१. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: १ हिमालय की गोद में . . .
२. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: २ नदियाँ पहाड झील और झरने जंगल और वादी
३. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोS हिमालय: ३ चलो तुमको लेकर चलें इन फिजाओं में
४. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोS हिमालय: ४ जोशीमठ दर्शन
५. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: ५ अलकनन्दा के साथ बद्रिनाथ की ओर
६. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: ६ औली जाने का असफल प्रयास और तपोबन यात्रा
७. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: ७ हिमालय की आज्ञा ले कर ऋषीकेश की ओर
८. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: ८ ऋषीकेश दर्शन
९. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: ९ ऋषीकेश से प्रस्थान
२२ दिसम्बर को अहमदाबाद से अगली ट्रेन ले ली| यात्रा अब अन्तिम चरण में है| जल्द ही घर पहुँचूँगा| लेकिन जीवन की यात्रा तो अविरत चलती रहती है| जीवन तो चलता ही जाता है| धीरे धीरे यह वर्ष समाप्त होगा| यह वर्ष अनुठा रहा| कह सकता हुँ कि इस वर्ष पहली बार ट्रेकिंग की शुरुआत की| इसी वर्ष महाराष्ट्र के गोरखगड में पहली बार ट्रेकिंग किया और अब हिमालय में| वाकई जो नजारे देखे वे अद्भुत ही थे| जितनी बार हिमालय में गया हुँ उतनी बार अवाक् हुआ हुँ|
जैसे हिमालय के चरणकमल पर बसें गाँवों से आगे बढते हैं, वैसे ही उसका विशाल स्वरूप दृग्गोचर होता है| एक के बाद एक शृंखलाएँ दृश्यमान होती है| कुदरत के करीब जाने पर वहाँ की ताज़गी और शान्ति आल्हादित करती है| लौटने पर भी हिमालय बुलावा देता ही रहता है| लौटते समय एक साथ दिखाई दिए वे हिमशिखर अब भी पुकार रहे हैं! हिमालय का सम्मोहन ऐसा है कि जो इसमें फंस गया वह ज्यादा दिनों तक उससे दूर नही रह सकता है. . .
अब फिर वही शहर की घिसी पिटी शृंखला. . वही काम धाम| जब पूरी यात्रा कर घर पहुँचा, तब पहले कुछ समय विश्राम किया| २३ दिसम्बर का दिन है| जैसे ही न्यूज देखे, एक समाचार ने बड़ा ही अस्वस्थ कर दिया| एक झटके से लगा कि जीवन में बहुत कुछ बदल रहा है| वह समाचार था सचिन तेण्डुलकर के एकदिवसीय संन्यास का| अप्रत्याशित बिल्कुल भी नही; लेकिन उतना ही अस्वस्थ करनेवाला| मेरे जैसे कई करोड़ लोग होंगे जिन्हे शायद उस दिन लगा हो कि अब बचपन वाकई समाप्त हो गया. . . वह क्षण ही इस पूरी यात्रा का भरत वाक्य है| उस क्षण में जैसे एक आर या पार की स्थिती हो गई| खैर|
करीब ढाई साल की हुई इस यात्रा का और एक महत्त्व भी है| दिसम्बर २०१२ में यह यात्रा करने के छह ही महिनों बाद उत्तराखण्ड में प्रलयंकारी बाढ़ आयी| जिन जिन स्थानों पर मै गया था- वहाँ भारी तबाही मची| पिथौरागढ़ जिले से ले कर कर्णप्रयाग, पिपलकोटि, जोशीमठ, विष्णुप्रयाग, बद्रिनाथ रोड़ और फिर टिहरी, ऋषीकेश आदि स्थानों पर भाई हानि हुई| बड़ी ही डरावनी तस्वीरें सामने आने लगी| जो स्थान मैने करीब से देखे, वे बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुए| जोशीमठ के पास बने पनबिजली के केन्द्र हो या ऋषीकेश में गंगा रेसॉर्ट हो|
पश्चिमी विक्षोभ एक निमित्त बना और बरसों से मानव द्वारा पर्वत में किए गए अतिक्रमण की किमत चुकानी पड़ी| बड़ी संख्या में पेड़ कटते गए तो पर्वत में पानी पकड़ने की क्षमता कम हुई; मिट्टी फिसलने लगी| पहाड़ को तोड कर निर्माण कार्य बड़े पैमाने पर हुआ था; तो उससे पहाड़ नाज़ुक बने थे| क्लाएमेट चेंज और ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण भी पर्यावरण अब अनिश्चित सा हो गया है| इन सब कारणों से बड़ा विनाश हुआ| यह एक तरह से इन्सान को रोकने का कुदरत का तरिका है| जिन लोगों ने वह दर्द सहा हो, वही उसे समझ सकते हैं|
इसलिए अब इन्सान के पास थोड़े ही विकल्प है| एक तो इस हादसे से सीख कर स्वयं को नियन्त्रण में लाए और प्रकृति में कोई भी हस्तक्षेप न दे या. . . या फिर इससे बड़ी किमत चुकाने के लिए तैयार रहें| लेकिन जो लोग ऐसी आपदा को दैवी आपदा कहते हो, वे कैसे अपनी गलतियाँ मानेंगे| अत: इस मोड़ से अब दो ही रास्ते आगे जाते हैं| लेकिन गलतियों से सीखना इन्सान का स्वभाव नही है| खैर|
व्यक्तिगत तौर पर इस यात्रा ने मेरे लिए भी नए रास्ते बनाए| जीवन के प्रति नया दृष्टिकोण दिया| ट्रेकिंग या साईकिलिंग में यह खास बात होती है कि रफ्तार कम हो जाती है| और हम सामान्य जीवन में तेज़ रफ्तार से जाते समय जिन चीजों से वंचित रहते हैं, उन्हे ट्रेकिंग में करीब से देख सकते हैं| बल्कि कहना होगा पहली बार उन्हे देख पाते हैं| किसी भी मार्ग पर यदि हम बाईक या कार से जाते हैं तो झटके में से निकल जाते हैं| लेकिन कभी उसी मार्ग पर टहलते हुए जाते हैं, तो दृष्टि अलग होती है| बारिकी से चीजें देख सकते हैं| और छोटी छोटी चीजों का अधिक आनन्द भी ले सकते हैं| एक ही छोटे से मार्ग में इतनी चीजें भी होती हैं, उसका अहसास हमें तब होता है| इसके साथ हमारा ध्यान भी गन्तव्य के बजाय देखने पर अर्थात् दृष्टि पर होने लगता है|
सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद दे कर नमन करते हुए अब इस लेखन को विराम देता हुँ| अगले किसी पड़ाव पर मिलने तक अलविदा, राम- राम! बहुत बहुत धन्यवाद!
२. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: २ नदियाँ पहाड झील और झरने जंगल और वादी
३. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोS हिमालय: ३ चलो तुमको लेकर चलें इन फिजाओं में
४. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोS हिमालय: ४ जोशीमठ दर्शन
५. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: ५ अलकनन्दा के साथ बद्रिनाथ की ओर
६. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: ६ औली जाने का असफल प्रयास और तपोबन यात्रा
७. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: ७ हिमालय की आज्ञा ले कर ऋषीकेश की ओर
८. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: ८ ऋषीकेश दर्शन
९. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: ९ ऋषीकेश से प्रस्थान
इस मोड़ से जाते हैं . . (अन्तिम)
जैसे हिमालय के चरणकमल पर बसें गाँवों से आगे बढते हैं, वैसे ही उसका विशाल स्वरूप दृग्गोचर होता है| एक के बाद एक शृंखलाएँ दृश्यमान होती है| कुदरत के करीब जाने पर वहाँ की ताज़गी और शान्ति आल्हादित करती है| लौटने पर भी हिमालय बुलावा देता ही रहता है| लौटते समय एक साथ दिखाई दिए वे हिमशिखर अब भी पुकार रहे हैं! हिमालय का सम्मोहन ऐसा है कि जो इसमें फंस गया वह ज्यादा दिनों तक उससे दूर नही रह सकता है. . .
अब फिर वही शहर की घिसी पिटी शृंखला. . वही काम धाम| जब पूरी यात्रा कर घर पहुँचा, तब पहले कुछ समय विश्राम किया| २३ दिसम्बर का दिन है| जैसे ही न्यूज देखे, एक समाचार ने बड़ा ही अस्वस्थ कर दिया| एक झटके से लगा कि जीवन में बहुत कुछ बदल रहा है| वह समाचार था सचिन तेण्डुलकर के एकदिवसीय संन्यास का| अप्रत्याशित बिल्कुल भी नही; लेकिन उतना ही अस्वस्थ करनेवाला| मेरे जैसे कई करोड़ लोग होंगे जिन्हे शायद उस दिन लगा हो कि अब बचपन वाकई समाप्त हो गया. . . वह क्षण ही इस पूरी यात्रा का भरत वाक्य है| उस क्षण में जैसे एक आर या पार की स्थिती हो गई| खैर|
करीब ढाई साल की हुई इस यात्रा का और एक महत्त्व भी है| दिसम्बर २०१२ में यह यात्रा करने के छह ही महिनों बाद उत्तराखण्ड में प्रलयंकारी बाढ़ आयी| जिन जिन स्थानों पर मै गया था- वहाँ भारी तबाही मची| पिथौरागढ़ जिले से ले कर कर्णप्रयाग, पिपलकोटि, जोशीमठ, विष्णुप्रयाग, बद्रिनाथ रोड़ और फिर टिहरी, ऋषीकेश आदि स्थानों पर भाई हानि हुई| बड़ी ही डरावनी तस्वीरें सामने आने लगी| जो स्थान मैने करीब से देखे, वे बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुए| जोशीमठ के पास बने पनबिजली के केन्द्र हो या ऋषीकेश में गंगा रेसॉर्ट हो|
पश्चिमी विक्षोभ एक निमित्त बना और बरसों से मानव द्वारा पर्वत में किए गए अतिक्रमण की किमत चुकानी पड़ी| बड़ी संख्या में पेड़ कटते गए तो पर्वत में पानी पकड़ने की क्षमता कम हुई; मिट्टी फिसलने लगी| पहाड़ को तोड कर निर्माण कार्य बड़े पैमाने पर हुआ था; तो उससे पहाड़ नाज़ुक बने थे| क्लाएमेट चेंज और ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण भी पर्यावरण अब अनिश्चित सा हो गया है| इन सब कारणों से बड़ा विनाश हुआ| यह एक तरह से इन्सान को रोकने का कुदरत का तरिका है| जिन लोगों ने वह दर्द सहा हो, वही उसे समझ सकते हैं|
इसलिए अब इन्सान के पास थोड़े ही विकल्प है| एक तो इस हादसे से सीख कर स्वयं को नियन्त्रण में लाए और प्रकृति में कोई भी हस्तक्षेप न दे या. . . या फिर इससे बड़ी किमत चुकाने के लिए तैयार रहें| लेकिन जो लोग ऐसी आपदा को दैवी आपदा कहते हो, वे कैसे अपनी गलतियाँ मानेंगे| अत: इस मोड़ से अब दो ही रास्ते आगे जाते हैं| लेकिन गलतियों से सीखना इन्सान का स्वभाव नही है| खैर|
व्यक्तिगत तौर पर इस यात्रा ने मेरे लिए भी नए रास्ते बनाए| जीवन के प्रति नया दृष्टिकोण दिया| ट्रेकिंग या साईकिलिंग में यह खास बात होती है कि रफ्तार कम हो जाती है| और हम सामान्य जीवन में तेज़ रफ्तार से जाते समय जिन चीजों से वंचित रहते हैं, उन्हे ट्रेकिंग में करीब से देख सकते हैं| बल्कि कहना होगा पहली बार उन्हे देख पाते हैं| किसी भी मार्ग पर यदि हम बाईक या कार से जाते हैं तो झटके में से निकल जाते हैं| लेकिन कभी उसी मार्ग पर टहलते हुए जाते हैं, तो दृष्टि अलग होती है| बारिकी से चीजें देख सकते हैं| और छोटी छोटी चीजों का अधिक आनन्द भी ले सकते हैं| एक ही छोटे से मार्ग में इतनी चीजें भी होती हैं, उसका अहसास हमें तब होता है| इसके साथ हमारा ध्यान भी गन्तव्य के बजाय देखने पर अर्थात् दृष्टि पर होने लगता है|