११: मंठा- मानवत
यह लिखते लिखते एक महिना हो गया, लेकीन अब भी सब नजरों के सामने है| योग साईकिल यात्रा का दसवा दिन २० मई की सुबह| आज सिर्फ ५३ किलोमीटर साईकिल चलानी है| अब यह यात्रा आखरी दिनों में है| लेकीन कल का दिन क्या खूब रहा! मंठा में बहुत अच्छी चर्चा हुई| कई साधकों से और कार्यकर्ताओं से अच्छा मिलना हुआ| आज मानवत में जाना है| रोज के जैसे ही सुबह ठीक साढ़ेपाँच बजे निकला| कुछ दूरी तक डॉ. चिंचणे जी मुझे छोडने आए| कल बहुत उखडी हुई सड़क थी| आज अच्छी सड़क है| हमारा मन बहुत छलाँग लगाता है| अब भी इस यात्रा के पूरे दो दिन बाकी है, लेकीन मन तो पहुँच गया वापस| लेकीन फिर भी सजगता रखते हुए मन को वर्तमान में ला कर आज के चरण का आनन्द ले रहा हूँ| इतनी शानदार यह यात्रा रही है कि जो भी पल बचे हैं, उनका आनन्द पूरी तरह से लेना चाहिए|
साईकिल पर यात्रा करते समय मैने अक्सर देखा है कि कोई भी सड़क कितनी भी परिचित क्यों ना हो, उस पर हम जो अलग- अलग राईड करते हैं, उसका मज़ा अलग अलग होता है| अगर हम एक ही रूट पर लगातार- हमेशा- साईकिल चला रहे हैं, तब भी हर एक राईड का मजा अलग ही होता है| और इसका कारण यह है कि राईड चाहे एक जैसी हो, साईकिल वही हो, रूट भी वही हो, लेकीन हम तो वही नही होते हैं- देखनेवाला वही नही होता है! साथ में हमारा मन, विचार, भावनाएँ तो हर समय बदलती रहती है| किसी विचारक ने कहा है कि कोई भी एक नदी में दो बार डुबकी नही लगा सकता है| इसके दो कारण हैं- एक तो नदी की धारा बहती रहती है; पानी आगे- और आगे जाता है; और दूसरी बात हम भी हर पल बदलते रहते हैं| मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि हम में इतने परम्युटेशन्स- काँबीनेशन्स होते हैं कि हम बिल्कुल भी थिर नही रह सकते हैं| जो भी इन्सान खुद से प्रामाणिक है, वह अक्सर यह अनुभव करता है कि उसका मन कई बार उसी के विपरित जाता है| इसलिए व्यक्तित्व में द्वंद्व पैदा होते है| कई बार इसी तरह बहुत तनाव होता है और कई बार हम आत्महत्या की खबरें भी सुनते हैं| ऐसे मे हमारे शरीर- मन में यह सब जो बदलाव होते हैं, उसे देखनेवाला जो है, उसे जानके का नाम ध्यान है| साईकिल चलाते समय भी उस समय जो कुछ घट रहा है- जो अनुभव आ रहे हैं, जो विचार मन में आ रहे हैं, उनका साक्षी बनने का प्रयास करते हुए आगे बढ़ रहा हूँ|
आज सिर्फ ५३ किलोमीटर जाना है और सड़क भी अच्छी है, इसलिए सिर्फ एक ब्रेक लिया| सेलू में नाश्ता किया और संस्था के पत्रक भी दिए| यहाँ से मानवत तक सड़क रेलवे लाईन के पास से गुजरती है| यह मेरा रेग्युलर रूट है, एक तरह से मॉर्निंग वॉक जैसी मॉर्निंग राईड का रूट है| लेकीन फिर भी, इस यात्रा में यहाँ साईकिल चलाना अलग महसूस हो रहा है| एक जगह एक गाँव में मुझे देख कर लोगों ने कहा, कोई फॉरेनर लगता है| उनके कहने तक मै आगे बढा था, फिर भी पीछे आवाज दे कर कहा कि यहीं का हूँ! तो सब हंसने लगे! मानवत आने के पहले सड़क अचानक से बेहतरीन हुई| जैसे कोई एक्स्प्रेस हायवे हो! पहले जब मै आया था, तब अच्छी मगर साधारण सी ही थी| लेकीन आज बिल्कुल असाधारण लगी! इसी का नाम जीना है! कल मै सड़क के लिए तरस रहा था और आज मेरे सामने बहुत बढिया सड़क! चलिए, अब इसी सड़क का भी मज़ा लेते हैं| लेकीन मानवत यहाँ से बहुत पास है, इसलिए ऐसी शानदार सड़क का ज्यादा आनन्द नही ले पाया और मानवत पहुँच गया|
यहाँ पर अब तक का सबसे बड़ा स्वागत किया गया| सड़क पर मेरे लिए सुस्वागतम् लिखवाया गया है! सड़क पर मुझ पर पुष्पवृष्टि भी की गई! लोगों ने हार भी पहनाए! कई सारे योग साधक मिले| इनमें से कई लोगों ने मेरे स्वागत के लिए पैसे भी खर्च किए| एक छोटा सा कार्यक्रम भी हुआ| उसके बाद डॉ. कहेकर जी के यहाँ जा कर विश्राम किया| शाम के कार्यक्रम का नियोजन हुआ| दिन भर थोड़ा विश्राम, फिर काम और फिर थोडी बातचीत होती रही|
आज ५३ किमी साईकिल चलाई और ५५० किमी पूरे हुए
मानवत में स्वागत
शाम को मन्दीर में चर्चा शुरू हुई| यहाँ निरामय संस्था के दो योग- शिक्षक हैं| उसके अलावा पतंजलि समिति, आर्ट ऑफ लिव्हिंग और अन्य तरह से योग करनेवाले भी बहुत साधक है| चर्चा में कुछ महिलाएँ भी आई हैं| एक- दो जगह का अपवाद छोड़ कर लगभग सभी जगह महिलाएँ भी इस प्रक्रिया में सहभागी दिखी| चर्चा में हर किसी ने अपने अनुभव रखे| एक साधक ने तो इस चर्चा के लिए उनकी बाहर जाने की यात्रा कैसल की है| किस प्रकार योग जीवन में आया, कैसे शुरू किया और अब कैसे कर रहे हैं, यह सबने बताया| कुछ लोग योग से इसके बाद भी जुड़ेंगे| यहाँ कुछ साधकों ने दिल्ली जा कर योग सीखा है| अलग अलग माध्यमों से योग कर भी रहे हैं और यह ज्ञान दूसरों को वे बाँट भी रहे हैं| हम जो सीखते हैं, उसे दूसरों को बाँटना भी उतना ही जरूरी है| कुछ लोगों का यह विचार हो सकता है कि पहले हम परिपूर्ण बने और उसके बाद ही दूसरों को सीखाने का प्रयास करें| ठीक भी है| लेकीन उसके साथ यह भी उतना ही सच है कि अगर हम कोई चीज़ दूसरों से बाँटते हैं, तो हमें भी अधिक मिलता है| हम भी दोबारा सीखते हैं| इसलिए अध्यात्म की साधना में बाँटना या मंगल मैत्री को बहुत महत्त्व दिया गया है| यहाँ कई छात्रों को भी योग पढाया जाता है| यहाँ बच्चों के योग की एक सिडी भी बनायी गई है, जो कि एक बहुत अच्छी बात है| कल मै परभणी जाते समय रास्ते में स्वामी मनिषानन्द जी के आश्रम पर चलनेवाला योग वर्ग भी देखूँगा| चर्चा में सबके अनुभव सुनने के बाद मैने मेरे अनुभव शेअर किए| अब तक की चर्चाओं के बारे में बताया| अब साईकिल यात्रा का एक ही दिन बचा है| कल परभणी जाऊँगा और निरामय टीम तथा वहाँ के योग साधकों से चर्चा होगी|
अगर आप चाहे तो इस कार्य से जुड़ सकते हैं| कई प्रकार से इस प्रक्रिया में सम्मीलित हो सकते हैं| अगर आप मध्य महाराष्ट्र में रहते हैं, तो यह काम देख सकते हैं; उनका हौसला बढ़ा सकते हैं| आप कहीं दूर रहते हो, तो भी आप निरामय संस्था की वेबसाईट देख सकते हैं; उस वेबसाईट पर चलनेवाली ॐ ध्वनि आपके ध्यान के लिए सहयोगी होगी| वेबसाईट पर दिए कई लेख भी आप पढ़ सकते हैं| और आप अगर कहीं दूर हो और आपको यह विचार ठीक लगे तो आप योगाभ्यास कर सकते हैं या कोई भी व्यायाम की एक्टिविटी कर सकते हैं; जो योग कर रहे हैं, उसे और आगे ले जा सकते हैं; दूसरों को योग के बारे में बता सकते हैं; आपके इलाके में काम करनेवाली योग- संस्था की जानकारी दूसरों को दे सकते हैं; उनके कार्य में सहभाग ले सकते हैं|
निरामय संस्था को किसी रूप से आर्थिक सहायता की अपेक्षा नही है| लेकीन अगर आपको संस्था को कुछ सहायता करनी हो, आपको कुछ 'योग- दान' देना हो, तो आप संस्था द्वारा प्रकाशित ३५ किताबों में से कुछ किताब या बूक सेटस खरीद सकते हैं या किसे ऐसे किताब गिफ्ट भी कर सकते हैं| निरामय द्वारा प्रकाशित किताबों की एक अनुठी बात यह है कि कई योग- परंपराओं का अध्ययन कर और हर जगह से कुछ सार निचोड़ कर ये किताबें बनाईं गई हैं| आप इन्हे संस्था की वेबसाईट द्वारा खरीद सकते हैं| निरामय संस्था की वेबसाईट- http://www.niramayyogparbhani.org/ इसके अलावा भी आप इस प्रक्रिया से जुड़ सकते हैं| आप यह पोस्ट शेअर कर सकते हैं| निरायम की वेबसाईट के लेख पढ़ सकते हैं| इस कार्य को ले कर आपके सुझाव भी दे सकते हैं| मेरे ब्लॉग पर www.niranjan-vichar.blogspot.in आप मेरी पीछली साईकिल यात्राएँ, अन्य लेख आदि पढ़ सकते हैं| आप मुझसे फेसबूक पर भी जुड़ सकते हैं| बहुत बहुत धन्यवाद!
अगला भाग: मानवत- परभणी
यह लिखते लिखते एक महिना हो गया, लेकीन अब भी सब नजरों के सामने है| योग साईकिल यात्रा का दसवा दिन २० मई की सुबह| आज सिर्फ ५३ किलोमीटर साईकिल चलानी है| अब यह यात्रा आखरी दिनों में है| लेकीन कल का दिन क्या खूब रहा! मंठा में बहुत अच्छी चर्चा हुई| कई साधकों से और कार्यकर्ताओं से अच्छा मिलना हुआ| आज मानवत में जाना है| रोज के जैसे ही सुबह ठीक साढ़ेपाँच बजे निकला| कुछ दूरी तक डॉ. चिंचणे जी मुझे छोडने आए| कल बहुत उखडी हुई सड़क थी| आज अच्छी सड़क है| हमारा मन बहुत छलाँग लगाता है| अब भी इस यात्रा के पूरे दो दिन बाकी है, लेकीन मन तो पहुँच गया वापस| लेकीन फिर भी सजगता रखते हुए मन को वर्तमान में ला कर आज के चरण का आनन्द ले रहा हूँ| इतनी शानदार यह यात्रा रही है कि जो भी पल बचे हैं, उनका आनन्द पूरी तरह से लेना चाहिए|
साईकिल पर यात्रा करते समय मैने अक्सर देखा है कि कोई भी सड़क कितनी भी परिचित क्यों ना हो, उस पर हम जो अलग- अलग राईड करते हैं, उसका मज़ा अलग अलग होता है| अगर हम एक ही रूट पर लगातार- हमेशा- साईकिल चला रहे हैं, तब भी हर एक राईड का मजा अलग ही होता है| और इसका कारण यह है कि राईड चाहे एक जैसी हो, साईकिल वही हो, रूट भी वही हो, लेकीन हम तो वही नही होते हैं- देखनेवाला वही नही होता है! साथ में हमारा मन, विचार, भावनाएँ तो हर समय बदलती रहती है| किसी विचारक ने कहा है कि कोई भी एक नदी में दो बार डुबकी नही लगा सकता है| इसके दो कारण हैं- एक तो नदी की धारा बहती रहती है; पानी आगे- और आगे जाता है; और दूसरी बात हम भी हर पल बदलते रहते हैं| मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि हम में इतने परम्युटेशन्स- काँबीनेशन्स होते हैं कि हम बिल्कुल भी थिर नही रह सकते हैं| जो भी इन्सान खुद से प्रामाणिक है, वह अक्सर यह अनुभव करता है कि उसका मन कई बार उसी के विपरित जाता है| इसलिए व्यक्तित्व में द्वंद्व पैदा होते है| कई बार इसी तरह बहुत तनाव होता है और कई बार हम आत्महत्या की खबरें भी सुनते हैं| ऐसे मे हमारे शरीर- मन में यह सब जो बदलाव होते हैं, उसे देखनेवाला जो है, उसे जानके का नाम ध्यान है| साईकिल चलाते समय भी उस समय जो कुछ घट रहा है- जो अनुभव आ रहे हैं, जो विचार मन में आ रहे हैं, उनका साक्षी बनने का प्रयास करते हुए आगे बढ़ रहा हूँ|
आज सिर्फ ५३ किलोमीटर जाना है और सड़क भी अच्छी है, इसलिए सिर्फ एक ब्रेक लिया| सेलू में नाश्ता किया और संस्था के पत्रक भी दिए| यहाँ से मानवत तक सड़क रेलवे लाईन के पास से गुजरती है| यह मेरा रेग्युलर रूट है, एक तरह से मॉर्निंग वॉक जैसी मॉर्निंग राईड का रूट है| लेकीन फिर भी, इस यात्रा में यहाँ साईकिल चलाना अलग महसूस हो रहा है| एक जगह एक गाँव में मुझे देख कर लोगों ने कहा, कोई फॉरेनर लगता है| उनके कहने तक मै आगे बढा था, फिर भी पीछे आवाज दे कर कहा कि यहीं का हूँ! तो सब हंसने लगे! मानवत आने के पहले सड़क अचानक से बेहतरीन हुई| जैसे कोई एक्स्प्रेस हायवे हो! पहले जब मै आया था, तब अच्छी मगर साधारण सी ही थी| लेकीन आज बिल्कुल असाधारण लगी! इसी का नाम जीना है! कल मै सड़क के लिए तरस रहा था और आज मेरे सामने बहुत बढिया सड़क! चलिए, अब इसी सड़क का भी मज़ा लेते हैं| लेकीन मानवत यहाँ से बहुत पास है, इसलिए ऐसी शानदार सड़क का ज्यादा आनन्द नही ले पाया और मानवत पहुँच गया|
यहाँ पर अब तक का सबसे बड़ा स्वागत किया गया| सड़क पर मेरे लिए सुस्वागतम् लिखवाया गया है! सड़क पर मुझ पर पुष्पवृष्टि भी की गई! लोगों ने हार भी पहनाए! कई सारे योग साधक मिले| इनमें से कई लोगों ने मेरे स्वागत के लिए पैसे भी खर्च किए| एक छोटा सा कार्यक्रम भी हुआ| उसके बाद डॉ. कहेकर जी के यहाँ जा कर विश्राम किया| शाम के कार्यक्रम का नियोजन हुआ| दिन भर थोड़ा विश्राम, फिर काम और फिर थोडी बातचीत होती रही|
आज ५३ किमी साईकिल चलाई और ५५० किमी पूरे हुए
मानवत में स्वागत
शाम को मन्दीर में चर्चा शुरू हुई| यहाँ निरामय संस्था के दो योग- शिक्षक हैं| उसके अलावा पतंजलि समिति, आर्ट ऑफ लिव्हिंग और अन्य तरह से योग करनेवाले भी बहुत साधक है| चर्चा में कुछ महिलाएँ भी आई हैं| एक- दो जगह का अपवाद छोड़ कर लगभग सभी जगह महिलाएँ भी इस प्रक्रिया में सहभागी दिखी| चर्चा में हर किसी ने अपने अनुभव रखे| एक साधक ने तो इस चर्चा के लिए उनकी बाहर जाने की यात्रा कैसल की है| किस प्रकार योग जीवन में आया, कैसे शुरू किया और अब कैसे कर रहे हैं, यह सबने बताया| कुछ लोग योग से इसके बाद भी जुड़ेंगे| यहाँ कुछ साधकों ने दिल्ली जा कर योग सीखा है| अलग अलग माध्यमों से योग कर भी रहे हैं और यह ज्ञान दूसरों को वे बाँट भी रहे हैं| हम जो सीखते हैं, उसे दूसरों को बाँटना भी उतना ही जरूरी है| कुछ लोगों का यह विचार हो सकता है कि पहले हम परिपूर्ण बने और उसके बाद ही दूसरों को सीखाने का प्रयास करें| ठीक भी है| लेकीन उसके साथ यह भी उतना ही सच है कि अगर हम कोई चीज़ दूसरों से बाँटते हैं, तो हमें भी अधिक मिलता है| हम भी दोबारा सीखते हैं| इसलिए अध्यात्म की साधना में बाँटना या मंगल मैत्री को बहुत महत्त्व दिया गया है| यहाँ कई छात्रों को भी योग पढाया जाता है| यहाँ बच्चों के योग की एक सिडी भी बनायी गई है, जो कि एक बहुत अच्छी बात है| कल मै परभणी जाते समय रास्ते में स्वामी मनिषानन्द जी के आश्रम पर चलनेवाला योग वर्ग भी देखूँगा| चर्चा में सबके अनुभव सुनने के बाद मैने मेरे अनुभव शेअर किए| अब तक की चर्चाओं के बारे में बताया| अब साईकिल यात्रा का एक ही दिन बचा है| कल परभणी जाऊँगा और निरामय टीम तथा वहाँ के योग साधकों से चर्चा होगी|
अगर आप चाहे तो इस कार्य से जुड़ सकते हैं| कई प्रकार से इस प्रक्रिया में सम्मीलित हो सकते हैं| अगर आप मध्य महाराष्ट्र में रहते हैं, तो यह काम देख सकते हैं; उनका हौसला बढ़ा सकते हैं| आप कहीं दूर रहते हो, तो भी आप निरामय संस्था की वेबसाईट देख सकते हैं; उस वेबसाईट पर चलनेवाली ॐ ध्वनि आपके ध्यान के लिए सहयोगी होगी| वेबसाईट पर दिए कई लेख भी आप पढ़ सकते हैं| और आप अगर कहीं दूर हो और आपको यह विचार ठीक लगे तो आप योगाभ्यास कर सकते हैं या कोई भी व्यायाम की एक्टिविटी कर सकते हैं; जो योग कर रहे हैं, उसे और आगे ले जा सकते हैं; दूसरों को योग के बारे में बता सकते हैं; आपके इलाके में काम करनेवाली योग- संस्था की जानकारी दूसरों को दे सकते हैं; उनके कार्य में सहभाग ले सकते हैं|
निरामय संस्था को किसी रूप से आर्थिक सहायता की अपेक्षा नही है| लेकीन अगर आपको संस्था को कुछ सहायता करनी हो, आपको कुछ 'योग- दान' देना हो, तो आप संस्था द्वारा प्रकाशित ३५ किताबों में से कुछ किताब या बूक सेटस खरीद सकते हैं या किसे ऐसे किताब गिफ्ट भी कर सकते हैं| निरामय द्वारा प्रकाशित किताबों की एक अनुठी बात यह है कि कई योग- परंपराओं का अध्ययन कर और हर जगह से कुछ सार निचोड़ कर ये किताबें बनाईं गई हैं| आप इन्हे संस्था की वेबसाईट द्वारा खरीद सकते हैं| निरामय संस्था की वेबसाईट- http://www.niramayyogparbhani.org/ इसके अलावा भी आप इस प्रक्रिया से जुड़ सकते हैं| आप यह पोस्ट शेअर कर सकते हैं| निरायम की वेबसाईट के लेख पढ़ सकते हैं| इस कार्य को ले कर आपके सुझाव भी दे सकते हैं| मेरे ब्लॉग पर www.niranjan-vichar.blogspot.in आप मेरी पीछली साईकिल यात्राएँ, अन्य लेख आदि पढ़ सकते हैं| आप मुझसे फेसबूक पर भी जुड़ सकते हैं| बहुत बहुत धन्यवाद!
अगला भाग: मानवत- परभणी
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (27-06-2018) को "मन को करो विरक्त" ( चर्चा अंक 3014) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी