Monday, June 18, 2018

एटलस साईकिल पर योग- यात्रा भाग ९: सिंदखेड़ राजा- मेहकर

९: सिंदखेड़ राजा- मेहकर
 

योग साईकिल यात्रा का आंठवा दिन, १८ मई की सुबह| सुबह ठीक साढ़ेपाँच बजे निकला| आज कुछ अन्धेरा है| गर्मियों के दिनों में सुबह साढ़ेपाँच बजे रोशनी हो जाती है, लेकीन आज कुछ मिनटों तक अन्धेरा रहा| पहली बार ऐसा हो रहा है| और सिंदखेड़ राजा से मेहकर जानेवाला यह हायवे पुणे- नागपूर मार्ग भी है, इसलिए यहाँ बहुत तेज़ रफ्तार से ट्रैवल्स की‌ बसें जा रही हैं| इसलिए कुछ मिनटों तक अन्धेरे का थोड़ा डर लगा| उसके साथ तेज़ गति से जानेवाले और बहुत पास से गुजरनेवाले ट्रक्स|  आखिर जब आधे घण्टे बाद धीरे धीरे रोशनी आती गई, कुछ सुकून मिला| अब तक की योग चर्चाएँ याद आ रही है| एक जगह पर एक योग साधिका ने कहा था कि मेरा बेटा बहुत भागदौड़ करता था, उससे कुछ शान्ति के लिए मैने योग शुरू किया और बाद में बेटा भी योग करने लगा! एक जगह एक योग शिक्षक ने हमारी खाने के आदतों के बारे में बहुत अच्छी टिपणि की थी| उन्होने कहा था कि हम अगर खाना खा रहे है तो हमे ऐसा खाना चाहिए- अगर हमें‌ आम बहुत पसन्द है, तो उसे बहुत धीरे से, उसे देखते हुए, उसका पूरा आनन्द लेते हुए खाना चाहिए| जैसे आम को देखना, उसका सुगन्ध लेना, धीरे धीरे उसका स्वाद लेना|‌ अगर हम इस तरह खाते हैं तो बहुत थोड़ा सा खाना भी‌ शरीर के लिए पर्याप्त होता है| इससे ध्यानपूर्वक खाना खाया जा सकता है और अतिरिक्त खाना भी नही खाया जाएगा!





एक लिहाज़ से आज का और कल का दिन इस यात्रा का एक अन्जान पड़ाव है| पहले इस दिशा में‌ कभी नही‌ आया हूँ| इस कारण आज साईकिल चलाते समय कुछ अस्वस्थता भी‌ है और उसके साथ एक उत्कंठा और रोमांच भी! आज की सड़क बहुत शानदार है| अच्छा हायवे है| आराम से आगे बढ़ता रहा| बीस किलोमीटर पूरे होने के बाद एक गाँव में थोड़ा नाश्ता किया| छोटे गाँव के लोग और खास कर बच्चे मेरी साईकिल और मुझे देख कर बहुत उत्साहित होते हैं! जैसे ही नाश्ता कर आगे बढ़ा, कुछ देर सड़क पर चढाई है| इसलिए गति कम हो गई| इस रूट की योजना बनाते समय सड़क पर होनेवाली चढाई भी जाँची थी| आज की सड़क और कल की‌ भी सड़क पर ज्यादा चढाई नही है, वरन् आधी दूरी के बाद उतराई ज्यादा है| इसलिए कोई समस्या नही है| फिर भी धिमी गति के कारण कुछ समय मन शंकाग्रस्त हुआ| मानो ऐसा लगा कि मै आगे बढ़ ही नही‌ पा रहा हूँ| अचानक से एक पल के लिए लगा कि सिर्फ बाईस किलोमीटर हुए है और अडतीस किलोमीटर बाकी‌ है| कभी कभी ऐसा होता है कि हम छोटे छोटे लक्ष्यों पर ध्यान देने के बजाय कोई बहुत बड़ा लक्ष्य रखते हैं- जैसे आज से रोज सुबह तीन बजे उठूँगा/ उठूँगी| और अक्सर इतने बड़े लक्ष्य का प्रेशर आ जाता है| लेकीन वास्तव में बड़े लक्ष्य के बजाय छोटे छोटे पड़ाव रखने चाहिए| जैसे मै सुबह हमेशा से आधा घण्टा पहले उठूँगा/ उठूँगी| हप्ते में कम से कम चार- पाँच दिन ऐसा प्रयास करना है ऐसे| मैने बहुत बार देखा है- ऑफीस में कोई बहुत बड़ा टारगेट और बड़ी डेडलाईन पूरी करते समय या किसी भी अन्य काम में- बड़े टारगेटस के बजाय छोटे चरण सामने रखना अक्सर काम आता है| जैसे अब पैतीस किलोमीटर बचे हैं, इसके बारे में सोचने के बजाय सिर्फ अगले पाँच या दस किलोमीटर के बारे में सोचूँगा| उससे प्रेशर नही आता है और साईकिलिंग की जो मानसिक क्रिया है, जो मेंटल पहलू है, वह आराम से हो जाती है| ऐसा ही‌ सोचते हुए आगे बढ़ा| उसके साथ नया परिसर भी है! और कुदरत की जादु ऐसी है कि हर थोड़ी देर बात सामने का दृश्य कुछ बदल जाता है और हमारे मन का प्रवाह भी बदल जाता है|




युंही कट जाएगा सफर साथ चलने से
के मंजिल आएगी नजर साथ चलने से!


धीरे धीरे आगे बढ़ता रहा और जैसे ज्यादा किलोमीटर होते गए, वैसे हौसला बढ़ता गया| एक बार तीस किलोमीटर पार करने के बाद तो फिर सब कुछ आसान बन गया| हर किसी बड़े काम को करने के लिए शुरुआती चरण ही कठिन होते हैं| मानो आपको आज दस घण्टों तक काम करना है| जिसे आदत है, उसके लिए तो बिल्कुल आसान है| लेकीन अगर कोई कुछ अन्तराल के बाद या नए सीरे से शुरू कर रहा हो, तो उसके लिए दस घण्टे बहुत बड़े होते हैं| ऐसे मे दस घण्टों के बारे में सोचना ही नही चाहिए| सोचना चाहिए तो सिर्फ पहले घण्टे के बारे में| एक घण्टा होने के बाद दूसरे के बारे में| ऐसे एक एक चरण पूरा करते रहे, तो जल्द ही आधा रास्ता पार हो जाता है और बाकी अपने आप पूरा हो जाता है| यह भी एक तरह की‌ धारणा ही है- मन को एक ही विषय पर केन्द्रित करना- फोकस बनाए रखना| और इसमें कुछ समय सोचना भी नही है| सोचना या विचार करने की क्षमता तो होनी ही चाहिए, लेकीन जब जरूरत हो तब सोचना या विचार करना बन्द भी करना आना चाहिए| खैर|



जल्द ही सुलतानपूर पहुँचा| कल मै सुलतानपूर से ही लोणार की तरफ जाऊँगा| सुलतानपूर से मेहकर सिर्फ ग्यारह किलोमीटर है, लेकीन सड़क बहुत खराब है| इसलिए थोड़ी देर लगी, फिर भी आसानी से मेहकर पहुँच गया| कुछ कुछ जगहों पर अचानक अपनापन सा लगता है| इसलिए मेहकर में जाते समय ऐसा ही लगा कि कोई परिचित जगह पर आया हूँ| हर रोज की तरह कुछ साधकों से बातचीत की, फिर श्री सावजी सर के यहाँ विश्राम किया| अब तक के अनुभव के बारे में बताया और कल की सड़क के बारे में भी पूछा|

मेहकर के साधकों द्वारा स्वागत!

आज ५७ किमी चलाई
 

शाम की चर्चा बहुत अच्छी हुई| महिलाओं का भी अच्छा सहभाग रहा| अलग अलग तरीकों से योग करनेवाले साधकों ने अपने अनुभव प्रस्तुत किए| एक करीब पचपन- साठ की आयु की ग्रामीण महिला द्वारा सायटिका या उसके जैसी बीमारी की परिभाषा सुन कर अच्छा लगा| मैने हर जगह यही देखा कि लोगों में स्वास्थ्य और योग के बारे में जागरूकता बहुत बढ़ गई है| लोगों को उसका महत्त्व पता चल गया है| लोगों को योग की जो पद्धतियों का पता चल रहा है, उसे वे सीख भी रहे हैं| इसमें पतंजलि योगपीठ संस्था और अन्य संस्थाओं की बड़ी भुमिका रही है| योग सीखने के जो चरण है- योग से परिचित होना, उसके आसन सीखना, उसमें नियमितता रखना आदि अब बहुत से लोग कर रहे हैं| और कई ग्रूप्स भी साथ में योगाभ्यास करते हैं| और योग प्रसार भी हो रहा है| क्यों कि जब भी कोई व्यक्ति योग करता है, तो उसे देख कर दूसरों को भी प्रेरणा मिलती है| जब लम्बे समय तक योग करने से जो लाभ मिलते हैं- स्वास्थ्य, ऊर्जा, आनन्द वे भी लोगों को दिखाई देते हैं| इसलिए दूसरे लोग भी योग करने लगते हैं| अब योग सीखानेवाली संस्था को यह देखना चाहिए कि योग साधना के जो अगले पड़ाव है- जैसे योग प्रक्रियाओं की समझ बढनी चाहिए; एक जीवन दृष्टि के रूप में योग का जीवनशैलि में अन्तर्भाव होना चाहिए और ध्यान की तरफ अग्रेसर होना चाहिए- उसमें भी साधकों की प्रगति होनी चाहिए| और यह हो भी रहा है|
 

अब प्रतीक्षा है कल के सत्तर किलोमीटर की| एक तरह से यह इस यात्रा का क्लायमॅक्स होगा और सबसे बड़ा और शायद सबसे कठिन पड़ाव भी होगा| क्यों कि कल के सत्तर किलोमीटर में से ज्यादातर सड़क खुदी हुई है या बहुत कम गुणवत्ता की है! देखते है!

अगर आप चाहे तो इस कार्य से जुड़ सकते हैं| कई प्रकार से इस प्रक्रिया में सम्मीलित हो सकते हैं| अगर आप मध्य महाराष्ट्र में रहते हैं, तो यह काम देख सकते हैं; उनका हौसला बढ़ा सकते हैं| आप कहीं दूर रहते हो, तो भी आप निरामय संस्था की वेबसाईट देख सकते हैं; उस वेबसाईट पर चलनेवाली ॐ ध्वनि आपके ध्यान के लिए सहयोगी होगी| वेबसाईट पर दिए कई लेख भी आप पढ़ सकते हैं| और आप अगर कहीं दूर हो और आपको यह विचार ठीक लगे तो आप योगाभ्यास कर सकते हैं या कोई भी व्यायाम की एक्टिविटी कर सकते हैं; जो योग कर रहे हैं, उसे और आगे ले जा सकते हैं; दूसरों को योग के बारे में बता सकते हैं; आपके इलाके में काम करनेवाली योग- संस्था की जानकारी दूसरों को दे सकते हैं; उनके कार्य में सहभाग ले सकते हैं|

निरामय संस्था को किसी रूप से आर्थिक सहायता की अपेक्षा नही है| लेकीन अगर आपको संस्था को कुछ सहायता करनी हो, आपको कुछ 'योग- दान' देना हो, तो आप संस्था द्वारा प्रकाशित ३५ किताबों में से कुछ किताब या बूक सेटस खरीद सकते हैं या किसे ऐसे किताब गिफ्ट भी कर सकते हैं| निरामय द्वारा प्रकाशित किताबों की एक अनुठी बात यह है कि कई योग- परंपराओं का अध्ययन कर और हर जगह से कुछ सार निचोड़ कर ये किताबें बनाईं गई हैं| आप इन्हे संस्था की वेबसाईट द्वारा खरीद सकते हैं| निरामय संस्था की वेबसाईट- http://www.niramayyogparbhani.org/ इसके अलावा भी आप इस प्रक्रिया से जुड़ सकते हैं| आप यह पोस्ट शेअर कर सकते हैं| निरायम की वेबसाईट के लेख पढ़ सकते हैं| इस कार्य को ले कर आपके सुझाव भी दे सकते हैं| मेरे ब्लॉग पर www.niranjan-vichar.blogspot.in आप मेरी पीछली साईकिल यात्राएँ, अन्य लेख आदि पढ़ सकते हैं| आप मुझसे फेसबूक पर भी जुड़ सकते हैं| बहुत बहुत धन्यवाद!


अगला भाग: मेहकर- मठा

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (20-06-2018) को "क्या होता है प्यार" (चर्चा अंक-3007) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

    ReplyDelete
  2. I really enjoyed your blog, thanks for sharing.

    ReplyDelete

आपने ब्लॉग पढा, इसके लिए बहुत धन्यवाद! अब इसे अपने तक ही सीमित मत रखिए! आपकी टिप्पणि मेरे लिए महत्त्वपूर्ण है!