हॅलो, नमस्ते!
बरसाती मौसम में एक साईकिल यात्रा करने जा रहा हूँ| महाराष्ट्र में महाबलेश्वर- सातारा क्षेत्र में साईकिल पर घूमने जानेवाला हूँ| यह यात्रा एक आनन्द के साथ एक सोच के साथ भी कर रहा हूँ| ध्यान- योग के लिए साईकिल चलाऊँगा| क्यों कि ध्यान- योग का करीब से सम्बन्ध साईकिल से भी है| योग सिर्फ वह नही जो हम आसन- प्राणायाम के साथ करते हैं| बल्की योग तो जीवन की हर अभिव्यक्ति में हैं| योग वह दिशा है, जहाँ जाने के कई मार्ग है| और आसनों की भी बाद करें तो योग आसनों का अभ्यास करना और कई तरह के शारीरिक खेल जैसे दौड़ना, साईकिल चलाना या नृत्य इनमें भी बहुत भेद नही है| यह कहना ठीक होगा की योग और ये शारीरिक खेल बहुत हद तक समानान्तर है| जैसे कोई अगर कठिन लगनेवाला आसन जैसे पश्चिमोत्तानासन नही कर पाता हो या किसी के हाथ सूर्य नमस्कार की तीसरी स्थिति में पैर को स्पर्श नही करते हो, तो साईकिलिंग, रनिंग या नृत्य जैसे शारीरिक व्यायामों से भी उसे वह आसन करने में मदद होती है|
स्वामी विवेकानन्द ने कहा था कि गीता सिर्फ ग्रन्थ में पढने जैसी नही है, कोई उसे फूटबॉल के ग्राउंड पर भी आत्मसात कर सकता है| ठीक वैसे ही, किसी भी शारीरिक एक्टिविटी में योग समाहित होता है| और साईकिलिंग जैसी लम्बी एक्टिविटी में योग के साथ ध्यान भी होता है क्यों कि यह जितना शरीर का है, उतना ही मन का भी है| साईकिल से जाते हैं तब मन शान्त होता है, धिमी गति के साथ मन को खुद को ढालना होता है| तथा बहुत धैर्य रख कर आगे बढ़ना होता है| इसलिए उसमें योग के साथ ध्यान भी सम्मीलित है|
इस बार जिस क्षेत्र में साईकिलिंग करूँगा, वह ध्यान एवम् योग के लिए भी अनुकूल है| महाबळेश्वर का पहाड़ी स्थान और सह्याद्री के अन्य पहाड़! यहाँ आने पर मन अपने आप शान्त हो जाता है| जितना हम प्रकृति के पास जाएंगे, उतने शांत होते हैं| वहाँ ध्यान प्राकृतिक रूप से घटित होता है| इसलिए हमें ऐसी जगह जा कर बहुत ताज़गी का अनुभव होता है| इस यात्रा में जहाँ जाऊँगा वे सभी स्थान एक अर्थ में ध्यान- योग या भक्ति- शक्ति के प्रतिक है| जैसे पुणे में भक्ति- शक्ति चौक जो शिवाजी महाराज और सन्त तुकाराम की मुलाकात का प्रतिक है| सातारा में अजिंक्यतारा किला जो शिवाजी महाराज के स्वराज्य का एक केन्द्र था और सज्जनगड जो रामदास स्वामी का केंद्र था, इन स्थानों पर भी साईकिलिंग करूँगा|
पहले के साईकिलिंग के अनुभवों को ध्यान में रखते हुए काफी कुछ तैयारी की है| और दूरी भी छोटी ही रखी है| हर रोज ५०- ६० किलोमीटर तक ही साईकिल चलाऊँगा| कुल सांत- आठ दिन का कार्यक्रम है| देखते है कैसे होता है| इतना तो तय है कि साईकिलिंग कई दिनों तक करना यह शरीर के जितना या उससे भी अधिक मन का ही खेल है|
यात्रा पूरी होने पर यहीं पर जानकारी दूँगा| धन्यवाद|
बरसाती मौसम में एक साईकिल यात्रा करने जा रहा हूँ| महाराष्ट्र में महाबलेश्वर- सातारा क्षेत्र में साईकिल पर घूमने जानेवाला हूँ| यह यात्रा एक आनन्द के साथ एक सोच के साथ भी कर रहा हूँ| ध्यान- योग के लिए साईकिल चलाऊँगा| क्यों कि ध्यान- योग का करीब से सम्बन्ध साईकिल से भी है| योग सिर्फ वह नही जो हम आसन- प्राणायाम के साथ करते हैं| बल्की योग तो जीवन की हर अभिव्यक्ति में हैं| योग वह दिशा है, जहाँ जाने के कई मार्ग है| और आसनों की भी बाद करें तो योग आसनों का अभ्यास करना और कई तरह के शारीरिक खेल जैसे दौड़ना, साईकिल चलाना या नृत्य इनमें भी बहुत भेद नही है| यह कहना ठीक होगा की योग और ये शारीरिक खेल बहुत हद तक समानान्तर है| जैसे कोई अगर कठिन लगनेवाला आसन जैसे पश्चिमोत्तानासन नही कर पाता हो या किसी के हाथ सूर्य नमस्कार की तीसरी स्थिति में पैर को स्पर्श नही करते हो, तो साईकिलिंग, रनिंग या नृत्य जैसे शारीरिक व्यायामों से भी उसे वह आसन करने में मदद होती है|
स्वामी विवेकानन्द ने कहा था कि गीता सिर्फ ग्रन्थ में पढने जैसी नही है, कोई उसे फूटबॉल के ग्राउंड पर भी आत्मसात कर सकता है| ठीक वैसे ही, किसी भी शारीरिक एक्टिविटी में योग समाहित होता है| और साईकिलिंग जैसी लम्बी एक्टिविटी में योग के साथ ध्यान भी होता है क्यों कि यह जितना शरीर का है, उतना ही मन का भी है| साईकिल से जाते हैं तब मन शान्त होता है, धिमी गति के साथ मन को खुद को ढालना होता है| तथा बहुत धैर्य रख कर आगे बढ़ना होता है| इसलिए उसमें योग के साथ ध्यान भी सम्मीलित है|
इस बार जिस क्षेत्र में साईकिलिंग करूँगा, वह ध्यान एवम् योग के लिए भी अनुकूल है| महाबळेश्वर का पहाड़ी स्थान और सह्याद्री के अन्य पहाड़! यहाँ आने पर मन अपने आप शान्त हो जाता है| जितना हम प्रकृति के पास जाएंगे, उतने शांत होते हैं| वहाँ ध्यान प्राकृतिक रूप से घटित होता है| इसलिए हमें ऐसी जगह जा कर बहुत ताज़गी का अनुभव होता है| इस यात्रा में जहाँ जाऊँगा वे सभी स्थान एक अर्थ में ध्यान- योग या भक्ति- शक्ति के प्रतिक है| जैसे पुणे में भक्ति- शक्ति चौक जो शिवाजी महाराज और सन्त तुकाराम की मुलाकात का प्रतिक है| सातारा में अजिंक्यतारा किला जो शिवाजी महाराज के स्वराज्य का एक केन्द्र था और सज्जनगड जो रामदास स्वामी का केंद्र था, इन स्थानों पर भी साईकिलिंग करूँगा|
पहले के साईकिलिंग के अनुभवों को ध्यान में रखते हुए काफी कुछ तैयारी की है| और दूरी भी छोटी ही रखी है| हर रोज ५०- ६० किलोमीटर तक ही साईकिल चलाऊँगा| कुल सांत- आठ दिन का कार्यक्रम है| देखते है कैसे होता है| इतना तो तय है कि साईकिलिंग कई दिनों तक करना यह शरीर के जितना या उससे भी अधिक मन का ही खेल है|
यात्रा पूरी होने पर यहीं पर जानकारी दूँगा| धन्यवाद|