४: काण्डा गाँव के लिए प्रस्थान
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३० नवम्बर २०१७| आज सद्गड से निकलना है| गाँव में से दिखता हुआ कल का ध्वज मंदीर! वह इस परिसर का सबसे ऊँचा स्थान है| और वहाँ नेपाल का नेटवर्क मोबाईल ने पकड़ा था! आज थोड़ी गाँव की सैर की जाए| सुबह जल्द उठ कर निकला| पगडंडी के साथ साथ चल कर नीचे उतरा और सड़क पर पहुँचा! यह एक हिमालयीन गाँव! सड़क से सट कर होने के कारण दुर्गम तो नही कह सकते, लेकीन पहाड़ी गाँव! गाँव में दोपहिया वाहन एक- दो के पास ही हैं| जरूरत भी नही पड़ती है| एक तो घर तक वाहन आ भी नही पाते हैं| यहाँ के लोग खेती के साथ इस भूगोल से जुड़े व्यवसाय करते हैं- जैसे मिलिटरी, बीआरओ और आयटीबीपी और उससे जुड़े कामों में बहुत लोग होते हैं; कुछ सरकार के साथ काम करते हैं; और कोई बीस किलोमीटर दूर पिथौरागढ़ में नौकरी भी करते हैं| शहर की हवा यहाँ भी पहुँची है| सद्गड़ के कई बच्चे अंग्रेजी माध्यम की स्कूल में पढ़ते हैं; उन्हे स्कूल बस भी नीचे रोड़ से मिलती है|
ऐसे और इससे भी अधिक दुर्गम गाँव को देख कर मन में कई सवाल आते हैं| पहली बात तो आधुनिक प्रगति के जो कुछ थोड़े से लाभ हैं, उनसे वे कब तक वंचित रहेंगे? प्रकृति की गोद में आने के कई लाभ जरूर हैं, लेकीन आधुनिक जीवन के भी तो कुछ आवश्यक लाभ हैं| जैसे महिलाओं का स्वास्थ्य- प्रसव सुविधा और अन्य सुविधाएँ| ये इन्हे भी तो मिलनी चाहिए| लेकीन इस बात का दूसरा पहलू यह है कि जब ऐसे गाँवों में शहर की सुविधाएँ और लाभ आ जाते हैं; तो लोगों का जमीन से जुड़ाव कम होने लगता है| और एक तरह से पहाड़ी गाँव अपना गुणधर्म खो जाते हैं| जैसे अब जो पहाड़ के लोग है और पहाड़ में ही रह रहे हैं- लेकीन जब से उनका काम कुछ और हो गया- जैसे दुकानवाले या ड्रायवर हो गए, तो धीरे धीरे उनमें बदलाव आ जाता हैं| पहाड़ में बहुत ही कम लोगों का पेट दिखता है, लेकीन ऐसे व्यवसाय करनेवालों का पेट दिखाई पड़ता है| धीरे धीरे उनकी सोच शहर जैसी हो जाती है और फिर अक्सर हर परिवार में से कोई ना कोई नीचे मैदान में या दूसरे शहरों में जा बसता है| जैसे इसका अनुपात बढ़ता है, एक अर्थ में पहाड़ और वीरान हो जाते हैं| तो इसमें चुनाव क्या होना चाहिए? सुविधाएँ यहाँ आनी चाहिए की नही? पहली बात तो अब शहर और आधुनिक सोच का आक्रमण हर जगह पर होनेवाला ही है| चुनाव है ही नही वास्तव में|
लेकीन मेरे विचार में जिस तरह सड़के बनाते समय पहाड़ को भी बनाए रखना चाहिए; यात्रा- पर्यटन को बढ़ावा देने के साथ पर्यावरण का भी उतना ही ख्याल रखना चाहिए; वैसे ही आधुनिक सोच के साथ ही पहाड़ी वृत्ति को भी बचाए रखना चाहिए| मेरे मन में अक्सर विचार आता है- ऐसे भी कुछ लोग होंगे ना जो पहाड़ से भी उतने ही जुड़े है; पहाड़ में रहते भी हैं और शहर की संस्कृति भी सीख गए हैं| शायद ऐसे लोग बहुत कम होंगे| लेकीन अगर ऐसा कोई होगा जो शहर में सीख कर या शहर में रह कर भी पहाड़ की सरलता, वह भोलापन ना भूला हो और वापस पहाड़ में आ कर वह वहीं रह रहा हो; तो वाकई वह इन्सान एक तरह का सुवर्ण मध्य होगा| उसमें शहर की सोच और दृष्टि के साथ पहाड़ी विरासत भी होगी! अगर ऐसा वह मध्य में रह सके तो वह जरूर अनुठा होगा| मुझे ऐसा भी कई बार लगता है कि मिलिटरी का ट्रेनिंग; मिलिटरी का कौशल बहुत बड़ी उपलब्धि होती है| लेकीन है तो वह जीवन एका एक एक्स्ट्रीम| ऐसा कोई इन्सान होता है जो मिलिटरी ट्रेनिंग का महारथी भी हो और साथ में कवि भी हो या बुद्धीजिवी भी हो? ऐसे लोग जरूर होते होंगे; कम ही होते होंगे; लेकीन वे अनुठा संगम होते होंगे| खैर|
सुबह नीचे उतरा और हायवे पर चलने लगा| यह राष्ट्रीय राजमार्ग जो पहले मानस सरोवर जाने का एक मार्ग होता था| इस सड़क पर जगह जगह बीआरओ की पहचान दिखाई देती है! सर्दियों के मौसम में भी सड़क पर कार्य चल रहा है| पिथौरागढ़ की दिशा में सड़क उपर चढ़ रही है, अत: उसी तरफ टहलने लगा| सुबह की ताज़गी और चारों ओर दिखते पहाड़! दूर से कोई सड़क भी दिखाई देती हैं! कुछ देर आगे जा कर फोटो खींचे| इस सड़क पर चलना भी उतना ही रोमांचक है| थोड़ी देर चलने के बाद वापस मूड़ा| सद्गड गाँव में आ कर पगडंडी से उपर आया| एक जगह पर पगडंडी का कन्फ्युजन हुआ तो जीपीएस पर ट्रेल देखते हुए वापस घर पर पहुँचा| स्कूल के लिए निकल रहे बच्चे पगडंडी पर ही मिले| करीब सवातीन किलोमीटर चलने के कारण ठण्ड से कुछ राहत मिली| वापस आने पर धूप में चाय का आनन्द लिया| घर की छत पर धूप में बैठ कर सामने पहाड़ देखता रहा| परसों एक विवाह समारोह में जाना है; कल शाम तक वहाँ पहुँचना चाहिए| और भी जहाँ विवाह होगा, उस घर पर एक कार्यक्रम के लिए जाना है| अत: मुझे अन्य कहीं जाने का अवसर नही मिलेगा| इसलिए पिथौरागढ़ जिले में ही हेल्पिया ग्राम की अर्पण संस्था में भी नही जा पाऊँगा| पीछली बार उनके साथ रहा था, इसलिए जाने की इच्छा थी| लेकीन इस बार नही जा पाऊँगा|
दोपहर को सद्गड से निकले| सभी लोग साथ में होने के कारण कुछ समय लगा| फिर बस की प्रतीक्षा की| बस से पिथौरागढ़ के बजार के स्थान पर पहुँचे| सौ प्रतिशत लोग स्वेटर पहने हुए हैं! थोड़ा टहलना होने के बाद बाजार से कांडा गाँव के पास जानेवाली एक जीप मिली| पहाड़ में पिथौरागढ़ शहर भी हुआ तो भी देहात ही है| इसलिए जीप निकल कर और उसे अन्य सवारियाँ ले कर निकलने के लिए बहुत समय लग गया| सभी यात्री स्थानीय है, उनमें महिलाएँ अधिक है| हालाकी सभी एक दूसरे को पहचानते हैं| मेरे रिश्तेदारों को भी कही ना कही से पहचानते हैं| जीप में गाना बहुत अनुठा लगा- तेरो मेरो रिश्तो पहलो जनमवा ऐसा कुछ गना! वाकई, पहाड़ से मेरा रिश्ता भी कुछ ऐसा ही है| जीप बुंगाछीना होते हुए अगन्या गाँव से जाने लगी| अगन्या गाँव में मेरे ससुरजी का घर है| अभी वहाँ जाना नही होगा, लेकीन हमारा सामान एक दुकान में रख दिया| क्यों कि आज हम जहाँ जाएंगे, उस कांडा गाँव में जाने के लिए पैदल चलना होगा|
सड़क पर चारों तरफ नजारे और छोटे छोटे पहाड़ पर बंसे गाँव! बीच में नदियाँ और छोटी धाराएँ! वाह! जीप में मजे की बात यह रही की स्थानीय लोगों को भी उलटी होते हुए दिखी! पिथौरागढ़ से निकलने के करीब ढाई घण्टे बाद कांडा गाँव के पास सड़क के अन्तिम बिन्दु तक पहुँचे| यहाँ से आगे पैदल जाना होगा! सड़क का अन्तिम हिस्सा भी बहुत टूटा हुआ था| नाजुक स्थिति में है यह सड़क! और मेरी पत्नि ने बताया कि यह सड़क भी बहुत नई है| पहले तो उन्हे यहाँ तक पहुँचने के लिए भी तीन- चार किलोमीटर चलना होता था और अभी जहाँ जीप की सड़क बनी है, वहाँ पहले का पैदल कच्चा रास्ता भी बहुत जोखीमभरा था! आगे का ट्रेक भी जोखीमभरा लेकीन रोमांचक होगा! क्यों कि यहाँ घोडा दिखाई दे रहा है! अगर ट्रेक की राह पर घोड़ा हो, तो इसका मतलब जरूर यह ट्रेक रोमांचक होगा!
कांडा गांव का रास्ता| इसमें पिथौरागढ़, सद्गड, नेपाल सीमा भी दिखाई देती है|
क्रमश:
अगला भाग- पिथौरागढ़ में भ्रमण भाग ५: काण्डा गाँव का रोमांचक ट्रेक
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३० नवम्बर २०१७| आज सद्गड से निकलना है| गाँव में से दिखता हुआ कल का ध्वज मंदीर! वह इस परिसर का सबसे ऊँचा स्थान है| और वहाँ नेपाल का नेटवर्क मोबाईल ने पकड़ा था! आज थोड़ी गाँव की सैर की जाए| सुबह जल्द उठ कर निकला| पगडंडी के साथ साथ चल कर नीचे उतरा और सड़क पर पहुँचा! यह एक हिमालयीन गाँव! सड़क से सट कर होने के कारण दुर्गम तो नही कह सकते, लेकीन पहाड़ी गाँव! गाँव में दोपहिया वाहन एक- दो के पास ही हैं| जरूरत भी नही पड़ती है| एक तो घर तक वाहन आ भी नही पाते हैं| यहाँ के लोग खेती के साथ इस भूगोल से जुड़े व्यवसाय करते हैं- जैसे मिलिटरी, बीआरओ और आयटीबीपी और उससे जुड़े कामों में बहुत लोग होते हैं; कुछ सरकार के साथ काम करते हैं; और कोई बीस किलोमीटर दूर पिथौरागढ़ में नौकरी भी करते हैं| शहर की हवा यहाँ भी पहुँची है| सद्गड़ के कई बच्चे अंग्रेजी माध्यम की स्कूल में पढ़ते हैं; उन्हे स्कूल बस भी नीचे रोड़ से मिलती है|
ऐसे और इससे भी अधिक दुर्गम गाँव को देख कर मन में कई सवाल आते हैं| पहली बात तो आधुनिक प्रगति के जो कुछ थोड़े से लाभ हैं, उनसे वे कब तक वंचित रहेंगे? प्रकृति की गोद में आने के कई लाभ जरूर हैं, लेकीन आधुनिक जीवन के भी तो कुछ आवश्यक लाभ हैं| जैसे महिलाओं का स्वास्थ्य- प्रसव सुविधा और अन्य सुविधाएँ| ये इन्हे भी तो मिलनी चाहिए| लेकीन इस बात का दूसरा पहलू यह है कि जब ऐसे गाँवों में शहर की सुविधाएँ और लाभ आ जाते हैं; तो लोगों का जमीन से जुड़ाव कम होने लगता है| और एक तरह से पहाड़ी गाँव अपना गुणधर्म खो जाते हैं| जैसे अब जो पहाड़ के लोग है और पहाड़ में ही रह रहे हैं- लेकीन जब से उनका काम कुछ और हो गया- जैसे दुकानवाले या ड्रायवर हो गए, तो धीरे धीरे उनमें बदलाव आ जाता हैं| पहाड़ में बहुत ही कम लोगों का पेट दिखता है, लेकीन ऐसे व्यवसाय करनेवालों का पेट दिखाई पड़ता है| धीरे धीरे उनकी सोच शहर जैसी हो जाती है और फिर अक्सर हर परिवार में से कोई ना कोई नीचे मैदान में या दूसरे शहरों में जा बसता है| जैसे इसका अनुपात बढ़ता है, एक अर्थ में पहाड़ और वीरान हो जाते हैं| तो इसमें चुनाव क्या होना चाहिए? सुविधाएँ यहाँ आनी चाहिए की नही? पहली बात तो अब शहर और आधुनिक सोच का आक्रमण हर जगह पर होनेवाला ही है| चुनाव है ही नही वास्तव में|
लेकीन मेरे विचार में जिस तरह सड़के बनाते समय पहाड़ को भी बनाए रखना चाहिए; यात्रा- पर्यटन को बढ़ावा देने के साथ पर्यावरण का भी उतना ही ख्याल रखना चाहिए; वैसे ही आधुनिक सोच के साथ ही पहाड़ी वृत्ति को भी बचाए रखना चाहिए| मेरे मन में अक्सर विचार आता है- ऐसे भी कुछ लोग होंगे ना जो पहाड़ से भी उतने ही जुड़े है; पहाड़ में रहते भी हैं और शहर की संस्कृति भी सीख गए हैं| शायद ऐसे लोग बहुत कम होंगे| लेकीन अगर ऐसा कोई होगा जो शहर में सीख कर या शहर में रह कर भी पहाड़ की सरलता, वह भोलापन ना भूला हो और वापस पहाड़ में आ कर वह वहीं रह रहा हो; तो वाकई वह इन्सान एक तरह का सुवर्ण मध्य होगा| उसमें शहर की सोच और दृष्टि के साथ पहाड़ी विरासत भी होगी! अगर ऐसा वह मध्य में रह सके तो वह जरूर अनुठा होगा| मुझे ऐसा भी कई बार लगता है कि मिलिटरी का ट्रेनिंग; मिलिटरी का कौशल बहुत बड़ी उपलब्धि होती है| लेकीन है तो वह जीवन एका एक एक्स्ट्रीम| ऐसा कोई इन्सान होता है जो मिलिटरी ट्रेनिंग का महारथी भी हो और साथ में कवि भी हो या बुद्धीजिवी भी हो? ऐसे लोग जरूर होते होंगे; कम ही होते होंगे; लेकीन वे अनुठा संगम होते होंगे| खैर|
सुबह नीचे उतरा और हायवे पर चलने लगा| यह राष्ट्रीय राजमार्ग जो पहले मानस सरोवर जाने का एक मार्ग होता था| इस सड़क पर जगह जगह बीआरओ की पहचान दिखाई देती है! सर्दियों के मौसम में भी सड़क पर कार्य चल रहा है| पिथौरागढ़ की दिशा में सड़क उपर चढ़ रही है, अत: उसी तरफ टहलने लगा| सुबह की ताज़गी और चारों ओर दिखते पहाड़! दूर से कोई सड़क भी दिखाई देती हैं! कुछ देर आगे जा कर फोटो खींचे| इस सड़क पर चलना भी उतना ही रोमांचक है| थोड़ी देर चलने के बाद वापस मूड़ा| सद्गड गाँव में आ कर पगडंडी से उपर आया| एक जगह पर पगडंडी का कन्फ्युजन हुआ तो जीपीएस पर ट्रेल देखते हुए वापस घर पर पहुँचा| स्कूल के लिए निकल रहे बच्चे पगडंडी पर ही मिले| करीब सवातीन किलोमीटर चलने के कारण ठण्ड से कुछ राहत मिली| वापस आने पर धूप में चाय का आनन्द लिया| घर की छत पर धूप में बैठ कर सामने पहाड़ देखता रहा| परसों एक विवाह समारोह में जाना है; कल शाम तक वहाँ पहुँचना चाहिए| और भी जहाँ विवाह होगा, उस घर पर एक कार्यक्रम के लिए जाना है| अत: मुझे अन्य कहीं जाने का अवसर नही मिलेगा| इसलिए पिथौरागढ़ जिले में ही हेल्पिया ग्राम की अर्पण संस्था में भी नही जा पाऊँगा| पीछली बार उनके साथ रहा था, इसलिए जाने की इच्छा थी| लेकीन इस बार नही जा पाऊँगा|
दोपहर को सद्गड से निकले| सभी लोग साथ में होने के कारण कुछ समय लगा| फिर बस की प्रतीक्षा की| बस से पिथौरागढ़ के बजार के स्थान पर पहुँचे| सौ प्रतिशत लोग स्वेटर पहने हुए हैं! थोड़ा टहलना होने के बाद बाजार से कांडा गाँव के पास जानेवाली एक जीप मिली| पहाड़ में पिथौरागढ़ शहर भी हुआ तो भी देहात ही है| इसलिए जीप निकल कर और उसे अन्य सवारियाँ ले कर निकलने के लिए बहुत समय लग गया| सभी यात्री स्थानीय है, उनमें महिलाएँ अधिक है| हालाकी सभी एक दूसरे को पहचानते हैं| मेरे रिश्तेदारों को भी कही ना कही से पहचानते हैं| जीप में गाना बहुत अनुठा लगा- तेरो मेरो रिश्तो पहलो जनमवा ऐसा कुछ गना! वाकई, पहाड़ से मेरा रिश्ता भी कुछ ऐसा ही है| जीप बुंगाछीना होते हुए अगन्या गाँव से जाने लगी| अगन्या गाँव में मेरे ससुरजी का घर है| अभी वहाँ जाना नही होगा, लेकीन हमारा सामान एक दुकान में रख दिया| क्यों कि आज हम जहाँ जाएंगे, उस कांडा गाँव में जाने के लिए पैदल चलना होगा|
सड़क पर चारों तरफ नजारे और छोटे छोटे पहाड़ पर बंसे गाँव! बीच में नदियाँ और छोटी धाराएँ! वाह! जीप में मजे की बात यह रही की स्थानीय लोगों को भी उलटी होते हुए दिखी! पिथौरागढ़ से निकलने के करीब ढाई घण्टे बाद कांडा गाँव के पास सड़क के अन्तिम बिन्दु तक पहुँचे| यहाँ से आगे पैदल जाना होगा! सड़क का अन्तिम हिस्सा भी बहुत टूटा हुआ था| नाजुक स्थिति में है यह सड़क! और मेरी पत्नि ने बताया कि यह सड़क भी बहुत नई है| पहले तो उन्हे यहाँ तक पहुँचने के लिए भी तीन- चार किलोमीटर चलना होता था और अभी जहाँ जीप की सड़क बनी है, वहाँ पहले का पैदल कच्चा रास्ता भी बहुत जोखीमभरा था! आगे का ट्रेक भी जोखीमभरा लेकीन रोमांचक होगा! क्यों कि यहाँ घोडा दिखाई दे रहा है! अगर ट्रेक की राह पर घोड़ा हो, तो इसका मतलब जरूर यह ट्रेक रोमांचक होगा!
कांडा गांव का रास्ता| इसमें पिथौरागढ़, सद्गड, नेपाल सीमा भी दिखाई देती है|
क्रमश:
अगला भाग- पिथौरागढ़ में भ्रमण भाग ५: काण्डा गाँव का रोमांचक ट्रेक
बहुत सुन्दर
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