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Friday, July 19, 2019

“भाग दौड़" भरी ज़िन्दगी- १३: मुंबई मैरेथॉन के अन्य पहलू

१३: मुंबई मैरेथॉन के अन्य पहलू
 

डिस्क्लेमर: यह लेख माला कोई भी टेक्निकल गाईड नही है| इसमें मै मेरे रनिंग के अनुभव लिख रहा हूँ| जैसे मै सीखता गया, गलती करता गया, आगे बढता गया, यह सब वैसे ही लिख रहा हूँ| इस लेखन को सिर्फ रनिंग के व्यक्तिगत तौर पर आए हुए अनुभव के तौर पर देखना चाहिए| अगर किसे टेक्निकल गायडन्स चाहिए, तो व्यक्तिगत रूप से सम्पर्क कर सकते हैं|

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जनवरी २०१९ की मुम्बई मैरेथॉन! ए दिल है मुश्किल यहाँ, जरा हट के जरा बचके ये है बम्बई मैरेथॉन! अपेक्षाकृत एक तरह से यह ईवंट कुछ हद तक डरावनी लगती रही| और ईवंट की तुलना में बाकी चीजें- जैसे मुम्बई में यात्रा करना, मैरेथॉन के लिए बिब कलेक्शन आदि चीजें मानसिक रूप से थोड़ी थकानेवाली लगी| मैरेथॉन की पूर्व संध्या तक बहुत तनाव लगा, लेकीन जब उस विषय पर बहुत बातचीत हुई, बार बार उस पर सोचा गया, तो एक समय आया कि मन उस तनाव से हल्का हुआ| या एक तरह से उस विषय से थक गया/ बोअर हुआ| उससे राहत मिली| और बाद में मैरेथॉन तो बहुत ही अच्छी रही| इस लेखमाला के पहले लेख में उस मैरेथॉन के अनुभव बता चुका हूँ|

अब चर्चा करता हूँ उसके कुछ अन्य पहलूओं की| सबसे बड़ी बात तो लोगों द्वारा दिया जानेवाला प्रोत्साहन- लगातार घण्टों तक सड़क पर खड़े रहना और पानी, एनर्जाल, फल आदि देते रहना बहुत बड़ी बात है| यह एक मुंबई का कल्चर का हिस्सा लगा| मैरेथॉन का रूट जापानी दूतावास के पास से जाता है, तो वे लोग भी आए थे| इसी मैरेथॉन के दौरान राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय एलिट रनर्स (रेसर) भी देखने को मिले| आम रनर्स से दो घण्टा बाद में शुरू कर भी वे बहुत जल्द रेस पूरी कर गए! मेरे जैसे आम रनर और वे रेसर्स इनमें शायद संजय मंजरेकर और विरेंदर सेहवाग के स्ट्राईक रेट जितना अन्तर होगा!



फोटो: इंटरनेट से साभार


मैरेथॉन के उत्तरार्ध में सड़कों पर बहुत कुछ फेंका गया| कई बोतलें, एनर्जाल आदि के पाउच भी रनर्स फेंकते गए| उससे कुछ हद तक सड़क भी फिसलनेवाली हो गई| पानी पिने के बाद वजन नही ढोना पड़े इसलिए रनर्स उसे फेंकना था तो कूड़ेदान में भी फेंक सकते थे, लेकीन ऐसा शायद कम हुआ| बाद में तो कूड़े का ढेर लग गया| बेचारे वालंटीअर्स उसे सम्भालने का प्रयास करते दिखे|