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२९ अक्तूबर की रात गूंजी में सभी के लिए कठीन रही! एक तो अत्यधिक ठण्ड थी, साथ ही ऊँचाई लगभग ३३०० मीटर होने के कारण साँस लेने में भी कुछ दिक्कत हो रही थी| इसी कारण सोते समय कंबल सिर के उपर लेना सम्भव नही था, उसमें खतरा था| सभी लोग एक ही कमरे में अधिकसे अधिक कंबल आदि ले कर सोए| कितने अप्रत्याशित जगह पर हम है! और बिल्कुल भी अनप्लैन्ड तरीके से! लेकीन यह भी सच है कि अगर प्लैन किया होता तो शायद हम आते ही नही| क्यों कि सभी लोग उस अर्थ में घूमक्कड़ या ट्रेकर नही हैं| टूरीस्ट ही हैं| इसीलिए प्लैन नही किया, इसी लिए आ पाए| सभी लोग एक ही कमरे में होने से कुछ गर्मी मिली और छत लकड़ी का होने से भी लाभ मिला| हालांकी ठीक से नीन्द किसी की भी नही हुई| भोर होते होते सब जग गए थे| यहाँ के भोर का आकाश छूट न जाए, इसलिए मै बाहर आया! चाँद आसमाँ में आया है और उसकी रोशनी में पास के शिखर अच्छे से चमक रहे हैं| बादल है, इसलिए तारे उतने ज्यादा नही दिखे| लेकीन ठण्ड से उंगलियाँ जैसी ठिठुर गई हैं| और उससे भी बड़े मज़े की बात तो होटल के द्वार के पास रखी हुई बकेट का पानी जम गया है!! रात में होटलवाले ने थोड़ा दूर होनेवाला बाथरूम दिखाया था| वहाँ अन्दर प्लास्टीक के ड्रम का पानी लेकीन नही जमा है| उस ठण्ड में ब्रश करना भी टेढ़ी खीर है| जैसे तैसे अनिवार्य चीज़ें निपटा दी| कुछ मिनटों तक उंगलियाँ अकड़ सी गई थी| और साँस छोड़ना तो जैसे धुम्रपान ही बन गया है|