Saturday, September 17, 2022

अदू का आंठवा जन्मदिन: आनंद यात्रा के आंठ वर्ष!

 
१७ सितम्बर २०२२

✪ "ओह! मै कितनी क्युट थी!"
✪ वो छोटा बेबी कहाँ गया! ए वक़्त रूक जा, थम जा ठहर जा वापस जरा दौड़ पीछे!
✪ उत्तराखण्ड में लिया आनन्द और दिल्ली से वापसी की यात्रा
✪ मै दुनिया की सबसे लकी लड़की हूँ!
✪ स्कूल जाते समय स्वागत करनेवाले फूल!
✪ ना शेरवा का डर, ना बाघवा का डर, डर त डर टिपटिपवा का डर!
✪ ढेर सारी मौज और मस्ती

प्रिय अदू, यह तुम्हारा आंठवा जन्मदिन!! अदू, अब तुम सचमुच आंठ वर्ष की हो गई हो! हमारी पीढि की दृष्टि में कहें, तो कुछ कुछ होता है की‌ छोटी अंजली जितनी तुम बड़ी हुई हो! तुम्हारा एक फोटो भी था, बिल्कुल उसके जैसा!! हर साल की अनगिनत यादें हैं| लेकीन अब ये आंठ साल बहुत महसूस हो रहे हैं| और रह रह कर उस छोटे से बेबी की- छोटी अदू की याद आ रही है- वह अदू जो रैंगते रैंगते एक कमरे से दूसरे कमरे में‌ जाती थी| जो मिठी किलकारी मारती थी| उसे उठा लेना बहुत आसान भी था! उसे उठाने पर वो मुझे ठीक कन्धे पर ही कांटती थी! किलकारी मार कर हंसती थी! मेरे साथ बहुत खेलती थी और हाँ! वो बेबी दोपहर में सोता भी था! कभी कभी तो मेरे कन्धे पर ही सो जाता था! लगभग पीछले वर्ष तक तुम छोटे बच्चे जैसे रैंगते हुए कमरे में आती थी! तुम्हे उठाना आसान था| अब तो तुम्हे लगभग उठा ही नही पाता हूँ| अब तो तुम मुझे धकेल सकती हो, गिरा भी सकती हो! इतनी बड़ी हुई हो!

और अदू, एक बार जब मैने लैपटॉप पर तुम्हे तुम्हारे बचपन के फोटो दिखाए थे, तो तुम्हे कितनी ख़ुशी हुई थी! तुमने तुरन्त कहा था, ओह निनू, मै इतनी क्युट थी! रह रह कर उसे छोटे से बच्चे की याद आती है| उसकी, जिसने मुझे कहानियाँ कहना सीखाया, खेलना सीखाया, तरह तरह के आवाज सीखाए| वो छोटी अदू जो इतनी मिठी थी कि सिर्फ मेरे शर्ट के बटन से खुश होती थी! उड़ते हुए पंछी को देख कर खुशी से भर जाती थी! उस छोटी अदू को मै बहुत मिस करता हूँ| अब भी तुम उतनी ही मिठी हो| लेकीन उस बचपन की बात और थी| उस समय का तुम्हारा खुशी‌ से झूमना- चिल्लाना! ख़ुश होने पर तुम जोर से हसती भी थी और जब रोती थी, तो वो तुम्हारा ध्यान होता था!

रूकना जीवन का स्वभाव ही नही है! जो है, वो आगे जानेवाला है| जो अब है, वह अवस्था बदलनेवाली है| गति यही प्रकृति का नियम है! इसलिए प्रकृति तुम्हे ऐसी छोटी नही‌ रखेगी|‌ लेकीन फिर भी‌ मन में तुम्हारी बचपन की यादों को संजोता रहता हूँ, देखता रहता हूँ| तुम्हारे साथ की हुई मस्ती, तरह तरह के आवाज और तुम्हारा मैने खाया हुआ जंगल और चोटी! और हां, याद रखना, वह चोटी मेरी ही है, बस मैने सम्हालने के लिए तुम्हे दी है! तुमने लिए हुए तरह तरह के नाम- टमडी, टमकडी, ब्याऊ, पाबई ऐसे नाम और मुझे दिए हुए टोमड्या, ब्याऊ, निनू ऐसे नाम! और तुमने मुझे दिया हुआ और इस वक्त ट्रेंडिंग में होनेवाला नाम- टॉइंड्या! इन्हे लिखना भी कितना मज़ेदार है! यह सब देखते हुए बार बार मन कहता है- ए वक़्त रूक जा, थम जा ठहर जा, वापस जरा दौड़ पीछे! मुझे सन्तोष इस बात का है कि हर साल की ऐसी अनगिनत मिठीं यादे मैने तुम्हारे हर वर्ष के पत्र में लिखी हैं! और निश्चित ही मेरी फोटोग्राफिक स्मृति में भी वे सदैव जीवित हैं| और हम इतना आनन्द लेते हैं तो उसे आगे भी जारी रखनेवाले ही हैं!

उत्तराखण्ड में लिया आनन्द और दिल्ली से वापसी की यात्रा

पीछले साल हमने बहुत मस्ती की और आनन्द लिया| पीछले जन्म दिन पर स्कूल बन्द होने के कारण तुम नाराज थी| तुम्हारी नई स्कूल- केन्द्रीय विद्यालय शुरू तो हुई थी| लेकीन ऑनलाईन स्कूल तुम्हे पसन्द नही थी| कार्टून देखते हुए और आर्टस- क्राफ्टस करते हुए तुम खुद का मनोरंजन करती थी| कभी कभी तुम्हारे दोस्त- भाई बहन को व्हॉईस मॅसेज करती थी| हम मिल कर भी कभी कहानी कहते थे| अक्तूबर में लेकीन बड़े मज़ेदार दिन बिते| हम १५ दिनों के लिए उत्तराखण्ड को- पिथौरागढ़ को गए थे| और तुम तो हमारे लौटने के बाद भी बर्फ देखने के लिए वहीं‌ रही थी! और वहाँ होते हुए भी जब हम गूँजी को गए थे, तब भी कुछ दिन हमसे दूर रही| बुंगाछीना, सत्गड़ और बस्तड़ी में बिताए तुम्हारे दिन लेकीन बहुत अनुठे थे! हिमालय के गाँव और खेत, बहुत सारे भाई- बहन- मौसी- नाना- नानी और कल्लू- भोटू जैसे बड़े "भ्याऊँ" और ढेरों बकरिया, पेड़ और पहाड़! ऐसे माहौल का आनन्द तुमने लिया था! मुझे याद है सत्गड में घर के छत पर पहली बार तुमने क्रिकेट ठीक से खेला था! और बाद में हमने बुंगाछीना में एक छोटा ट्रेक भी किया था! उसमें भी तुम्हे थोड़ी दूरी तक उठाना पड़ा था! और सत्गड़ में चढाई की पगडण्डी पर भी तुम चली थी और एक बार उस चढाई पर मै तुम्हे उठा भी सका था! ऐसे हमने बहुत मज़े लिए थे! और तुमने तो हमसे भी ज्यादा आनन्द लूटा, क्यों कि आगे भी एक महिने तक तुम रूकी थी| और तुम समझ रही थी कि कितनी‌ अनुठी चीज़ों का आनन्द तुम ले रही हो! तुम्हे आनन्द देनेवाली बहुत सी चीज़ें थी, फिर भी‌ तुम इतनी छोटी थी कि तुम्हे रोना आना स्वाभाविक था| फिर भी तुम ज्यादा रोयी नही| जब हम तुम्हे विदा कह कर निकले और तुमने हमें बाय किया था| उसके बाद तुम्हारा रोना टूट पड़ा था| अत्यधिक ठण्डे मौसम में भी तुम वहाँ अच्छे से रही और बाद में ओमीक्रॉन के चलते जब तुम्हे वापस लाने का निर्णय किया, तब भी तुम रोयी! बर्फ का गिरना शुरू होने के कुछ दिन पहले ही तुम्हे लाना पड़ा था|

तुम्हे ले कर की हुई दिल्ली से परभणी की यात्रा! तुम तो मौसी के साथ पिथौरागढ़- दिल्ली ऐसी थकानभरी यात्रा कर के आयी थी| तुम्हे बहुत नीन्द आ रही थी और मै जैसे तैसे तुम्हे सोने से रोक कर स्टेशन पर पहुँचा| तब मैने जाना कि समस्त महिलाओं को बच्चों को ले कर यात्रा करना कितना कठिन होता होगा! निजामुद्दीन के बाहर के ही होटल से स्टेशन के प्लॅटफॉर्म तक पहुँचना मेरे लिए एक मुश्कील अभियान ही था! लेकीन तुमने भी तुम्हारी एक बैग उठायी और मेरा हाथ थामे चलती रही| सीट पर पहुँचने के बाद तुरन्त सो भी गई! बाद में तुम्हारे हिन्दी और मराठी बोलने से और खेल- कुद से सभी सहयात्रियों को तुमने खूब हंसाया! लगातार खेलती रही, सभी का मन बहलाती रही!  पूरी यात्रा अच्छी बिती, लेकीन परभणी में प्लैटफॉर्म पर ट्रेन आते आते तुम्हे उल्टी हुई! लेकीन फिर भी वहाँ भी तुमने शिकायत नही की|

तुम शान्त मन की हो| भीतर से बहुत निश्चिन्त हो| एक गहरी समझ तुम्हारे पास है| इस कारण तुम्हारी बहुत सी चीज़ें तुम खुद ही करती हो और बहुत अच्छी भी करती हो| तुम्हारा चीज़ों को रखना इतना अच्छा होता है कि मेरी कोई चीज़ कहाँ है, यह मै तुम्हे ही पूछता हूँ और तुम भी वह बता देती हो! दिल्ली से लौटने के बाद कुछ दिन हम परभणी में रहे| वहाँ तुम अनन्या- आजू के साथ खेलती थी| परभणी का घर हम छोड़ रहे थे, इसलिए तुम्हे दुख हो रहा था| लेकीन वहाँ‌ भी तुम्हारी शिकायत नही थी| जो अभी सामने है, उसमें से ख़ुश रहने का विकल्प तुम बराबर ढूँढ लेती हो| परभणी का घर छोड़ना तुम्हारे मन में जरूर था|‌ क्यों कि बहुत बाद में एक बार तुमने दादाजी को बोला कि क्यों दादाजी, आपने परभणी का घर क्यों छोड़ दिया? तब तुमने उन्हे सजा के तौर पर रोज एक कहानी कहने के लिए कहा था! हम सब परभणी से एक छोटी बस से पुणे आ रहे थे, तब अंताक्षरी में तुम्हे पता होनेवाले गाने सुन कर सभी चौकन्ने रह गएं! सभी को लगा कि ये गानें तुम्हे कब पता हुए! (उदा., जैसे साजन का गाना)!

Saturday, September 10, 2022

Solo cycling for mental health awareness


4 states, 1500 kms from Sindhudurg- Goa- Belgavi- Kalburgi- Hyderabad- Warangal- Gadchiroli- Nagpur in 20 days

Hello, namaste. Hope you are all fine. Mental health is very significant issue nowadays. Many times we see people committing suicide from very petty reasons (Actually, any so called severe reason should always be feeble to commit such a thing). After corona times and with economic slow down and all, mental health, stress management and positive mental health are key issues. So this issue is for all of us. Not only mental health sufferers, but all of us. From special people (such as people with autism, MR or Down’s syndrome) to even young students, everyone is important. This cycle expedition will raise this issue before the broader society. Awareness about mental sickness, mental problems and problems of differently abled needs to be there so that proper help can be given at the earliest possible time. This cycling expedition will create awareness about this by having dialogue with people in general- farmers, youth, students and all. Everyone is a party to this cause. Cyclist doing this expedition will also interact with social organizations, groups and people and also will understand local issues. He will use an ordinary- single- gear SLR cycle for this expedition. The message is that everybody can do such things with their resources, once they know how to tap their potential.

मानसिक आरोग्य जागरूकतेसाठी सायकलिंग

मानसिक भलायकेची जागृताय करपा खातीर सायकल चलोवप

ಮಾನಸಿಕ ಆರೋಗ್ಯ ಜಾಗೃತಿಗಾಗಿ ಸೈಕ್ಲಿಂಗ್
మానసిక ఆరోగ్య అవగాహన కోసం సైక్లింగ్


Why this route?



Because it is important to reach out to those who are not mainstream. Initially he thought to start with Mumbai based NGOs. But there is some awareness in cities in Maharashtra. So why not take the most remote/ backward region, And also the message is to look beyond our comfort zone, to go beyond our limitations and being sensitive towards unknown. So it will start in Kudal in Konkan and then from Goa it will continue via Karnataka, Telangana and again remote part of Maharashtra.

If you know any organization working in this route or if any of your friends are on this route-  Kudal- Goa- Belgavi- Bagalkote- Kolhar- Kalburgi- Hyderabad- Warangal- Gadchiroli- Nagpur, you can share this message with them. The schedule of this expedition is from 24th September to 14th October.

About the cyclist

Niranjan Welankar, 37 has completed several solo cycling expeditions including those in Ladakh and Spiti. Also he has cycled in Maharashtra for HIV and health awareness and also for promotion of Yoga and meditation. His blog- www.niranjan-vichar.blogspot.com 09422108376 niranjanwelankar@gmail.com

Friday, September 2, 2022

India's biggest cover up: अनुज धर ह्यांच्या २० वर्षांच्या नेताजींच्या रहस्याच्या अभ्यासाचा निष्कर्ष

सर्वांना नमस्कार. नेताजी सुभाषचंद्र बोस! लहानपणापासून त्यांच्याबद्दल अतिशय आत्मीयता वाटते. "महानायक" आणि "नेताजी" अशी मोठी पुस्तकं व इतर अनेक पुस्तकांमधून त्यांचा परिचय झाला. नव्हे त्यांच्या आयुष्यातला प्रत्येक प्रसंग, प्रत्येक घटना मनावर बिंबली होती. लहानपणापासून त्यांचं वेगळेपण, त्यांचे विचार, त्यांची बंडखोर वृत्ती, शाळा- महाविद्यालयातील पराक्रम, नंतर ब्रिटनमधील शिक्षण, गांधीजींना विरोध, दुस-या महायुद्धामध्ये केलेला अभूतपूर्व प्रवास, परकीय देशांमध्ये जपलेला स्वाभिमान, देश प्रेम, पुन: एकदा रोमांचक पाणबुडी प्रवास, पूर्व आशियातील रोमहर्षक महाभारत आणि... असे सर्व प्रसंग मनावर कोरले गेले होते. पुढे २००५ मध्ये आलेला 'नेताजी द फरगॉटन हिरो' हा चित्रपटही हा अनुभव परत देऊन गेला. नेताजींचा शेवट नक्की काय झाला, ह्याबद्दल मनामध्ये नेहमी प्रश्न होता. आता ह्या प्रश्नाचं सुस्पष्ट असं उत्तर नाही, पण एक निश्चित दिशा मिळते आहे असं वाटतंय. निमित्त झालं नेताजींच्या रहस्यांवर गेल्या २० वर्षांपासून अभ्यास करणा-या अनुज धर ह्यांच्या विविध पोडकास्टसचं आणि 'India's biggest cover up' ह्या त्यांच्या पुस्तकाचं. त्यांचे दोन- तीन तासांचे पोडकास्टस अक्षरश: न थांबता ऐकले आणि मग त्यांचं पुस्तकही सलग वाचून काढलं. नंतर मुखर्जी आयोगाच्या कामकाजावर आधारित असलेला गुमनामी चित्रपटही बघितला. हे ऐकणं- बघणं आणि वाचणंही थरारक होतं. आणि त्यानिमित्ताने नेताजींबद्दल खूप काही कळालं. निश्चित उत्तरांची दिशा कळाली. भारतीय राजकारणाची एक नवीन आणि खोलवर ओळख झाली. हा छोटा लेख म्हणजे हे पोडकास्टस, हे पुस्तक आणि ह्या विषयावर समोर आलेल्या सद्यस्थितीला थोडक्यात मांडण्याचा प्रयत्न.

(शब्द संख्या- २६३९ वाचन अवधी १० मिनिटे. हा लेख इंग्लिशमध्ये इथे वाचता येईल)

✈ नेताजींना जाऊन तर इतकी वर्षं झाली. आता त्याचं काय? "मेरे पिताजी हैं, उनका सच मुझे जानना है|"
✈ २० वर्षांचे परिश्रम आणि अथक अभ्यास- अनुज धर!!
✈ १९४५ नंतर रशियामध्ये नेताजींच्या उपस्थितीची साक्ष देणारे अनेक पुरावे
✈ आपला भारत देश असा- इतका उदासीन, इतका अंधारात आणि इतका भ्रष्ट?
✈ देशप्रेम आणि स्वाभिमानापुढे सगळ्या अडथळ्यांची शरणागती
✈ Your dead man- गुमनामी बाबा!
✈ नेताजींच्या केवळ १% हिंमत, साहस, शौर्य, बुद्धीमत्ता आपल्याला कशी मिळेल?
✈ जोदी तोर डाक सुने केउ ना आसे तोबे एकला चोलो रे एकला चोलो एकला चोलो रे

नेताजी! स्वातंत्र्याचे एक शिल्पकार! डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर आणि ब्रिटीश पंतप्रधान एटली ह्यांनी म्हंटलंय की, भारताला स्वातंत्र्य मिळालं‌ त्यामागे मुख्य कारण आझाद हिंद सेनेमुळे प्रेरित झालेली व ब्रिटीशांची चाकरी सोडून देण्यास सज्ज झालेली भारतीय सेना हे होतं. आता भारतीय सैनिकांचा भरवसा आपण धरू शकत नाही, ही खात्री ब्रिटीशांना झाली. आणि त्यातून देश सोडून जाण्याची भुमिका ब्रिटीशांना घ्यावी लागली. नेताजींनी वस्तुत: अशा शेकडो गोष्टी केल्या आहेत, ज्यापैकी एक गोष्टही कोणी करू शकला तरी तो स्वत:ला धन्य समजेल. मग ते तत्कालीन आयसीएस उत्तीर्ण होणं असेल, गांधीजींना थेट विरोध करणं असेल, मणिपूरपासून पेशावरपर्यंतच्या लोकांसोबत नातं जोडणं असेल, उद्दाम विदेशी सत्तेच्या गुहेमध्येही स्वाभिमान आणि देशप्रेमाने कार्यरत राहणं असेल! किंवा अतिशय भयंकर असा अंधारात उडी मारून केवळ स्वत:च्या हिमतीवर केलेला कोलकाता- काबूल- मॉस्को- जर्मनी असा प्रवास असेल किंवा १% पेक्षाही कमी शाश्वती असलेला अर्ध्या जगाला समुद्राखालून प्रदक्षिणा घालून केलेला पाणबुडीचा प्रवास असेल! किंवा पूर्व आशियामध्ये थायलंड- म्यानमार ते मणिपूर- इंफाळ परिसरामध्ये दिलेली अफाट झुंज- संपूर्ण भारतातील विविधतेचं केलेलं नेतृत्व! तेही‌ असं की, शेकडो सैनिकांनी युद्धात आहुती द्यावी आणि लाखो भारतीयांनी त्यांना सर्वस्व द्यावं! ह्या शेकडो गोष्टींपैकी जो एकही करू शकत असेल तो स्वत:ला धन्य समजेल. असे नेताजी! देशगौरव नेताजी! आत्ताच्या लेखाचा विषय त्यांच्या रहस्यावर अलीकडे पडलेला प्रकाश हा आहे, त्यामुळे त्यासंदर्भात बोलतो.