Thursday, May 16, 2024

Gay-neck: The story of a pigeon!

Hello. When I was glancing fifth Standard Hindi textbook of my daughter, I came to know about one book. Out of curiousity, I purchased that book and then I read it. It is the only book of an Indian writer which has received the greatest award for children- literature in the U.S.A.! ‘Gay-neck: The story of a pigeon’ written by Dhan Gopal Mukerji! By gay-neck, the author meant a pigeon with a colourful neck. This book is the story of this pigeon. Published in 1925, this book is a glimpse of the golden childhood experienced by the author. Today we have traveled a great distance from those times. But in this book, we can read how were those times of roaming freely in the nature, staying in forests and mountains for days and nights!

This book narrates experiences of the author with his favourite pigeon. The author talks about his experiences during early 1910s. While reading this, I was reminded about my childhood. When I had seen the famous song “Kabutar Ja Ja Ja”, I too had longed for one pigeon for some time! In those days, pigeons were pets brought up in almost all households. They were trained and even their competitions would take place! Knowing about this is surprising. Mother pigeon knows the exact time to open up the egg by pressing her beak, how does she know this, how the pigeons build up their nest by bringing straws, how they can fly hundreds of kilometers- all this is very stunning! For assessing navigation skills of his pigeon, the author and his friends take his pigeon towards Darjeeling and Sikkim region. An eagle- assault, defense of the pigeon and the author’s search to get back his pigeon- all this is just wonderful.


Wednesday, May 8, 2024

नात्यांचं भावस्पर्शी इंद्रधनुष्य- काहे दिया परदेस

✪ दिग्गज व नवोदित कलाकारांची सुरेल मैफल
✪ गौरी अर्थात् सायली संजीव- कमालीच्या गुणी अभिनेत्रीचं पदार्पण
✪ वडील- मुलगी नात्यातले भावतरंग
✪ हँडसम शिवचं डोळ्यांनी फ्लर्ट करणं!
✪ छोटा "अहं" ते "सर्वसमावेशक हम" ही वाटचाल
✪ प्रेमळ आजीची‌ डॅशिंग बॅटींग- मी सांगतंय तुका
✪ सासू- जावयातलं जिव्हाळ्याचं शीतयुद्ध

सर्वांना नमस्कार. सध्याच्या तापलेल्या वातावरणामध्ये थोडा आल्हाददायक थंडावा मिळावा, म्हणून हा वेगळ्याच विषयावर लिहीण्याचा प्रयत्न. गेल्या काही महिन्यांमध्ये काही दिवस आजारी असल्यामुळे व फ्रॅक्चरमुळे आराम करत असताना सहज म्हणून ह्या व्यक्तीरेखा आठवल्या. आणि आठ वर्षांपूर्वी टीव्हीवर प्रचंड लोकप्रिय झालेल्या "काहे दिया परदेस" मालिकेचे काही भाग गंमत म्हणून बघितले. तेव्हाही सलग नाही पण अधून- मधून बघितले होते. त्यामुळे कलाकार ओळखीचे आणि आवडीचे झाले होते. ह्यावेळी बघताना वेगळी मजा आली आणि वेब सिरीज बघावी तसे अनेक भाग सलग बघितले गेले. त्यामध्ये असलेली मजा, खुमारी, त्यात दाखवलेल्या नात्यांच्या नानाविध रंगांविषयी लिहावसं वाटलं.


Friday, May 3, 2024

हिमालय से शुरू हुई मेरी यात्रा. . .


मेरा जन्म हुआ हिमालय के पहाड़ों में| उत्तराखण्ड के पिथौरागढ़ जिले में सद्गड़ नाम के रमणीय गाँव के पास| हिमालय के बीचोबीच! सब तरफ पहाड़, पेड़, पशु- पक्षी ऐसे माहौल में मेरा जन्म हुआ| बहुत ठण्डा मौसम था वह| मै और मेरे भाई- बहन पहाड़ में खेलते थे| बहुत आल्हादपूर्ण परिसर और घनी शान्ति थी वहाँ पर| सब तरफ हरियाली, मिट्टी, खेत और ठण्ड| हम जहाँ रहते थे, वहाँ भेड़- बकरियाँ साथ होती थी| मेरे दिन बड़े ख़ुशहाल थे| आस- पास के पर्वत और पेड़ मै पहचानने लग गया था| मेरी माँ और भाई- बहनों के साथ खुशी से रह रहा था| मुझे कोई भी चिन्ता नही थी| लेकीन एक दिन अचानक...

अचानक एक दादा मुझे मिला| मेरे साथ बहुत खेला| हमने बहुत मस्ती की| उसे मै इतना अच्छा लगा कि उसने मेरा फोटो भी खींचा| मै बहुत ख़ुश था| आगे क्या होनेवाला है, इसका मुझे अन्दाज़ा ही नही था| दो- तीन दिनों के बाद वह दादा फिर आया| उसके साथ और एक छोटा दादा भी था| और एक कुछ डरावने से लगनेवाले चाचा भी आए| उन्होने मुझे उठा लिया! क्या हो रहा है मै समझ ही नही सका| मेरी ताकत उनके सामने न के बराबर थी| वे मुझे कहाँ ले जा रहे थे पता ही नही चला| देखते देखते उन्होने मुझे मेरे माँ और भाई- बहनों से दूर किया| एक छोटी बास्केट में मुझे बिठाया और एक पूरा दिन जोर से आवाज करनेवाली गाड़ी में से ले गए| मै बहुत रोया| अक्सर चिल्लाता रहा| बड़ी यात्रा थी वह| मै एक अज़ीब सी जगह पर पहुँचा जहा अविरत बड़ा शोर और लोगों की भीड़ थी| फिर मुझे एक बड़ी ही लम्बी गाड़ी में वे ले गए| मुझे बहुत ज्यादा तकलीफ हो रही थी| अब तो मुझे गर्मी भी लग रही थी| यह पूरी यात्रा मैने रोते हुए और चीखते हुए की... मुझे मेरी माँ और भाई- बहन याद आ रहे थे|