१२: मानवत- परभणी
योग साईकिल यात्रा का अन्तिम दिन- २१ मई की सुबह| आज यह यात्रा समाप्त होगी! मेरे लिए यह पूरी यात्रा और हर पड़ाव बहुत अनुठे रहे है| मेरे लिए बहुत कुछ सीखने जैसा इसमें मिला| बहुत लोगों से और साधकों से मिलना हुआ| कुल मिला कर एक अविस्मरणीय यह यात्रा रही है| इसके बारे में विस्तार से अगले अन्तिम लेख में बात करूँगा| अभी बात करता हूँ इस यात्रा के साईकिल चलाने के अन्तिम दिन की| मानवत- परभणी दूरी छोटी है, इसलिए रास्ते में रूढि गाँव के योग- शिविर पर जाना हुआ| मानवत से इस शिविर तक मेरे साथ श्री पद्मकुमारजी कहेकर जी भी आए| रूढ़ी गाँव में स्वामी मनिषानन्द जी का आश्रम है और यहाँ पर मिटकरी सर योग शिविर लेते हैं| मिटकरी सर से कल मिलना भी हुआ था| सुबह छह बजे इस शिविर में पहुँचा| लगभग पच्चीस- तीस बच्चे योग कर रहे हैं| थोड़ी उनसे बातचीत की| आश्रम में स्वामीजी से मिलना हुआ| उनका आशीर्वाद प्राप्त हुआ| यह भी इस यात्रा की एक खास बात रही| कई तरह के एनर्जी फिल्डस और डॉ. प्रशान्त पटेल अर्थात् स्वामी प्रशांतानंद जी जैसे कई दिग्गज साधकों का भी सत्संग मिला|
मन में परभणी पहुँचने का एक तरह का डेस्परेशन भी है| लेकीन उसके साथ यह यात्रा जल्द खतम ना हो, यह भी भाव है! साईकिल चलाते समय इस यात्रा के अनुभव, जगह जगह मिले लोग और सभी साधक इनके बारे में सोच रहा हूँ| एक तरह से इस यात्रा का लेखन भी मन में शुरू हुआ है! साथ ही मेरी साईकिल को भी धन्यवाद देने का मन हो रहा है| ऐसी डरावनी सड़कों पर साईकिल चली, भले साईकिल का टायर आउट हो गया हो (रिम से आउट हो जाता है कभी कभी), लेकीन साईकिल अन्त तक नॉट आऊट रही| खैर| अभी भी कुछ किलोमीटर बचे हैं| लेकीन इस यात्रा के बारे में सोचते सोचते दूरी कब पूरी हुई पता नही चला| एक तरह से विश्वास नही हो रहा है कि मै सभी जगह सिर्फ साईकिल चला कर आ रहा हूँ| और योजना के अनुसार ही यह यात्रा पूरी हो रही है|
परभणी में निरामय की टीम मुझे रिसिव करने के लिए एक जगह पर आगे आ सकती है| लेकीन जब मै वहाँ पहुँचा तो कोई दिखा नही, इसलिए आगे निरामय के सेंटर के तरफ बढ़ चला| निरायम टीम का एक शिविर चल रहा है, इसलिए शायद वे लोग वहाँ व्यस्त होंगे| मुझे रिसीव करने के लिए निकली मेरी बहन अदिती और भाभी भी दिखे| फिर उनके साथ ही निरामय के सेंटर पर पहुँचा| सबसे पहले साईकिल को नमन किया और फिर सभी योग- साधकों को सूचित किया| आज ३८ किलोमीटर चलाई और लगभग ५९५ किलोमीटर पूरे हुए| तभी श्री पाथ्रीकर सर का फोन आया कि वे लोग सड़क पर मेरे लिए खड़े है! उनको बताया कि मै निरामय के दफ्तर में पहुँच गया हूँ, तो वे भी आए| इस तरह यह योग- यात्रा सम्पन्न हुई| निरामय की टीम द्वारा फिर एक बार स्वागत किया गया|
स्वागत
साईकिल यात्रा पूरी हुई है, लेकीन अभी इससे जुड़े कई काम बाकी है| परभणी के योग- साधकों से मिलना बाकी है| इसके अलावा मेरी यात्रा, मेरे अनुभव और सभी जगह पर हुई चर्चाएँ इसके बारे में निरामय की टीम को अवगत करना है| मुझे इस यात्रा में बहुत कुछ तो मिला ही, बहुत कुछ देखने को भी मिला| कई साधकों से मुझे प्रेरणा मिली| इस यात्रा में जो मिला वह मुझे अब निरामय की टिम के साथ बाँटना है और लिखना भी है| उस दिन किसी कारण परभणी के योग साधकों के साथ चर्चा नही हो पाई|
यात्रा समाप्त होने पर भी मुझे कई दिनों तक इसी यात्रा के सपने आते रहे| सपनों में भी दिखता है कि मुझे सुबह जल्द उठ कर निकलना है, आगे बढ़ना है| आगे कई लोगों से मिलना है! एक तरह से जो मन की धारणा बनी थी, उसे जाने में कुछ दिन लगे| धीरे धीरे मन इस यात्रा के टेंपो से बाहर आता गया| लेकीन जो यात्रा रही, उस पर मुझे अब भी अचरज होता है| साईकिल को तो सैल्यूट! उसने मेरा साथ खूब निभाया! ठीक योजना के अनुसार सभी चरण रहें, कहीं पर भी साईकिल चलाने में अधिक कठिनाई नही हुई| जल्द ही मुझे मेरे अनुभव कहने के लिए कहा गया| एक छोटे से कार्यक्रम में मैने अनुभव कहे| इसके बाद साधकों से और निरामय की टीम के साथ कई चर्चाएँ हुई| उसके बारे में और इस यात्रा के पूरे सार- निचोड़ के बारे में अगले और अन्तिम लेख में बात करता हूँ|
अगर आप चाहे तो इस कार्य से जुड़ सकते हैं| कई प्रकार से इस प्रक्रिया में सम्मीलित हो सकते हैं| अगर आप मध्य महाराष्ट्र में रहते हैं, तो यह काम देख सकते हैं; उनका हौसला बढ़ा सकते हैं| आप कहीं दूर रहते हो, तो भी आप निरामय संस्था की वेबसाईट देख सकते हैं; उस वेबसाईट पर चलनेवाली ॐ ध्वनि आपके ध्यान के लिए सहयोगी होगी| वेबसाईट पर दिए कई लेख भी आप पढ़ सकते हैं| और आप अगर कहीं दूर हो और आपको यह विचार ठीक लगे तो आप योगाभ्यास कर सकते हैं या कोई भी व्यायाम की एक्टिविटी कर सकते हैं; जो योग कर रहे हैं, उसे और आगे ले जा सकते हैं; दूसरों को योग के बारे में बता सकते हैं; आपके इलाके में काम करनेवाली योग- संस्था की जानकारी दूसरों को दे सकते हैं; उनके कार्य में सहभाग ले सकते हैं|
निरामय संस्था को किसी रूप से आर्थिक सहायता की अपेक्षा नही है| लेकीन अगर आपको संस्था को कुछ सहायता करनी हो, आपको कुछ 'योग- दान' देना हो, तो आप संस्था द्वारा प्रकाशित ३५ किताबों में से कुछ किताब या बूक सेटस खरीद सकते हैं या किसे ऐसे किताब गिफ्ट भी कर सकते हैं| निरामय द्वारा प्रकाशित किताबों की एक अनुठी बात यह है कि कई योग- परंपराओं का अध्ययन कर और हर जगह से कुछ सार निचोड़ कर ये किताबें बनाईं गई हैं| आप इन्हे संस्था की वेबसाईट द्वारा खरीद सकते हैं| निरामय संस्था की वेबसाईट- http://www.niramayyogparbhani.org/ इसके अलावा भी आप इस प्रक्रिया से जुड़ सकते हैं| आप यह पोस्ट शेअर कर सकते हैं| निरायम की वेबसाईट के लेख पढ़ सकते हैं| इस कार्य को ले कर आपके सुझाव भी दे सकते हैं| मेरे ब्लॉग पर www.niranjan-vichar.blogspot.in आप मेरी पीछली साईकिल यात्राएँ, अन्य लेख आदि पढ़ सकते हैं| आप मुझसे फेसबूक पर भी जुड़ सकते हैं| बहुत बहुत धन्यवाद!
अगला भाग: यात्रा समापन (अंतिम)
योग साईकिल यात्रा का अन्तिम दिन- २१ मई की सुबह| आज यह यात्रा समाप्त होगी! मेरे लिए यह पूरी यात्रा और हर पड़ाव बहुत अनुठे रहे है| मेरे लिए बहुत कुछ सीखने जैसा इसमें मिला| बहुत लोगों से और साधकों से मिलना हुआ| कुल मिला कर एक अविस्मरणीय यह यात्रा रही है| इसके बारे में विस्तार से अगले अन्तिम लेख में बात करूँगा| अभी बात करता हूँ इस यात्रा के साईकिल चलाने के अन्तिम दिन की| मानवत- परभणी दूरी छोटी है, इसलिए रास्ते में रूढि गाँव के योग- शिविर पर जाना हुआ| मानवत से इस शिविर तक मेरे साथ श्री पद्मकुमारजी कहेकर जी भी आए| रूढ़ी गाँव में स्वामी मनिषानन्द जी का आश्रम है और यहाँ पर मिटकरी सर योग शिविर लेते हैं| मिटकरी सर से कल मिलना भी हुआ था| सुबह छह बजे इस शिविर में पहुँचा| लगभग पच्चीस- तीस बच्चे योग कर रहे हैं| थोड़ी उनसे बातचीत की| आश्रम में स्वामीजी से मिलना हुआ| उनका आशीर्वाद प्राप्त हुआ| यह भी इस यात्रा की एक खास बात रही| कई तरह के एनर्जी फिल्डस और डॉ. प्रशान्त पटेल अर्थात् स्वामी प्रशांतानंद जी जैसे कई दिग्गज साधकों का भी सत्संग मिला|
मन में परभणी पहुँचने का एक तरह का डेस्परेशन भी है| लेकीन उसके साथ यह यात्रा जल्द खतम ना हो, यह भी भाव है! साईकिल चलाते समय इस यात्रा के अनुभव, जगह जगह मिले लोग और सभी साधक इनके बारे में सोच रहा हूँ| एक तरह से इस यात्रा का लेखन भी मन में शुरू हुआ है! साथ ही मेरी साईकिल को भी धन्यवाद देने का मन हो रहा है| ऐसी डरावनी सड़कों पर साईकिल चली, भले साईकिल का टायर आउट हो गया हो (रिम से आउट हो जाता है कभी कभी), लेकीन साईकिल अन्त तक नॉट आऊट रही| खैर| अभी भी कुछ किलोमीटर बचे हैं| लेकीन इस यात्रा के बारे में सोचते सोचते दूरी कब पूरी हुई पता नही चला| एक तरह से विश्वास नही हो रहा है कि मै सभी जगह सिर्फ साईकिल चला कर आ रहा हूँ| और योजना के अनुसार ही यह यात्रा पूरी हो रही है|
परभणी में निरामय की टीम मुझे रिसिव करने के लिए एक जगह पर आगे आ सकती है| लेकीन जब मै वहाँ पहुँचा तो कोई दिखा नही, इसलिए आगे निरामय के सेंटर के तरफ बढ़ चला| निरायम टीम का एक शिविर चल रहा है, इसलिए शायद वे लोग वहाँ व्यस्त होंगे| मुझे रिसीव करने के लिए निकली मेरी बहन अदिती और भाभी भी दिखे| फिर उनके साथ ही निरामय के सेंटर पर पहुँचा| सबसे पहले साईकिल को नमन किया और फिर सभी योग- साधकों को सूचित किया| आज ३८ किलोमीटर चलाई और लगभग ५९५ किलोमीटर पूरे हुए| तभी श्री पाथ्रीकर सर का फोन आया कि वे लोग सड़क पर मेरे लिए खड़े है! उनको बताया कि मै निरामय के दफ्तर में पहुँच गया हूँ, तो वे भी आए| इस तरह यह योग- यात्रा सम्पन्न हुई| निरामय की टीम द्वारा फिर एक बार स्वागत किया गया|
स्वागत
साईकिल यात्रा पूरी हुई है, लेकीन अभी इससे जुड़े कई काम बाकी है| परभणी के योग- साधकों से मिलना बाकी है| इसके अलावा मेरी यात्रा, मेरे अनुभव और सभी जगह पर हुई चर्चाएँ इसके बारे में निरामय की टीम को अवगत करना है| मुझे इस यात्रा में बहुत कुछ तो मिला ही, बहुत कुछ देखने को भी मिला| कई साधकों से मुझे प्रेरणा मिली| इस यात्रा में जो मिला वह मुझे अब निरामय की टिम के साथ बाँटना है और लिखना भी है| उस दिन किसी कारण परभणी के योग साधकों के साथ चर्चा नही हो पाई|
यात्रा समाप्त होने पर भी मुझे कई दिनों तक इसी यात्रा के सपने आते रहे| सपनों में भी दिखता है कि मुझे सुबह जल्द उठ कर निकलना है, आगे बढ़ना है| आगे कई लोगों से मिलना है! एक तरह से जो मन की धारणा बनी थी, उसे जाने में कुछ दिन लगे| धीरे धीरे मन इस यात्रा के टेंपो से बाहर आता गया| लेकीन जो यात्रा रही, उस पर मुझे अब भी अचरज होता है| साईकिल को तो सैल्यूट! उसने मेरा साथ खूब निभाया! ठीक योजना के अनुसार सभी चरण रहें, कहीं पर भी साईकिल चलाने में अधिक कठिनाई नही हुई| जल्द ही मुझे मेरे अनुभव कहने के लिए कहा गया| एक छोटे से कार्यक्रम में मैने अनुभव कहे| इसके बाद साधकों से और निरामय की टीम के साथ कई चर्चाएँ हुई| उसके बारे में और इस यात्रा के पूरे सार- निचोड़ के बारे में अगले और अन्तिम लेख में बात करता हूँ|
अगर आप चाहे तो इस कार्य से जुड़ सकते हैं| कई प्रकार से इस प्रक्रिया में सम्मीलित हो सकते हैं| अगर आप मध्य महाराष्ट्र में रहते हैं, तो यह काम देख सकते हैं; उनका हौसला बढ़ा सकते हैं| आप कहीं दूर रहते हो, तो भी आप निरामय संस्था की वेबसाईट देख सकते हैं; उस वेबसाईट पर चलनेवाली ॐ ध्वनि आपके ध्यान के लिए सहयोगी होगी| वेबसाईट पर दिए कई लेख भी आप पढ़ सकते हैं| और आप अगर कहीं दूर हो और आपको यह विचार ठीक लगे तो आप योगाभ्यास कर सकते हैं या कोई भी व्यायाम की एक्टिविटी कर सकते हैं; जो योग कर रहे हैं, उसे और आगे ले जा सकते हैं; दूसरों को योग के बारे में बता सकते हैं; आपके इलाके में काम करनेवाली योग- संस्था की जानकारी दूसरों को दे सकते हैं; उनके कार्य में सहभाग ले सकते हैं|
निरामय संस्था को किसी रूप से आर्थिक सहायता की अपेक्षा नही है| लेकीन अगर आपको संस्था को कुछ सहायता करनी हो, आपको कुछ 'योग- दान' देना हो, तो आप संस्था द्वारा प्रकाशित ३५ किताबों में से कुछ किताब या बूक सेटस खरीद सकते हैं या किसे ऐसे किताब गिफ्ट भी कर सकते हैं| निरामय द्वारा प्रकाशित किताबों की एक अनुठी बात यह है कि कई योग- परंपराओं का अध्ययन कर और हर जगह से कुछ सार निचोड़ कर ये किताबें बनाईं गई हैं| आप इन्हे संस्था की वेबसाईट द्वारा खरीद सकते हैं| निरामय संस्था की वेबसाईट- http://www.niramayyogparbhani.org/ इसके अलावा भी आप इस प्रक्रिया से जुड़ सकते हैं| आप यह पोस्ट शेअर कर सकते हैं| निरायम की वेबसाईट के लेख पढ़ सकते हैं| इस कार्य को ले कर आपके सुझाव भी दे सकते हैं| मेरे ब्लॉग पर www.niranjan-vichar.blogspot.in आप मेरी पीछली साईकिल यात्राएँ, अन्य लेख आदि पढ़ सकते हैं| आप मुझसे फेसबूक पर भी जुड़ सकते हैं| बहुत बहुत धन्यवाद!
अगला भाग: यात्रा समापन (अंतिम)
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (30-06-2018) को "तुलसी अदालत में है " (चर्चा अंक-3017) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर चित्र और विवरण
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