Sunday, March 31, 2019

“भाग दौड़" भरी ज़िन्दगी ४: पहली निजी हाफ मॅरेथॉन

डिस्क्लेमर: यह लेख माला कोई भी टेक्निकल गाईड नही है| इसमें मै मेरे रनिंग के अनुभव लिख रहा हूँ| जैसे मै सीखता गया, गलती करता गया, आगे बढता गया, यह सब वैसे ही लिख रहा हूँ| इस लेखन को सिर्फ रनिंग के व्यक्तिगत तौर पर आए हुए अनुभव के तौर पर देखना चाहिए| अगर किसे टेक्निकल गायडन्स चाहिए, तो व्यक्तिगत रूप से सम्पर्क कर सकते हैं|

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अगस्त २०१७ में हर्षद पेंडसे जी  सामाजिक अभियान चला रहे थे और लदाख़ में खर्दुंगला चैलेंज में ७२ किलोमीटर दौडनेवाले थे| उसमें सहभाग लेने के साथ मुझे भी कम से कम २१ किलोमीटर दौड़ने की इच्छा हुई| इस बहाने रनिंग में कुछ नियमितता भी आई| कई बार ११ किलोमीटर दौडा, छोटे छोटे ५ किलोमीटर के भी कई रन किए| अन्त में २७ अगस्त को परभणी में २१ किलोमीटर अर्थात् हाफ मैरेथॉन की दूरी दौड़ने की योजना बनाई| मेरे साथ परभणी के संजयराव बनसकर सर भी तैयार हुए| उनके और एक मित्र भी‌ तैयार हुए| अगस्त में लगभग आठ- नौ रन किए, जिससे रनिंग का थोड़ा मूमेंटम बना| २६ अगस्त को परभणी की यूनिवर्सिटी में छोटी दौड़ की- ५.५ किलोमीटर की| यहाँ पर पहली बार मेरी स्पीड ८ किलोमीटर प्रति घण्टा आई! अब २१ किलोमीटर दौड़ने का हौसला आया|

इन दिनों रनिंग नया होने के कारण मै छोटे पाँच किलोमीटर रन के लिए भी साथ में पानी रखता था| और अगर इतनी बड़ी हाफ मैरेथॉन (तब तक वह 'इतनी बड़ी ही‌ थी!) दौड़नी है, तो साथ में दो लीटर पानी, चिक्की, केला, इलेक्ट्रॉल आदि भी रखने की इच्छा हुई| अर्थात् पीठ पर एक छोटी सैक भी रखने का निर्णय किया| मेरे अन्य मित्रों को यह बात अटपटी सी लगी| उन्होने कहा हम पानी का और चिक्की- इलेक्ट्रॉल आदि का इन्तजाम कर के रखेंगे| बीच बीच में व्यवस्था करेंगे| फिर भी मैने छोटी सैक साथ ले ही ली| एक तरह से अनौपचारिक हाफ मैरेथॉन होने के कारण दबाब बिल्कुल भी नही है| सुबह साढ़ेपांच बजे निर्धारित स्थान पर पहुँचा| बेसिक स्ट्रेचिंग किए और हम तीनों निकल पड़े! मैने बनसकर सर से अनुरोध भी किया कि आप मेरी स्पीड से दौडीएगा, नही तो हम साथ दौड़ ही नही पाएंगे| दूसरे मित्र भी अनुभवी रनर है| अन्धेरे में ही शुरुवात हुई| मोबाईल में गाने भी लगाए और निकल पड़े!



शुरुआत के किलोमीटर तो बहुत आसान गए| रूकने की जरूरत ही नही हुई| लेकीन सांत- आठ किलोमीटर पर चिक्की जरूर खाई, पानी भी पीया| यहाँ तक लगभग साढ़ेआंठ किलोमीटर प्रति घण्टा की स्पीड मिल रही है| आधी दूरी पार होने के ठीक पहले बनसकर सर क्रॉस हो गए| वे मुझसे एक- डेढ किलोमीटर आगे होंगे| उन्होने चीअर अप किया| दूसरे मित्र मुझसे कुछ आगे जा रहे हैं| और लगभग ग्यारह किलोमीटर पार होने के बाद टर्न लिया| यहाँ से धीरे धीरे थकान शुरू हुई| स्पीड भी कम होती चली गई| ज्यादा ब्रेक्स आवश्यक होते गए| ऐसा करते करते लगभग उन्नीस किलोमीटर के बाद तो रनिंग करना बहुत कठीन हुआ| थोड़ा रनिंग किया कि फिर रूके ऐसा होने लगा| अन्त में उन्नीस के बाद चलने का निर्णय किया| जैसे ही चलना शुरू किया, एकदम सूकून मिला| अन्त में बनसकर सर भी मेरा साथ देने के लिए वापस आ गए| उनके २१ किलोमीटर पूरे होने के बाद, उन्होने थोडा कूल डाऊन किया और फिर मेरा साथ देने के लिए चल कर आए! अन्त के डेढ किलोमीटर उनके साथ बातचीत में आसानी से पूरे हुए| उन दिनों मै रंटॅस्टिक एप का इस्तेमाल करता था| उसपर तो २२ किलोमीटर दिखे और समय लगा ३.१७- ३ घण्टे १७ मिनट! समय बहुत ज्यादा लगा, लेकीन २१ किलोमीटर की दौड़ तो पूरी हुई! रनिंग के जगत् में पहली निजी हाफ मैरेथॉन पूरी हुई! सर ने यह कह कर मेरा हौसला बढ़ाया कि पीठ पर एक किलो की सैक लेकर मै दौड़ा था, उससे मैने तो अतिरिक्त दो किलोमीटर भी पूरे किए हैं!

जाहीर सी बात है, इसमें कुछ गलतियाँ भी हुई थी| सबसे पहली और बड़ी गलती यह थी कि तुलना में रनिंग का अभ्यास नया था, अनुभव कम था, नियमितता अगस्त के पहले बिल्कुल भी नही थी| ऐसे में २१ किलोमीटर दौड़ना उतना ठीक नही था| इसमें‌ कुछ रिस्क भी हो सकता था| यहाँ पर साईकिल चलाने का मेरा अभ्यास और उससे बना हुआ एंड्युरन्स काम आया| इसलिए बाद में ज्यादा तकलीफ नही हुई| पैर जरूर एक- दो दिन दर्द करते रहे| उन दिनों सही स्ट्रेचिंग, स्ट्रेचिंग करने की अलग पोजिशन्स, रिकवरी रन और रिकवरी वॉक आदि की भी जानकारी नही थी| उससे भी कुछ नुकसान हुआ| लेकीन अन्त में बिना किसी तकलीफ के पहली हाफ मैरेथॉन पूरी हुई| इसमें सबसे बड़ी बात यह रही कि मै उन्नीस किलोमीटर दौड़ पाया! मेरे लिए यह बात बड़ी है| इससे काफी हौसला मिला| साथ ही रनिंग एंजॉय भी करने लगा| और इस 'हाफ मैरेथॉन' की सबसे खास बात यह रही कि बनसरकर सर मेरा साथ देने के लिए तीन किलोमीटर वापस चल के आए! वाकई, मेरे लिए यह बहुत बड़ी बात रही| इसके बाद तो मेरी और बनसकर सर की रनिंग की जैसे साझेदारी बनी! और जब स्ट्राईकर पर बहुत अच्छा बल्लेबाज होता है, तो उससे दूसरे नॉन स्ट्राईकर बल्लेबाज का भी हौसला बढ़ता है! बनसकर सर के साथ रनिंग और साईकिलिंग के बारे में लगातार शेअरिंग चालू हुआ, उससे भी बहुत कुछ सीखने को मिला| धीरे धीरे रनिंग का रंग चढने लगा! और मज़ा आने लगा! और रनिंग करने से स्टैमिना जो बढ़ा था, उसका लाभ महाबळेश्वर- सातारा के सर्किट में साईकिल चलाते समय भी हुआ| 

अगला भाग: “भाग दौड़" भरी ज़िन्दगी ५: सिंहगढ़ पर रनिंग!

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