Sunday, May 27, 2018

एटलस साईकिल पर योग- यात्रा: भाग ३: जिंतूर- परतूर

३: जिंतूर- परतूर

१२ मई की सुबह| ठीक साढ़ेपाँच बजे जिंतूर से निकला| रात में अच्छी नीन्द होने से ताज़ा महसूस कर रहा हूँ| आज ६२ किलोमीटर साईकिल चलाने का उद्देश्य है| मेरे कारण जिंतूर के डॉ. पारवे जी सुबह जल्दी उठ गए और मुझे विदा देने के लिए भी सड़क तक आए| सुबह की ताज़गी में साईकिल चलाना एक बहुत बड़ा सुख है! अच्छी नीन्द के कारण थकान की भरपाई हो गई है| कल जब बहुत थकान के बीच एक बार हल्का सा डर लगा था, तब इस यात्रा पर कुछ क्षण प्रश्नचिह्न उठा था| लेकीन तब तय किया कि पूरी यात्रा के बारे में अभी सोचूँगा ही नही| अभी सिर्फ उस समय की स्थिति पर ध्यान दूँगा| इसलिए बस आज के पड़ाव के बारे में सोचते हुए आगे बढ़ चला| विपश्यना में इसे 'इस क्षण की सच्चाई' कहते हैं|

जिन्तूर से आगे बढ़ते समय सड़क के आसपास कुछ छोटी पहाडियाँ हैं| सड़क भी चढती- उतरती है| यह सिंगल गेअर की साईकिल होने के कारण चढाई महसूस होती है| साईकिल के टायर्स अभी पूरे एडजस्ट नही हुए हैं, इसलिए उतराई पर भी ज्यादा स्पीड नही मिल रही है| सड़क पर कुछ गावों में पाणी फाउंडेशन का बोर्ड दिखा| कल ही मंठा के योग- साधकों से बात हुई थी| आज मेरे रूट पर मंठा गाँव आएगा जो मेरी यात्रा में लौटते समय एक पडाव का स्थान होगा| मंठा से जाते समय उन्होने मिलने के लिए कहा है| इसलिए उनसे मिलूँगा|




कल जो गर्मी की तकलीफ हुई थी, उससे सीख ले कर आज मेरी दोनो बोतलों में इलेक्ट्रॉल खचाखच भर दिया है| लगभग हर १० किलोमीटर पर कुछ खा रहा हूँ- चिक्की या बिस्कीट| कल बहुत देर से पहला ब्रेक लिया था, इसलिए आज पहला ब्रेक उन्नीस किलोमीटर पर लिया| चाय- बिस्कीट का नाश्ता किया, वहाँ संस्था के ब्रॉशर्स दिये, इस यात्रा के बारे में बताया और आगे बढ़ चला| यहाँ पहले भी साईकिल चलाई है, इसलिए रूट तो परिचित है ही| घर के बाहर हूँ, पर अभी भी आँगन ही चल रहा है! आज उल्टी‌ दिशा में बहनेवाली हवा अर्थात् हेड विंड काफी तेज़ है और उससे मेरी गति थोड़ी कम हो रही है| फिर भी मज़ा आ रहा है! इतने सुहावने माहौल में साईकिल चला रहा हूँ कि मन में अपने आप कई सारे गीत गूँज रहे हैं| इससे आराम से साईकिल चलती रही, मै मन ही मन गाने सुनता रहा और बढ़ता गया|

सड़क पर एक जगह दूर कुत्ते तेज़ भागते हुए दिखे| एकदम पीले रंग के और जैसे गेंद बाऊंस होती है, ऐसे दौडते दिखे| ठीक से देखने पर पता चला कि ये तो हिरन हैं! वाह! एक जगह बन्दर भी मिले| इस तरह से अकेला चला रहा हूँ, पर फिर भी अकेला नही हूँ! मंठा पास आने पर वहाँ के योग साधकों से सम्पर्क किया| वैसे तो वे संस्था से प्रत्यक्ष जुड़े हुए नही है, लेकीन इस यात्रा के रूट में मंठा का एक पड़ाव होगा, इसलिए मंठा के लोगों से सम्पर्क किया| तब उनसे सम्पर्क हुआ| आदित्य सेवा संघ नाम की एक संस्था है| जब यात्रा के अन्तिम चरण में वापस लौटते समय मंठा आऊँगा, तब अधिक बात होगी| अभी ज्यादा समय नही है, क्यों कि धूप बढ़ने से पहले मुझे परतूर पहुँचना है| फिर भी उन कार्यकर्ताओं से थोड़ी देर मिला और उनके साथ नाश्ता भी किया| अभी दो- ढाई घण्टे साईकिल चलाई है, जिससे थोड़ी थकान भी लग रही है| थोड़ी देर बात कर निकला| यहाँ से एक जन परतूर ही जा रहे हैं, इसलिए मेरा लैपटॉप और सामान भी उनके साथ भेज दिया| इससे चलने में थोड़ी आसानी होगी| और सड़क के झटकों से चिन्ता नही होगी| नही तो लैपटॉप को नुकसान होने की आशंका होती है|

अब जालना जिला शुरू हो गया है| यहाँ मैने पहले जब साईकिल चलाई थी, तो हर बार यह क्षेत्र मुझे पूछता सा था- जाओगे ना (मराठी में जाल- ना का मतलब होता है जाओगे ना)? इस बार सब योग साधकों से मिलने की इच्छा के कारण आगे बढता गया| मन में यह भी विचार चल रहा है कि आज कौन कौन मुझे मिलेंगे, उनका काम कैसे होगा, कैसे मीटींग होगी| लेकीन धीरे धीरे धूप की वजह से परेशानी होने लगी| एक तो मंठा में थोड़ी देर तक रूकने से शरीर का टेंपो बिगड़ सा गया| अब ज्यादा किलोमीटर बचे नही है, लेकीन ज्यादा ऊर्जा भी बची नही है! जब परतूर १४ किलोमीटर रहा, तो गर्मी को झेलना कठीन होने लगा, इसलिए जब मेडीकल दुकान दिखा, तो दो लिक्विड एनर्जाल एक साथ पी डाले| थोड़ी सी राहत मिली| लेकीन आगे की सड़क पूरी खुदी हुई है! इसलिए आगे कम दूरी होने पर भी अधिक समय लग रहा है और दिक्कत भी हो रही है| ऐसे में बहुत थकी हालत में एक ट्रैक्टर पर बज रही परिचित गीत की धून ने बड़ा सहारा दिया! जैसे ही पसन्द का गीत सुनाई दिया, गर्मी की तकलीफ भूल कर मन ही मन उस गीत को याद कर सुनने लगा| जितना ध्यान उस गीत पर गया, उतना ध्यान गर्मी से हट गया और रास्ता पार होता गया!


५ किलोमीटर में यह app स्टॉप हुआ था|

करीब ग्यारह बजे परतूर के साईबाबा मंदीर के पास पहुँचा| यहाँ कुछ योग- साधकों ने मुझे रिसीव्ह किया और फिर ठहरने की जगह तक ले गए| डॉ. दिरंगे सर ने साईकिल चलाते हुए गाईड किया| डॉ. आंबेकर सर के घर पहुँचने पर और एक बार स्वागत हुआ, कुछ देर बैठा, थोड़ी बातचीत की| कल जितना नही, लेकीन फिर भी बहुत थकान महसूस कर रहा हूँ| क्रिकेट की भाषा में कहे तो कल आठ विकेट आउट हुए थे, आज सात विकेट आउट हुए है| लेकीन एक बार घर पहुँचने पर धीरे धीरे स्वस्थ होता गया| जल्द ही फ्रेश हो कर विश्राम शुरू किया| आज लगभग ६३ किलोमीटर साईकिल चलाई| विपरित दिशा की हवा के कारण गति थोड़ी कम रही| दोपहर में भोजन के पश्चात् और विश्राम किया, थोड़ी नीन्द भी लगी| और बाद में लैपटॉप पर दो ढाई घण्टे काम भी कर पाया| अर्जंट सबमिशन्स पूरी कर दी| कल की तुलना में जल्दी रिकवर हो रहा हूँ| शरीर भी कुछ हद तक अभ्यस्त हुआ है| निश्चित रूप से आगामी दिनों में यह यात्रा और आसान होती जाएगी|

अब प्रतीक्षा है शाम की मीटिंग की| सुबह पहुँचने पर ही देखा था कि परतूर में योग साधिकाओं की 'नारी शक्ति टीम' बहुत सक्रिय है| शाम को मीटींग में इसकी प्रतिति हुई| लगभग पच्चीस- तीस योग शिक्षक- शिक्षिकाएँ और साधक मीटिंग के लिए आए| पहली बात अच्छी लगी कि मेरा परिचय अनौपचारिक ढंग से किया गया! मीटिंग भी मीटिंग न हो कर एक अनौपचारिक चर्चा जैसी हुई| सबने अपना अपना परिचय दिया और योग से सम्बन्ध बताया| यहाँ जालना के चैतन्य योग केन्द्र के लगभग आठ सक्रिय योग साधक है| जिन्होने या तो योग अध्यापन का डिप्लोमा पूरा किया है या कर रहे हैं| और जो योग छात्र नही है, तो भी उनके पास योग का अच्छा ज्ञान नजर आ रहा है| और जब चर्चा में सम्मीलित लोगों में जागरूकता का इतना स्तर होता है, तो चर्चा भी बहुत अच्छी होती है| यहाँ महिलाओं की टीम बहुत सक्रिय हैं| योग और योग साधना, योग अध्यापन के कई पहलूओं के बारे में चर्चा हुई| यहाँ की टीम की क्षमता को देख कर साफ लग रहा है कि बहुत जल्द परतूर में इसी कोर्स का उनका अलग सेंटर शुरू होगा, उन्हे इस कोर्स के लिए जालना जाने की आवश्यकता नही रहेगी| सभी ने योग से जुड़े अपने अनुभव रखे, योग करने में आनेवाली कठिनाईयों का जिक्र किया| कठिनाईयाँ अनेक तरह की हो सकती हैं, जैसे महिला साधिकाओं के लिए सुबह घर का काम छोड कर योग क्लास में आना आसान बात नही है| लेकीन समस्या हो तो उसका इलाज भी होता है| और किसी दिशा में आगे बढ़ने के लिए साथी चाहिए जो इस टीम में निश्चित रूप से हैं| इस टीम से मिल कर नई ऊर्जा मिली| किसी भी सामाजिक काम को आगे बढ़ाना हो तो उसके लिए कार्यकर्ताओं की टीम चाहिए| संगठन चाहिए| यहाँ पर उसकी उपस्थिति साफ महसूस हुई| चर्चा में ही ग्रूप के आगामी आयोजन के बारे में बात हुई| योग- कार्य को आगे ले जाने के बारे में बात हुई| इस टीम की मुख्य कार्यकर्ता और योग साधिका अदिती योग प्रतियोगिता में अब राष्ट्रीय स्तर पर जा रही हैं|




इसी चर्चा में अन्त में मैने मेरे योग- ध्यान और साईकिलिंग से जुड़े अनुभव बताए| चर्चा में सबका अच्छा सहभाग होने के कारण मेरे लिए बोलना आसान भी हुआ और मेरे विचार भी रख सका| मीटिंग समाप्त होने तक बरसात शुरू हुई जिससे वातावरण और प्रफुल्लित बना| इन सभी योग साधकों से मिल कर बहुत आनन्द हो रहा है| और मुझसे मिल कर उन्हे भी! फिर थोड़ा व्यक्तिगत मिलना हुआ और जल्द ही बहुत हल्का रात्रि भोज ले कर नीन्द के लिए तैयार हुआ| जितना जल्द हो सके, उतना जल्द सोने के का प्रयास रहेगा, उससे सुबह जल्द उठने में आसानी होगी| आज दूसरा दिन पूरा हुआ, कई साधकों से मिलना हुआ और दो दिनों में लगभग ११७ किलोमीटर की साईकिलिंग भी हुई|  

अगर आप चाहे तो इस कार्य से जुड़ सकते हैं| कई प्रकार से इस प्रक्रिया में सम्मीलित हो सकते हैं| अगर आप मध्य महाराष्ट्र में रहते हैं, तो यह काम देख सकते हैं; उनका हौसला बढ़ा सकते हैं| आप कहीं दूर रहते हो, तो भी आप निरामय संस्था की वेबसाईट देख सकते हैं; उस वेबसाईट पर चलनेवाली ॐ ध्वनि आपके ध्यान के लिए सहयोगी होगी| वेबसाईट पर दिए कई लेख भी आप पढ़ सकते हैं| और आप अगर कहीं दूर हो और आपको यह विचार ठीक लगे तो आप योगाभ्यास कर सकते हैं या कोई भी व्यायाम की एक्टिविटी कर सकते हैं; जो योग कर रहे हैं, उसे और आगे ले जा सकते हैं; दूसरों को योग के बारे में बता सकते हैं; आपके इलाके में काम करनेवाली योग- संस्था की जानकारी दूसरों को दे सकते हैं; उनके कार्य में सहभाग ले सकते हैं|

निरामय संस्था को किसी रूप से आर्थिक सहायता की अपेक्षा नही है| लेकीन अगर आपको संस्था को कुछ सहायता करनी हो, आपको कुछ 'योग- दान' देना हो, तो आप संस्था द्वारा प्रकाशित ३५ किताबों में से कुछ किताब या बूक सेटस खरीद सकते हैं या किसे ऐसे किताब गिफ्ट भी कर सकते हैं| निरामय द्वारा प्रकाशित किताबों की एक अनुठी बात यह है कि कई योग- परंपराओं का अध्ययन कर और हर जगह से कुछ सार निचोड़ कर ये किताबें बनाईं गई हैं| आप इन्हे संस्था की वेबसाईट द्वारा खरीद सकते हैं| निरामय संस्था की वेबसाईट- http://www.niramayyogparbhani.org/ इसके अलावा भी आप इस प्रक्रिया से जुड़ सकते हैं| आप यह पोस्ट शेअर कर सकते हैं| निरायम की वेबसाईट के लेख पढ़ सकते हैं| इस कार्य को ले कर आपके सुझाव भी दे सकते हैं| मेरे ब्लॉग पर www.niranjan-vichar.blogspot.in आप मेरी पीछली साईकिल यात्राएँ, अन्य लेख आदि पढ़ सकते हैं| आप मुझसे फेसबूक पर भी जुड़ सकते हैं| बहुत बहुत धन्यवाद!


अगला भाग: परतूर- अंबड

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (29-05-2018) को "सहते लू की मार" (चर्चा अंक-2985) पर भी होगी।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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