Friday, December 29, 2017

योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा ९ (अन्तिम): अजिंक्यतारा किला और वापसी

योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा १: असफलता से मिली सीख
योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा २: पहला दिन- चाकण से धायरी (पुणे)  
योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा ३: दूसरा दिन- धायरी (पुणे) से भोर  
योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा ४: तिसरा दिन- भोर- मांढरदेवी- वाई  
योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा ५: चौथा दिन- वाई- महाबळेश्वर- वाई
योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा ६: पाँचवा दिन- वाई- सातारा- सज्जनगढ़
योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा ७: छटा दिन- सज्जनगढ़- ठोसेघर- सातारा

योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा ८: सांतवा दिन- सातारा- कास पठार- सातारा

९ (अन्तिम): अजिंक्यतारा किला और वापसी

इस यात्रा का सम्बन्ध ध्यान- योग से किस प्रकार है, यह जानने के लिए यह पढ़िए|

५ अक्तूबर की सुबह| आज इस यात्रा का अन्तिम पड़ाव है| आज अजिंक्यतारा किला देख कर वापस जाना है| कल- परसो जब भी‌ इस किले के पास से जाता था तो इस किले को देख कर डर सा लगता था| अतीत में एक बार इस किले पर मोटरसाईकिल पर गया था, लेकीन उस समय बड़ी मुश्कील से बाईक पहले गेअर पर चढ़ी थी| हालांकी आज के पहले लगातार कई दिनों तक मैने कई चढाईयाँ पार की है, इसलिए आगे बढ़ा| सुबह यह किला देख कर जल्दी वापस निकलना है|






सातारा गाँव में सड़क एक बार पूछ कर जल्द ही किले के पास पहुँच गया| कई लोग मॉर्निंग वॉक/ जॉगिंग करते हुए दिखाई दे रहे हैं| किले के नीचे कई संस्थाएँ दिखी जो घूमन्तू समुदायों पर काम करती हैं| धीरे धीरे आगे बढा| किला कितना बड़ा है, इसका पता चलने लगा| एक मोड़ के बाद बड़ी तिखी चढाई शुरू हुई| इस पूरी यात्रा में यही चढाई सबसे कठिन लगी| हालाकी साईकिल चला नही‌ पाऊंगा ऐसा नही लगा| इस चढाई का आनन्द लेते लेते आगे जाता रहा| यह सड़क बीच में घने पेडों से गुजरती है| सड़क के ठीक उपर ऊँचे पेडों पर एक मोर बैठ कर गूँज कर रहा था! तेज़ चढाई होने के कारण फोटो के लिए नही‌ रूका| आखिर कर इस लगभग दो- ढाई किलोमीटर की चढाई के लिए करीब पच्चीस मिनट लगे| 







उपर पहुँचते समय एक जगह नीचे से पगडण्डी भी आ कर सड़क को मिलती है| वहाँ से नीचे चढनेवाले लोग भी दिखाई दे रहे थे| यह पगडण्डी तो लगभग साठ डिग्री के कोण में चढ रही है! इस किले से काफी दूर का नजारा दिखाई दे रहा है| अजिंक्य तारा किला! मराठा इतिहास में जिसका स्थान बहुत अहम है ऐसा किला! किले पर फोटो खींच कर तुरन्त वापस निकला| वापस जाते समय मोर नही दिखा|



उपर से दिखता नजारा






अब जहाँ ठहरा हूँ, उन अंकल के पास जा कर सामान ले कर वापस निकलना है| इतने दिनों तक विरान जगहों पर साईकिल चलाई है, इसलिए शहर में‌ साईकिल चलाते समय अलग महसूस हो रहा है| शहर में भीड़- भाड़ में हमेशा कुछ तकलीफ होती है और हमारा मन तुरन्त कहता है कि अन्धे हो क्या, दिखाई नही देता है? हमें अक्सर लगता है कि कुछ लोग सामने देखे बिना ही गाडी चलाते हैं| लेकीन ऐसे समय यह भी देखना चाहिए कि हम भी तो कहाँ अपने चलाने पर ध्यान दे रहे हैं! हम भी तो अपना ध्यान भटकते हैं और सामनेवाले की तरफ ध्यान देते हैं| अगर हम थोड़े से सचेत रह कर ध्यान अपनी‌ तरफ से ठीक रखे; अपने चलाने पर ही‌ दे; तो कितनी भी भीड हमें अस्वस्थ नही कर सकती है! इससे एक कहानी याद आती है|

एक बार गौतम बुद्ध प्रवचन कर रहे थे| उनके साथ आनन्द थे और तीन लोग प्रवचन सुन रहे थे| उन लोगों का ध्यान बुद्ध की तरफ नही था| इसलिए बुद्ध बार बार वचन दोहरा रहे थे| यह देख कर आनन्द से न रहा गया और उसने बुद्ध से कहा, भंते इन लोगों का ध्यान नही है तो आप क्यों कहे जा रहे हैं? वे तो सुन ही नही‌ रहे हैं| इस पर बुद्ध ने कहा कि उनका ध्यान नही है, इसी लिए तो मै उनसे बार बार कह रहा हूँ| और तुमको क्या पड़ी है कि तुम उनकी तरफ देखो कि वे सुन भी रहे हैं या नही? तुम भी उनकी तरफ ही तो देख रहे थे!

इससे एक बात मन में याद रखने की कोशिश करता हूँ कि जब भी भीड़ से गुजरते समय मन में विचार आता है कि कैसे अन्धे हो कर लोग गाड़ी चलाते है, तो तुरन्त यह समझना चाहिए कि हम भी अन्धे होंगे, इसलिए उन पर हमारा ध्यान गया है! अगर हम अपनी राह पर ध्यान दे रहे होते तो उनका बीच में आना भी हमें दिखाई न देता! खैर!



पगडण्डी!


ये अजिंक्यतारा वो सातारा

देखते देखते यह आठ दिन की साईकिल यात्रा पूरी हुई! अजिंक्य तारा किला क्लायमैक्स रहा और सज्जनगढ़, मांढरदेवी घाट, स्वर्णिम कास पठार और अन्य कई सारे उसके बेहतरीन पल रहे! एक तरह से तो यकीन भी नही होता है| लेकीन अब आज वापस जाना है| दो दिन जिनके साथ रहा और इस यात्रा में जिन जिन लोगों ने सहायता की, उनको धन्यवाद देते हुए वापिस निकला| कुछ लोग बस स्टँड तक छोडने भी आए| फिर एक बार साईकिल बस से ले जाने की कवाईत की| साईकिल चलाने का मतलब सिर्फ साईकिल चलाना नही होता है! उसके साथ बाकी भी कई तरह के काम करने होते हैं! खैर! और एक व्यक्ति को इस यात्रा के लिए धन्यवाद देना ही चाहिए! मेरी साईकिल! उसने एक भी शिकायत किए बिना पूरी यात्रा में साथ दिया| सात दिनों में ३५० से अधिक किलोमीटर कई घाट और चढाईभरी सड़कों पर साईकिल चला सका! इस यात्रा से साईकिल चलाने का विश्वास बहुत मिला| महाराष्ट्र की कई बड़ी चोटियाँ और चढाईयाँ पार करने के बाद अब इससे भी ऊँचा पर्वत पुकार रहा है! अन्त में इतनी साईकिल चलायी की, जैसे साईकिल चलाना महसूस ही नही हो रहा है! अपने आप मन कह रहा है, इतनी साईकिल चलाई तो क्या? सो व्हॉट!



अजिंक्यतारा किले का रूट


चढाई जिसमें एक किलोमीटर में 120 मीटर चढाई है|




अगली यात्रा तक आपसे विदा लेता हूँ! यह पढने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद!

6 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (30-12-2017) को "काँच से रिश्ते" (चर्चा अंक-2833) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    क्रिसमस हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
  2. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, ख़ुशी की कविता या कुछ और?“ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    ReplyDelete
  3. शानदार यात्रा का समापन।
    उम्मीद है शीघ्र ऐसी ही जोरदार यात्रा मिलेगी।

    ReplyDelete
  4. The 6 mukhi Rudraksha bead works on the Muladhara chakra and promotes grounding, focus and perfection.

    ReplyDelete

आपने ब्लॉग पढा, इसके लिए बहुत धन्यवाद! अब इसे अपने तक ही सीमित मत रखिए! आपकी टिप्पणि मेरे लिए महत्त्वपूर्ण है!