.
. . ८
अगस्त!
'मैत्री'
तथा
'अर्पण'
संस्थाओं
की इस टीम का यह अंतिम दिन है|
सहायता
कार्य आगे भी जारी रहेगा|
पर
यह चरण अब समाप्त होगा|
वैसे
आगे की योजना भी तैयार हो रही
है|
महिला
डॉक्टरों की टीम को लाने का
प्रयास किया जा रहा है|
आगे
अब कई अन्य पहलूओं पर काम
करना है|
अब
आपत्ति प्रबन्धन के आरम्भिक
चरण समाप्त होने पर दीर्घकालीन
कार्य पर अधिक जोर दिया जाएगा|
और
अन्य भी कुछ क्षेत्रों में
असेसमेंट किया जा सकता है|
.
. . जैसे
ही कार्य का अंतिम दिन आया
और वह भी सबसे बड़ा दिन;
तो
हर एक को हल्के तनाव का अनुभव
होने लगा|
आखिर
कर इतने बड़े पैमाने पर सामान
को गाँवों में ले जा कर बाँटना
आसान काम तो नही होता है|
और
सड़क भी चिंता का ही विषय है|
पर
अब पूरी टीम इकठ्ठा हो गई
है|अर्पण
के भी सभी सदस्य आ गए हैं|
अन्य
भी साथी साथ है|
सामान
उठाने के लिए कुछ लोग भी ले
लिए गए हैं|
इससे
इतनी परेशानी तो नही आनी
चाहिए|
हाँ,
कुछ
ग्रामीण जरूर उत्तेजित हैं;
भीड
भी करेंगे|
पर
ऐसी स्थिति को सम्हालने का
अनुभव भी तो टीम के पास है!
सुबह
बहुत जल्दी निकले|
स्टोअर
पर सब इन्तजाम किया हुआ है|
ऐसे
स्थिति में अक्सर जो होता है,
वह
भी हुआ|
कुछ
लोग अधिक चिंतित होते हैं;
कुछ
पीछे रह जाते हैं|
कहिं
कुछ क्षणिक तनाव होता है|
यह
सामान्य बातें हैं और किसी
भी टीम में देखी जा सकती हैं|
अचानक
से तेज़ बारीश होने लगी|रास्ते
पर भी कोहरा छा गया|लेकिन
अब रूकने का समय नही है|
हालांकि
जौलजिबी पूल पर कुछ समय रुकना
पड़ा|
क्योंकि
आगे एक जगह रास्ता बन्द है,
ऐसी
सूचना मिली|
रात
में तेज बरसात हुईं है|
जरूर
पहाड़ से आनेवाले झरनों का बहाव
बढा होगा|
इसी
वजह से आगे रास्ते पर तेज पानी
गुजर रहा है|
थोडी
देर रुकने के बाद आगे निकले|
अब
रास्ता बिलकुल जाना पहचाना
हुआ है|
फिर
भी लग रहा है कि नदी में अधिक
पानी है|
उपर
पहाड़ में तेज बरसात हुईं है|
बीच
बीच में रुकना पड़ रहा है|
बरम
के पहले एक जगह पानी का काफी
बड़ा प्रपात रास्ते पर दिखाई
पड़ा|
इतना
तेज पानी है कि टेम्पो उसमें
से सामान के साथ नही जा पा रहे
हैं|
जीप
बड़ी मुश्किल से उसमें से पार
हो गईं|
हालां
कि बाकी लोग चल कर उसके पास ही
बनी एक छोटीसी पैदल पुलिया
से पार हो गए|
लेकिन
जीप को पार होते देख कर भी डर
लग रहा था|उसके
बाद वहाँ के अधिकारियों ने
कुछ समय के लिए वाहनों को रोक
दिया|
जे.सी.बी.
रास्ते
के पत्थर हटा कर पानी के बहाव
का मार्ग साफ कर रहा है|
फिर
भी काफी समय लगेगा|
एक
साहसी मोटरसाईकिलवाले ने उस
प्रपात में गाड़ी डालने का
जोखिम उठाया|
आधे
रास्ते तक आ कर उसे लौट जाना
पड़ा|
पानी
का बहाव वाकई इतना तेज है कि
वह बड़े बड़े पत्थरों को भी उठा
ले जा रहा है|जे.सी.बी.
चलानेवाले
का धैर्य तारीफ़ के क़ाबिल है!
वहीं
काफी देर तक रुकना पड़ा|
काम
चलता रहा;
पानी
का बहाव कम होता नजर नही आ रहा
है|
लेकिन
जे.सी.बी.
चलानेवालेने
उस बहाव को चौडा किया;
जिससे
उसका बल थोड़ा फैल गया|
अब
शायद वह वाहनों को इतना फैंक
नही सकेगा|
फिर
एक एक कर वाहन शुरू हुए|आखिर
कर हमारे टेम्पो और मिनि ट्रक
भी पार आ गए .
. .
अब
तक कालिका पुलिया के पास हुड़की,
घरूड़ी
और मनकोट गाँवों के लोग इकठ्ठा
हुए हैं|
और
भीड अक्सर अनियंत्रित होती
है|
वहाँ
पहुँचने पर एक स्थान पर टेम्पो
और ट्रक रोक कर पास ही दूसरे
स्थान पर टेबल लगाया|
वहाँ
पर लोग अपने कूपन दिखाने लगे|
तब
तक टेम्पो और ट्रक में से हर
परिवार के लिए पॅकेट बनाना
चालू हुआ|
जल्द
ही यह व्यवस्था बन गईं|एक
के बाद एक परिवार आने लगे|
आरम्भिक
हड़बड़ाहट के पश्चात् सब ठीक
होने लगा|
एक
चिंता यह है,
कि
कुछ और सामग्री का एक टेम्पो
पीछे है,
उसे
आना अभी बाकी है|
और
रास्ते में रुकावट बढ सकती
है|
लेकिन
अभी सामग्री पर्याप्त है|
इसलिए
यहाँ पर दिक्कत नही आएगी|
एक
बार वितरण कार्य शुरू होने
पर हर एक सदस्य ने अपना अपना
मोर्चा सम्हाल लिया|
कोई
ट्रक में से गठरियां नीचे दे
रहा है;
कोई
टेबल पर कूपन्स देख कर लोगों
को आगे भेज रहा है|
कोई
लोग एक ही बार सामान ले रहे
हैं,
इस
पर ध्यान दिए हुए है|
कोई
भीड को नियंत्रित कर रहा है|
जल्द
ही सामान ले जाने वाले लोग
लौटने लगे|धीरे
धीरे नदी के पार वे पहुँच गए|इस
वितरण कार्य का सबसे कठिन
हिस्सा उस सामान को-
पैतीस
किलो की गठरी को घर तक ले जाना
ही है!
और
उसमें लोग खरे उतर रहे हैं!
दिक्कत
होने के बावजूद वे सामान उठा
रहे हैं|
महिलाएँ
भी इसमें पीछे नही है|
ग्रामीण
आपस में मिल कर उसे ले जा रहे
हैं.
. .
इस
प्रकार वितरण का पहला हिस्सा
पूरा हुआ|
कुछ
लोगों ने समस्या खडी करनी
चाही|
पर
उन्हे समझाया गया|
सुचि
में नाम न होनेवाले गाँव के
वास्तविक ग्रामीणों को भी
सामान बाँटा गया|हर
परिवार को चावल,
सूजी,
शक्कर,
तेल
आदि निर्धारित किया हुआ सामान
दिया गया|
इसके
पहले गाँवों में अर्पण के
सदस्यों की निगरानी में
महिलाओं के लिए सैनिटरी
नैपकिन्स भी दिए गए थे|
यह
सब होते होते दोपहर होने को
आयी|
सभी
परिवार पूरे होने के पश्चात्
वहाँ से लुमती के लिए निकले|
रास्ते
में चामी में भीड़ इकठ्ठा हुयी
है|
उन्हे
बता कर आगे जाने के लिए निकले|
लुमती
के ठीक पहले एक जगह पर रास्ता
बन्द है|
वहाँ
कुछ समय बितने पर निर्णय कर
लिया गया कि अब वितरण यहीं
करना पडेगा|
लोगों
को सन्देस भेजा और वे आने भी
लगे|
यहाँ
भी बी.आर.ओ.
का
बड़ा काम चल रहा है|
पीछले
वितरण काम के जैसे ही यहाँ
व्यवस्था बनते देर नही लगी|
पीछे
से आ रहे सामान की प्रतीक्षा
जरूर है|
लुमती
ग्राम के लोगों को भी काफी
दूरी पैदल चल के आना पड़ा|
और
अब सामान ले कर भी जाना है|
लेकीन
उसके लिए उन्होने तरकीब
निकाली|कुछ
लोग साथ में डोर लाए हैं|
वे
गठरियों को अब कमर या पीठ पर
बांध कर ले जाएंगे|
अपेक्षाकृत
तरिके से काम चलता रहा|स्थानीय
लोग भी सहायता कर रहे हैं.
. .
अब
बस एक गांव बाकी है|वहां
का वितरण होने पर इस चरण का
कार्य पूरा हो जाएगा|
लुमती
का काम पूरा कर चामी आ गए|
भीड
अब अनियंत्रित हो रही है|
लेकिन
सर और अर्पण के सदस्यों ने
लोगों को समझाया|
टेम्पो
और ट्रक गाँव के एक तरफ रख दिए|
बस
आनेवाले दूसरे टेम्पो की
प्रतीक्षा है|
क्यों
कि अब कुछ चीजें खतम हुईं है|
तब
तक चामी का स्टोअर भी फायनल
किया गया|
अब
यहाँ बाँटने पर सामान बाकी
रहा,
तो
उसे इधर ही रखा जा सकता है|
पीछे
रुका हुआ टेम्पो आने पर वापस
टेबल लगा कर एक के बाद एक परिवारों
को कूपन दे कर सामान दिया जाने
लगा|
इसमें
कुछ युवक भी सहायता के लिए आगे
आए|
जैसे
काम पुरा होते गया,
वैसे
सभी के उपर नजर आनेवाला हल्का
सा तनाव भी कम हो गया|
टीम
में काम करने की खास बात यह
है कि हर कोई अपने अपने तरिके
से हाथ बँटाता है|
कोई
लोगों को सामान बान्धने में
सहायता कर रहा है;
कोई
सामान की गिनती कर रहा है;
देख
रहा है कि कुछ समाप्त तो नही
हो रहा|
इस
पूरे काम में दो बातें सबसे
अहम थी|
एक
तो परिवारों की सही सुचि बनाना
और सुचि में जिनका नाम नही है;
पर
जो गाँव के निवासी है:
उनको
परख कर कूपन देना|
दूसरी
बात थी भीड को नियंत्रित करना|
यह
बातें स्वाभाविक रूप से होती
गयी|
इस
काम में साथ आए टेम्पो तथा
ट्रक के चालक;
सामान
उठाने के लिए बुलाए गए लोग आदि
ने भी अच्छा सहयोग दिया|
इस
काम के समय पुलिस को भी रखा
गया था|उन्होने
ने भी सहयोग दिया.
. .
वापस
जाते समय भी रास्ते पर रुकना
पड़ा|
बरम
के पास के जल प्रपात का स्तर
और बहाव अब कम हुआ है|
इसलिए
रुके बिना आगे जा सके|मन
में कई विचार है|
जो
कुछ देखने में आया,
वह
काफी सोचने के लिए मजबूर
करनेवाला है|
इस
चरण का काम तो पूरा हो रहा है;
पर
आगे भी बहुत काम करना पड़ेगा|
सर
ने जैसे कहा है;
कि
लोगों को सामग्री पहुंचाना;
शिविर
आयोजित करना;
दवाईयाँ
बाँटना आदि काम मात्र प्राथमिक
स्तर के हैं|
आवश्यक
है हि;
मगर
पहले चरण के वे काम हैं|इसके
बाद अब पैरवी के स्तर पर;
जल
प्रवाह के संशोधन के स्तर पर
और उपजीविका के स्तर पर भी
बहुत कुछ काम किया जाना चाहिए|
और
इतना ही नही,
मूलत:
हमें
प्रकृति की इस चेतावनी से सीख
लेनी चाहिए|
जीवनशैली
तथा विकास की परिभाषा पर गहराई
से सोचना चाहिए|क्योंकि
प्रकृति को नुकसान पहुंचाने
के लिए हम इकठ्ठे ही तो जिम्मेदार
है|
जगत्
में सब घटनाएं एक दूसरे से
सम्बन्धित हैं|इसलिए
एक स्थान पर भी यदि पर्यावरण
में इतना बड़ा तनाव हो;
तो
उसका अर्थ यही है;
कि
प्रकृति में बड़े पैमाने पर
बदलाव हो रहें है|
इसी
लिए जैसा पहले कहा जा चुका है;
हर
एक को विकास तथा जीवनशैली के
बारे में गहराई से सोचने की
आवश्यकता है|
.
. . आखरी
दिन काफी भावनाप्रधान रहा|
हेल्पिया
में पहुंचने पर सर ने विशेष
प्रकार से सभी का हौसला बढाया|
अर्पण
तथा मैत्री-
सभी
के लिए सभी ने उल्हास के साथ
'थ्री
चिअर्स'
किया|मतभेदों
को भुलाते हुए एक सकारात्मक
सोच के साथ वह कार्य पूरा हुआ|
सर
और अन्य एक मित्र पीछे रुकनेवाले
है|
बाकी
मित्र वापस लौटेंगे|
वाकई
ज़िन्दगी में कुछ दिन ऐसे आते
है;
की
पीछे हमे लगता है कि क्या वे
दिन वास्तविक थे?
या
हमने सपना तो नही देखा?
ये
दिन भी वैसे ही हैं|
इतना
कुछ इतने कम दिनों में देखने
को मिला|जो
किया,
वह
काम वैसे तो साधारण सा हि है|
कोई
विशेष बात नही है|
पर
अक्सर रुग्ण को दवा के साथ
दुवा और साथ होने की भी आवश्यकता
होती है|
हौसला
बढाने की आवश्यकता होती है|
कोई
कुछ भी कहें,
वास्तव
में कोई दुर्बल या असहाय नही
होता है और ना हि कोई बहुत समर्थ
या शक्तिशाली जो कि दूसरे को
मदद दे सकें|
यहां
हर कोई एक सामान्य यात्री है|
इसमें
एक ही बात हो सकती है-
एक
दूसरे का कुछ पल साथ दिया जा
सकता है|
और
कुछ भी नही|
खैर|
२८
जुलाई से ८ अगस्त के इन दिनों
के पहले भी मैत्री ने काफी
कार्य किया|
उसके
बाद भी कार्य बरकरार है|
अब
भी कई पहलूओं पर कार्य हो रहा
है|
केदारनाथ
में समारोह शुरू होने के बाद
भी पुनर्निर्माण का कार्य
समाप्त नही हुआ है|
वरन्
अब गहरा काम शुरू हुआ है|
और
यह एक आह्वान भी है|
आव्हान
इस बात का है कि किस प्रकार
प्रकृति को हानि पहुँचाए बिना
वहाँ मानवी गतिविधियाँ चलायी
जाए|
रहन-
सहन
और उपजीविका चलायी जाए|
इसके
लिए विकल्प ढुंढने चाहिए और
वैकल्पिक विकास नीती के बारे
में भी अत्यधिक सोचना चाहिए.
. .
उन
दिनों की यादें तो कईं है;
पर
लेखनसीमा यहीं पर ठीक है|
वितरण के लिए जा रहा सामान |
वितरण स्थान पर आए हुए ग्रामीण |
यह
युद्ध अभी समाप्त नही हुआ है|
इसके
बारे में आगे जानने के लिए
तथा सहयोग लेने के लिए सम्पर्क
कर सकते है-