Monday, July 23, 2018

पिथौरागढ़ में भ्रमण भाग १: प्रस्तावना

प्रस्तावना

उत्तराखण्ड! हिमालय! पिथौरागढ़! लगभग ढाई साल के बाद अब फिर हिमालय का बुलावा आया है! नवम्बर- दिसम्बर २०१७ में पिथौरागढ़ में घूमना हुआ| उसके बारे में आपसे बात करता हूँ| यह एक छोटी पर बहुत सुन्दर यात्रा रही| इसमें दो छोटे ट्रेक किए और पिथौरागढ़ के कुछ गाँवों में जाना हुआ| मेरी पत्नि मूल रूप से पिथौरागढ़ से है, अत: उनके यहाँ एक विवाह समारोह में जाना हुआ| पारिवारिक यात्रा, लोगों से मिलना और छुट्टियों की कमी इस कारण वश वैसे तो यह यात्रा एक सप्ताह की ही रही| लेकीन फिर एक बार हिमालय और खास कर सर्दियों में हिमालय की ठण्ड और रोमांच का अनुभव मिल सका| पुणे से २६ नवम्बर २०१७ को निकले| मुंबई में बांद्रा टर्मिनस जा कर दिल्ली की ट्रेन ले ली| २७ नवम्बर की दोपहर दिल्ली‌ में निजामुद्दीन उतर कर दिल्ली परिवहन निगम की बस से आनन्द विहार टर्मिनस गए| यहाँ से पिथौरागढ़ के लिए बस चलती हैं| इस बस अड़्डे पर बहुत से शहरों के लिए बसें निकलती हैं जिनमें वाराणसी, गोरखपूर, महेन्द्रनगर (नेपाल) आदि भी है| कुछ देर प्रतीक्षा करने के बाद पिथौरागढ़ की बस मिली| दिवाली की छुट्टियाँ होने के कारण बहुत भीड़ भी है| जैसे ही‌ बस में बैठे, एक मज़ेदार वाकया हुआ| बस में एक तृतीयपंथी आया और उसने मेरे और अन्य कुछ लोगों के सिर पर हात लगा कर पैसे मांगे| तभी उसने मेरी पत्नि को देखा और नमस्कार बोला (बोली)! मेरी पत्नि भी उसे जानती है, क्यों कि उसने मुंबई में इस विषय पर काम करनेवाली संस्था में काम किया है| दोनों में एकदम परिचित की तरह बातें हुई| वह तृतीयपंथी नेपाल का (की) है और वही जा रहा (रही) है! कहाँ कहाँ कैसे पहचान के लोग मिल जाते हैं!






दिल्ली से निकल कर गढमुक्तेश्वर- रामपूर के रास्ते यह बस टनकपूर जाएगी| कुछ देर बाद राजधानी क्षेत्र की भीड़ जा कर पश्चिमी युपी शुरू हुआ| यह एक अच्छा हायवे हैं| अब थोड़ी ठण्ड महसूस होने लगी| बीच बीच में बस रूकती रही| लेकीन खाने की इच्छा नही हुई| क्यों कि मुझे कल पिथौरागढ़ पहुँचते ही साईकिल लेनी है और वहाँ ठहरने के घर तक जाने के पहले ही दो- तीन घण्टे साईकिल चलाऊँगा| इसलिए पेट खाली रखा| दिल्ली से टनकपूर पहुँचने के लिए बस को सात- आंठ घण्टे लगते हैं| रात के साथ ठण्ड भी बढ़ती गई| बीच बीच में थोड़ी नीन्द लेता रहाँ| रुद्रपूर सिटी के पास उत्तर प्रदेश छोड कर उत्तराखण्ड में प्रवेश हुआ! नानकमत्ता- खटीमा आते आते रात का एक बज रहा है| टनकपूर के कुछ किलोमीटर पहले बहुत ज्यादा धुन्द दिखी| इतनी मोटी धुन्द है कि सड़क पर विजिबिलिटी अचानक से मात्र सौ मीटर रह गई! नीन्द को बाजू रख कर वह नजारा देख रहा हूँ| सड़क पर यातायात न के बराबर है| लेकीन ड्राईवर बहुत सावधानी से चला रहे हैं| सामने दूर अगर कोई गाड़ी हो, तो उसकी टेल लाईट बहुत धुन्धली दिखाई दे रही है| कुछ मिनटों तक यह रोमांच जारी रहा और फिर दो बजे बस टनकपूर के बस डिपो पर पहुँची! टनकपूर!! यहाँ से नेपाल सीमा बहुत पास है| इसके बाद अब हिमालय शुरू होगा- यहाँ से आगे अब बस घाट ही घाट- पहाड़ ही पहाड़!

डेढ घण्टा बस टनकपूर में रूकी| इसके आगे पहाड़ शुरू होता है, इसलिए रात में बसे नही चलती| यहाँ कई जगहों से बस आती हैं| टनकपूर- शिमला वाया हरिद्वार भी बस चलती है| रात के दो बजे घणी ठण्ड में गर्म चाय का आनन्द लिया| कल सुबह साईकिल चलानी है, इसलिए टनकपूर बस डीपो पर पेट भी हल्का कर लिया| ऐसा लग रहा था कि पांच बजे यहाँ से बस जाएगी, लेकीन साढेतीन बजे ही बस निकली! रोमांच और भी बढ़ गया| लेकीन दुख इतना है कि अन्धेरा होने की वजह से पहाड़ नही देख पाऊँगा| टनकपूर से निकलते ही घाट शुरू हुआ और ड्रायवर बड़े ही जोश में गाड़ी ले जा रहा है| बहुत तजुर्बेकार ड्रायवर लगता है| ऐसे घने अन्धेरे में और हिमालय के घाट में भी चालिस की स्पीड से बस ले जा रहा हैं! यातायात भी न के बराबर है, इसलिए भी वह इतनी तेज़ी से चला पा रहा है| हिमालय!!! अब एक तरह का सत्संग शुरू हुआ है| मन को और सजग किया और अन्धेरे में ही सही, लेकीन वहाँ होने का आनन्द लेने लगा| अब नीन्द आने का सवाल ही नही है|




करीब दो घण्टे अन्धेरे में जाने के बाद चम्पावत गाँव के कुछ पहले थोड़ी रोशनी हो गई| और अब नजारा साफ दिखने लगा- चारों‌ तरफ ऊँचे पहाड़, अंगडाईयाँ लेती सड़क, हर तरफ छोटे टुकडों में की जानेवाली पहाड़ी खेती और हर कोने में हर जगह बसे हुए छोटे छोटे घर! उल्टी होने का डर मन में था, लेकीन उल्टी जैसी तकलीफ बिल्कुल भी नही हुई| धीरे धीरे बर्फाच्छादित पर्वतों के दूर- दर्शन होने लगे| त्रिशुल पर्वत, ॐ पर्वत जैसी चोटियाँ बादलों के और कोहरे के घूंघट से सिर उठाने लगी! बहुत अद्भुत नजारे! उन्हे फोटो में बंसाने का प्रयास किया| लोहाघाट तक ड्रायवर ने बस बहुत तेज़ चलाई| दिन में भी उसकी ड्रायविंग देख कर डर सा लग रहा है! लेकीन लोहाघाट के बाद कुछ ट्रैफिक लगी, छोटे जाम भी हुए| उससे उसे रफ्तार कुछ कम करनी पड़ी| पिथौरागढ़ के बीस किलोमीटर पहले- गुरना माता के थोडा पहले एक जगह पर सड़क बन्द की है| यहाँ सड़क का काम चल रहा है, इसलिए कुछ देर तक यातायात बन्द की है| यहाँ से अच्छे खासे नजारे दिखाई दे रहे हैं! चारो तरफ पहाड़ और पास की खाई में से बहती हुई रामगंगा की रमणीय धारा! जल्द ही सड़क खोल दी गई| तब पता चला की सड़क के काम के कारण कुछ जगहों पर रास्ता बहुत नाज़ुक हो गया है| असल में टनकपूर- धारचुला नैशनल हायवे का विस्तार किया जा रहा है- दो लेन बनाए जाएंगे| लेकीन इस प्रक्रिया में लगभग हर जगह पहाड़ काटना पड़ रहा है और सड़क भी नई बन रही है| इसलिए बहुत जगह पर ट्रैफिक बीच बीच में रोकी जाती है| खैर| लगभग नौ बजे पिथौरागढ़ बस अड़्डे पर पहुँचा| टनकपूर के बाद १५० किलोमीटर के पहाड़ी मार्ग पर छह घण्टों में पहुँच गए| अब यहाँ साईकिल लेनी है| एक व्यक्ति ने कहा है कि वह साईकिल देगा| अब उसकी‌ प्रतीक्षा है| देखते हैं यहाँ कैसे साईकिल चला पाता हूँ|

क्रमश:

अगला भाग- पिथौरागढ़ में भ्रमण भाग २: पहाड़ में बंसा एक गाँव- सद्गड


2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (24-07-2018) को "अज्ञानी को ज्ञान नहीं" (चर्चा अंक-3042) पर भी होगी।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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