भाग ४: मलकापूर- आंबा घाट- लांजा- राजापूर (९४ किमी)
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९ सितम्बर की सुबह| कल रात अच्छा विश्राम होने से बहुत ताज़ा महसूस कर रहा हूँ| आज रविवार है, इसलिए थोड़ी देरी से निकलना है| लेकीन सुबह नीन्द जल्द खुल गई, इसलिए लॉज के बाहर आकर थोड़ा मॉर्निंग वॉक लिया| बाहर सब शान्ति शान्ति है, चाय का होटल तक खुला नही है| फिर आराम से सात बजे बाहर निकला| अब होटल खुला मिला| नाश्ता करते समय मेरी साईकिल देख कर कई बस ड्रायवर और कंडक्टर मुझसे मिलने लगे! यहाँ पास ही तो बस स्टैंड है| कुछ देर तक उनसे बात की और लगभग पौने आठ बजे मलकापूर से निकला| विगत चार दिनों से क्या यात्रा रही है! और आज का पड़ाव बहुत अहम होगा| आज लगभग ९२ किलोमीटर ही जाना है, लेकीन यह भी सफर चढने- उतरनेवाले रास्तों के बीच होगा| इसी रोड़ पर लगभग आठ साल पहले एक बार आया हूं, इसलिए कुछ तो याद है| इतिहास में प्रसिद्ध विशालगढ़ के पास से यह सड़क गुजरती हैं| मलकापूर से आगे आते ही नजारों की झड़ी जैसे शुरू हुई!



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९ सितम्बर की सुबह| कल रात अच्छा विश्राम होने से बहुत ताज़ा महसूस कर रहा हूँ| आज रविवार है, इसलिए थोड़ी देरी से निकलना है| लेकीन सुबह नीन्द जल्द खुल गई, इसलिए लॉज के बाहर आकर थोड़ा मॉर्निंग वॉक लिया| बाहर सब शान्ति शान्ति है, चाय का होटल तक खुला नही है| फिर आराम से सात बजे बाहर निकला| अब होटल खुला मिला| नाश्ता करते समय मेरी साईकिल देख कर कई बस ड्रायवर और कंडक्टर मुझसे मिलने लगे! यहाँ पास ही तो बस स्टैंड है| कुछ देर तक उनसे बात की और लगभग पौने आठ बजे मलकापूर से निकला| विगत चार दिनों से क्या यात्रा रही है! और आज का पड़ाव बहुत अहम होगा| आज लगभग ९२ किलोमीटर ही जाना है, लेकीन यह भी सफर चढने- उतरनेवाले रास्तों के बीच होगा| इसी रोड़ पर लगभग आठ साल पहले एक बार आया हूं, इसलिए कुछ तो याद है| इतिहास में प्रसिद्ध विशालगढ़ के पास से यह सड़क गुजरती हैं| मलकापूर से आगे आते ही नजारों की झड़ी जैसे शुरू हुई!