकी स्मृतियाँ तो साथ रहेगी ही|

आगे जाने पर थोड़ी पूछ ताछ कर स्टेशन का रास्ता ढूँढ लिया| सुबह वातावरण में बड़ी ताजगी होती है| एक तो मानवीय उपद्रव न के बराबर होने के कारण प्रकृति अपने शुद्ध स्वरूप में मिलती है| पँछियों की चहचहाट, ताज़ा हवा, पेडों की सरसराहट और शीतल ठण्ड! जल्दी निकलने का लाभ मिला- टिकिट के पास कोई भीड़ नही है| टिकिट निकाल कर प्लॅटफॉर्म में गया| यहाँ एक ट्रेन खड़ी है| लेकिन पूछने पर किसी ने नही बताया कि यही दिल्ली पॅसेंजर है| कुछ लोग कह रहे हैं कि यह लक्सर तक जाएगी; फलाँ गाँव तक जाएगी| उस पर कुछ ठीक से लिखा भी नही है| स्टेशन पर काम करनेवाले से पूछा तो उसने बताया कि यही दिल्ली पॅसेंजर है| मन कितना चंचल होता है| दो मिनट पहले तक इतना अस्वस्थ और अब बिल्कुल निश्चिंत! मन तो बस एक पेंडुलम है जो इस तरफ से उस तरफ भागा जाता है. . .

समय पर ट्रेन शुरू हुई| कोहरे में लिप्त भूमि से आगे बढ़ने लगी| हरिद्वार के दर्शन ट्रेन से ही कर लिए| धीरे धीरे भीड़ बढ़ने लगी| यात्रियों में कई छात्र भी हैं| रूड़की के बाद ट्रेन ने उत्तराखण्ड छोड दिया| इस बार हिमालय से विदाई हो गई|

शाम की ट्रेन गाज़ियाबाद से रात दस बजे है| यह पॅसेंजर दो घण्टा भी लेट हुई तो भी सात बजेगी गाज़ियाबाद छोडेगी| ट्रेन अधिक लेट नही है| फिर भी मन में‌ थोड़ी असहजता जरूर है| परिवार के सदस्य भी सुबह टणकपूर से निकले हैं| वे गाज़ियाबाद में ही मिलेंगे और फिर आगे की यात्रा साथ होगी| ट्रेन कुप्रसिद्ध देवबन्द से गुजरी| जैसे जैसे दिल्ली पास आने लगा, ट्रेन की भीड़ बढ़ गई| अब तो यह मुंबई की लोकल जैसी भरने लगी है| शायद गाज़ियाबाद में उतरने में दिक्कत हो सकती है| हमेशा से मन में बड़े महानगरों के प्रति एक अस्वस्थ भाव रहा है| जितना हो सके, दिल्ली जैसे बड़े शहर टालने का प्रयास करता हुँ| एक तो कौनसी ट्रेन किस स्टेशन से छूटती है या कौनसी बस किस बस अड्डे से निकलती है, यह ठीक से पता करना मुश्किल होता है| और खर्चा भी बहुत होता है| इसलिए इस बार दिल्ली के बजाय गाज़ियाबाद से ही ट्रेन बदलने की योजना बनायी| जैसे गाज़ियाबाद पास आता गया, अस्वस्थता बढ़ने लगी| ट्रेन के दरवाजे के पास जाने के लिए मशक्कत करनी पड़ी| लेकिन सकुशल उतर गया|

यहाँ परिवार के सदस्यों से मिलना हुआ| उन्हे मै पिथौरागढ़ में ही छोड आया था| आंठ दिनों के बाद हम मिल रहे हैं| अब यहीं से रात अहमदाबाद की ट्रेन है| १६ दिसम्बर के काण्ड को हुए मात्र चार- पाँच दिन हुए हैं| इसलिए वह भी एक चिन्ता का विषय है| जल्द से जल्द दिल्ली क्षेत्र से निकलना चाहता हुँ| खैर| कोई परेशानी के बिना अहमदाबाद एक्स्प्रेस ले ली| अब इस यात्रा का अन्तिम चरण शुरू हुआ|

पिथौरागढ़ से निकलने के बाद की यात्रा अब भी जेहन में ताज़ा है| पहले दिन प्रात: साढ़ेपाँच बजे पिथौरागढ़ से बागेश्वर की बस ले ली| कोहरे के बीच यात्रा शुरू हुई| 'हर हर भोले नमो शिवाय' के साथ इस यात्रा का प्रारम्भ हुआ! चौकोरी के पास पहली बरफ दिखी| बागेश्वर से बैजनाथ स्थानीय बस में आया| वहाँ बस में उतरते समय कई लोगों ने आत्मीयता से रास्ता बताया| फिर बैजनाथ में भ्रमण| ग्वालदाम का अपूर्व नजारा| पिण्डर नदी और कर्णप्रयाग! फिर जोशीमठ- अलकनन्दा और बद्रिनाथ के पास बरफ! लौटते समय आज्ञा देनेवाले हिमालय के शिखर! अन्तत: ऋषीकेश में आश्रम और गंगा के दर्शन| यह मेरे जीवन का हिमालय का पहला छोटा सोलो ट्रेक था| बहुत मज़ा आया|

यथा समय ट्रेन अहमदाबाद पहुँची| यहाँ से अब और एक ट्रेन बदलनी है| सीधे मुंबई तक के ट्रेन का बूकिंग नही मिल पाया है| कुछ घण्टे अहमदाबाद में रूकने के बाद आगे निकले| वैसे तो जीवन में कहीं ठहरना होता ही नही| जो स्थान मन्जिल जैसा लगता है, वह भी एक सराय के अलावा कुछ नही होता है. . 


















2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (05-10-2015) को "ममता के बदलते अर्थ" (चर्चा अंक-2119) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. निरंजन जी आपके यात्रा विवरणों में प्रयुक्त चित्र बहुत सजीव होते है.

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आपने ब्लॉग पढा, इसके लिए बहुत धन्यवाद! अब इसे अपने तक ही सीमित मत रखिए! आपकी टिप्पणि मेरे लिए महत्त्वपूर्ण है!