१०: मेहकर- मंठा
आज यह लिखते समय बरसात शुरू हो गई है, लेकीन योग साईकिल यात्रा का नौवा दिन बहुत गर्मी का था- १९ मई की सुबह| आज लगभग ७० किलोमीटर साईकिल चलानी है| और आज की सड़क भी निम्न गुणवत्ता वाली है| इसकी एक झलक कल देखी है| इसलिए ये ७० किलोमीटर बेहद कठीन जाएंगे| सुबह मेहकर में मन्दीर के पास चलनेवाले एक महिला योग वर्ग की साधिकाओं से मिल कर आगे बढ़ा| आज की सड़क पर विश्व प्रसिद्ध लोणार सरोवर आएगा जो एक उल्का के गिरने से बना है| जल्द ही सुलतानपूर से आगे निकला| यहाँ से लोणार सिर्फ बारह किलोमीटर है, लेकीन अब सड़क बहुत बिगड़ने लगी| बिल्कुल उखडी हुई टूटी फूटी सड़क| नया चार या छह लेन का हायवे बनाने के लिए पूरी सड़क ही उखाड़ दी गई है| बीच बीच में थोड़ी सी सड़क; बाकी सिर्फ पत्थर और मिट्टी!
लोणार के कुछ पहले सड़क के पास एक खेत में एक लोमड़ी से मिलना हुआ| पहले तो कुत्ता ही लगा, लेकीन फिर काला मुंह और गुच्छे जैसी पूँछ! जरूर यह पानी की तलाश में खेत- गाँवों में आया होगा| उसने भी मुझे देखा, लेकीन उसे इन्सान देखनी की आदत होगी, इसलिए वह आगे बढ गया| यह मुख्य शहरों को जोड़नेवाली सड़क न होने के कारण यातायात कम ही है| धीरे धीरे लोणार पास आता गया| लेकीन उसके साथ यह भी तय हुआ कि आज यात्रा बिल्कुल कछुए की गति से होनेवाली है| लोणार गाँव के बाद नाश्ता किया और आगे सरोवर की तरफ बढ़ा| सरोवर सड़क के पास ही है| बचपन में एक बार यह सरोवर देखा था| आज की यात्रा बहुत लम्बी होने के कारण सड़क से थोड़ा हट कर उपर से ही सरोवर देखा और आगे बढ़ा| यह अभयारण्य होने के कारण मोर की आवाज आ रही है|
लोणार सरोवर!!
अब तक लगभग पच्चीस किलोमीटर हुए हैं और पैतालिस बाकी है| इसलिए पन्द्रह किलोमीटर के चरण पर ही ध्यान देते आगे बढ़ा| आज इस यात्रा का नौवा दिन होने के कारण शरीर बहुत लय में हैं और साईकिल चलाना बहुत आसान हुआ है| इससे बहुत आसानी हुई| अगर पहले दिनों में बड़ा चरण या ऐसी सड़क होती तो कठीन होता| बिना रूके एक घण्टे में लगभग तेरह किलोमीटर पार हुए| आधी दूरी पार हुई| लेकीन सड़क बिल्कुल पस्त है| अगर सिर्फ मिट्टी की कच्ची सड़क होती, तो भी ठीक होता| यह पत्थरों से भरी खुदी हुई सड़क है| यहाँ साईकिल का ख्याल रखते हुए बहुत धिरे से जाना होगा| आज की यात्रा ठीक एक टेस्ट क्रिकेट की इनिंग जैसी है! आज मुझे स्पीड और किलोमीटर देखने ही नही है| सिर्फ डटे रहना है, साईकिल चलानी है| आज सिर्फ विकेट पर रहना है, स्ट्राईक रेट आज मायने नही रखता! आज तो धैर्य के साथ खेलना है!
यह ऐसी सड़क है जिसपर किसी भी गाड़ी को चलाना एक दर्दभरा अनुभव है| यात्रियों के साथ गाड़ी के लिए भी! लेकीन मेरी साईकिल सब सही जा रही है| अब तक जितनी सड़कें देखी थी, उनमें यह सबसे विपरित है! धीरे धीरे जाता रहा| छोटे छोटे चरणों पर फोकस किया- ८, १० किलोमीटर के बाद ब्रेक लूँगा ऐसा सोचता हुआ जाता रहा| बीच बीच में बहुत छोटे गाँव और छोटे होटल लगे| एक जगह पर गन्ने का ज्युस लिया| यह देख कर दुख हुआ की गन्ने के गठरी को एक छोटी बच्ची ला रही थी| एक परिवार यह छोटा होटल चला रहा है और इसमें छोटे बच्चों को भी काम करना पड़ रहा है| हमारी सामाजिक प्रणालियाँ और हमारी सोच! क्या करे! थोड़ी देर में वहाँ से निकला| बीच बीच में लोग भी पूछताछ कर रहे हैं| अब बुलढाणा जिला समाप्त हो कर फिर जालना जिला शुरू हुआ जो हमेशा मुझे पूछता है- जाओगे ना? या पंक्चर हुए बिना जाओगे आज? पंक्चर होने की सम्भावना आज सबसे बड़ी है|
धिमी रफ्तार से जाने का एक लाभ जरूर मिल रहा है| थकान उतनी ज्यादा नही हो रही है| मंठा के कुछ किलोमीटर पहले तिसरा ब्रेक लिया| आज लम्बे समय तक साईकिल चलाने के कारण ज्यादा ब्रेक्स लेने पड़े| लेकीन अब मंठा पास आता जा रहा है| मंठा पास आने पर वहाँ के योग साधक श्री वगदे जी को फोन किया कि लगभग पौन घण्टे में पहुँचूँगा| साईकिल से उतर कर बात कर रहा था कि धूल का बहुत बड़ा बवंडर आया| एक पल के लिए सिर्फ धूल ही धूल रही| सब कुछ उसमें खो गया| अगर मै साईकिल से उतर कर खड़ा न होता, तो साईकिल समेत दूर फेंक दिया गया होता| इतना तेज बवंडर था| लेकीन वह तुरन्त निकल गया| मेरे पीछे एक बाईकवाला था, उसका चेहरा देखने लायक था! मंठा आने के पहले एक घाट आया| इस साईकिल पर यह दूसरा घाट- लेकीन मुझे यहाँ उतरना है| घाट से बहोत दूर तक का क्षेत्र दिखाई दे रहा है- वाटूर- परतूर तक का क्षेत्र दिखाई दिया जहाँ मै पहले दिनों में गया था| मंठा पास आने पर भी सड़क अपनी अवस्था पर अडीग रही| कोई भी सुधार नही| आखिर में तो जैसे रेगिस्तान में कोई हरियाली के लिए तड़फता है, वैसी मेरी अवस्था होने लगी| लगभग बारह बज चुके हैं| आज तक सभी यात्राएँ ग्यारह बजे तक पूरी की है, लेकीन आज लम्बी दूरी और घटिया सड़क के कारण देर हुई| ऐसे में जब शानदार हायवे सामने दिखाई देने लगा, तब बड़ा सुकून आया| आहा हा! एक तरह से घर भी आया, क्यों कि यहाँ तक बहुत बार आया हूँ और इसके बाद के दो पड़ाव आजके चरण के लिहाज़ से छोटे ही हैं!
आज कुल मिला कर ७१ किमी चलाई
फिर क्या, मंठा में श्री वगदे जी के यहाँ आराम किया और दोपहर में डॉ. चिंचणे जी के पास रूका| मंठा में निरामय योग संस्था या जालना के चैतन्य योग केंद्र के कोई साधक नही है, लेकीन यहाँ आदित्य सेवा संघ के कार्यकर्ताओं से सम्पर्क हुआ| जिंतूर से परतूर जाते समय उनसे मिला भी था| इसलिए शाम को आदित्य सेवा संघ के साधक और अन्य योग साधकों से चर्चा करूँगा| लेकीन चर्चा के पहले शाम को श्री वगदे जी और अन्य साधकों के साथ बहुत अच्छा वॉक करने का मौका मिला| ये सभी मित्र बहुत अनौपचारिक किस्म के लोग हैं! इसलिए बिना किसी औपचारिकता को बीच में लाए, पूरे मन से उनसे मिल सका| मन्दीर की छोटी पहाड़ी पर वे हर शाम तीन- चार किलोमीटर घूमते हैं| घूमते घूमते उनके कार्य के बारे में जानकारी भी मिली और चलने से पैरों को आराम भी मिला, पैर और रिलैक्स होते गए| आदित्य सेवा संघ एक ऐसी कार्यकर्ताओं की टीम है जो कुछ वर्षों से नियमित रूप से सेवा कार्य करती हैं| छात्रों को शिक्षा में सहायता करना, उन्हे सूर्य नमस्कार सीखाना, पढाई का सामान उपलब्ध कराना आदि काम करती हैं| इसके अलावा ये सभी सदस्य अलग तरह के योग साधक है| सभी सुबह चार बजे उठते हैं और नियमित रूप से सूर्य नमस्कार और अन्य व्यायाम करते हैं| उनके साथ मन्दीर के पास चलना वाकई एक रिफ्रेश करनेवाला अनुभव रहा|
शाम को डॉ. चिंचणे जी के यहाँ चर्चा हुई| उनके घर के छत पर चर्चा हुई| कई सारे योग साधक और उनसे जुड़े कार्यकर्ता आए| महिलाएँ कम थी, लेकीन चर्चा में उनका भी अच्छा सहभाग रहा| सब ने अपना परिचय दिया और योग साधना के बारे में बताया| यहाँ कोई विशिष्ट तरह की योग साधना ज्यादा लोग नही करते हैं, लेकीन अपने अपने हिसाब से योग करते हैं- जैसे जीवनशैलि में योग का अंगीकार (सुबह जल्द उठना, नियमित रूप से शारीरिक व्यायाम करना) है| एक पतंजलि योग पीठ की योग- साधिका आसपास के गाँवों में योग प्रसार हेतु शिविर लेती हैं| मै जिस लोणार के रास्ते आया था, वहीं पर उनका गाँव हैं| उनके पिताजी भी आए हैं| बच्चों और युवाओं के लिए शारीरिक व्यायाम एवम् खेल का क्या महत्त्व है, यह मुद्दा भी चर्चा में सामने आया| इस चर्चा की खास बात यह रही कि आदित्य सेवा संघ से जुड़े कुछ बच्चे भी इस चर्चा के लिए आए| वे भी सूर्य नमस्कार और अन्य आसन नियमित रूप से करते हैं| योग न करनेवाले भी कई लोग हैं जिन्हे अब योग करने की प्रेरणा मिलेगी| हर गाँव की तरह इस चर्चा के निमित्त से अन्य कुछ साधकों का भी आपस में सम्पर्क हुआ| और इसका एक कारण साईकिल भी है| अगर मै यही यात्रा और यही पहल अन्य गाड़ी पर करता, तो इतने लोग नही आते, आदित्य सेवा संघ के श्री खनके जी ने बताया| वे स्वयं संगीत और योग की साधना करते हैं| परभणी के मेरे परिवार के स्नेही रहे श्री गुलाम रसूल- संगीत के 'मास्टरसाब' के वे शिष्य भी रहे हैं! परभणी के श्री गुलाम रसूल एक अनुठे संगीत साधक थे- मेरी माँ और मेरी दादी ने उनसे ही संगीत सीखा था| उन्हे संगीत के क्षेत्र में पूरे भारतीय स्तर पर मान्यता थी, नवाज़ा जाता था| आज भी डीडी भारती पर उन पर बनी फिल्म लगती है| लेकीन दुर्भाग्य से इतना बड़ा संगीत का साधक यहाँ है, ऐसा परभणी में अधिक लोगों को पता ही नही था! खैर|
चर्चा के बाद एक दिव्यांग योग साधक से मिलना हुआ| महेशजी दिव्यांग होने के बावजूद प्राणायाम करते हैं और दुकान भी चलाते हैं| इन सभी लोगों से मिलते समय डॉ. चिंचणे जी और श्री. वगदे जी के अनौपचारिक रिश्तों का एहसास हो रहा है| किसी भी बड़े कार्य के लिए सबसे बड़ी नींव होती हैं- लोगों का आपस में जुड़ना और सम्पर्क| वह मंठा में बहुत अच्छा दिखाई दे रहा है| इस लिहाज़ से आजका दिन बहुत शानदार रहा| एक तरह का क्लायमैक्स रहा| चर्चा भी अच्छी रही| अब मात्र दो पड़ाव बचे हैं, लेकीन मानसिक तौर पर जैसे ही मै मंठा पहुँच गया, मै घर ही पहुँच गया हूँ!
अगर आप चाहे तो इस कार्य से जुड़ सकते हैं| कई प्रकार से इस प्रक्रिया में सम्मीलित हो सकते हैं| अगर आप मध्य महाराष्ट्र में रहते हैं, तो यह काम देख सकते हैं; उनका हौसला बढ़ा सकते हैं| आप कहीं दूर रहते हो, तो भी आप निरामय संस्था की वेबसाईट देख सकते हैं; उस वेबसाईट पर चलनेवाली ॐ ध्वनि आपके ध्यान के लिए सहयोगी होगी| वेबसाईट पर दिए कई लेख भी आप पढ़ सकते हैं| और आप अगर कहीं दूर हो और आपको यह विचार ठीक लगे तो आप योगाभ्यास कर सकते हैं या कोई भी व्यायाम की एक्टिविटी कर सकते हैं; जो योग कर रहे हैं, उसे और आगे ले जा सकते हैं; दूसरों को योग के बारे में बता सकते हैं; आपके इलाके में काम करनेवाली योग- संस्था की जानकारी दूसरों को दे सकते हैं; उनके कार्य में सहभाग ले सकते हैं|
निरामय संस्था को किसी रूप से आर्थिक सहायता की अपेक्षा नही है| लेकीन अगर आपको संस्था को कुछ सहायता करनी हो, आपको कुछ 'योग- दान' देना हो, तो आप संस्था द्वारा प्रकाशित ३५ किताबों में से कुछ किताब या बूक सेटस खरीद सकते हैं या किसे ऐसे किताब गिफ्ट भी कर सकते हैं| निरामय द्वारा प्रकाशित किताबों की एक अनुठी बात यह है कि कई योग- परंपराओं का अध्ययन कर और हर जगह से कुछ सार निचोड़ कर ये किताबें बनाईं गई हैं| आप इन्हे संस्था की वेबसाईट द्वारा खरीद सकते हैं| निरामय संस्था की वेबसाईट- http://www.niramayyogparbhani.org/ इसके अलावा भी आप इस प्रक्रिया से जुड़ सकते हैं| आप यह पोस्ट शेअर कर सकते हैं| निरायम की वेबसाईट के लेख पढ़ सकते हैं| इस कार्य को ले कर आपके सुझाव भी दे सकते हैं| मेरे ब्लॉग पर www.niranjan-vichar.blogspot.in आप मेरी पीछली साईकिल यात्राएँ, अन्य लेख आदि पढ़ सकते हैं| आप मुझसे फेसबूक पर भी जुड़ सकते हैं| बहुत बहुत धन्यवाद!
अगला भाग: मंठा- मानवत
आज यह लिखते समय बरसात शुरू हो गई है, लेकीन योग साईकिल यात्रा का नौवा दिन बहुत गर्मी का था- १९ मई की सुबह| आज लगभग ७० किलोमीटर साईकिल चलानी है| और आज की सड़क भी निम्न गुणवत्ता वाली है| इसकी एक झलक कल देखी है| इसलिए ये ७० किलोमीटर बेहद कठीन जाएंगे| सुबह मेहकर में मन्दीर के पास चलनेवाले एक महिला योग वर्ग की साधिकाओं से मिल कर आगे बढ़ा| आज की सड़क पर विश्व प्रसिद्ध लोणार सरोवर आएगा जो एक उल्का के गिरने से बना है| जल्द ही सुलतानपूर से आगे निकला| यहाँ से लोणार सिर्फ बारह किलोमीटर है, लेकीन अब सड़क बहुत बिगड़ने लगी| बिल्कुल उखडी हुई टूटी फूटी सड़क| नया चार या छह लेन का हायवे बनाने के लिए पूरी सड़क ही उखाड़ दी गई है| बीच बीच में थोड़ी सी सड़क; बाकी सिर्फ पत्थर और मिट्टी!
लोणार के कुछ पहले सड़क के पास एक खेत में एक लोमड़ी से मिलना हुआ| पहले तो कुत्ता ही लगा, लेकीन फिर काला मुंह और गुच्छे जैसी पूँछ! जरूर यह पानी की तलाश में खेत- गाँवों में आया होगा| उसने भी मुझे देखा, लेकीन उसे इन्सान देखनी की आदत होगी, इसलिए वह आगे बढ गया| यह मुख्य शहरों को जोड़नेवाली सड़क न होने के कारण यातायात कम ही है| धीरे धीरे लोणार पास आता गया| लेकीन उसके साथ यह भी तय हुआ कि आज यात्रा बिल्कुल कछुए की गति से होनेवाली है| लोणार गाँव के बाद नाश्ता किया और आगे सरोवर की तरफ बढ़ा| सरोवर सड़क के पास ही है| बचपन में एक बार यह सरोवर देखा था| आज की यात्रा बहुत लम्बी होने के कारण सड़क से थोड़ा हट कर उपर से ही सरोवर देखा और आगे बढ़ा| यह अभयारण्य होने के कारण मोर की आवाज आ रही है|
लोणार सरोवर!!
अब तक लगभग पच्चीस किलोमीटर हुए हैं और पैतालिस बाकी है| इसलिए पन्द्रह किलोमीटर के चरण पर ही ध्यान देते आगे बढ़ा| आज इस यात्रा का नौवा दिन होने के कारण शरीर बहुत लय में हैं और साईकिल चलाना बहुत आसान हुआ है| इससे बहुत आसानी हुई| अगर पहले दिनों में बड़ा चरण या ऐसी सड़क होती तो कठीन होता| बिना रूके एक घण्टे में लगभग तेरह किलोमीटर पार हुए| आधी दूरी पार हुई| लेकीन सड़क बिल्कुल पस्त है| अगर सिर्फ मिट्टी की कच्ची सड़क होती, तो भी ठीक होता| यह पत्थरों से भरी खुदी हुई सड़क है| यहाँ साईकिल का ख्याल रखते हुए बहुत धिरे से जाना होगा| आज की यात्रा ठीक एक टेस्ट क्रिकेट की इनिंग जैसी है! आज मुझे स्पीड और किलोमीटर देखने ही नही है| सिर्फ डटे रहना है, साईकिल चलानी है| आज सिर्फ विकेट पर रहना है, स्ट्राईक रेट आज मायने नही रखता! आज तो धैर्य के साथ खेलना है!
यह ऐसी सड़क है जिसपर किसी भी गाड़ी को चलाना एक दर्दभरा अनुभव है| यात्रियों के साथ गाड़ी के लिए भी! लेकीन मेरी साईकिल सब सही जा रही है| अब तक जितनी सड़कें देखी थी, उनमें यह सबसे विपरित है! धीरे धीरे जाता रहा| छोटे छोटे चरणों पर फोकस किया- ८, १० किलोमीटर के बाद ब्रेक लूँगा ऐसा सोचता हुआ जाता रहा| बीच बीच में बहुत छोटे गाँव और छोटे होटल लगे| एक जगह पर गन्ने का ज्युस लिया| यह देख कर दुख हुआ की गन्ने के गठरी को एक छोटी बच्ची ला रही थी| एक परिवार यह छोटा होटल चला रहा है और इसमें छोटे बच्चों को भी काम करना पड़ रहा है| हमारी सामाजिक प्रणालियाँ और हमारी सोच! क्या करे! थोड़ी देर में वहाँ से निकला| बीच बीच में लोग भी पूछताछ कर रहे हैं| अब बुलढाणा जिला समाप्त हो कर फिर जालना जिला शुरू हुआ जो हमेशा मुझे पूछता है- जाओगे ना? या पंक्चर हुए बिना जाओगे आज? पंक्चर होने की सम्भावना आज सबसे बड़ी है|
धिमी रफ्तार से जाने का एक लाभ जरूर मिल रहा है| थकान उतनी ज्यादा नही हो रही है| मंठा के कुछ किलोमीटर पहले तिसरा ब्रेक लिया| आज लम्बे समय तक साईकिल चलाने के कारण ज्यादा ब्रेक्स लेने पड़े| लेकीन अब मंठा पास आता जा रहा है| मंठा पास आने पर वहाँ के योग साधक श्री वगदे जी को फोन किया कि लगभग पौन घण्टे में पहुँचूँगा| साईकिल से उतर कर बात कर रहा था कि धूल का बहुत बड़ा बवंडर आया| एक पल के लिए सिर्फ धूल ही धूल रही| सब कुछ उसमें खो गया| अगर मै साईकिल से उतर कर खड़ा न होता, तो साईकिल समेत दूर फेंक दिया गया होता| इतना तेज बवंडर था| लेकीन वह तुरन्त निकल गया| मेरे पीछे एक बाईकवाला था, उसका चेहरा देखने लायक था! मंठा आने के पहले एक घाट आया| इस साईकिल पर यह दूसरा घाट- लेकीन मुझे यहाँ उतरना है| घाट से बहोत दूर तक का क्षेत्र दिखाई दे रहा है- वाटूर- परतूर तक का क्षेत्र दिखाई दिया जहाँ मै पहले दिनों में गया था| मंठा पास आने पर भी सड़क अपनी अवस्था पर अडीग रही| कोई भी सुधार नही| आखिर में तो जैसे रेगिस्तान में कोई हरियाली के लिए तड़फता है, वैसी मेरी अवस्था होने लगी| लगभग बारह बज चुके हैं| आज तक सभी यात्राएँ ग्यारह बजे तक पूरी की है, लेकीन आज लम्बी दूरी और घटिया सड़क के कारण देर हुई| ऐसे में जब शानदार हायवे सामने दिखाई देने लगा, तब बड़ा सुकून आया| आहा हा! एक तरह से घर भी आया, क्यों कि यहाँ तक बहुत बार आया हूँ और इसके बाद के दो पड़ाव आजके चरण के लिहाज़ से छोटे ही हैं!
आज कुल मिला कर ७१ किमी चलाई
फिर क्या, मंठा में श्री वगदे जी के यहाँ आराम किया और दोपहर में डॉ. चिंचणे जी के पास रूका| मंठा में निरामय योग संस्था या जालना के चैतन्य योग केंद्र के कोई साधक नही है, लेकीन यहाँ आदित्य सेवा संघ के कार्यकर्ताओं से सम्पर्क हुआ| जिंतूर से परतूर जाते समय उनसे मिला भी था| इसलिए शाम को आदित्य सेवा संघ के साधक और अन्य योग साधकों से चर्चा करूँगा| लेकीन चर्चा के पहले शाम को श्री वगदे जी और अन्य साधकों के साथ बहुत अच्छा वॉक करने का मौका मिला| ये सभी मित्र बहुत अनौपचारिक किस्म के लोग हैं! इसलिए बिना किसी औपचारिकता को बीच में लाए, पूरे मन से उनसे मिल सका| मन्दीर की छोटी पहाड़ी पर वे हर शाम तीन- चार किलोमीटर घूमते हैं| घूमते घूमते उनके कार्य के बारे में जानकारी भी मिली और चलने से पैरों को आराम भी मिला, पैर और रिलैक्स होते गए| आदित्य सेवा संघ एक ऐसी कार्यकर्ताओं की टीम है जो कुछ वर्षों से नियमित रूप से सेवा कार्य करती हैं| छात्रों को शिक्षा में सहायता करना, उन्हे सूर्य नमस्कार सीखाना, पढाई का सामान उपलब्ध कराना आदि काम करती हैं| इसके अलावा ये सभी सदस्य अलग तरह के योग साधक है| सभी सुबह चार बजे उठते हैं और नियमित रूप से सूर्य नमस्कार और अन्य व्यायाम करते हैं| उनके साथ मन्दीर के पास चलना वाकई एक रिफ्रेश करनेवाला अनुभव रहा|
शाम को डॉ. चिंचणे जी के यहाँ चर्चा हुई| उनके घर के छत पर चर्चा हुई| कई सारे योग साधक और उनसे जुड़े कार्यकर्ता आए| महिलाएँ कम थी, लेकीन चर्चा में उनका भी अच्छा सहभाग रहा| सब ने अपना परिचय दिया और योग साधना के बारे में बताया| यहाँ कोई विशिष्ट तरह की योग साधना ज्यादा लोग नही करते हैं, लेकीन अपने अपने हिसाब से योग करते हैं- जैसे जीवनशैलि में योग का अंगीकार (सुबह जल्द उठना, नियमित रूप से शारीरिक व्यायाम करना) है| एक पतंजलि योग पीठ की योग- साधिका आसपास के गाँवों में योग प्रसार हेतु शिविर लेती हैं| मै जिस लोणार के रास्ते आया था, वहीं पर उनका गाँव हैं| उनके पिताजी भी आए हैं| बच्चों और युवाओं के लिए शारीरिक व्यायाम एवम् खेल का क्या महत्त्व है, यह मुद्दा भी चर्चा में सामने आया| इस चर्चा की खास बात यह रही कि आदित्य सेवा संघ से जुड़े कुछ बच्चे भी इस चर्चा के लिए आए| वे भी सूर्य नमस्कार और अन्य आसन नियमित रूप से करते हैं| योग न करनेवाले भी कई लोग हैं जिन्हे अब योग करने की प्रेरणा मिलेगी| हर गाँव की तरह इस चर्चा के निमित्त से अन्य कुछ साधकों का भी आपस में सम्पर्क हुआ| और इसका एक कारण साईकिल भी है| अगर मै यही यात्रा और यही पहल अन्य गाड़ी पर करता, तो इतने लोग नही आते, आदित्य सेवा संघ के श्री खनके जी ने बताया| वे स्वयं संगीत और योग की साधना करते हैं| परभणी के मेरे परिवार के स्नेही रहे श्री गुलाम रसूल- संगीत के 'मास्टरसाब' के वे शिष्य भी रहे हैं! परभणी के श्री गुलाम रसूल एक अनुठे संगीत साधक थे- मेरी माँ और मेरी दादी ने उनसे ही संगीत सीखा था| उन्हे संगीत के क्षेत्र में पूरे भारतीय स्तर पर मान्यता थी, नवाज़ा जाता था| आज भी डीडी भारती पर उन पर बनी फिल्म लगती है| लेकीन दुर्भाग्य से इतना बड़ा संगीत का साधक यहाँ है, ऐसा परभणी में अधिक लोगों को पता ही नही था! खैर|
चर्चा के बाद एक दिव्यांग योग साधक से मिलना हुआ| महेशजी दिव्यांग होने के बावजूद प्राणायाम करते हैं और दुकान भी चलाते हैं| इन सभी लोगों से मिलते समय डॉ. चिंचणे जी और श्री. वगदे जी के अनौपचारिक रिश्तों का एहसास हो रहा है| किसी भी बड़े कार्य के लिए सबसे बड़ी नींव होती हैं- लोगों का आपस में जुड़ना और सम्पर्क| वह मंठा में बहुत अच्छा दिखाई दे रहा है| इस लिहाज़ से आजका दिन बहुत शानदार रहा| एक तरह का क्लायमैक्स रहा| चर्चा भी अच्छी रही| अब मात्र दो पड़ाव बचे हैं, लेकीन मानसिक तौर पर जैसे ही मै मंठा पहुँच गया, मै घर ही पहुँच गया हूँ!
अगर आप चाहे तो इस कार्य से जुड़ सकते हैं| कई प्रकार से इस प्रक्रिया में सम्मीलित हो सकते हैं| अगर आप मध्य महाराष्ट्र में रहते हैं, तो यह काम देख सकते हैं; उनका हौसला बढ़ा सकते हैं| आप कहीं दूर रहते हो, तो भी आप निरामय संस्था की वेबसाईट देख सकते हैं; उस वेबसाईट पर चलनेवाली ॐ ध्वनि आपके ध्यान के लिए सहयोगी होगी| वेबसाईट पर दिए कई लेख भी आप पढ़ सकते हैं| और आप अगर कहीं दूर हो और आपको यह विचार ठीक लगे तो आप योगाभ्यास कर सकते हैं या कोई भी व्यायाम की एक्टिविटी कर सकते हैं; जो योग कर रहे हैं, उसे और आगे ले जा सकते हैं; दूसरों को योग के बारे में बता सकते हैं; आपके इलाके में काम करनेवाली योग- संस्था की जानकारी दूसरों को दे सकते हैं; उनके कार्य में सहभाग ले सकते हैं|
निरामय संस्था को किसी रूप से आर्थिक सहायता की अपेक्षा नही है| लेकीन अगर आपको संस्था को कुछ सहायता करनी हो, आपको कुछ 'योग- दान' देना हो, तो आप संस्था द्वारा प्रकाशित ३५ किताबों में से कुछ किताब या बूक सेटस खरीद सकते हैं या किसे ऐसे किताब गिफ्ट भी कर सकते हैं| निरामय द्वारा प्रकाशित किताबों की एक अनुठी बात यह है कि कई योग- परंपराओं का अध्ययन कर और हर जगह से कुछ सार निचोड़ कर ये किताबें बनाईं गई हैं| आप इन्हे संस्था की वेबसाईट द्वारा खरीद सकते हैं| निरामय संस्था की वेबसाईट- http://www.niramayyogparbhani.org/ इसके अलावा भी आप इस प्रक्रिया से जुड़ सकते हैं| आप यह पोस्ट शेअर कर सकते हैं| निरायम की वेबसाईट के लेख पढ़ सकते हैं| इस कार्य को ले कर आपके सुझाव भी दे सकते हैं| मेरे ब्लॉग पर www.niranjan-vichar.blogspot.in आप मेरी पीछली साईकिल यात्राएँ, अन्य लेख आदि पढ़ सकते हैं| आप मुझसे फेसबूक पर भी जुड़ सकते हैं| बहुत बहुत धन्यवाद!
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