भाग ५: राजापूर- देवगड़ (५२ किमी)
इस यात्रा को शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिए|
१० सितम्बर की सुबह| आज बहुत छोटा सा चरण है- सिर्फ ५१ किलोमीटर है| लेकीन एक तरह से आज मेरा सपना पूरा होने जा रहा है, इसलिए मन में बहुत उत्तेजना है| लगातार चार दिनों में ३५० किलोमीटर से अधिक दूरी पार करने से आज की दूरी बहुत मामुली हो गई है| हालांकी समय तो लगेगा, लेकीन चिन्ता बिल्कुल नही होगी| जैसे औपचारिकता बची है| लेकीन सुबह जब निकला तो मन में भाव सिर्फ एंजॉय करने का है| रोशनी होते होते जब निकला, तो दूर आसमान में अन्धेरा दिख रहा है| एक बार बरसात का डर भी लगा| लेकीन थोड़ी ही देर में पता चला कि यह तो धुन्ध है| और इसका मतलब यह भी है कि अब बारीश आने की सम्भावना एकदम कम हो गई है| राजापूर से निकल कर जैसे ही मुंबई- गोवा हायवे छोड दिया, तो बहुत ही सुन्दर और उपर चढ़नेवाली सड़क मिली| और थोड़ा आगे जाने के बाद जैसे कोहरे का समुद्र लगा! आज समुद्र तो मिलेगा ही, लेकीन उसके पहले कोहरे का समुद्र! वाह, अद्भुत नजारा! और कितनी रोमँटीक और लगभग निर्जन सड़क!



इस यात्रा को शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिए|
१० सितम्बर की सुबह| आज बहुत छोटा सा चरण है- सिर्फ ५१ किलोमीटर है| लेकीन एक तरह से आज मेरा सपना पूरा होने जा रहा है, इसलिए मन में बहुत उत्तेजना है| लगातार चार दिनों में ३५० किलोमीटर से अधिक दूरी पार करने से आज की दूरी बहुत मामुली हो गई है| हालांकी समय तो लगेगा, लेकीन चिन्ता बिल्कुल नही होगी| जैसे औपचारिकता बची है| लेकीन सुबह जब निकला तो मन में भाव सिर्फ एंजॉय करने का है| रोशनी होते होते जब निकला, तो दूर आसमान में अन्धेरा दिख रहा है| एक बार बरसात का डर भी लगा| लेकीन थोड़ी ही देर में पता चला कि यह तो धुन्ध है| और इसका मतलब यह भी है कि अब बारीश आने की सम्भावना एकदम कम हो गई है| राजापूर से निकल कर जैसे ही मुंबई- गोवा हायवे छोड दिया, तो बहुत ही सुन्दर और उपर चढ़नेवाली सड़क मिली| और थोड़ा आगे जाने के बाद जैसे कोहरे का समुद्र लगा! आज समुद्र तो मिलेगा ही, लेकीन उसके पहले कोहरे का समुद्र! वाह, अद्भुत नजारा! और कितनी रोमँटीक और लगभग निर्जन सड़क!