महाराष्ट्र में परभणी- जालना- औरंगाबाद- बुलढाणा जिले के गाँवों में ६०० किलोमीटर साईकिलिंग
नमस्ते!
एक नई सोलो साईकिल यात्रा करने जा रहा हूँ| जिसके बारे में संक्षेप में आपसे बात करूँगा| पीछले साल महाराष्ट्र के सातारा क्षेत्र में योग- ध्यान इस विषय को ले कर एक छोटी यात्रा की थी| इस बार भी 'योग प्रसार हेतु साईकिल यात्रा' ऐसा विषय ले कर साईकिल चलाऊँगा| मध्य महाराष्ट्र के परभणी जिले में कार्यरत 'निरामय योग प्रसार एवम् अनुसंधान संस्था' तथा उसके कार्य का विस्तार को ले कर यह यात्रा है| मध्य महाराष्ट्र के परभणी, जालना, औरंगाबाद एवम् बुलढाणा जिलों में काम करनेवाले योग- कार्यकर्ता, योग अध्यापक इनसे इस यात्रा में मिलूँगा|
परभणी जिले में चार दशक से निरामय संस्था का कार्य चल रहा है| १९७० के दशक में कुछ व्यक्तियों ने साथ आ कर योग सीखना और सीखाना चालू किया| उसके बाद कई कार्यकर्ता जुड़ते गए| कार्य बढता गया| योग साधना और योग अध्यापन के साथ योग में अनुसंधान, योग परिषद में सहभाग, योग प्रसार, योग अध्यापकों को शिक्षा आदि कार्य बढ़ते गए| बाद में इसका विस्तार परभणी जिले के गाँवों में और फिर अन्य जिलों में भी हुआ| वहाँ भी कार्यकर्ताओं की टीम खड़ी हुई| यह पूरा कार्य स्वयं के योगदान से कार्यकर्ता करते रहे हैं| आज जब अधिकांश संस्थाएँ प्रोजेक्ट या फंडिंग होने पर ही कार्य करती हैं, ऐसे समय में इस तरह का निरपेक्ष कार्य बहुत महत्त्वपूर्ण है| इसी लिए एक तरह से सोचता था कि इस कार्य को सामने लाना जरूरी है| मेरा इस कार्य से बचपन से थोड़ा परिचय है| परभणी मेरा गाँव है और मेरे पिताजी इस पूरे कार्य में एक कार्यकर्ता रहे हैं|
किसी के मन में एक प्रश्न आ सकता है कि आज मध्य महाराष्ट्र के क्षेत्र में अकाल की समस्या है; पानी एवम् ग्राम विकास तथा खेती से जुड़े कई प्रश्न हैं| तो उस विषय के लिए साईकिल यात्रा करने के बजाय योग प्रसार के लिए साईकिल यात्रा कैसे कर रहा हूँ| प्रश्न स्वाभाविक भी है और सही भी है| इन दिनों पानी और खेती पर काम करने के लिए बहुत लोग सामने आ रहे हैं जो वाकई बड़ी बात है| लेकीन मेरी सोच में हर तरह के कार्य जरूरी ही होते हैं| हर कोई अपनी रुचि एवम् अपने विचारों के साथ ऐसे कार्य में सहभाग लेता हैं| इसके अलावा मै यह भी मानता हूँ कि योग का सम्बन्ध समूचे व्यक्तित्व से है| अगर कोई व्यक्ति योग की दिशा में आगे बढ़ता है तो वह अपनी सभी समस्याओं से निपटने की दिशा में भी एक कदम आगे बढ़ेगा ही| मैने आज तक जो योग जाना है, उसका अभ्यास किया है, साईकिलिंग से मुझे जो मिला है, उसके आधार पर यह मेरा अनुभव रहा है| इसलिए प्रत्यक्ष रूप में न होता हो तो भी अप्रत्यक्ष रूप में योग प्रसार भी सामाजिक समस्याओं को सुलझाने की दिशा में ले जानेवाला एक कदम है| खैर|
यह पूरी यात्रा मध्य महाराष्ट्र के अत्यधिक गर्मी होनेवाले इलाके में होगी| हर रोज लगभग ५५- ६० किलोमीटर साईकिल चलाऊँगा| इस क्षेत्र में दो- तीन शहर छोड कर बाकी गाँव ही हैं| और जब भी मैने गाँवों में साईकिल चलाई हैं, तब लोग यही कहते हैं- ओह गेअर की साईकिल! तो फिर यह तो मोटर साईकिल जैसी दौड़ती होगी! इस बार इसी लिए एक साधारण सी साईकिल (दुधवाला साईकिल) पर यह यात्रा करूँगा| ताकी लोगों को ऐसा सोचने का मौका न मिले और साईकिल सम्बन्धी जो प्रश्न पूछे जाते हैं, उनसे मुझे भी राहत मिलेगी! लोगों को भी यह समझ में आएगा की ठीक उनकी ही साईकिल भी इतनी चलायी जा सकती है| लोगों को शायद पता हो ना हो की यह दुधवाला टाईप की साईकिल भी इतनी दूर तक जा सकती हैं, मुझे तो बिल्कुल पता नही था| इसलिए जब इस तरह की साईकिल से ५०, ६० किलोमीटर साईकिलिंग की, तो मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला| साईकिलिंग की योजना कुछ इस प्रकार है| ११ मई से परभणी से शुरू करूँगा| हर दिन सुबह ४-५ घण्टे साईकिल चलाऊँगा और हर रोज ५५- ६० किलोमीटर दूरी पार करूँगा| उसके बाद लॅपटॉप पर मेरा रूटीन काम भी जारी रखूँगा| इसका रूट कुछ इस प्रकार होगा- परभणी- जिंतूर नेमगिरी- परतूर- अंबड- औरंगाबाद- देवगिरी किला- औरंगाबाद- जालना- सिंदखेड राजा- देऊळगांव राजा- चिखली- मेहकर- लोणार सरोवर- मंठा- मानवत- परभणी| लगभग १२ दिनों में ६०० किलोमीटर से अधिक साईकिल चलाने की योजना है| योग कार्य विस्तार एवम् योग- अध्यापक और केन्द्र इनके अनुसार यह रूट बनाया है|
इस यात्रा का एक उद्देश्य योग कार्य को सामने लाना यह है| उसके साथ इस रूट पर और इन केन्द्रों में होनेवाले योग अध्यापक- योग कार्यकर्ताओं से संवाद भी करूँगा| कई योग कार्यकर्ताओं ने बड़ी चुनौतिभरी स्थिति में कार्य किया है| कुछ महिलाओं ने कई अवरोधों पर मात करते हुए पहले यह पाठ्यक्रम पूरा किया और उसके बाद उतनी ही कठिन स्थिति में योग अध्यापन भी किया| कुछ कार्यकर्ता तो किसी रोग के कारण योग करने लगे और अब उनकी रोग को धन्यवाद देते हैं! ऐसे कई कार्यकर्ता और कई अनुठे उदाहरण इस यात्रा में मिलेंगे जिनके बारे में बाद में लिखूँगा|
अगर आप चाहे तो इस कार्य से जुड़ सकते हैं| कई प्रकार से इस प्रक्रिया में सम्मीलित हो सकते हैं| अगर आप मध्य महाराष्ट्र में रहते हैं, तो यह काम देख सकते हैं; उनका हौसला बढ़ा सकते हैं| आप कहीं दूर रहते हो, तो भी आप निरामय संस्था की वेबसाईट देख सकते हैं; उस वेबसाईट पर चलनेवाली ॐ ध्वनि आपके ध्यान के लिए सहयोगी होगी| वेबसाईट पर दिए कई लेख भी आप पढ़ सकते हैं| और आप अगर कहीं दूर हो और आपको यह विचार ठीक लगे तो आप योगाभ्यास कर सकते हैं या कोई भी व्यायाम की एक्टिविटी कर सकते हैं; जो योग कर रहे हैं, उसे और आगे ले जा सकते हैं; दूसरों को योग के बारे में बता सकते हैं; आपके इलाके में काम करनेवाली योग- संस्था की जानकारी दूसरों को दे सकते हैं; उनके कार्य में सहभाग ले सकते हैं|
निरामय संस्था को किसी रूप से आर्थिक सहायता की अपेक्षा नही है| लेकीन अगर आपको संस्था को कुछ सहायता करनी हो, आपको कुछ 'योग- दान' देना हो, तो आप संस्था द्वारा प्रकाशित ३५ किताबों में से कुछ किताब या बूक सेटस खरीद सकते हैं या किसे ऐसे किताब गिफ्ट भी कर सकते हैं| निरामय द्वारा प्रकाशित किताबों की एक अनुठी बात यह है कि कई योग- परंपराओं का अध्ययन कर और हर जगह से कुछ सार निचोड़ कर ये किताबें बनाईं गई हैं| आप इन्हे संस्था की वेबसाईट द्वारा खरीद सकते हैं| निरामय संस्था की वेबसाईट- http://www.niramayyogparbhani.org/ इसके अलावा भी आप इस प्रक्रिया से जुड़ सकते हैं| आप यह पोस्ट शेअर कर सकते हैं| निरायम की वेबसाईट के लेख पढ़ सकते हैं| इस कार्य को ले कर आपके सुझाव भी दे सकते हैं| इस पूरी यात्रा के अपडेटस मै मेरे ब्लॉग पर देता रहूँगा- www.niranjan-vichar.blogspot.in (यहाँ आप मेरी पीछली साईकिल यात्राएँ, अन्य लेख आदि पढ़ सकते हैं)| आप मुझसे फेसबूक पर भी जुड़ सकते हैं| बहुत बहुत धन्यवाद!
- निरंजन वेलणकर
niranjanwelankar@gmail.com
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (07-05-2017) को "मिला नहीं है ठौर ठिकाना" (चर्चा अंक-2963) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
आने वाले कड़ियों का इंतजार है....मुझे दो आने के बाद पता चला अब उनको पढ़ता हूँ..... बाकियों कड़ियों का इंतजार रहेगा.....
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