Friday, January 27, 2017

भीतर क्या है?

"मेरे गाँव में एक पुजारी था| वह सुबह तीन घण्टे और शाम को तीन घण्टे बालाजी के मन्दिर में भजन करता था| उसका नाम किसी को भी याद नही था, सभी उसे बालाजी ही कहते थे| उसका भजन चिल्लाना ज्यादा था| सभी लोग उसके शोर से पीडित थे, लेकिन पुजारी होने के कारण कोई नही बोलता था| सभी लोग उसे बहुत धार्मिक समझते थे, इसलिए कोई कुछ नही कहता था| वह उस मन्दिर के पास एक खाट पे ही रात नौ बजे सो जाता था| उसकी खाट के सामने एक छोटा सा कुंआ था|

एक बार मैने सोचा की उसके चिल्लाने- चीखने का कुछ उपाय करना चाहिए| सोचा कि रात को ग्यारह बजे उसे उठा कर खाट समेत कुंए पर रख देते हैं और तब देखते है कि उसे बालाजी की कितनी याद आती है| मै छोटा था, तो मैने तीन पहलवानों को तैयार किया| रात में ग्यारह बजे वे आनेवाले थे| लेकिन एक पहलवान राजी नही हुआ| इसलिए मैने मेरे दादा को तैयार किया| पहले तो दादा बड़े चकित हुए कि उनसे ही मैने मदद माँगी| मैने कहा कि आप बस दो मिनट खाट उठाने के लिए हात दिजिए, फिर आप जो कहेंगे वह मै करूँगा| वे भी बड़े विरला थे, इसलिए वे तैयार हुए|

जब पहलवानों ने मेरे दादा को आते देखा तो वे डर गए- उन्हे लगा की पकड़े गए| मैने उनको समझाया कि एक पहलवान नही आनेवाला था, तो उसकी जगह दादा आए हैं| रात ग्यारह बजे पूरा सन्नाटा था| हमने चुपके से उसे उठाया और धीरे से खाट कुएं पर रख दी| वह सोता ही रहा| मैने तुरन्त दादा को जाने के लिए कहा- क्यों कि वे पकड़े जाते तो मुसीबत होती| फिर हम लोग कुछ दूरी पर खड़े हो कर उसे पत्थर मारने लगे| थोड़े ही‌ देर में वह जग गया और उसके रौंगटे खड़े हुए! उसने जो चीख मारी... उस शोर से भीड़ इकठ्ठी हो गई. . . वह बहुत डर गया था| लोगों ने ही उसे कहा कि पहले कम से कम खाट से उठ कर बाहर तो आओ| तब भीड़ में से मैने उसे पूछा, क्यों जी, आपने सहायता के लिए बालाजी को क्यों नही याद किया? आप उसे भूल तो नही गए? वह आदमी सच्चा था| उस दिन से वह बदल ही गया| फिर उसने मुझे बाद में कहा, कि अच्छा किया तुमने| तुम्हारे कारण ही मै अब देख सकता हुँ कि मै जो शोरगुल करता था, वह उपर ही उपर था| भीतर तो डर के अलावा कुछ भी नही था| उस दिन जो चीख मैने मारी; वो मेरे अन्तर्मन से आयी थी| उससे मुझे एहसास हुआ कि मै कितनी बाहरी लिपापोती में लीन था| ऐसे उसने मुझे धन्यवाद दिया और उस दिन से उसकी जिन्दगी बदल सी गई| धीरे धीरे उसने सब पूजा बन्द की| वह कहने लगा कि, मन में अगर बालाजी नही है और डर है तो वही सही| उसे कैसे झुठलाएं? बूढा होते होते वह आदमी जागृत होता गया|" - ओशो

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (29-01-2017) को "लोग लावारिस हो रहे हैं" (चर्चा अंक-2586) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. Great post. Check my website on hindi stories at http://afsaana.in/ . Thanks!

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आपने ब्लॉग पढा, इसके लिए बहुत धन्यवाद! अब इसे अपने तक ही सीमित मत रखिए! आपकी टिप्पणि मेरे लिए महत्त्वपूर्ण है!