Friday, May 25, 2018

एटलस साईकिल पर योग- यात्रा: भाग २: परभणी- जिंतूर नेमगिरी

२: परभणी- जिंतूर नेमगिरी
११ मई को सुबह ठीक साढेपाँच बजे परभणी से निकला| कई लोग विदा देने आए, जिससे उत्साह बढा है| बहोत से लोगों ने शुभकामनाओं के मॅसेजेस भी भेजे हैं| कुछ दूरी तक मेरे प्रिय साईकिल मित्र और मेरे रनिंग के गुरू बनसकर सर भी मेरे साथ आए| मै जो एटलस साईकिल चला रहा हूँ, उनकी ही है! पैर में दर्द होने पर भी वे मेरे साथ चलने आए| कुछ समय तक उनका साथ मिला और फिर आगे बढ़ चला| योग प्रसार हेतु साईकिल के हमारे ग्रूप पर मेरा लाईव लोकेशन डाला है| आज का पड़ाव वैसे घर से आँगन तक जाने का ही है| पहले कई बार जिंतूर- नेमगिरी गया हूँ| साईकिल पर मेरा पहला शतक इसी रूट पर हुआ था, इसलिए एक तरह से आज का चरण बहुत सामान्य सा लग रहा है| जिंतूर घर से ४५ किलोमीटर है और वहाँ सामान छोड कर पास ३ किलोमीटर पर होनेवाली नेमगिरी चोटी पर जा कर आऊँगा|






३ लीटर पानी साथ ले कर जा रहा हूँ| उसमें भी इलेक्ट्रॉल मिलाया हुआ है| साथ में चिक्की- बिस्कीट भी रखा है जिसे बीच बीच में खाता रहूँगा| पहले आधे घण्टे के बाद शरीर लय में आ गया और आराम से आगे बढ़ने लगा| धूप अभी हल्की है| इस बार सोच रहा हूँ कम से कम ब्रेक लूँगा| सड़क पर होटलों में खाने के विकल्प ज्यादा नही है| इसलिए चाय बिस्किट खा के आगे बढ़ूँगा| बहोत देर तक पहला ब्रेक लेने की इच्छा नही हुई| ३० किलोमीटर पूरे होने पर बोरी नाम के गाँव में पहला ब्रेक लिया| चाय- बिस्किट लिया और आस- पास होनेवाले लोगों को मेरी यात्रा के बारे में बताया और संस्था के ब्रॉशर्स भी दिए| अब बचे हैं सिर्फ पन्द्रह किलोमीटर| लेकीन अब धूप बढ़ने लगी है और मेरे शरीर में डिहायड्रेशन के लक्षण नजर आ रहे है| शायद बड़े अन्तराल बाद पहला ब्रेक लिया, उससे ऊर्जा स्तर भी थोड़ा कम है| लेकीन आगे बढ़ता रहा| जिंतूर के छह किलोमीटर पहले चांदज गाँव में कुछ लोग सड़क पर काम कर रहे थे, उन्होने मेरा फोटो खींचा| बाद में पता चला कि वे पानी फाउंडेशन के कार्यकर्ता है और इधर के गाँवों में जल- संवर्धन (वॉटर कन्जर्वेशन) के लिए काम कर रहे हैं| महाराष्ट्र के कई गाँवों में अमीर खान के पानी फाउंडेशन का काफी अच्छा काम चल रहा है| उन्होने मेरी यात्रा को शुभकामनाएँ दी और मैने उनके कार्य को| साथ में कुछ ब्रॉशर्स भी दिए| अब जिन्तूर बस छह किलोमीटर|


सामने दिख रही छोटी पहाडियों की उपस्थिति में जल्द ही जिंतूर पहुँच गया| यहाँ जिंतूर के योग- शिक्षक और योग साधक मेरे स्वागत के लिए तैयार हैं| उनके साथ कुछ साईकिलिस्टस भी हैं| लेकीन अब पहुँचने पर मुझे अच्छी खासी थकान लग रही है| जैसे तैसे उनके स्वागत का स्वीकार किया, थोड़ी बात की और जहाँ आज ठहरना है, वहाँ मेरा सामान रखा और नेमगिरी के लिए निकला| नेमगिरी महज तीन किलोमीटर दूर है| एक योग कार्यकर्ता मते सर साईकिल ले कर साथ आए| नेमगिरी एक प्राचीन जैन तीर्थ स्थान है| पहले कई बार यहाँ आया हूँ| यहाँ एक छोटा एक किलोमीटर का घाट आता है| अपेक्षाकृत वहाँ साईकिल नही चला पाया और पैदल जाना पड़ा| जब गेअर की साईकिल पर सबसे पहली बार यहाँ आया था, तब भी पैदल ही चला था| लेकीन बाद में अच्छे अभ्यास से दूसरी गेअर की साईकिल पर आराम से यह घाट पार किया था| लेकीन यह एटलस की सिंगल गेअर साईकिल, यह नही चढेगी| इसलिए लगभग एक किलोमीटर चलना हुआ| पैर भी कुछ हल्के हो गए|




लेकीन अब थकान अत्यधिक लग रही है| और सच कहूँ तो हीट स्ट्रोक का डर लग रहा है| जैसे तैसे नेमगिरी की विशाल मूर्तियों का दर्शन किया| आते समय ढलान ने साथ दिया और खुद को घसीटते घसीटते ठहरने की जगह तक साईकिल चलायी| परभणी में विदा देते समय कुछ लोग मुझे एनर्जाल दे रहे थे, लेकीन सामान ज्यादा है, कह कर मैने मना किया था| लेकीन अब मै एनर्जाल के ही सहारे हूँ| योग शिक्षकों ने मुझे एनर्जाल और इलेक्ट्रॉल ला के दिया| धीरे धीरे विश्राम की कोशिश शुरू की| लेकीन स्थिति इतनी नाजुक है कि ठिक से विश्राम भी नही कर पा रहा हूँ| डिहायड्रेशन के लक्षण साफ नजर आ रहे हैं| तब बहुत अधिक मात्रा में इलेक्ट्रॉलयुक्त पानी पीना शुरू‌ किया और बड़ी मुश्किल से तीन- चार घण्टों बाद कुछ राहत मिली| रात भर नीन्द नही हुई थी, इसलिए दोपहर में एक घण्टा नीन्द मुझे बहुत अनिवार्य है| लेकीन वह मिली नही| इसलिए करीब डेढ घण्टे तक आँखे बन्द कर पड़ा रहा| और उसके बाद लैपटॉप पर मेरा ऑफीस का काम भी किया| दोपहर में नल के पानी को हाथ लगाने पर हाथ तप रहा है! ऐसे में एक बार तो लगा कि मेरी यह पूरी योजना बहुत ही दिक्कतभरी है| क्या मै योजना के अनुसार साईकिल चला पाऊँगा? लेकीन जल्द ही विश्वास मिला क्यों की किसी भी साईकिल यात्रा में पहला दिन ही सबसे कठीन होता है| शरीर लय में आने में समय लगता है| और साईकिल के टायर्स बदले हैं, इसलिए वे थोड़े हेवी लग रहे हैं| दो- तीन दिनों में वे भी कुछ एडजस्ट हो जाएंगे जिससे थोड़ी आसानी होगी| शाम होते होते डीहायड्रेशन के लक्षण भी कुछ कम हुए| पूरे दिन पारवे सर और अन्य योग साधकों का बहुत सहयोग रहा जिससे कुछ तो विश्राम हो सका|

शाम को ऐसी ही थकी और कम नीन्द की स्थिति में जिंतूर के योग- प्रेमियों के साथ मीटिंग की| जिंतूर के बोर्डीकर महाविद्यालय के परिसर में यह मीटिंग हुई| मीटिंग नही अनौपचारिक बातचीत कहना चाहिए| पच्चीस से तीस योग साधक आए| निरामय संस्था के पाँच योग- शिक्षक है ही, उनके अलावा अन्य भी कुछ ग्रूप्स है| पतंजली एवम् आर्ट ऑफ लिविंग से जुड़े लोग भी है| और सबसे बड़ा ग्रूप तो जिंतूर के एक योग शिक्षक काकडे सर का है| ये वास्तव में पुलिस अफसर है, लेकीन कई सालों से योग सीखाते हैं और उनकी अपनी साधना तो चालीस साल पुरानी है| अय्यंगार प्रणाली का योग वो सीखाते हैं| उनके कई विद्यार्थी भी उपस्थित थे| पाँच- छह महिलाएँ भी थी| सबने अपना परिचय दिया और योग के साथ सम्बन्ध बताया| जो लोग योग साधक या योग प्रशिक्षण न लेनेवाले हैं, वे भी लग रहा है कि एक तरह से योग साधक ही है| क्यों कि चर्चा में उनकी योग में रूचि, आस्था और जागरूकता भी सामने आयी| सभी ने योग से जुड़े अपने अनुभव कहे| फिर थोड़ी मेरे बारे में भी बात की| कैसे मै इररेग्युलर से रेग्युलर योग साधक बन रहा हूँ, योग- ध्यान और साईकिलिंग में मैने क्या अनुभव किया है आदि पर थोड़ी बात रखी| कुल मिला कर अच्छी चर्चा हुई| और इस चर्चा के कारण और भी कुछ योग साधक सम्पर्क में‌ आए| कुल मिला कर बहुत अच्छी मीटिंग हुई और थकान के बावजूद मै उसमें अच्छा सहभाग ले पाया| शाम को भी साईकिल चलाई जिससे दिन में लगभग ५५ किलोमीटर साईकिल चलायी|

वहाँ से लौटने तक रात के नौ बज रहे हैं| बहुत थोड़ा खाना खा लिया और नीन्द के आगोश में चला गया| कल सवेरे फिर साढ़ेचार बजे उठना है, इसलिए आज रात मुझे कम से कम छह- सात घण्टों की नीन्द अनिवार्य है| अगर मै अच्छी नीन्द नही ले पाता हूँ, तो कल की मेरी योजना संकट में आएगी| लगातार कई दिनों तक साईकिल यात्रा में अच्छा विश्राम भी उतना ही अनिवार्य है| वर्क आउट के साथ वर्क इन (विश्राम, मन से रिलैक्स रहना, ध्यान आदि) भी करना होता है| तभी अगले दिन मै स्वस्थ और फ्रेश रहूँगा! इसी उम्मीद के साथ सो गया और अब अच्छी नीन्द भी आयी!

अगर आप चाहे तो इस कार्य से जुड़ सकते हैं| कई प्रकार से इस प्रक्रिया में सम्मीलित हो सकते हैं| अगर आप मध्य महाराष्ट्र में रहते हैं, तो यह काम देख सकते हैं; उनका हौसला बढ़ा सकते हैं| आप कहीं दूर रहते हो, तो भी आप निरामय संस्था की वेबसाईट देख सकते हैं; उस वेबसाईट पर चलनेवाली ॐ ध्वनि आपके ध्यान के लिए सहयोगी होगी| वेबसाईट पर दिए कई लेख भी आप पढ़ सकते हैं| और आप अगर कहीं दूर हो और आपको यह विचार ठीक लगे तो आप योगाभ्यास कर सकते हैं या कोई भी व्यायाम की एक्टिविटी कर सकते हैं; जो योग कर रहे हैं, उसे और आगे ले जा सकते हैं; दूसरों को योग के बारे में बता सकते हैं; आपके इलाके में काम करनेवाली योग- संस्था की जानकारी दूसरों को दे सकते हैं; उनके कार्य में सहभाग ले सकते हैं|

निरामय संस्था को किसी रूप से आर्थिक सहायता की अपेक्षा नही है| लेकीन अगर आपको संस्था को कुछ सहायता करनी हो, आपको कुछ 'योग- दान' देना हो, तो आप संस्था द्वारा प्रकाशित ३५ किताबों में से कुछ किताब या बूक सेटस खरीद सकते हैं या किसे ऐसे किताब गिफ्ट भी कर सकते हैं| निरामय द्वारा प्रकाशित किताबों की एक अनुठी बात यह है कि कई योग- परंपराओं का अध्ययन कर और हर जगह से कुछ सार निचोड़ कर ये किताबें बनाईं गई हैं| आप इन्हे संस्था की वेबसाईट द्वारा खरीद सकते हैं| निरामय संस्था की वेबसाईट- http://www.niramayyogparbhani.org/ इसके अलावा भी आप इस प्रक्रिया से जुड़ सकते हैं| आप यह पोस्ट शेअर कर सकते हैं| निरायम की वेबसाईट के लेख पढ़ सकते हैं| इस कार्य को ले कर आपके सुझाव भी दे सकते हैं|


अगला भाग: जिंतूर- परतूर

4 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (27-05-2018) को "बदन जलाता घाम" (चर्चा अंक-2983) (चर्चा अंक-2969) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत खूब साहस और विश्वास की जीत।

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  3. बढ़िया ! बधाई आपको !!

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