Saturday, June 2, 2018

एटलस साईकिल पर योग- यात्रा: भाग ४: परतूर- अंबड

४: परतूर- अंबड
 

योग साईकिल यात्रा का तिसरा दिन, १३ मई की सुबह| रात में अच्छा विश्राम हुआ है और कल जो योग साधकों से मिलना हुआ था, उससे भी बहुत ऊर्जा मिली है| इस यात्रा के लिए उत्साह और भी बढ़ गया है| कल जहाँ ठहरा था वह परतूर गाँव! इसे वैसे तो परतुड़ भी कहा जाता है|‌ और महाराष्ट्र और भारत के इतिहास में भी इस गाँव से जुड़ा एक घटनाक्रम है| १७६१ में पानिपत में मराठा सेना और अब्दाली के बीच पानिपत का तिसरा युद्ध हुआ| जब मराठा सेना इस युद्ध के लिए निकली थी, तो तब वह यहाँ परतूड़ में थी| परतूड़ में पेशवा सदाशिवरावभाऊ की अगुवाई में मराठा सेना ने निज़ाम की सेना को मात दी थी|‌ यहीं मराठा सेना को अब्दाली और नजीबखान रोहीला की सेना ने मराठा सरदार दत्ताजी शिंदे को मात देने की की खबर मिली और सीधा परतूड़ से ही मराठा सेना दिल्ली के लिए निकली थी| 





आज परतूर से निकल कर अंबड पहुँचना है और यह यात्रा लगभग साठ किलोमीटर की होगी| परतूर से अंबड जाने के दो रास्ते हैं| परतूर के लोगों से बात कर के उनमें से एक रास्ता तय किया| जिनके पास कल ठहरा था, वे डॉ. आंबेकर सर मुझे छोडने के लिए स्टेशन तक साईकिल चला कर आए! कल रात बारीश होने से मौसम अब भी सुहावना है और बहुत बादल नजर आ रहे हैं! वाह! आज तिसरा दिन होने के कारण शरीर भी लय में हैं| परतूर से कुछ दूरी तक सड़क ठीक है, लेकीन जल्द ही बहुत साधारण सड़क शुरू हुई| एक तरह से यहाँ से अब इंडिया खतम हो कर भारत शुरू हुआ! बहुत छोटे छोटे कस्बे और खेत! कम यातायात की सड़क! लेकीन सुबह की ताज़गी और विराना! साथ में धूप का नामोनिशान नही! चारों ओर खेती और कुदरती सुन्दरता! आसपास कुछ छोटे पहाड़ भी हैं! इस कारण सड़क सामान्य होने पर भी आराम से आगे बढ़ता गया| एक- दो जगह पूछ कर आगे बढ़ा| सड़क बीच बीच में चढ रही‌ और उतर भी रही है| करीब दो घण्टे बाद घनसावंगी इस तहसील के गाँव में पहुँचा| यहाँ थोड़ा नाश्ता किया- वही‌ चाय बिस्कूट| होटलवाले ने मेरी साईकिल पर लगा छोटा बोर्ड देखा और कहा कि आप सेवा कर रहे हैं, आपसे कम पैसे लूँगा! मुझे तो यह आदमी भी अप्रत्यक्ष रूप से योग साधक या योगार्थी ही लगा| फिर उन्हे मेरी यात्रा के बारे में बताया, संस्था के ब्रॉशर्स दिए और आगे बढ़ा|



अब अच्छा हायवे तो जरूर शुरू हुआ है, लेकीन कुछ कुछ जगहों पर इसकी अवस्था भी ठीक नही है| लेकीन धूप अब भी न होने के कारण मौज में आगे बढ़ रहा हूँ| आज तक इतनी साईकिल चलाई है, कि   सामने छोटा नाला या पूल देखने पर तुरन्त समझ जाता हूँ कि भाई, यहां से आगे चढ़ाई मिलेगी| या जब कहीं पानी की टंकी देखता हूँ या मोबाईल टॉवर देखता हूँ, तो समझ जाता हूँ कि इसके आगे उतराई होगी! सड़क पर एक जगह तीर्थपूरी १३ किलोमीटर ऐसा पत्थर भी लगा| यहाँ से एक सड़क उस ओर जाती है| वहाँ दहीगव्हाण नाम के गाँव में मै पहले गया हूँ| उस गाँव में‌ अच्छा ग्राम विकास का कार्य चल रहा है| साथ में बायोगैस, जल संवर्धन आदि पर भी काम हो रहे हैं!

धीरे धीरे अंबड पास तो आ रहा है, लेकीन कुछ चढाई होने के कारण और आज भी हवा विपरित दिशा में बहने के कारण गति कम लग रही है| बीच बीच में सड़क पर से जानेवाले लोग मेरे तरफ देख रहे हैं, यदा कदा कोई बात भी कर रहा है| कम गति के बावजूद आसपास अच्छे नजारे हैं जो साईकिल चलाने का आनन्द दे रहे हैं| जब भी ऐसे नजारे देखता हूँ, तो मन में अपने आप गाना बजता है- ‘आओ हुजूर तुमको, सितारों में ले चलूँ! दिल झूम जाए ऐसी बहारों में ले चलूं!’ इसी गाने को मन ही मन सुनते आगे बढ़ता रहा| साईकिल की तारीफ जरूर करनी चाहिए, क्यों कि बहुत साधारण या निम्न- साधारण सड़कों पर भी उसने अच्छा साथ दिया| बाद में लगातार चढाई होने के कारण देर जरूर लगी, पर फिर भी समय रहते अंबड पहुँचा| मुझे रिसीव करने के लिए डॉ. जाधव सर साईकिल पर ही आए! उनके साथ फिर उनके घर गया| वहाँ और कुछ योग साधकों ने स्वागत किया| उनमें अंबड आर्ट ऑफ लिविंग के योग साधक हैं| उनमें एक फिरोज़ पठान भी है| उन्होने उनके काम के बारे में बताया, मेरी यात्रा के बारे में जान लिया, मुझे शुभकामनाएँ भी दी और आज श्री श्री गुरूजी का जन्मदिन होने के कारण उनका एक गाँव में एक कार्यक्रम है, उसके लिए भी मुझे बुलाया|


तिसरा दिन- परतूर से अंबड- ६० किमी

आज धूप बिल्कुल भी नही थी, इसलिए ज्यादा थकान भी नही हुई| अब इस रूटीन की आदत हो गई है, इसलिए दोपहर में थोड़ा विश्राम कर शाम की मीटिंग के लिए तैयार हुआ| डॉ. जाधव सर ने बताया कि अंबड में जालना के चैतन्य योग केंद्र की जो शाखा चलती है, उसके कई योग साधक या तो किसी कार्यक्रम में बाहर गए हैं या यात्रा में है| वैसे ये दिन शादी के महूरत के दिन भी हैं| इसलिए बहुत थोड़े ही साधक अंबड में हैं| शाम को मीटिंग के बजाय उन साधकों से अलग- अलग रूप से मिलना हुआ| अंबड शहर में डॉ. जाधव सर का जन- सम्पर्क देखने का अवसर मिला| योग से जुड़े कुछ साधकों के घर जा कर उनसे मिलना हुआ| उनके व्यक्तिगत योग कार्य के बारे में जानकारी मिली| इन सबके बीच डॉ. जाधव सर ने इस शाखा के कार्य की जानकारी बताई| यह वैसे जालना के चैतन्य योग केन्द्र का ही एक हिस्सा है| लेकीन यहाँ अभी कोर्स नया शुरू हुआ है, इसलिए सीखाने के लिए जालना से ही विशेषज्ञ आते हैं| और यहाँ की टीम भी अभी बन रही है| शाम को अंबड के मन्दीर में जाना हुआ| शाम को योग साधकों की टिम के एक साधक- श्री मेटकर जी बड़ी लम्बी यात्रा कर के आए और बिना चुके मुझे मिलने आए| उनसे भी इस काम के बारे में जानकारी मिली| कुल मिला कर ऐसा लगा कि यहाँ पर अभी टीम का गठन हो रहा है| अभी कार्यकर्ता सक्षम हो रहे हैं| शाम को आर्ट ऑफ लिविंग के कार्यक्रम में जाने की योजना तो थी, पर उस कार्यक्रम का समय देर रात तय हुआ और वह दूसरे गाँव में था| इसलिए वहाँ नही जा पाया|

अंबड में बैठक जैसी चर्चा तो नही हुई, लेकीन चार- पाँच कार्यकर्ताओं से मिलना जरूर हुआ| अंबड है तो तहसील, लेकीन फिर भी छोटा गाँव ही है| ऐसे जगह पर योग जैसे विषय पर काम करना आसान नही है| फिर भी यहाँ नियमित रूप से योग क्लासेस होते हैं; लोग योग करते हैं| इस क्षेत्र में आर्ट ऑफ लिविंग का काम भी अच्छा चल रहा है| अब कल इस यात्रा का एक अहम पड़ाव आएगा| कल मै अंबड से रोहिलागड होते हुए औरंगाबाद जाऊँगा|

अगर आप चाहे तो इस कार्य से जुड़ सकते हैं| कई प्रकार से इस प्रक्रिया में सम्मीलित हो सकते हैं| अगर आप मध्य महाराष्ट्र में रहते हैं, तो यह काम देख सकते हैं; उनका हौसला बढ़ा सकते हैं| आप कहीं दूर रहते हो, तो भी आप निरामय संस्था की वेबसाईट देख सकते हैं; उस वेबसाईट पर चलनेवाली ॐ ध्वनि आपके ध्यान के लिए सहयोगी होगी| वेबसाईट पर दिए कई लेख भी आप पढ़ सकते हैं| और आप अगर कहीं दूर हो और आपको यह विचार ठीक लगे तो आप योगाभ्यास कर सकते हैं या कोई भी व्यायाम की एक्टिविटी कर सकते हैं; जो योग कर रहे हैं, उसे और आगे ले जा सकते हैं; दूसरों को योग के बारे में बता सकते हैं; आपके इलाके में काम करनेवाली योग- संस्था की जानकारी दूसरों को दे सकते हैं; उनके कार्य में सहभाग ले सकते हैं|

निरामय संस्था को किसी रूप से आर्थिक सहायता की अपेक्षा नही है| लेकीन अगर आपको संस्था को कुछ सहायता करनी हो, आपको कुछ 'योग- दान' देना हो, तो आप संस्था द्वारा प्रकाशित ३५ किताबों में से कुछ किताब या बूक सेटस खरीद सकते हैं या किसे ऐसे किताब गिफ्ट भी कर सकते हैं| निरामय द्वारा प्रकाशित किताबों की एक अनुठी बात यह है कि कई योग- परंपराओं का अध्ययन कर और हर जगह से कुछ सार निचोड़ कर ये किताबें बनाईं गई हैं| आप इन्हे संस्था की वेबसाईट द्वारा खरीद सकते हैं| निरामय संस्था की वेबसाईट- http://www.niramayyogparbhani.org/ इसके अलावा भी आप इस प्रक्रिया से जुड़ सकते हैं| आप यह पोस्ट शेअर कर सकते हैं| निरायम की वेबसाईट के लेख पढ़ सकते हैं| इस कार्य को ले कर आपके सुझाव भी दे सकते हैं| मेरे ब्लॉग पर www.niranjan-vichar.blogspot.in आप मेरी पीछली साईकिल यात्राएँ, अन्य लेख आदि पढ़ सकते हैं| आप मुझसे फेसबूक पर भी जुड़ सकते हैं| बहुत बहुत धन्यवाद!


अगला भाग: अंबड- औरंगाबाद

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (03-06-2018) को "दो जून की रोटी" (चर्चा अंक-2990) (चर्चा अंक-2969) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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