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Wednesday, March 10, 2010

सच्चाई समझने का प्रयास...

यह पोस्ट एक चरित्र-ग्रंथ पर आधारित है । "नरेंद्रायण" - लेखक श्री. गिरीश दाबके, नवचैतन्य प्रकाशन. यह चरित्र- ग्रंथ जाने माने नेता तथा विवादित पुरुष नरेंद्र मोदी पर केंद्रित है । जब उनको जाना- माना कहा जाता है; तो प्रश्न आता है कि उनके बारे में क्या "जाना" जाता है और क्या "माना" जाता है ? या फिर वे कितने "जाने" जाते है और कितने तथा कैसे "माने" जाते है । जानने का सम्बन्ध प्रचिती से- अनुभव से है; तथा मानने का सम्बन्ध विश्वास या युँ कहे तो बायस से है ।

प्रस्तुत ग्रंथ एक ऐसा उदाहरण और प्रकाश डालनेवाला माध्यम है; जो हमें बताता है की सच्चाई क्या नही है और क्या हो सकती है । जो भी हम मान के चलते है; उससे विपरित सच्चाई हो सकती है । ग्रंथ हमे कोई भी मत या बायस बनाने से पहले सच्चाई को जानने की, समझने की तथा उसका अभ्यास करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है ।

आम इन्सान की नजर में नरेन्द्र मोदी का नाम सुनतेही क्या आता है ? ब्रेन स्टॉर्मिंग करें तो ऐसे ही कुछ उत्तर मिल सकते है - Genocide, Mass murder, riots, fundamentalist ऐसे ही । या युँ कहिए कि जो व्यक्ति सच्चाई नही जानता; उसकी ऐसी धारणा हो सकती है । लेकिन जब इस ग्रंथ मे "सच्चाई" के कम सुने पहलूओं को बताया जाता है; तो धीरे धीरे समझ में आता है; की सच्चाई उपर दिए गए अंग्रेजी शब्द नही है । तो आखिर सच्चाई क्या है ? कहना होगा की यह ग्रंथ काफी हद तक नरेंद्र मोदी से संबंधित "Frequently Asked Questions" का उत्तर देता है ।

जो भी सामान्य अवधारणा होती है; वो ज्यादातर मीडिया के कथन पर आधारित होती है । इस बात को यहाँ जानना जरूरी है की हमारी मीडिया के 90% मालिक या आर्थिक स्रोत विदेशी ताकतें है । क्या हम केवल उनके बयान पर विश्वास करें; या जमिनी स्थिति को जानें ? मीडिया कहती है की बीजेपी मनुवादी पार्टी है । पर सच्चाई है की इसी पार्टी के सबसे अधिक एस-सी, एस- टी तथा ओबीसी सांसद है । मोदी को हिटलर कहा जाता है; पर वास्तव यह है की उनके द्वारा बढावा दिए गए पतंग महोत्सव से मुस्लीम कार्मिकों को करोडों का मुनाफा हुआ, उनका व्यवसाय बढा है । गुजरात को विकृत राज्य कहा जाता है; पर यह वही राज्य है; जहाँ पर आदिवासियों को सबसे अधिक जमीन का वितरण हुआ है तथा उसका आदिवासियों पर बजेट अलोकेशन भी सबसे अधिक है । इस प्रकार इस पुस्तक में विस्तार से सच्चाई के कम जाने गए पहलूओं का अच्छे से विस्तार किया गया है ।
नर्मदा बांध तथा विकास की नीति पर भी इसमें उल्लेखनीय भाष्य है । मीडिया और उनके आंतर्राष्ट्रीय समर्थक कहते है की नर्मदा पर बांध से आदिवासियों का नाश किया जा रहा है । प्रस्तुत ग्रंथ में सीधा सवाल किया गया है कि ऑस्ट्रेलिया- आफ्रिका से लेकर अमेरिका तक जिन लोगों ने आदिवासियों को लूटा, उनकी संस्कृति को ध्वस्त किया; वो लोग भारत के आदिवासियों का पक्ष कैसे ले सकते है ? प्रस्तुत पुस्तक में संबंधित एनजीओ तथा आंतर्राष्ट्रीय फॅक्टर्स से संबंधित घटनाचक्र तथा पहलू विस्तार से बताए गए है ।

इतनाही नही; यह ग्रंथ सिर्फ चरित्र ग्रंथ ही नही; अपितु हिंदुत्व- बीजेपी की विचारधारा पर एक सराहनीय भाष्य है; जो हमें यह मॅसेज देता है; कि किसी भी तरह का मत बनाने से पहले हमें अच्छे से जमिनी स्थिती को खुले मन से समझना चाहिए; विस्तार से अभ्यास करना चाहिए । आज के समय में जब हर एक गुट अलग विचारधारा तथा पहचान मानता है; तथा उसमें ही खुद को सीमित रखता है; यह बात और यह समझ बहोत अहम बनती है ।