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१ नवम्बर का दिन| सत्गड की ठण्डी सुबह! परसो की यात्रा के बाद अब पेट को थोड़ी तकलीफ हो रही है| अत्यधिक ठण्ड, यात्रा में थकान और होटल का खाना, इससे अन्त में तकलीफ हुई| इसलिए कुछ विश्राम करने का मन हुआ| लेकीन दिक्कत इतनी नही थी जिससे रोज का घूमना छूट जाए| इसलिए थोड़ी देर बाद सत्गड से नीचे आ कर सड़क पर टहलने के लिए निकला| तेज़ वॉक करते करते ठिठुरन कम हुई और अच्छा महसूस हुआ| कुछ दूरी पर जा कर वापस निकला| इसी सड़क पर हमारे एक रिश्तेदार का होटल है| उनके पास चाय ली| घर के लिए आलू पराठे पार्सल लिए| उनके साथ अच्छी बातें भी हुईं|
इस क्षेत्र के कई लोग शहरों में बसे हैं| दिल्ली- मुम्बई- महाराष्ट्र ऐसे शहरों में वे मुख्य रूप से गए हैं| बहुत से लोग होटल लाईन में भी काम करते हैं| अक्सर घर में से एक व्यक्ति तो शहर में होता है| लेकीन कोरोना काल की संकट स्थिति के कारण उनमें से कई लोग अपने गाँव लौट गए| इन रिश्तेदार ने भी पुणे से यहाँ वापस आ कर अपना पहले का छोटा होटल शुरू किया| अब उन्हे उसमें और जोड़ना है| लेकीन कोरोना के प्रकोप में वह सम्भव नही हो रहा है| अन्य गाँवों में भी ऐसे बाहर गए लोग कोरोना के कारण वापस लौटे और अब वे गाँव में ही नया उद्यम शुरू कर रहे हैं| इन गाँवों में वैसे व्यवसाय गिने चुने ही होते हैं| बड़े उद्यम तो बस इतने ही हैं- खेती, मिलिटरी, पर्यटन या होटल- ड्रायविंग| उसके साथ जहाँ थोड़ी घनी आबादी है, वहाँ अन्य व्यवसाय भी उभर रहे हैं जैसे जिम, ब्युटी पार्लर, मोबाईल शॉप और अन्य| शहरों में कुछ वर्ष काम करने के बाद भी गाँव आ कर सेटल होनेवाले इन लोगों के प्रति बहुत आदर का भाव महसूस होता है| पहाड़ी क्षेत्र में कुदरत के करीब होने के सभी लाभ तो उन्हे मिलते हैं ही| पहाड़ी समझ, दृष्टी, कुदरती सादगी ये गुण तो हैं ही| साथ में शहर में कई सालों तक काम करने के कारण बाहर की दुनिया की चीज़ें, नए कौशल, निखरी हुई बुद्धी ऐसे भी लाभ उन्हे मिले हुए होते हैं! और अब वे अपने गाँवों को और समृद्ध बना रहे हैं| खैर|
पराठा पार्सल ले कर सत्गड लौटा| अच्छा घूमना हुआ| उसके बाद दोपहर में भी एक बार नीचे जा कर आया| ट्रेकिंग का पूरा पूरा लुत्फ ले रहा हूँ| सत्गड जैसा गाँव और हिमालय के वाकई गोद में रहनेवाले लोग करीब से देख पा रहा हूँ! हिमालय- हिमालय कहते समय हम बाहरी लोगों को बहुत पूज्य भाव जैसे होता है| हिमालय का आकर्षण होता है| हिमालय में जाने के बाद सब शान्ति मिलेगी, ऐसा लगता है| लेकीन जो लोग वास्तव में हिमालय में ही रहते हैं, उनकी स्थिति कैसी होती होगी? इसका उत्तर यहाँ मिल रहा है| यहाँ के लोगों को कुदरत करीब होने के कई लाभ तो हैं ही| लेकीन इसके साथ क्या उनके जीवन में पूरा आनन्द ही है, सिर्फ सुख- चैन और शान्ति है? तो ऐसा नही है| यहाँ भी तनाव होते हैं| समस्याएँ हैं| अन्धविश्वास हैं, पीछड़ापन है| साथ में स्वास्थ्य सुविधाओं की किल्लत है| पुरुष केन्द्रित संस्कृति, महिलाओं का शोषण है| नशे का रोग बड़े बुरे हद तक बढ़ा है| कहीं कहीं पर तो इसकी तुलना 'उडता पंजाब' के साथ भी की जा सकती है| इस कारण यहाँ के सभी युवा उतने सक्रिय और अच्छे कामों में जुटे होंगे, ऐसा कहा नही जा सकता है| साथ में मानव- प्रकृति संघर्ष है| प्राकृतिक आपदाओं का खतरा और जंगली जानवरों के हमले का डर भी है| यह सब देखते समय लग रहा है कि सिर्फ हिमालय में हो कर शान्ति- सन्तोष नही मिल सकता है| उसके लिए हमारे भीतर के हिमालय का साथ होना आवश्यक होता है| हमारे भीतर का हिमालय ढूँढना होता है| और तब वैसी शान्ति और सन्तोष कभी डगमगा नही सकते हैं|
दोपहर विश्राम किया| साथ आए हुए मित्र आज वापस जाने के लिए लौटे| और अदू के मामा- मामी दिल्ली से पहुँचे| हम जल्द ही बुंगाछीना गाँव में एक पूजा के लिए जाएंगे| मामा- मामी दिल्ली से थकानेवाली यात्रा कर आए, फिर भी थके नही थे| मामा ने तो बच्चों के साथ जम कर क्रिकेट खेली| उन्हे पूरा पस्त कर दिया, बच्चे तो उसे आउट ही नही कर पा रहे थे| और मामी तो पहली बार हिमालय में आ रही थी, उन्हे यात्रा की तकलीफ हुई नही| और अचरज की बात तो उन्होने पिथौरागढ़- सत्गड में कुछ दूरी तक जीप भी चलाई! मेरी सेहत लेकीन थोड़ी बिगड़ गई है| दोपहर का भोजन गले से नीचे उतरा ही नही| दिनभर पेट बिल्कुल पॅक रहा| रात में आखिर कर उल्टी करने के बाद सुकून मिला| कल हम बूंगाछीना को जाएंगे और वहाँ फिर अच्छे से घूमने का मौका मिलेगा| यहाँ होने तक एक एक दिन जितना हो सके घूमते रहना है|
अगला भाग: हिमालय की गोद में... (कुमाऊँ में रोमांचक भ्रमण) ९: अदू के साथ किया हुआ ट्रेक
मेरे ध्यान, हिमालय भ्रमंती, साईकिलिंग, ट्रेकिंग, रनिंग और अन्य विषयों के लेख यहाँ उपलब्ध: www.niranjan-vichar.blogspot.com
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