Friday, November 2, 2018

साईकिल पर कोंकण यात्रा भाग ७: कोस्टल रोड़ से कुणकेश्वर भ्रमण

भाग ७: कोस्टल रोड़ से कुणकेश्वर भ्रमण
 

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१२ सितम्बर का दिन साईकिल चलाए बिना समाप्त हो गया| मेरी पत्नि और बेटी को लाने के लिए मुझे जाना पड़ा| इससे साईकिल यात्रा का और एक दिन कम हुआ| अब शायद सिर्फ एक ही दिन साईकिल चला पाऊँगा| मेरे रिश्तेदार, भाई और अब पत्नि- बेटी आने के बाद इस सुनसान घर में चहल पहल हुई है| अब यहाँ कुछ ठीक महसूस कर रहा हूँ| पुरानी यादें तो हैं ही, अब बेटी साथ होने से नई यादें भी जुड़ रही हैं| यह फार्म हाऊस समुद्र तट से लगभग नौ किलोमीटर दूर आता है| लेकीन सुना है कि जब बरसाती दिनों में भीषण बारीश होती है, समंदर में तुफान जैसी स्थिति बनती है, तब यहाँ तक उसकी गूँज सुनाई देती है| अगर इस बार तेज़ बरसात होती, तो यह मौका मिलता! इसके लिए बरसात के चरम समय में यहाँ आना होगा|










यह घर जंगल के पास विराने में ही है| यहाँ अक्सर रात में जंगली जानवर आते हैं- अक्सर शेर भी आया करता है| फार्म हाऊस के केअरटेकर्स बताते हैं कि कई बार उन्होने यहाँ सांप और बिच्छू मारे हैं| रात में जब बातचीत चल रही थी, तभी अचानक कुछ समय के लिए लाईटस चली गई| संयोग से हम उस समय आँगन में ही थे| अचानक जैसे आसमान का नजारा जीवित हो उठा! संयोग से इस समय बादल बिल्कुल भी नही है और घने अन्धेरे में आकाश दर्शन का बहुत मज़ा आ रहा है| मेरे और मेरे भाई ने हमारे पुराने मित्र- तारों को देखा| घने अन्धेरे के कारण आकाशगंगा का सौंदर्य भी अनुपम ही दिखाई दे रहा है| शहर में प्रकाश प्रदूषण के कारण यह देखना बेहद कठिन होता है| जब आकाश में तारे देख रहे थे, तभी जुगनू चमक उठे! कई सरे जुगनू दिखाई देने लगे| कुछ तो खिड़की में से घर में भी आए! यहाँ घर के आसपास इतने जंगली जानवर पाए जाते हैं कि सुबह द्वार खोलने के बाद पैर नीचे रखने के पहले देखना पड़ता है कि कुछ है तो नही| यह शाम बहुत मज़ेदार रही| खैर|

१३ सितम्बर को गणेश उत्सव का पहला दिन है| घर में पूजा होगी, लेकीन मै सुबह जल्दी साईकिल ले कर निकला| आज और कुछ न सही, लेकीन समुद्र के तट के पास से गुजरनीवाली सड़क से कुणकेश्वर जरूर जाना है| और कुणकेश्वर- देवगड़ के बीच का पुरानी सड़क का रूट भी बेहद रोमांचक है| आज वहाँ साईकिल चला कर इस यात्रा के चरम बिन्दू का अनुभव करूँगा! टहलते टहलते देवगड़ बस अड़्डे तक पहुँच गया| यहाँ से एक रास्ता समुद्र तट के पास से कुणकेश्वर की तरफ जाता है| यह नया बना है| इसलिए यहाँ पहली बार ही जाऊँगा| इस रास्ते पर जाते समय पहले देवगड़ बीच की पवन चक्की का बोर्ड लगा| इसलिए पहले वहाँ गया| यहाँ भी बेहद अनुठा दृश्य है| ऊँची घूमनेवाली‌ विराट पवन चक्की और नीचे बीच! अथाह सागर! वाह! ऐसे सुन्दर नजारे हमें अवाक् कर देते है! ऐसे स्थान पर ध्यान अपने आप घटित होता है|‌ और एक व्यक्ति मिले भी जो ध्यान कर रहे हैं| यहाँ से देवगड़ के बीच तक पगडण्डी बनी है| बेहद सुन्दर नजारे! अहा हा!









थोड़ी देर रूक कर फिर वापस कुणकेश्वर की‌ तरफ जानेवाली सड़क पर आया| कुणकेश्वर के पहले इस सड़क पर दो छोटे कस्बे और बीच भी लगते हैं- तारामुम्बरी और मिठमुम्बरी| और खाड़ी पर एक ब्रिज भी बना है| वाकई ऐसी रोमँटीक सड़क पर साईकिल चलाना मेरी इस यात्रा का क्लायमैक्स है| देवगड़ में जो साईकिलिस्ट होंगे, उनके लिए यह मॉर्निंग राईड का सबसे बेहतर रूट होगा! बीच के किनारे से यह सड़क गुजर रही है| हिमालय में जैसे देवदार वृक्ष होते हैं, वैसे यहाँ मैंग्रोव पेड़ हैं! लेकीन आज गणेश उत्सव का पहला दिन होने के कारण सभी बीच बिल्कुल खाली पड़े हैं| साईकिल चलाते हुए ही नजारों का आनन्द लेता रहा| मिठमुम्बरी बीच बेहद सुन्दर और शान्त लगा| कुणकेश्वर आने के पहले कुछ तिखी चढाई है| चढाई तो खास नही है, लेकीन यहाँ से समुद्र ठीक नीचे हैं! वाह!









कुणकेश्वर तक सिर्फ एक ही वाहन मुझे इस सड़क पर क्रॉस हुआ| कुणकेश्वर के पास पहुँचने पर वहाँ का प्रसिद्ध शिव मन्दीर दिखा| बचपन में जब इस मन्दीर के पास वालू में आते थे, तो लगता था मानो यह मन्दीर और किनारा ही समुद्र में जा रहा है! और उसी मन्दीर को अब सड़क के स्थान से देखना वाकई रोमांचित करनेवाला अनुभव! सुनसान लेकीन सुन्दर सड़क! आज फिर एक बार मेरा साईकिल चलाना सार्थक हो रहा है| कुणकेश्वर के मन्दीर में तो बहुत बार आया हूँ, इसलिए अभी नही गया| मन्दीर के बाहर शहीद मेजर कौस्तुभ राणे का फोटो लगाया है| उनकी अस्थियों का विसर्जन यहीं पर किया गया| गणेश पूजा में सब लोग व्यस्त है, फिर भी एक होटल खुला मिल गया| यहाँ सिर्फ चाय- बिस्कूट ही है| लेकीन मुझे इनकी आवश्यकता है, क्यों कि अब तक लगभग पन्द्रह किलोमीटर हो गए हैं और वापस जाने में चढाई भी है| कुणकेश्वर के बीच के बारे में बात करते हुए मेरे भाई ने (बुआ के बेटे ने) बताया था कि अब कुणकेश्वर का बीच छोटा हो रहा है| समुद्र मन्दीर के पास आ रहा है| अब मन्दीर से बालू पर जाने के लिए भी थोड़े पानी‌ से जाना पड़ता है| उसने यह भी कहा कि अगले कुछ वर्षों में यह बीच नही रहेगा! इसी बीच पर दूसरी तरफ एक बहुत ही मॉडर्न टूरीस्ट सेंटर बनाया गया है| वहाँ भी समुद्र पर एक तरह का अतिक्रमण किया गया है| ये संकेत चिन्ताजनक है!










कुणकेश्वर से जामसंडे की‌ तरफ जानेवाली सड़क बेहद रोमँटीक है! पहले कई बार यहाँ आया हूँ, फिर भी उतनी ही‌ रोमांचित कर रही है| जब इस सड़क पर मोटर साईकिल चलाई थी, तो एक बार बहुत दिक्कत हुई| मोटर साईकिल चढाई के बीच जा कर ठहर गई| पीछे पत्नि भी बैठी‌ थी उस समय| जैसे तैसे फर्स्ट गेअर + हाफ क्लच ड़ाल कर उस चढाई को पार किया था| पीछले साल मै यहाँ खुद कार ले कर आया था| उस समय तो कार में इतने जने थे कि बच्चे डिकी में बैठे थे| वहाँ भी ऐसी ही तिखी चढाई! मेरे जीवन के सबसे कठिन दो सैकंडस की सूचि बनाऊँगा, तो उसमें वह पल जरूर आएगा! अचानक तिखी चढाई पर एस्टिलो कार चढ ही नही रही थी| साँस अटक गई, सोच- विचार जैसे ब्लैंक हुए थे| बिलकुल जैसे तैसे सेकंड गेअर में हाफ क्लच दे कर एक्सलेरेटर दबा कर वहाँ से बच निकला| कार के मामले में मै मुश्कील से साधारण ड्रायवर ही कहलाऊँगा| वह पुणे- देवगड़ और वापसी की कार यात्रा बेहद रोमांचक रही थी| चलानेवाला मै अकेला था| इसी कुणकेश्वर की सड़क ने इतना डर दिया था कि कोल्हापूर जाने के रूट पर लगनेवाले गगनबावड़ा घाट से बहुत डर गया था| अन्त में गगनबावड़ा घाट तो इजी गया, लेकीन यहाँ की तिखी चढ़ाई के वे दो सैकेंड जिन्दगी भर नही‌ भूले जाएंगे! खैर|















कुणकेश्वर से जामसंड़े की दूरी सिर्फ दस किलोमीटर है, लेकीन यह बेहद सुन्दर यात्रा है| बीच बीच में जंगल लगते हैं, छोटे छोटे गाँव आते हैं| और नजारे ही नजारे! बीच में विरान जगह से जब चला रहा हूँ, तब भी पास के किसी गाँव से गणेश पूजा का गीत सुनाई दे रहा है! वाह! इसमें सड़क भी बेहद सुन्दर बनी है| और अब तक इतनी साईकिल चलाई है, कि चढ़ाई का बिल्कुल भी डर नही लग रहा है|   अपेक्षाकृत तिखी चढाई भी आसानी से पार हुई और घर के पास पहुँचा| बेहद शानदार रही यह छोटी सी यात्रा| लगभग अठ्ठाईस किलोमीटर साईकिल चलाई| बेहद अविश्वसनीय नजारे और रोमांच! इसी यात्रा का यही क्लायमैक्स रहा| अब आगे और नही जा पाने का बिल्कुल भी मलाल नही है|

शाम को फिर एक बार ठीक इसी रूट पर गाड़ी में‌ घूमना हुआ| साईकिल तो नही है, लेकीन बाकी सब लोगों के साथ इन्ही नजारों का और एक बार आनन्द लिया| भाई के साथ बहुत बातें हुई| बचपन में छुट्टियों में मै यहाँ आया करता था और हम बहुत खेलते, किताब पढ़ते और घूमते भी थे| जब परसो मै एक दिन यहाँ अकेला था, तब उन्ही किताबों में डुबकी ली| यहाँ कई किताबें ६०- ७० के दशक की है| मेरे पसन्दीदा विषयों पर- इतिहास, दूसरा विश्वयुद्ध! अब उन किताबों को पढ़ना तो सम्भव नही है, लेकीन उनके पन्नों की सुगन्ध का तो आनन्द लिया ही जा सकता है! और इन किताबों के साथ हमारी कॉमिक्स की‌ भी दुनिया थी! उस कॉमिक्स के जगत का सिर्फ एक ही प्रमाण यहाँ बचा है- परमाणू का स्टिकर! ऐसी यादों के बीच अब अगला दिन भी जाएगा और परसो निकलना होगा| यात्रा तो जारी रहेगी, घूमना भी होगा, लेकीन साईकिल रूकी रहेगी| वापस जाते समय साईकिल गाड़ी में डाल कर ले जाऊँगा| लेकीन कुल मिला कर क्या यात्रा रही यह! आज के २८ मिला के लगभग ४६३ किलोमीटर हो गए! साईकिल ने बहुत साथ निभाया| तिसरे दिन मलकापूर के पास तो मेरी हवा उतर गई थी, लेकीन साईकिल पंक्चर नही हुई और चलती रही...











(मेरे भाई द्वारा लिए गए कुछ फोटोज)

अगला भाग: साईकिल पर कोंकण यात्रा भाग ८ (अन्तिम): देवगड़ से वापसी...

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (03-11-2018) को "भारत की सच्ची विदेशी बहू" (चर्चा अंक-3144) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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