५: काण्डा गाँव का रोमांचक ट्रेक
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३० नवम्बर २०१७ की दोपहर| सद्गड- पिथौरागड़ जा कर अब काण्डा गाँव जाना है| काण्डा गाँव सड़क से जुड़ा हुआ नही है, इसलिए यहाँ एक छोटा ट्रेक करना है| साथ के लोगों ने कहा भी, की कुछ ही समय पहले तक यहाँ बनी सड़क भी नही थी और दूर से ही पैदल चलना होता था| जैसे ही जीप से उतरे, सामने नीचे उतरती पगडण्डी दिखी और साथ में घोडे भी दिखे! इस ट्रेक के बारे में रिश्तेदारों ने बताया भी था| और शुरू हो गया एक सुन्दर ट्रेक! सड़क से पगडण्डी सीधा जंगल में जाने लगी और नीचे भी उतरने लगी| एक घना जंगल सामने आया और पगडण्डी धीरे धीरे और सिकुड़ती गई|
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क्या सुन्दर दृश्य है! संकरी सी पैदल राह और आसपास पेड़ पौधे और पहाड़! कुछ देर तक तो पगडण्डी अच्छी है, लेकीन धीरे धीरे सिर्फ कच्ची मिट्टी की राह रह गई| दोपहर होने के बावजूद घने पेड़ों के कारण सुबह की ओस भी कहीं कहीं मौजुद है जिससे यहाँ से चलते समय फिसलन होने की सम्भावना है| कुछ कुछ जगहों पर तो खाई का अच्छा खासा एक्स्पोजर है| अगर मैने पहले हिमालय में कई ट्रेक नही किए होते या कभी खाई के एक्स्पोजर का करीब से अनुभव नही लिया होता, तो जरूर मुझे यह यात्रा कठिन जाती| कठिन नही कहूँगा, लेकीन रोमांचक जरूर है यह यात्रा! कुछ दूरी पर जा कर पगडंडी समतल हुई, कहीं कहीं पर थोड़ी देर ठहरने के लिए भी जगह है| सब लोग साथ जाते रहे| उसके बाद तिखी चढाई शुरू हुई| कुछ कुछ जगह पर मुश्कील से पैर रखने जैसी जगह है| धीरे धीरे काण्डा गाँव पास आता गया| पेड़ों से गुजरने के बाद खेत दिखने लगे और दूर गाँव का उपरी हिस्सा- मल्ला भी दिखने लगा|
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सड़क छोडने के बाद लगभग एक घण्टे के बाद गाँव पहुँचे| सब लोग साथ में होने के कारण कुछ देर लगी| और बीच बीच में कई पगडण्डीयाँ होने से स्थानीय लोगों के साथ आगे बढ़ने की आवश्यकता थी| शाम ढलते ढलते काण्डा गाँव के विवाह के घर पहुँच गए| बिल्कुल पहाड़ के बीचोबीच बंसा हुआ गाँव और यहाँ के बेहद सरल लोग! यह गाँव और यहाँ का ट्रेक हमेशा याद रहेगा! अगर हमारे पास सामान होता, तो यह ट्रेक बेहद कठिन होता| अच्छा हुआ कि सामान एक गाँव में छोड कर यहाँ आए| पहुँचने के बाद जल्द ही अन्धेरा हुआ और दूर पहाड़ में दिए चमक उठे| यहाँ मोबाईल नेटवर्क भी थोड़ा ही है| गाँव चढाई पर बंसा हुआ है| यहाँ पारंपारिक कुमाऊँनी विवाह समारोह देखने की अपेक्षा है| शाम को संगीत बजने लगा| पता चला कि यहाँ भी डीजे बजनेवाला है| एक तरह से इतना दुर्गम गाँव होने के बावजूद भी यह अब शहर की हवा पहुँच गई है और पहुँचेगी ही| धीरे धीरे ठण्ड बढने लगी|
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शाम को काफी हद तक पारंपारिक कुमाऊनी विवाह के कुछ रिवाज देखने को मिले| लेकीन डिजे का शोर मेरे मिजाज के अनुरूप न होने के कारण जल्द ही नीन्द की तरफ बढ़ चला| लेकीन उसके पहले घर के आसपास थोड़ा घूम लिया| कितनी अनुठी जगह है! दूर पहाड़ में जगह जगह टिमटिमाते दिएं! अब कल जाऊँगा तो जितना हो सके पैदल जाऊँगा| जहाँ तक जीप आई थी, वह भी सड़क पैदल चलने के लिए सुनहरी है| कल सुबह यहाँ से निकल कर जहाँ विवाह है, उस गाँव को जाना है| विवाह समारोह लडकीवालों के यहाँ लोहाघाट में होगा जो की पिथौरागढ़- टनकपूर सड़क पर पड़ता है|
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लगभग सवा किलोमीटर का यह रोमांचक ट्रेक!
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क्रमश:
अगला भाग- पिथौरागढ़ में भ्रमण भाग ६: काण्डा गाँव से वापसी
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३० नवम्बर २०१७ की दोपहर| सद्गड- पिथौरागड़ जा कर अब काण्डा गाँव जाना है| काण्डा गाँव सड़क से जुड़ा हुआ नही है, इसलिए यहाँ एक छोटा ट्रेक करना है| साथ के लोगों ने कहा भी, की कुछ ही समय पहले तक यहाँ बनी सड़क भी नही थी और दूर से ही पैदल चलना होता था| जैसे ही जीप से उतरे, सामने नीचे उतरती पगडण्डी दिखी और साथ में घोडे भी दिखे! इस ट्रेक के बारे में रिश्तेदारों ने बताया भी था| और शुरू हो गया एक सुन्दर ट्रेक! सड़क से पगडण्डी सीधा जंगल में जाने लगी और नीचे भी उतरने लगी| एक घना जंगल सामने आया और पगडण्डी धीरे धीरे और सिकुड़ती गई|
क्या सुन्दर दृश्य है! संकरी सी पैदल राह और आसपास पेड़ पौधे और पहाड़! कुछ देर तक तो पगडण्डी अच्छी है, लेकीन धीरे धीरे सिर्फ कच्ची मिट्टी की राह रह गई| दोपहर होने के बावजूद घने पेड़ों के कारण सुबह की ओस भी कहीं कहीं मौजुद है जिससे यहाँ से चलते समय फिसलन होने की सम्भावना है| कुछ कुछ जगहों पर तो खाई का अच्छा खासा एक्स्पोजर है| अगर मैने पहले हिमालय में कई ट्रेक नही किए होते या कभी खाई के एक्स्पोजर का करीब से अनुभव नही लिया होता, तो जरूर मुझे यह यात्रा कठिन जाती| कठिन नही कहूँगा, लेकीन रोमांचक जरूर है यह यात्रा! कुछ दूरी पर जा कर पगडंडी समतल हुई, कहीं कहीं पर थोड़ी देर ठहरने के लिए भी जगह है| सब लोग साथ जाते रहे| उसके बाद तिखी चढाई शुरू हुई| कुछ कुछ जगह पर मुश्कील से पैर रखने जैसी जगह है| धीरे धीरे काण्डा गाँव पास आता गया| पेड़ों से गुजरने के बाद खेत दिखने लगे और दूर गाँव का उपरी हिस्सा- मल्ला भी दिखने लगा|
सड़क छोडने के बाद लगभग एक घण्टे के बाद गाँव पहुँचे| सब लोग साथ में होने के कारण कुछ देर लगी| और बीच बीच में कई पगडण्डीयाँ होने से स्थानीय लोगों के साथ आगे बढ़ने की आवश्यकता थी| शाम ढलते ढलते काण्डा गाँव के विवाह के घर पहुँच गए| बिल्कुल पहाड़ के बीचोबीच बंसा हुआ गाँव और यहाँ के बेहद सरल लोग! यह गाँव और यहाँ का ट्रेक हमेशा याद रहेगा! अगर हमारे पास सामान होता, तो यह ट्रेक बेहद कठिन होता| अच्छा हुआ कि सामान एक गाँव में छोड कर यहाँ आए| पहुँचने के बाद जल्द ही अन्धेरा हुआ और दूर पहाड़ में दिए चमक उठे| यहाँ मोबाईल नेटवर्क भी थोड़ा ही है| गाँव चढाई पर बंसा हुआ है| यहाँ पारंपारिक कुमाऊँनी विवाह समारोह देखने की अपेक्षा है| शाम को संगीत बजने लगा| पता चला कि यहाँ भी डीजे बजनेवाला है| एक तरह से इतना दुर्गम गाँव होने के बावजूद भी यह अब शहर की हवा पहुँच गई है और पहुँचेगी ही| धीरे धीरे ठण्ड बढने लगी|
शाम को काफी हद तक पारंपारिक कुमाऊनी विवाह के कुछ रिवाज देखने को मिले| लेकीन डिजे का शोर मेरे मिजाज के अनुरूप न होने के कारण जल्द ही नीन्द की तरफ बढ़ चला| लेकीन उसके पहले घर के आसपास थोड़ा घूम लिया| कितनी अनुठी जगह है! दूर पहाड़ में जगह जगह टिमटिमाते दिएं! अब कल जाऊँगा तो जितना हो सके पैदल जाऊँगा| जहाँ तक जीप आई थी, वह भी सड़क पैदल चलने के लिए सुनहरी है| कल सुबह यहाँ से निकल कर जहाँ विवाह है, उस गाँव को जाना है| विवाह समारोह लडकीवालों के यहाँ लोहाघाट में होगा जो की पिथौरागढ़- टनकपूर सड़क पर पड़ता है|
लगभग सवा किलोमीटर का यह रोमांचक ट्रेक!
क्रमश:
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