Wednesday, October 3, 2018

पिथौरागढ़ में भ्रमण ८ (अन्तिम): पिथौरागढ़ से वापसी

८ (अन्तिम): पिथौरागढ़ से वापसी
 

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२ दिसम्बर २०१७ की सुबह| कल रात की यात्रा कर पिथौरागढ़ पहुँचे| आज मुझे यहाँ से निकलना है, क्यों कि कल दोपहर को दिल्ली से ट्रेन है| वैसे तो कल लोहाघाट से ही मै जा सकता था, लेकीन उसके लिए एक रात लोहाघाट में ठहरना पड़ता| उसके बजाय सभी के साथ वापस पिथौरागढ़ आया, रात की यात्रा का भी अनुभव लिया| मेरे साथ में आए हुए लोग और कुछ दिन यहाँ रूकेंगे| लेकीन मुझे छुट्टियों की कमी के कारण निकलना होगा| लेकीन ये सांत दिन बेहद अनुठे रहे| लगभग ढाई सालों के बाद हिमालय का दर्शन हुआ और सद्गड़ और कांडा के रोमांचक ट्रेक हुए| हिमालय की गोद में होनेवाले गाँवों में रहने का मौका मिला! अब इन्ही यादों को संजोते हुए यहाँ से निकलना है|








सुबह ग्यारह बजे पिथौरागढ़ के बस अड़्डे से दिल्ली की बस है| दिल्ली से बड़े सुदूर इलाकों में बस जाती है| जैसे दिल्ली- धारचूला, दिल्ली- महेंद्रनगर और दिल्ली- लेह भी (सिर्फ जुलाई से सितम्बर)| चढाई पर बंसे पिथौरागढ़ गाँव का दृश्य देखते हुए निकला| कुछ दिनों तक बेटी से दूर रहूँगा, उसे विदा किया| उसके गाल थोड़े थोड़े लाल हुए हैं! जैसे ही‌ बस अड्डे के पास पहुँचा, वहाँ मोहर्रम का बड़ा जुलूस मिला| पिथौरागढ़ जैसे गाँव में इस तरह का जुलूस थोड़ा अप्रत्याशित है| स्कूली बच्चे भी जुलूस में बड़ी संख्या में है| जल्द ही बस और सीट भी मिल गई| यहाँ से सीधा दिल्ली- आईएसबीटी आनंद विहार तक दिन में तीन- चार बसें चलती हैं| छह घण्टों की दूरी पर टनकपूर है, जहाँ से और अधिक बसें मिलती हैं| धीरे धीरे बस डेपो से निकलती हुई निकली| गुरना माता के पास ट्रैफिक रोकी नही है, इसलिए वहाँ रूकने की स्थिति नही आई|







अब टनकपूर तक पहाड़ ही पहाड़! हिमालय से वापसी की यात्रा शुरू! बीच बीच में दूर के शिखर भी दिखाई दे रहे है| इस छोटी सी यात्रा में ना तो साईकिल चला पाया, ना ही कुछ पर्यटन स्थानों पर जा पाया| फिर भी हिमालय में अच्छा भ्रमण कर सका| अब इन्ही यादों के सहारे अगली यात्रा तक गुजारा करना है| पिथौरागढ़- टनकपूर सड़क पर लोहाघाट के बाद सिर्फ चंपावत ही बड़ा कस्बा है| बाकी बहुत छोटे गाँव ही हैं| साथ में मिलिटरी और बीआरओ के युनिटस हैं, कुछ मकान और होटल भी लगते रहते हैं| पहाड़ी खेती भी बराबर नजर आती है| और नजारे तो हर पल चालू रहते हैं| नजारों के बीच यात्रा जारी रही| धीरे धीरे टनकपूर पास आ रहा है| टनकपूर के पन्द्रह किलोमीटर पहले एक स्थान पर बस नाश्ते के लिए रूकी| हिमालय के लगभग चरण तल का स्थान! यहाँ तक ड्राईवर कुछ थका था, इसलिए कंडक्टर ने ड्राईवर का स्थान लिया और बस चलाना शुरू किया| लेकीन दो मिनट में ही थके ड्राईवर ने उसे रोका और वापस वही चलाने लगा! कंडक्टर को पहाड़ी सड़कों का अभ्यास नही होगा|







अब तक चारों तरफ पहाड़ थे| धीरे धीरे जैसे एक तरफ के पहाड़ बह गए| थोड़ी ही देर में‌ वह नजारा सामने आया! तीन तरफ पहाड़ और दूर एक तरफ समुद्र जैसी जमीन! अब भी चढाई- उतराई जारी रही| धीरे धीरे हिमालय की चरण धूल समाप्त हो गई और टनकपूर के मैदान करीब आए! एकदम जैसे शहर का शोर शुरू हुआ, टैफिक आ गई| बिल्कुल अन्धेरा होते होते टनकपूर पहुँच गए| हिमालय ने विदाई दे दी! लेकीन उत्तराखण्ड रुद्रपूर सिटी तक जारी रहेगा| कुछ देर तक टनकपूर में बस रूकी| टनकपूर से एक बस हरिद्वार के रास्ते शिमला भी जाती है! हिमालय से उतरने के बाद भी ठण्ड जारी रही और जैसे जैसे रात गिरती गई, ठण्ड बढ़ती गई| बस सुबह करीब पाँच बजे दिल्ली पहुँची| आनन्द विहार टर्मिनस पर कुछ देर रूक कर सिटी बस से नई दिल्ली स्टेशन की तरफ बढ़ चला| सिटी बस ढूँढने में कुछ समय लगा| बस में से ही जामा मस्जीद और लाल किला देख लिया| दिल्ली में इन दिनों बडा ही मशहूर कोहरा फैला हुआ है| इसलिए विजिबिलिटी भी कम ही है| समय रहते स्टेशन पर पहुँच गया और ट्रेन भी मिली| लेकीन मन अब भी हिमालय में ही है! वहाँ का सन्नाटा, शान्ति, नजारे, खामोशी! वाह!



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