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२९ अक्तूबर की दोपहर! धारचुला पार करते ही मोबाईल नेटवर्क चला गया| अब सड़क भी पहाड़ में उपर उठ रही है और संकरी हो रही है| गूंजी जाना है, लेकीन सड़क कितनी दूर तक चल रही है, इसका अन्दाज़ा नही है| यहाँ के जानकार बता रहे हैं कि गूंजी तक अब गाडी चलती है| लेकीन मुझे शक है| इसलिए इसके आगे जो भी मिलेगा, पूरी तरह अप्रत्याशित होगा| तवा घाट के पास हमें एक परिचित मिले, वे सड़क पर हमारे लिए ही रूके थे| वे एक अर्थ में हमारी इस गूंजी यात्रा के संयोजक थे| उन्होने ही कहा था कि गूंजी जाईए, ॐ पर्वत देख आईए| वे हमारे लिए रूके थे और मिलते ही उन्होने हमारी गाडी चलाना शुरू किया| धीरे सड़क टूटने लगी थी, इसलिए हमारे ड्रायवर को उनके आने से राहत मिली| अब शुरू होता है एक रोमांचकारी यात्रा!
यहाँ जॉईन हुए जितू जी वैसे तो पेशे से ड्रायवर हैं, लेकीन बिल्कुल ऑल राउंडर इन्सान| ड्रायवर, टूअर ऑपरेटर, टूरीस्ट गाडी, किसान, ट्रेकर इन सबमें कुशल| उन्होने फिर गूंजी के बारे में जानकारी दी| एक बार मैने उनसे पूछा कि अगर वास्तव में गूंजी तक जाया जात हो, तो इनर लाईन परमिट लगता होगा ना| उस पर उन्होने कहा कि उनकी पहचान है, इसलिए नही लगेगा| फिर यहाँ की भीषण सड़कें, ड्रायवर्स कैसे चलाते हैं इसको ले कर वे बात करते रहें| तवा घाटच्या के कुछ आगे गूंजी की सड़क का अन्तिम होटल होनेवाला गाँव लगा| वहाँ दल- सब्जी राईस खा लिया| अब लोगों के चेहरे की शैलि में फर्क साफ नजर आ रहा है! और अब सड़क पर वाहनों में अधिक वाहन मिलिटरी के वाहन हैं!
जितूजी ने बताया कि यहाँ से गूंजी की दूरी लगभग ४५ किलोमीटर होगी, लेकीन पहुँचने में पाँच घण्टे तो लगेंगे| अर्थात् दिन डूबने के समय हम गूंजी में पहुँचेंगे| होटल होनेवाला वह गाँव पीछे जाने पर सड़क बिल्कुल कच्ची हो गई| सड़क कहना ही नही चाहिए, यह तो ट्रक का भार ले सकनेवाली समतल की हुई पगडण्डी ही है! उसमें भी बीच बीच में तीखी चढ़ाई! पूरा नजारा, माहौल और आसपास का परिसर धीरे धीरे बदल रहा है! जौलजिबी से साथ आई कालीगंगा अब सिकुड़ने लगी है| उसकी धारा अब उफनती पहाड़ी नदी जैसी है और आगे तो धरने जैसी हो रही है| बाद में वह एक पहाड़ के पीछे चली गई| पहाड़ का ढंग भी बदल रहा है| धीरे धीरे हरा रंग घट रहा है| अब एक के पीछे एक हिमशिखर प्रकट हो रहे हैं| बिल्कुल स्पीति की याद ताज़ा करनेवाला दृश्य और उतनी ही दुर्गम सड़क! जगह जगह पर खाई का सीधा एक्स्पोजर होनेवाली सड़क! अब तो सड़क पर झरने भी मिल रहे हैं| कुछ जगहों पर तो सीधा उपर से झरना गिरता है और इतना तेज़ कि उसमें से जब गाडी जाती है, तो पाँच सेकैंड के लिए पूरी विजिबिलिटी जाती है| बिल्कुल वायपर्स शुरू करने पड़ते है| मज़े की बात तो इस झरने की बारीश में इन्द्रधनुष भी दिखा!
एक जगह पर मिलिटरी का एक युनिट मिला| वहाँ चाय के दुकान भी दिखे| थोड़ी सी बस्ती है| कुछ देर वहाँ रूके| हमारे मित्र और जितू जी वहाँ के जवानों से मिले| उनके यहाँ सिविलियन्स के लिए कुछ सुविधाएँ थी| फिर उनसे कुछ बातचीत हुई| बाद में उन्होने ही हमें चाय- कॉफी दी| सशस्त्र सीमा बल का यह युनिट| यहाँ की ऊँचाई २७०० मीटर्स! अर्थात् हम जिसे 'महा ऊँचाई' कहा जाता है, उस ऊँचाई के पहले स्तर तक आ गए हैं| यहाँ से यह यात्रा और कठिन होती जाएगी| साथ में होनेवाले किसी किसी को तकलीफ शुरू भी हुई| फिर उन्हे मेरे ट्रेकिंग- साईकिलिंग के अनुभव के आधार पर सचेत भी किया| यहाँ आते आते प्रकृति ने इस तरह करवट ली है कि यहाँ के कुत्ते में भी घने बाल है| ठण्ड के लिए प्राकृतिक इन्तजाम! कुछ देर वहाँ रूके और वहाँ के नजारे फोटो में ले कर आगे निकले| अब हिमशिखर बिल्कुल सामने दिखाई दे रहे हैं|
यहाँ से बड़ी तेज़ चढाई शुरू हुई| शायद इस रूट की सबसे तीव्र घाट जैसी चढाई| वाकई यहाँ जाना एक रोमांच है| यहाँ जीप चलाना बेहद नामुमकीन जैसा है| और चलानेवाले ड्रायवर बहुत तजुर्बेकार है, इसका बड़ा सुकून मिल रहा है| बीच बीच में इतनी तेज़ चढाई और तुरन्त मूडनेवाली सड़क! साथ ही कई जगहों पर संकरी सड़क जिससे वाहन क्रॉस हो रहा हो तो आगे- पीछे जना होता है| मैने खुद महाराष्ट्र में फोरवीलर चलाई है, लेकीन यहाँ ड्राईव करने का विचार भी मै अफॉर्ड नही कर पा रहा हूँ! यह मामला ही अलग है! जैसे वास्तव में दुर्गमता खड़ी है! स्पीति में साईकिल चलते समय दुर्गा, दुर्गमगा, दुर्गमस्थाना ऐसे दुर्गमता के नाम याद आए थे! यह सड़क वही अनुभव दोबारा दे रही है| जितूजी ने बताया कि इस सड़क पर फोर बाय फोर गाडी ही चाहिए| अर्थात् जिस गाडी के पीछले दो पहिए भी खुद की गति होनेवाले होते हैं| हमारी बोलेरो बिल्कुल कमजोर लग रही है| साथ में होनेवाले मूल चालक (जो उसके मालिक भी है) बोले कि नई बोलेरो में पहले की बोलेरो जैसा पिक अप भी नही है! इसलिए वह उतनी तेज़ी से चढती नही है| लेकीन जितूजी बड़े जिगर से गाडी ले जा रहे हैं| हमारे साथ के एक सर बार बार 'मारना' शब्द का इस्तेमाल करते हैं| जैसे खाने के समय 'पाव भाजी' मारी, रिचार्ज 'मारा', नैनिताल 'मारा' आदि! वैसे ही यहाँ जितूजी गाड़ी बिल्कुल मार ही रहे हैं! और इस सड़क ने भी हम सबको लगभग "मार डाला" है! कितने सही समय पर वे हमसे जुड़ गए, हमें बहुत खुशी हो रही है| लेकीन यह खुशी ज्यादा देर नही चली! क्यों कि उनकी अपनी और एक गाडी भी थी और वह पीछे से आ रही थी| उन्होने और एक ड्रायवर को ट्रेनिंग के लिए वह चलाने को दी थी| पर एक मोड़ से दिखाई दिया कि वह चढ़ ही नही रही है| इसलिए कुछ देर तक प्रतीक्षा करने के बाद जितूजी निकले| उन्होने कुछ निर्देश हमारे ड्रायवर को दिए| बेचारा राजी हुआ चलाने के लिए! डर तो उसे भी था ही| लेकीन डर से अधिक गाडी की फिक्र है| लेकीन उनकी गाड़ी फंस गई थी, तो उन्हे जाना ही पड़ा| उनके पहचान के कई ड्रायवर्स यहाँ है| इस कारण उनके पास एक वॉकी टॉकी भी था| उस पर वे बीच बीच में 'चार्ली वन चार्ली वन' कह कर बात करते थें| निकलते समय वे उसे गाड़ी में छोड़ कर ही चले गए|
... जैसे तैसे और कुछ चढाईयाँ जीप ने पार की| साँस अटक जाए ऐसी एक एक चढाई! साथ ही खाई से सट कर होनेवाला क्रॉसिंग| सब लोग गूंजी की बड़ी बेसब्री से राह देखने लगे| अन्तत: वह तिखी चढाई का हिस्सा जैसे तैसे पार हुआ और गब्रियांग या ऐसा ही कुछ मिलिटरी का युनिट आया| वहाँ की ऊँचाई १२ हजार फीट के उपर थी, निश्चित ही हम ३५०० मीटर्स ऊँचाई तक आए हैं| और वह पता भी चल रहा है| बहुत ज्यादा ठण्ड, आसपास और अब तो पीछे भी हिमशिखर हैं! पेड़ अब कम नजर आने लगे हैं| रुखे सुखे पहाड़ सामने पास दिखाई दे रहे है| इस चेक पोस्ट पर जाँच हुई और गूंजी की यात्रा में जा रहे हैं, ऐसा बताने पर जाने की अनुमति मिली| बीच बीच में किचड फैली है, वहाँ ध्यान से जाने के लिए कहा| अब तक लगभग हर कोई गूंजी के लिए डेस्परेट हुआ है! कब आएगा गूंजी? लेकीन बाहर का सारा माहौल यही कह रहा है-
गुंजी सी है सारी फ़िज़ा जैसे बजती हो शहनाइयाँ
लहराती है महकी हवा गुनगुनाती हैं तन्हाईयाँ
सब गाते हैं सब ही मदहोश हैं
हम तुम क्यों खामोश हैं
माहौल ही कुछ ऐसा है कि सभी एक अर्थ में मदहोश है| और इसी गाने की यह लाईन भी उतनी ही याद आ रही है-
तन मन में क्यूँ ऐसे बेहती हुयी
ठंडी सी इक आग है
साँसों में है कैसी यह रागिनी (ऊँचाई पर हवा कम हो जाने से!)
ठंडी सी इक आग तो बिल्कुल अनुभव आ रही है, चुभ भी रही है| जल्द ही अन्धेरा हो जाएगा लेकीन गूंजी पास होने पर भी अब तक नही आया है| बस उस युनिट के बाद चढाई रूक गई और उतराई शुरू हुई| लेकीन यहाँ भी आसान बिल्कुल भी नही है| क्यों कि किचड़ में फंसी हुई सड़क है| जीप उसमें अन्दर ही फंस रही है| फिर भी ड्रायवर अनीलजी ध्यानपूर्वक आगे गए वाहनों के निशानों पर से ही जीप ले जा रहे हैं| फिर भी कहीं कहीं जीप के पहिए को ग्रिप ही नही मिल रही है| इस किचड़ ने सड़क को आटे जैसा चिकना बना दिया है| गाडी का पहिया उसमें धंस जाता है और सिर्फ घूमता रहता है, गर्म हो जाता है| लेकीन सड़क पर मिलिटरी के लोग और अन्य गाडियों के ड्रायवर्स आदि ऐसे स्थानों पर मुस्तैद हैं| इसलिए हमारी जीप कहीं फंस जाने से बही| लेकीन उसे कहीं कहीं धकेल कर निकालना भी पड़ा| पहाड़ उतर कर सड़क फिर एक बार झरने जैसी कालीगंगा नदी के पास आया| कहाँ वो जौलजिबी की रुद्र अवतार में बहनेवाली नदी और कहाँ यह छोटा सा झरना! आसानी से पत्थर उस पार फेंका जा सके इतनी संकरी धारा! आगे आगे तो वह इतनी छोटी हुई जैसे कहीं कहीं पैदल पार जाया जा सके! लेकीन क्या अनुठा नजारा! शाम की लाल रोशनी में चमकनेवाले हिमशिखर!
हिमालय के इतना अन्दर तक आने के लिए सच में किस्मत होनी चाहिए| इतना अन्दर और वह भी मानस सरोवर रूट पर! किस्मत में न हो, तो यह मुमकीन नही होता है| इतना भव्य हिमालय और उसका इतना सत्संग! ऐसी विराट प्रकृति नतमस्तक करती है, हमारे अहंकार को पीघला देती है| जो ध्यान नही करते हैं, उनके कहने में भी आया कि हम जो साथ यहाँ जा रहे हैं, उनमें कुछ पूर्व जन्म का नाता होगा, उसके बिना हम यहाँ साथ नही आते! और ऐसे माहौल में जीप में पहाड़ी गानों में एक गाया यह भी है- तेरो मेरो रिश्तो पहले जनम वा' ऐसा ही कुछ! ऐसा चलते चलते अन्धेरा होने ल्गा और जब तब भी गूंजी नही आया, तब डर के मारे ॐ नमोs शिवाय गाना भी बजा| दूर कुछ बस्ती जैसा दिखाई दे रहा है और मोबाईल टॉवर भी दिखाई दे रहा है| गूंजी ही होगा यह! लेकीन वह पास नही आ रहा है| आगे जाने पर और पहाड़ और दूरी नजर आती है| गूंजी में एक यात्रा है और इसके लिए कई गाडियाँ वहाँ जा रही हैं| इस कारण सड़क पर थोड़ी तो यातायात है|
गूंजी के थोड़े ही पहले फिर एक चेक पोस्ट पर जाँच हुई| और यहाँ इनर लाईन परमिट पूछा गया| साथ में जितू जी नही थे, इसलिए उनकी पहचान भी काम न आ सकी| उन लोगों ने हमें लगभग डांटा ही कि आप बिना परमिट के इतने अन्दर तक आ कैसे गए? आने ही कैसे दिया? आखिर कर उन्होने हमारी ठीक से पूछताछ की और अनीलजी का पहचान प्रपत्र रख लिया और हमें जाने दिया| यात्रा के लिए कई लोग जा रहे हैं और इसलिए हमें भी जाने दिया गया| लेकीन वे बोले की, परमिट के बिना आगे ॐ पर्वत और आदि कैलास पर्वत व्ह्यू पॉईंट तक हमें नही जाने दिया जाएगा! वैसे भी किसी में इतनी ऊर्जा नही बची है कि वह गूंजी के आगे का सोच सके| कब आखिर कर गूंजी आता है और हम विश्राम लेते हैं, ऐसा हर एक को लग रहा है| लेकीन गूंजी आ ही नही रहा है! अन्त में वॉकीटॉकी से जितू जी से बात करने के भी प्रयास हुए, लेकीन सम्पर्क नही हो पाया| सड़क पर एक भी बोर्ड नही है| गाँव पास आने के कोई निशान नही है| लेकीन सड़क पर लोग जरूर हैं- मिलिटरीवाले, बीआरओवाले और उनके कुछ मजूर, अन्य गाडियाँ आदि| ऐसा करते करते जब कुछ लाईटें पास में दिखी तो पता किया और तब पता चला कि यही गूंजी है! होटल- लॉज आगे मिलेंगे सोच कर आगे गए तो फिर सब सुनसान हुआ| फिर पीछे मूड़ कर पता किया तो पता चला कि गूंजी बस इतना ही है! फिर एक होटल मिला| लेकीन गाडी के बाहर आने से भी राहत न मिली! अत्यधिक ठण्ड! हाथ सुन्न हो रहे हैं
उस होटल में चाय दिया और पूछताछ भी की| हम उस समय लगभग ३५०० मीटर ऊंचाई पर थे, बाद में कुछ नीचे आने पर भी अब कम से कम ३३०० मीटर ऊँचाई पर होंगे, ऐसा लग रहा है| चलते समय और शरीर का श्रम करते समय ध्यान रखेंगे, ऐसा सबको कहा| साथ में एक १० साल का लड़का भी है, उसे इस पूरी यात्रा में कुछ भी तकलीफ नही हुई| ठहरने की जगह सोची तब लगा कि जितू जी आने तक रूकना चाहिए, क्यों कि वे सब इन्तजाम कर देंगे ऐसा लगा| लेकीन धीरे धीरे ठण्ड शरीर में फैलनी लगी और उनकी प्रतीक्षा करने के बजाय अपना इन्तजाम खुद करें, ऐसा लगा| यहाँ यात्रा में सरकारी अर्थात् कुमाऊँ मण्डल विकास निगम के टेंटस का इन्तजाम है| लेकीन उसके बजाय प्रायवेट होटल देखें, ऐसा सबने कहा| कुछ लोगों ने फिर वैसा होटल ढूँढ भी निकाला| सभी कमरे फुल हैं| लेकीन एक होटल कम होम स्टे में एक कमरे में सबके ठहरने का इन्तजाम हुआ| फिर रात का भोजन किया| अत्यधिक ठण्ड से ठिठुरन हो रही है! लेकीन कितनी खतरनाक यात्रा रही यह! तेज़ चढाई, फिसलनभरी सड़क, खाई, आटे जैसी किचड़ और उत्तुंग हिमाच्छादित शिखर! वाकई किस्मत का ही यह काम है, जीवन की कृपा है यह| रात में अन्धेरे में पास ही हो कर भी शिखर दिखाई नही दे रहे हैं| बादल भी हैं| इस कारण सितारे भी ठीक से नही दिखाई दिए| आज का अनुभव इतना अनुठा है, कि इतनी ठण्ड में भी बाहर जा कर उसे रिकार्ड करने की इच्छा हुई| क्या दिन और अब कैसी रात है यह! कल शायद ॐ पर्वत और आदि कैलास पास से दिखाई देगा या नही देगा, लेकीन सबको यहाँ से सकुशल लौटने की चिन्ता जरूर है! वाकई साँस रोकने को मजबूर करनेवाली यह सड़क! और यहाँ पर यह दूसरा गीत भी याद आ रहा है-
चलता है जो ये कारवाँ, गूंजी सी है ये वादियाँ
है ये ज़मीं गूंजी गूंजी, है ये आसमां गूंजा गूंजा
हर रस्ते ने हर वादी ने हर पर्बत ने सदा दी
हम जीतेंगे हम जीतेंगे हम जीतेंगे हर बाज़ी
अगला भाग: हिमालय की गोद में... (कुमाऊँ में रोमांचक भ्रमण) ६: गूंजी का हँगओव्हर
मेरे ध्यान, हिमालय भ्रमंती, साईकिलिंग, ट्रेकिंग, रनिंग और अन्य विषयों के लेख यहाँ उपलब्ध: www.niranjan-vichar.blogspot.com
बेहतरीन... रोमांचक यात्रा रही ये... अगले भाग का इंतजार रहेगा...
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