Monday, October 1, 2018

पिथौरागढ़ में भ्रमण भाग ७: लोहाघाट यात्रा

७: लोहाघाट यात्रा
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१ दिसम्बर २०१७ की दोपहर लोहाघाट जाने के लिए जीप से निकले| सुबह अच्छा ट्रेक हुआ है और अब जीप से यात्रा करनी है| यहाँ पहाड़ी सड़कों पर वाहन से जाना भी एक तरह का ट्रेक होता है| रास्ते में कल रखा हुआ सामान एक दुकान से वापस लिया और आगे बढ़े| जीप से और भी नजारे दिखाई देते रहे| थोड़ी देर में पिथौरागढ़ पहुँचे| यहाँ से लोहाघाट ६० किलोमीटर है| लेकीन सड़क पूरी पहाड़ी होने के कारण यह थकानेवाली यात्रा होगी| पिथौरागढ़ से आगे गुरना माता मन्दीर के आगे एक जगह जीपें बहुत देर तक रूकी| यहाँ सड़क पर निर्माण कार्य किया जा रहा है जिसके लिए सड़क रोकी गई और वाहनों की लम्बी कतार हो गई| इस स्थान से कुछ दूरी पर नीचे खाई में रामगंगा बह रही है| थोड़ी देर नजारों का आनन्द लिया| दोपहर होते हुए भी दिसम्बर का दिन होने के कारण अब ठण्ड लग रही है|







कुछ देर बाद यात्रा शुरू हुई| लगातार उपर- नीचे और मोड लेती हुई सड़क! जीप की यात्रा में भी थकान हो रही है| एक तरह से उल्टी का डर भी लग रहा है| जीप यात्रा में स्थानीय लोगों को भी उल्टी होते हुए देखी है| यात्रा में आगे भी एक- दो जगहों पर सड़क कुछ देर तक रुकी है| इस पूरे राजमार्ग का विस्तार किया जा रहा है| भविष्य में इसे दो- दो लेन का बनाया जाएगा| लेकीन इसके लिए पूरे पहाड़ को काटा जा रहा है| जगह जगह पर खुदाई का काम चल रहा है| यह एक विचित्र स्थिति है- सड़क बनाने के लिए पहाड़ काटना पड़ता है और सड़क के कारण ही पहाड़ धंसने की सम्भावना बढ़ती है| इससे एक दुष्टचक्र शुरू हो जाता है| खैर| दोपहर के ढलते ढलते लोहाघाट पहुँचे| यहाँ एक विवाह समारोह में भाग लेना है| 




नीचे से बहती रामगंगा


यहाँ पारंपारिक विवाह का एक उदाहरण देखने को मिला| कुमाऊँ रिति- रिवाज देखने को मिले| पारंपारिक जयमाला की रस्म भी देखने को मिली! अब तक कुदरती सुन्दरता देखी है, इस विवाह समारोह में दूसरे ढंग की मानवीय सुन्दरता भी देखी! मै अक्सर ऐसे विवाह समारोह से उब जाता हूँ, इसलिए बीच बीच में विवाह स्थान के बाहर आ कर एक मैदान पर टहलता रहा| स्वेटर- टोपी पहनने के बाद भी मुझे अच्छी खासी ठण्ड लग रही है| लेकीन पास ही मैदान में कई बच्चे फूटबॉल खेल रहे हैं, उन्हे शायद कुछ भी ठण्ड नही लग रही है| खेलने के कपड़ों में वे मस्ती से खेल रहे हैं| शरीर को गर्म रखने के लिए थोड़ा चलता रहा| काफी देर बाद विवाह समारोह समाप्त हुआ और खाना खा कर वापस पिथौरागढ़ जाने के लिए निकले| अब वही जीप यात्रा रात्रि के अन्धेरे में करनी है| वाकई हिमालय की पहाड़ी सड़कों पर रात में गाडी चलाने के लिए बहुत हुनर के साथ हौसला भी चाहिए| और यह सड़क ऐसी है, जहाँ रात में भी यातायात होती रहती है| जीप और ट्रकें भी चलती हैं| जीप का चालक बहुत अच्छे नियंत्रण से जीप चला रहा है| अब शरीर इस तरह की यात्रा को कुछ आदी हो गया है, इसलिए नीन्द भी आने लगी|  





पिथौरागढ़ तक वधु- वर की गाडी भी हमारे साथ साथ रहेगी| उसके बाद वे आज ही काण्डा गाँव जाएंगे और उनका आज रात ही गृहप्रवेश होगा! यह भी विवाह समारोह का एक रिवाज है जिसमें उन्हे आज रात ही घर पहुँचना है| और इसके लिए उन्हे रात के अन्धेरे में ही पैदल चल कर गाँव पहुँचना होगा| जो ट्रेक हमने दिन में किया था, उसे में वे रात करेंगे जो कि बिल्कुल दूसरी बात है! गाँव के लोग दिए और टॉर्च ले कर उनको रिसिव करने के लिए सड़क पर आएंगे| फिर भी रात के अन्धेरे में और ठण्ड माहौल में उस ट्रेक को करना कुछ भी आसान बात नही है| और विवाह कर आई वधू के लिए तो यह बिल्कुल नया स्थान होगा, उसे भी पैदल चल कर ही इसे पार करना होगा! रात में पिथौरागढ़ में ही मेरी पत्नि के चाचा के यहाँ ठहरे| पिथौरागढ़ के एक दूसरे इलाके का दर्शन हुआ| लेकीन मन में इस समय विचार है उस रात की पैदल यात्रा का जो वो लोग अभी कर रहे होंगे!

क्रमश:

अगला भाग- पिथौरागढ़ में भ्रमण भाग ८ (अन्तिम): पिथौरागढ़ से वापसी

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