Wednesday, May 26, 2021

मृत्यु का दंश

नमस्ते| आप सब कैसे हैं? सभी ठीक होंगे ऐसी आशा करता हूँ| इन दिनों हम जो भुगत रहे हैं, उसके बारे में कुछ विचार शेअर करता हूँ| इन दिनों हम लगातार मृत्यु से जुझ रहे हैं| हम में से कई लोगों ने उनके अपने खोए हैं| कई लोगों ने भीषण यातनाओं को सहा है| हमें वैसे तो आँख खोल कर मौत को देखने के लिए सीखाया नही जाता है| बचपन से ही हमें मौत को जानने ही नही दिया जाता है| मरघट भी गाँव के बाहर होता है और यह विषय कभी भी हमारी बातचीत में नही आता है|

लेकिन जब हम सजग होकर देखते हैं तो पता चलता है कि मौत शाश्वत चीज़ है| बल्की जीवन में मृत्यु जितना कन्फर्म है, उतना कन्फर्म बाकी कुछ भी नही है| धन, प्रतिष्ठा, सुख, सन्तोष, शान्ति ये चीज़ें मिलेगी या नही मिलेगी यह निश्चित कहा नही जा सकता है| लेकीन मौत निश्चित है| किसी का भी टिकट वेटिंग या आरएसी नही है, बल्की बिल्कुल कन्फर्म है| आज बुद्ध पूर्णिमा है| तथागत बुद्ध अपने भिक्षुओं को मौत पर ध्यान करने के लिए मरघट भेजते थे| दो दो महिनों तक वे भिक्षुओं को मरघट भेजते थे और कहते थे कि देखिए मौत को| देखिए जलनेवाली देह जो नष्ट हो रही है| और उसे सजग हो कर देखिए| इससे उन भिक्षुओं को समझ आता था कि, यहाँ अन्य कोई नही, खुद उनकी देह भी मर रही है, ऐसे ही मरनेवाली है|

जब हमारे प्रिय व्यक्ति का मृत्यु होता है, तो एक अर्थ में हमारा भी मृत्यु होता है| क्यों कि वह हमारा हिस्सा होता है या हम उसका हिस्सा होते हैं| इसलिए एक रिक्तता और सुनापन छा जाता है| लेकीन अगर हम सजग हो कर मौत को देख सकें, तो दूसरे व्यक्ति की मौत में हमें खुद की मौत भी दिखाई देती है| समाज ने तो हमें हमेशा से मौत को देखने से दूर रखा है| इसलिए हम खुली आँख से मौत देखना जानते नही है| लेकिन अगर हम थोड़ी हिंमत कर मौत को देख सके, तो होनेवाली हर मौत में हमें खुद की मौत दिखाई देने लगती है| और तब हमे वह सत्य समझता है कि हाँ, यहाँ हर व्यक्ति का मरना निश्चित है| जब हम दूसरे की मौत में खुद की ही मौत देख पाते हैं, हमारी मौत की ही खबर के तौर पर देखते हैं, तब धीरे धीरे उस मौत का दंश कम होता जाता है| भीतर से महसूस होता है कि जो कन्फर्म है, वह तो हो कर रहेगा, उसे इन्कार करने से कुछ भी नही होगा| और जब हम मौत को स्वीकार करते हैं, तब जीवन के दूसरे अर्थ हमारे लिए खुल जाते हैं| तब जब हम कोई असहाय और अति विकलांग रुग्ण देखते हैं, तो हमें भीतर से महसूस होता है कि एक दिन मेरा भी यही होनेवाला है| आज जो उस व्यक्ति के लिए सच है, वही मेरा भी कल का सच है|

अगर हम मृत्यु की याद बनाए रखते हैं तो जीवन का अर्थ बदल जाता है| जीवन में दु:ख है, दु:ख का कारण है, दु:ख मुक्ति का उपाय है और दु:ख न होनेवाली अवस्था है, यह कहनेवाले बुद्ध के ध्यान के मार्ग पर हम फिर जा सकते हैं| थोड़े और शब्दों में कहूँ तो यह महसूस होता है-

मै पल दो पल का शायर हूँ
पल दो पल मेरी कहानी है
पल दो पल मेरी हस्ती है
पल दो पल मेरी जवानी है

अगर यह भाव भीतर तक महसूस हुआ तो धीरे धीरे हम बुद्ध द्वारा कहे गए निर्वाण की दिशा में बढ़ने लगते हैं| और जब कोई मृत्यु के आगे होनेवाला निर्वाण का सत्य पा लेता है, तब वह यह कह सकता है-

मै हर एक पल का शायर हूँ
हर एक पल मेरी कहानी है
हर एक पल मेरी हस्ती है
हर एक पल मेरी जवानी है

सत्य के इस मार्ग पर जाने के लिए आपको बहुत शुभकामनाएँ!

(अन्य लेख यहाँ उपलब्ध हैं: www.niranjan-vichar.blogspot.com niranjanwelankar@gmail.com निरंजन वेलणकर 09422108376)

5 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 27-05-2021को चर्चा – 4,078 में दिया गया है।
    आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
    धन्यवाद सहित
    दिलबागसिंह विर्क

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  2. मृत्यु के वास्तविक रूप का परिचय कराता और सच्चे जीवन का संदेश देता आलेख

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  3. विचारणीय आलेख। मृत्यु निश्चित है यह सब जानते हैं लेकिन शायद इसे मानना नहीं चाहते हैं। इस मानने की ही जरूरत है।

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  4. पढने के लिए और टिप्पणि के लिए सभी को बहुत धन्यवाद!!

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आपने ब्लॉग पढा, इसके लिए बहुत धन्यवाद! अब इसे अपने तक ही सीमित मत रखिए! आपकी टिप्पणि मेरे लिए महत्त्वपूर्ण है!