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७ नवम्बर की सुबह| कल पिथौरागढ़ में ही ठहरे थे| दो-मंजिला घर, आँगन और आँगन में सुन्दर बगीचा और फूल! यहाँ पूरब की तरफ बड़ा पहाड़ नही है, इसलिए धूप सुबह ६ बजे ही मिली| यह घर थोड़ी ऊँचाई पर है, इसलिए सामने पिथौरागढ़ शहर फैला दिखाई देता है| साथ में शहर से सटे छोटे पहाड़ भी दिखाई देते हैं| यहाँ से चण्डाक हिल की दूरी लगभग ८ किलोमीटर है| वहाँ से थोड़ा आगे मोस्टा मनू मन्दिर है| वहाँ तक घूमने का तय किया| कुल मिला कर लगभग १८- २० किलोमीटर का ट्रेक होगा| कभी भी न देखे हुए परिसर में ट्रेक होगा| पानी की बोतल, कुछ गूड़पापड़ी आदि सामान पीठ पर ले कर निकला| रास्ता पहले पिथौरागढ़ शहर में जाता है और वहाँ के मेन मार्केट सिल्थाम से चण्डाक हिल की तरफ सड़क निकलती है| यहाँ कई जगह पर आईटीबीपी और बीआरओ के केन्द्र हैं| मिलिटरी की यातायात चलती रहती है| तेज़ी से चलते हुए बीस मिनट में मेन सिटी में पहुँचा| यहाँ नाश्ता मिलने की उम्मीद थी| लेकीन आगे देखता हूँ, ऐसा सोचते सोचते होटल पीछे छूट गए| और सुबह के आठ बजे ज्यादा होटल खुले भी नही थे| आगे चण्डाक के पास होटल मिलेगा, ऐसा पता चला| साथ में लायी गूड़पापड़ी खा कर आगे बढ़ा| धीरे धीरे पिथौरागढ़ शहर पीछे होता गया और निर्जन इलाका शुरु हुआ| यहाँ सुबह टहलने के लिए निकले हुए लोग दिखे| बाहर आने पर दूर से चण्डाक हिल का परिसर दिखाई देने लगा|
उत्तराखण्ड में मन्दिर बड़ी संख्या में हैं| इस तरफ भी कई मन्दिर दिखे| एक मन्दिर का नाम 'उल्का माँ' है! सड़क धीरे धीरे उपर चढ़ती जा रही है और अब दूर तक का नजारा दिखने लगा है| कुमाऊँ मण्डल विकास निगम का पर्यटक आवास मिला| वहाँ ॐ पर्वत के फोटो के लिए अन्दर गया| लेकीन अब तक वह होटल जगा ही नही है, इसलिए तुरन्त आगे बढ़ा| चण्डाक हिल पहाड़ि पर है और वहाँ से सड़क नीचे उतरती है और प्रसिद्ध चण्डी मन्दिर वहाँ है| सूरज जैसा उपर उठ रहा है, वैसे कोहरे से उठते हुए सुदूर के हिम शिखर दृग्गोचर हो रहे हैं| सामने पहाड़ की नीचली तरफ छोटे गाँव दिखाई दे रहे हैं| एक सड़क मेन रोड़ से निकल कर नीचे गाँव की तरफ जा रही है| आगे जाने के बाद वह गाँव उपर से बहुत सुन्दर दिखाई दिया| एक पर्यटन स्थान होने के कारण यहाँ सड़क बहुत बेहतर बनी है| यहाँ साईकिल चलाने में बड़ा मज़ा आता! लम्बा घाट और आसपास अत्यधिक रमणीय परिसर!
यहाँ से कुछ मन्दिरों के लिए पगडण्डी भी निकलती है| यहाँ प्रादेशिक सेना की निगरानी में बना एक पर्यावरण पार्क भी दिखाई दिया| कुछ मोड़ ले कर सड़क अब पहाड़ी पर पहुँच गई| सब तरफ देवदारों का साम्राज्य! छह किलोमीटर हुए हैं, लेकीन थकान बिल्कुल भी नही है| क्यों कि मै प्राकृतिक एसी के आल्हाददायक वातावरण में ही तो चल रहा हूँ| साथ में नजारे इतने अनुठे हैं कि थकान का सवाल ही नही है| यहाँ घूमने आने का निर्णय लेने के लिए खुद को बार बार धन्यवाद दे रहा हूँ! सामने कुछ दूरी पर मोबाईल टॉवर दिखाई दे रहा है| अर्थात् इस हिल का यही माथा होगा| आगे सड़क शायद थोड़ी नीचे उतरेगी| यहाँ कुछ बस्ती मिली| लेकीन पराठे का होटल नही मिला, इसलिए आगे बढ़ा| यहाँ से चण्डी मन्दिर और मोस्ता मानूू मन्दिर के मार्ग अलग होते हैं| मोस्ता मानूू मन्दिर की तरफ मूड़ा और बस्ती जैसे ही पीछे गई, देवदारों का घना वन मिला! अद्भुत- सपने जैसा दृश्य! मै मज़ाक में इन दिनों मेरे दोस्तों से कह रहा हूँ कि मै बहुत अय्याश हुआ हूँ| निरंतर मज़े लूट रहा हूँ! इतने करीब से देवदारों का सत्संग और उनके पीछे छुपे हिम शिखर! जल्द ही मोस्ता मानू मन्दिर में पहुँचा| यह शिव मन्दिर जैसा मन्दिर है| आसपास थोड़े घर और दुकान| कुछ देर मन्दिर में शान्त बैठा और वापस निकला|
लौटते समय भूख लगी| यहाँ आलू पराठा या वेज होटल सामने नही दिखाई दिया| पास के होटल नॉन वेज के हैं| इसलिए अन्त में चाय- बिस्कीट लिया| सोचा कि आगे पिथौरागढ़ में नाश्ता करूँगा| वापसी में विपरित दिशा से भी नजारे उतने ही सुन्दर और अनुठे दिखाई दे रहे हैं! मै जिस सड़क से उपर आया था, वह भी उपर से दिखाई दे रही है| हल्की उतराई होने के कारण थकान नही हुई| और विगत कई दिनों से मै हर दिन पाँच- छह किलोमीटर चल ही रहा हूँ| इसलिए कुछ भी थकान नही हुई| धीरे धीरे पिथौरागढ़ पास आता गया| मेन मार्केट के पास एक जगह आलू पराठे का नाश्ता किया| परिवारवाले पिथौरागढ़ में एक रिश्तेदार के यहाँ मिलने गए हैं| मुझे भी उन्होने वहीं पर बुलाया| इसलिए पता पूछते पूछते उस तरफ निकला| और कुछ किलोमीटर चलने का अवसर मिला!
उनका घर पिथौरागढ़ में दूसरी तरफ है| रास्ता ढूँढते ढूँढते गया| कुछ लोगों ने शॉर्ट कट बताया| यह तो पगडण्डी थी जो शहर के बीचोबीच की गलियों से जा रही हैं| कहीं कहीं पर तो वह पहाड़ के पास से और खेत के पास भी जा रही है| पिथौरागढ़ को अन्दर से देख रहा हूँ| पगडण्डी का अपना अलग मज़ा होता है| यहाँ वैसे भी सब तरफ नजारे ही नजारे और ट्रेक हैं ही! जब उनके घर पहुँचा तब कुल १९ किलोमीटर हुए हैं| चलने का समय ३ घण्टे २२ मिनट| थकान इतनी ही है कि ठण्ड नही लग रही है! बाद में वहाँ से फिर मार्केट में आते समय एक किलोमीटर चला| शाम को सत्गड पहुँचने पर वह भी छोटा ट्रेक हुआ| कुल मिला कर दिन में २१ से अधिक किलोमीटर हुए| एक बिल्कुल अनुठी हाफ मैरेथॉन ही हुई! दूसरे दिन का मेरा प्लैन तैयार किया| बुँगाछीना से कनालीछीना होते हुए जब सत्गड आए थे, तो वह सड़क बहुत पसन्द आयी थी| कल उसी सड़क पर २५ किलोमीटर चलूँगा| पहले सोचा कि बुँगाछीना तक जाऊँगा और वापस जीप से आऊँगा| लेकीन फिर लगा कि उसमें समय जाएगा| जीप जल्दी मिलेगी ही ऐसा नही है और पैसे भी लगेंगे! इसलिए सोचा कि उसी सड़क पर आधी दूरी तक जाऊँगा और वहीं से लौटूँगा| उस सड़क पर भी घूमना हो जाएगा, समय भी बचेगा और पैसे भी बचेंगे! वह ट्रेक भी अत्यधिक सुन्दर रहा| उसके बारे में अगले भाग में बात करता हूँ|
अगला भाग: हिमालय की गोद में... (कुमाऊँ में रोमांचक भ्रमण) १३: एक अविस्मरणीय ट्रेक (२६ किमी)
मेरे ध्यान, हिमालय
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