Surrender to Virender: वीरेंदर सेहवाग
जो लोग क्रिकेट जानते है; उन्हे वीरेंदर सेहवाग के बारे में कुछ भी बताने की आवश्यकता नही है । नाम ही काफी है । आधुनिक क्रिकेट खेलनेवालों मे दो बार 300 से अधिक रन्स करनेवाला तथा तीन बार 290 की दहलीज तक पहुंचने वाला; शीघ्र गति से सभी प्रकार के क्रिकेट में बल्लेबाजी करनेवाला; "चौका"नेवाली कन्सिस्टन्सी से सभी परिस्थितियों में रन्स करनेवाला और आज सबसे ज्यादा आकर्षक शैली के लिए जाने जाने वाला यह एकमेव बल्लेबाज है । कहना पडता है कि वीरेंदर सेहवाग बिलकुल मूल स्वभाव का (Indigenous) बल्लेबाज है । जैसे कहते है; महाभारत में कृष्ण ने अर्जुन को कहा था 'यह सूर्य है और यह जयद्रथ;' उस प्रकार सेहवाग हमेशा यह बल्ला; यह गेंद और यह सीमारेखा; यही ठान के रन्स ठोंकता है । वीरू; उसे सार्थ रूप से कहते है ।
सेहवाग की महानता इतनीही नही है कि वह श्रेष्ठ बल्लेबाज तथा खिलाडियों की श्रेणि में आता है । सेहवाग एक सोंच है । सेहवाग एक दृष्टिकोन है । कैसी भी परिस्थिती हो; उसकी सोंच स्थिर रहती है । उसके मन को दबाव दबा नही सकता; उसके मन को uncluttered अर्थात् खुला; किसी भी तरह के पूर्वग्रह न रखनेवाला; अपनी शैली से ही निरंतर खेलनेवाला इस तरह से जाना जाता है । यह निश्चित रूपसे ही एक महान गुण है; जिसकी सराहना ही नही; अनुकरण किया जाना चाहिए ।
सेहवाग एक प्रतिक है जो सिस्टम के विरुद्ध जानेवालों का प्रतिनिधि है । कहते है; सेहवाग को पैर हिलाना नही आता; उसका फूटवर्क ठीक नही है; वो किताबी तरिके से नही खेल सकता । मानते है; पर उससे फर्क क्या पडता है । यहाँ पर एक अलग मुद्दा आता है । हम किनको ज्यादा महत्त्व देंगे ? जो किताबी तरिके से खेलते है; तंत्रशुद्ध तरिके से; निर्दोष तरिके से खेलते है उनको; या जो सबसे अधिक प्रभाव के साथ खेलते है; जो अधिक परिणाम देते है और सकारात्मक सोंच दिखाते है ? टेक्निक सेहवाग के पास भी है; किताबी तरिके से वह भी खेलता है; पर उसका खेलना सिर्फ उस ढाँचे में नही बैठता । उससे अलग है । जाहिर है कि कई परिस्थितियों मे उनका खेल खतरे से भरा होता है । अनिश्चितताओं के मध्य चलता है । पर उनके इसी खेल के कारण भारत को विशेष विजय हासिल हुए है ।
सेहवाग का महत्त्व यह भी है कि वह खुद की सोंच से चलनेवालों का उदाहरण है । परिस्थिती कितनी भी विरान हो; प्रतिकूल हो; उसे फर्क नही पडता है और नाही उसके खेल पर फर्क पडता है । आज कल जमाना स्टिरिओटायपिंग का है । कहते है ना; आज सफल होना है; तो ये ये करना पडेगा; डॉक्टर, इंजिनिअर, एम.बी.ए. बनना पडेगा; ये ये एक्साम्स देने पडेंगे; ये ये क्लासेस लगाने पडेंगे। इस तरह की अवधारणाएँ समाज मानसिकता में व्याप्त है । पर वीरू इस मानसिकता से हमें बाहर लाता है । कुछ अलग; खुद के मन का सुनते हुए करने की प्रेरणा देता है ।
जैसे क्रिकेट में सेहवाग है; उस तरह उसका रोल करनेवाले की हर क्षेत्र में आवश्यकता है । सब लोग सिस्टम के साथ जाने लगेंगे; तो सिस्टम बिगड सकता है; और उस तरह जीने में मजा नही । जो सभी कर रहे है; हमेशा जैसे होता है; उस प्रकार से न चल कर कुछ अलग करनें मे; खुद कुछ प्रयोग करने में; खुद की खोज करनें में अधिक संतोष मिलता है और सेहवाग इसका सर्वाधिक प्रभावशाली उदाहरण है । आज जो मूल्य आदर्श माने जाते है- स्वाधीनता; खुद की सोच से चलना; दवाब के आगे न झुकना; किसी भी परिस्थिती में अपने दायित्व पर डटे रहना; संघर्ष करना; सातत्यपूर्ण रूप से कार्यरत रहना; विशेष प्रकार से परिणाम लाना; दीर्घ समय तक जुझना आदि मूल्य एवं आदर्श सेहवाग में ठूस ठूस के भरे है । इसी लिए हमें अपने अपने क्षेत्र में वीरू बनना चाहिए; वीरता उसी में समायी है ।
Very fine piece... though i rarely follow cricket, i liked this one...especially, the last para conveys something very important to all of us...about the right attitude...
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