इस लेखमाला को शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिए|
४ नवम्बर को बूँगाछीना गाँव में पूजा सम्पन्न हुई| उत्तराखण्ड के सामुदायिक लोक जीवन का अनुभव ले सका| उस कारण रिश्तेदारों से मुलाकातें हुईं- बातचीत हुई| आज लक्ष्मी पूजन है, इसलिए रात सत्गड पहुँचना है| सभी रिश्तेदारों से और बूँगाछीना के रमणीय परिसर से विदा ले कर हम निकले| दिवाली का दिन होने के कारण पिथौरागढ़ जानेवाली जीपें मिल नही रही हैं| साथ ही यहाँ सरकारी रोडवेज बसों के कुछ ड्रायव्हर्स का स्ट्राईक भी चल रहा है| इसलिए बहुत देर तक सड़क पर राह देखते रहे| दोपहर की धूप में तो अच्छा लगा, लेकीन जब धीरे धीरे शाम ढलने लगी, तब स्वेटर पहनना पड़ा| अन्त में बूँगाछीना के ही एक सज्जन उनकी जीप से छोड़ने के लिए तैयार हुए| यहाँ पहाड़ी सड़कें हैं, इससे वाहनों के रेट बहुत ज्यादा हैं| सरकारी बस में लगभग एक किलोमीटर के लिए दो रूपए लगते हैं, तो शेअर जीप चार या पाँच रूपए लेती हैं| साथ ही पेट्रोल के दाम बढ़े है| और कोरोना के कारण आई हुई मन्दी| यहाँ का पर्यटन भी प्रभावित हुआ है| खैर|
बुँगाछीना से पिथौरागढ़ न जाते हुए एक सड़क सिधी कनालीछीना की तरफ जाती है| यह सत्गड का शॉर्ट कट है| यहाँ बड़े वाहन उतने नही जाते हैं| एक नया रूट देखने का अवसर मिला| ठीक पहाड़ के बीचोबीच से गुजरनेवाली सड़क| छोटे छोटे गाँव और हरी- भरी प्रकृति! देवदारों का साम्राज्य! इतने दिन यहाँ घूमने के बाद भी इस सड़क के दृश्य बड़े सुन्दर लगे| तभी तय किया कि जैसा सम्भव हो, इस रूट पर भी एक ट्रेक जरूर करूँगा| और कुछ ही दिनों में किया भी| इस सड़क पर अक्तूबर की बरसात से हुई क्षति दिखाई दे रही है| कहीं कहीं सड़क इतनी सिकुड़ी है कि जीप बड़ी मुश्किल से जा पाती है| कुछ हिस्सा बह गया है| दूर जो नजारे दिखाई देते हैं, उनमें हरियाली और वृक्षों के साथ बीच में मटमैले रंग के धब्बे भी दिखाई देते हैं| ये धब्बे वास्तव में लैंड स्लाईड की जगहें हैं| वहाँ तेज़ी से पानी आने के कारण जमीन ढह गई और सड़क बह गई| पेड़ भी टूटे| दूर के रमणीय दृश्यों में ये धब्बे भी दिखाई दे रहे हैं...
५ नवम्बर की सुबह| सभी लोग दूसरे गाँव जाने के बारे में बात कर रहे हैं| पता चला कि दोपहर तक का समय है| तब सत्गड के बिल्कुल पास होनेवाले ध्वज मन्दिर की तरफ जाने का निर्णय लिया| अत्यधिक रमणीय यह ट्रेक है| पहले किया था| इसी पहाड़ी पर ध्वज मन्दिर है| यहाँ मन्दिर को बहुत पवित्र माना जाता है, इसलिए ठण्ड में इच्छा न होते हुए भी नहाना पड़ा| इस ट्रेक की पगडण्डी बिल्कुल सुनसान जंगल से गुजरती है| पूरा बीहड़ वन| इसलिए इक्के- दुक्के को जाने नही देते हैं| पगडण्डी वैसे आसान ही है, कठीन जरा भी नही| लेकीन ठीक पगडण्डी समझने के लिए तो मांझी का साथ चाहिए ही| इसी कारण इतने दिन यहाँ जाना नही हुआ था| लेकीन आज वह अवसर आ गया| मेरे साथ १० साल का आदित्य आने के लिए तैयार हुआ| वह कई बार यहाँ जा चुका है, पूरी राह जानता है| उसके साथ उसके परिवारवालों ने पूजा का सामान, हार- अगरबत्ती और वहाँ ठहरनेवाले साधु बाबा के लिए भोजन भी दिया| और हम निकल गए!
यह लगभग तीन किलोमीटर की चढाई का ट्रेक है| नए ट्रेकर्स के लिए थोड़ा थकानेवाला और शायद कठिन होगा| लेकीन मुझे जरा भी थकानेवाला नही लगा| कठिन भी नही लगा| बीहड़ देवदार वन में से पगडण्डी उपर चढती जाती है| लगभग १९०० मीटर पर स्थित सत्गड गाँव के उपरी हिस्से से यह पगडण्डी शुरू हो कर २४५० मीटर ऊँचाई के ध्वज मन्दिर तक जाती है| काफी चौड़ी पगडण्डी है और आसपास पेड़ है| इसलिए खाई का एक्स्पोजर नही है| पगडण्डी पर अच्छे पत्थर लगे हैं, इसलिए भरी दोपहरी में कहीं कहीं ओस का गिलापन होने पर भी पैर नही फिसल रहे हैं| बीच बीच में विश्राम स्थान भी है| लेकीन इन सबसे अधिक यहाँ शेर का डर है| क्यों कि हाल ही के वर्षों में यहाँ बाघ का आना- जाना बढ़ा है| कुछ दूरी तक घास ढोनेवाले लोग आते- जाते हैं| उसके बाद पगडण्डी सीधा शिखर की तरफ जाती है| हम दोनों को मन्दिर पहुँचने तक कोई भी राहगीर नही मिला|
जैसी पगडण्डी उपर उठती गई, दूर के नजारे उभरने लगे| २०१७ में आया था, तब आकाश इतना स्पष्ट नही दिखाई दे रहा था| इसलिए दूर के हिम शिखर ठीक से नही दिखे थे| लेकीन अभी वे अत्यधिक सुन्दर दिखाई दे रहे हैं| अवाक् करनेवाला अनुभव! उसके साथ वृक्षों का घना जंगल और भरी दोपहरी में ठण्ड और अन्धेरा! बीच में अचानक कुछ आवाज आयी| एक सेकैंड के लिए शेर का डर लगा| लेकीन वह पंछी था| फोटो खींचते खींचते आराम से सवा घण्टे में मन्दिर के पास पहुँच गए| यहाँ तीन मन्दिर हैं| एक गुफा भी है| वहाँ भी गए| यहाँ रहनेवाले साधु बाबा दिखाई नही दिए| कुछ अन्य लोग दिखे| लगभग सौ स्टेप्स को चढ कर सबसे उपर के मन्दिर में पहुँचे| यहाँ बड़ी घण्टा बजायी| वह सत्गड़ में भी सुनाई देती है| अद्भुत दृश्य! एक तरफ नजरों में न समेटनेवाली हिमशिखर की माला! एक दृष्टिक्षेप में न समानेवाली पर्वतों की माला! नीचे सत्गड और बाकी गाँव| दूर पतली रेखाओं जैसे तिरछे रास्ते और हिमशिखर! विहंगम! और कई जगह पर लैंडस्लाईड के भी निशान| बहुत बड़ा प्रदेश दिखा दे रहा है! और यहाँ मोबाईल ने नेपाल का नेटवर्क पकड़ा| क्यों कि यहाँ से नेपाल सीमा पास ही है| कुछ मिनट तक ध्यान किया और वापस मूड़े| नीचे एक छोटा मन्दिर है| आदित्य ने मुझे बताया कि उसे इस मन्दिर में डर लगता है| क्यों कि मन्दिर से छत की तरफ देखने पर छत बहुत ऊँचा लगता है और बाहर से तो वह छोटा लगता है! और ऐसा लग भी रहा है!
उतरते समय तेज़ी से उतरे| एक- दो जगह पर पैर फिसलने की सम्भावना थी, वहाँ सजगता से उतरे| अद्भुत दृश्य लगातार रूकने के लिए मजबूर कर रहे थे| उन्हे मन में भर लिया| दोपहर ही घर पहुँच गए| मन्दिर में घूमना और आदित्य की पूजा में ही अधिक समय गया| चलना तो दो घण्टों के भीतर पूरा हुआ| अत्यधिक रमणीय यह ट्रेक है! लेकीन नीचे खेतों के पास आने तक मन में शेर की दहशत थी! चलने से मिली गर्मी निकल जाने पर फिर ठण्ड महसूस होने लगी| अच्छे से धूप लेता रहा| बाद में दूसरे गाँव जाने के लिए सब निकले| बस्तड़ी गाँव २०१६ में एक भूस्खलन की चपेट में उद्ध्वस्त हुआ था| गाँव पर सचमुच का पहाड़ टूट पड़ा था| हमारे भी कई रिश्तेदार उसमें थे| बचे हुए अब पास ही के शिंगाली गाँव में रहते हैं| पिथौरागढ़- कनालीछीना- ओगला ऐसी सड़क जाती है| ओगला में होटल में चाय ले रहे थे, तो पास ही कुमाऊँ रेजिमेंट के जवान भी दिखे! शाम की धूप में हिमशिखर केसरिया रंग के दिखाई दे रहे हैं! शिंगाली पहुँचने तक अन्धेरा हो गया| यहाँ भी मुझे कुछ दूरी चल के जाना था, लेकीन अन्धेरा होने के कारण रोका गया| वाकई बिल्कुल अन्दर से पहाड़ देखने का मौका मिल रहा है| यहाँ के जीवन के कैनव्हास के अनगिनत रंग दिखाई दे रहे हैं|
अगला भाग: हिमालय की गोद में... (कुमाऊँ में रोमांचक भ्रमण) ११: उद्ध्वस्त बस्तड़ी गाँव के पास ट्रेक
मेरे ध्यान, हिमालय भ्रमंती, साईकिलिंग, ट्रेकिंग, रनिंग और अन्य विषयों के लेख यहाँ उपलब्ध: www.niranjan-vichar.blogspot.com फिटनेस, ध्यान, आकाश दर्शन आदि गतिविधियों के अपडेटस जानना चाहते हैं तो आपका नाम मुझे 09422108376 पर भेज सकते हैं| धन्यवाद|
No comments:
Post a Comment
आपने ब्लॉग पढा, इसके लिए बहुत धन्यवाद! अब इसे अपने तक ही सीमित मत रखिए! आपकी टिप्पणि मेरे लिए महत्त्वपूर्ण है!