प्रकृति, पर्यावरण और हम ५: पानीवाले बाबा: राजेंद्रसिंह राणा
प्रकृति, पर्यावरण और हम ६: फॉरेस्ट मॅन: जादव पायेंग
प्रकृति, पर्यावरण और हम ७: कुछ अनाम पर्यावरण प्रेमी!
प्रकृति, पर्यावरण और हम ८: इस्राएल का जल- संवर्धन
प्रकृति, पर्यावरण और हम ९: दुनिया के प्रमुख देशों में पर्यावरण की स्थिति
कुछ कड़वे प्रश्न और कुछ कड़वे उत्तर
पर्यावरण के सम्बन्ध में चर्चा करते हुए हमने कई पहलू देखे| वन, पानी और अन्य प्राकृतिक संसाधनों के संवर्धन के कई प्रयासों पर संक्षेप में चर्चा भी की| कई व्यक्ति, गाँव तथा संस्थान इस दिशा में अच्छा कार्य कर रहे हैं| लेकिन जब हम इस सारे विषय को इकठ्ठा देखते हैं, तो हमारे सामने कई अप्रिय प्रश्न उपस्थित होते हैं| पीछले लेख में जैसे बात की थी कि एक पेड़ के काटने का मार्केट में मिलनेवाला दाम एक पेड़ लगाने के लाभ से कई गुणा अधिक है| इसलिए हम चाहे कितने भी पेड़ लगाए या वन संवर्धन करें, उनके टूटने की गति उससे अधिक ही रहेगी| इस लेख में ऐसे ही कुछ कड़वे प्रश्न और कड़वे उत्तरों की बात करते हैं|
जैसा कि हमने देखा आज जो देश पर्यावरण के सम्बन्ध में अग्रणि हैं वे ऐसे ही देश हैं जहाँ मानवीय बर्डन प्रकृति पर कम है| अर्थात् अपार प्राकृतिक सम्पदावाले कम आबादी के देश| इसी तथ्य में एक अर्थ में इस पूरी समस्या की जड़ और उसका समाधान भी है| हमारी आबादी और उसका प्रबन्धन कैसे करना यह एक बहुत अप्रिय प्रश्न है| और उल्लेखनीय है कि कोई इस पर बात भी करना नही चाहता है| उल्टा आज तो हर समाज और हर राजनेता अपने अपने समाज के लोगों की संख्या बढ़ाने पर ही जोर दे रहे हैं| लेकिन अब स्थिति बहुत ही विपरित हो रही है| एक समय में 'हम दो हमारे दो' या 'हम दो हमारा एक' ऐसी बातें ठीक थी| आज के समय में प्रकृति पर इन्सान का बर्डन और इन्सान का इन्सान पर होनेवाला बर्डन देखते हुए वस्तुत: आज ऐसे कपल्स का सम्मान किया जाना चाहिए जो माता- पिता नही बनना चाहते हैं| सिर्फ सम्मान नही, सरकार द्वारा ऐसे लोगों के लिए इन्सेन्टिव भी शुरू किया जाना चाहिए| क्यों कि अगर इसी क्रम से आबादी बढ़ती रही तो आनेवाली पिढियों को कुछ भी नही मिलेगा| एक ज़माने में जैसे आक्रमक ताकतें सारी दुनिया पर आक्रमण करती थी, उसी तरह इन्सान पूरी धरती पर आक्रमण करता जा रहा है| इसलिए अगर कुछ ठोस परिवर्तन लाना हो तो इन्सान के द्वारा प्रकृति पर हो रहे आक्रमण को रोकना ही होगा और उसके लिए जनसंख्या कम करना एक बेहद अहम पहलू है|
प्रकृति, पर्यावरण और हम ५: पानीवाले बाबा: राजेंद्रसिंह राणा
प्रकृति, पर्यावरण और हम ६: फॉरेस्ट मॅन: जादव पायेंग
प्रकृति, पर्यावरण और हम ७: कुछ अनाम पर्यावरण प्रेमी!
प्रकृति, पर्यावरण और हम ८: इस्राएल का जल- संवर्धन
दुनिया के प्रमुख देशों में पर्यावरण की स्थिति
इस्राएल की बात हमने पीछले लेख में की| इस्राएल जल संवर्धन का रोल मॉडेल हो चुका है| दुनिया में अन्य ऐसे कुछ देश है| जो देश पर्यावरण के सम्बन्ध में दुनिया के मुख्य देश हैं, उनके बारे में बात करते हैं| एनवायरनमेंटल परफार्मंस इंडेक्स ने दुनिया के १८० देशों में पर्यावरण की स्थिति की रैंकिंग की है| देशों में पर्यावरण का कार्य कैसे चल रहा हैं, इसका यह एक मापदण्ड कहा जा सकता है| इस रैंकिंग में सबसे उपर के पाँच देश ये हैं- फिनलैंड, आईसलैंड, स्वीडन, डेन्मार्क और स्लोवेनिया| और जो सबसे नीचले देश हैं वे ऐसे हैं- अफघनिस्तान, नायजर, मादागास्कर, एर्ट्रिया और सोमालिया| विशेष बात यह है कि जो देश सबसे उपरी हैं उनमें पाँच देश उत्तर युरोप के प्रगत देश हैं और सिर्फ स्लोवेनिया उनकी तुलना में थोड़ा कम प्रगत देश है| और सबसे नीचे होनेवाले देश मुख्य रूप से राजनीतिक अस्थिरता होनेवाले देश हैं| सौभाग्य की बात है कि इस देश में सबसे नीचले देशों की सूचि में भारत नही हैं| इस रैंकिंग के कई निकष हैं- जैसे सरकार पर्यावरण के लिए कितनी प्रतिबद्ध हैं, प्रदूषण का स्तर कैसा हैं, कार्बन इमिशन्स कितने अनुपात में हैं, प्रजातियों के संवर्धन की क्या स्थिति है, पानी की एवलिबिलिटी कैसी हैं आदि|
प्रकृति, पर्यावरण और हम ५: पानीवाले बाबा: राजेंद्रसिंह राणा
प्रकृति, पर्यावरण और हम ६: फॉरेस्ट मॅन: जादव पायेंग
प्रकृति, पर्यावरण और हम ७: कुछ अनाम पर्यावरण प्रेमी!
इस्राएल का जल- संवर्धन
इस्राएल! एक छोटासा लेकिन बहुत विशिष्ट देश! दुनिया के सबसे खास देशों में से एक! इस्राएल के जल संवर्धन की चर्चा करने के पहले इस्राएल देश को समझना होगा| पूरी दुनिया में फैले यहुदियों का यह देश है| एक जमाने में अमरिका से ले कर युरोप- एशिया तक यहुदी फैले थे और स्थानिय लोग उन्हे अक्सर 'बिना देश का समाज' कहते थे| यहाँ तक कि युरोप और रूस में यहुदियों को दुश्मन समझ कर उन्हे देश से निकाला गया| खास कर द्वितीय विश्व युद्ध में यहुदियों पर ढाए गए जुल्म! साठ लाख से अधिक यहुदियों को तो नाझी जर्मनी ने मार दिया| जिस समाज का अपना देश नही था- जो अलग अलग देशों में बिखरे थे; जिनकी अपनी पहचान नही थी उस समाज १९४८ में एक नया देश बन गया!
अक्सर कहा जाता है कि कोई बात अगर एक छोर तक जाती है, तो उसमें बिल्कुल विपरित छोर के गुणधर्म आ जाते हैं| जैसे सैकडों वर्षों तक यहुदियों ने मुसीबत, संघर्ष और चुनौतियों का सामना किया और इसीके कारण उनका देश खड़ा हुआ जो उस समाज के स्थिति के ठीक विपरित है- सशक्त, समर्थ और बड़ी पहचानवाला! जैसे अगर कोई अंगुलीमाल जैसा क्रूर और खूंखार हो जाता है, तो उस छोर से- उस एक्स्ट्रीम से उसका सन्त बनना दूर नही होता है| बस एक ही बात चाहिए कि उस इन्सान या उस चीज़ को उस छोर के अन्त पर पहुँचना चाहिए| जो लोग वाकई धनवान होते हैं; सम्पत्ति अर्जित करते हैं, वे ही एक दिन उस धन- दौलत के मोह से छूट भी सकते हैं| जैसे पानी अगर १०० डिग्री तक गरम हो, तो ही भांप बनता है; कुनकुने पानी में वह बात नही होती है| उसी तरह जिस समाज को बुरी तरह सैकडों सालों तक लताडा गया, जीसस को सूली देने की सजा दिन्हे दो हजार सालों तक मिलती रही; आखिर कर उनकी किस्मत ने करवट ले ली| १९४८ में इस्राएल का जन्म हुआ|