८: हाफ मॅरेथॉन से आगे का सफर
डिस्क्लेमर: यह लेख माला कोई भी टेक्निकल गाईड नही है| इसमें मै मेरे रनिंग के अनुभव लिख रहा हूँ| जैसे मै सीखता गया, गलती करता गया, आगे बढता गया, यह सब वैसे ही लिख रहा हूँ| इस लेखन को सिर्फ रनिंग के व्यक्तिगत तौर पर आए हुए अनुभव के तौर पर देखना चाहिए| अगर किसे टेक्निकल गायडन्स चाहिए, तो व्यक्तिगत रूप से सम्पर्क कर सकते हैं|
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फरवरी २०१८ में हाफ मैरेथॉन ईवेंट बेहतर तरीके से हुआ| अब निगाहें है फुल मैरेथॉन पर| लग रहा है कि जब सवा दो घण्टों में हाफ मैरेथॉन कर सकता हूँ, तो फुल मैरेथॉन भी कट ऑफ (७ घण्टे) के भीतर आराम से कर लूंगा| पहले तो फुल मैरेथॉन के डेटस देखे| पहला ओपन बूकिंग जून में था वो भी सातारा नाईट मैरेथॉन का| तब मेरे परिचित दिग्गज रनर्स का मार्गदर्शन लिया| और धीरे धीरे उनके मार्गदर्शन में कई सारी चीजें पता चली| और इसके साथ हाफ मैरेथॉन तक मेरी जो यात्रा बहुत अर्थ में ad hoc थी, वह धीरे धीरे व्यवस्थित होने लगी| मेरे रिश्तेदार और दिग्गज रनर परागजी जोशी ने मुझे विस्तार से बताया और कहा कि फुल मैरेथॉन के लिए मुझे पहले कोअर- स्ट्रेंदनिंग करना चाहिए| दौड़ने में शरीर के जो मुख्य अंग होते हैं- उन्हे मजबूत करना चाहिए| उसके लिए इंटरनेट पर विडियो देखे और जल्द ही वह करने लगा| स्टैमिना/ एंड्युरन्स सिर्फ ऊर्जा की नही, बल्की मसल्स मजबूत होने की भी बात है| इसके लिए उन मसल्स को सही व्यायाम दे कर तैयार करना जरूरी होता है|
शुरू में ये एक्सरसाईज बहुत कठिन लगे| लेकीन ७- मिनट के ये एक्सरसाईज धीरे धीरे ठीक से करने लगा| और कुछ दिनों में उनके परिणाम भी मिले| मानो ऐसा लगा कि अगर ये एक्सरसाईज नियमित अन्तराल से (हफ्ते में दो- तीन बार) करता रहूँ, तो रनिंग में कुछ गैप हुआ, तो भी वह महसूस नही हो रहा है| मै जो ७ मिनट के ७ एक्सरसाईजेस कर रहा था वे ये थे- ४५ सेकैंड के स्ट्रेंदनिंग- बॉडी वेट स्क्वॅटस, बॅकवर्ड लंज, साईड लेग रेझ, प्लँक, साईड प्लँक, ग्लूट ब्रिज, बर्ड- डॉग एक्सरसाईजेस| हर एक्सरसाईज के बाद १५ सेकैंड का विराम| इसमें बहुत विविधताएँ भी हैं, विकल्प भी हैं| मुझे जो ठीक लगे, वो मै करता गया| उसके साथ योग- प्राणायाम- ध्यान में भी नियमितता लाई| क्यों कि सिर्फ वर्क- आउट करना ठीक नही, उसे सन्तुलित करने के लिए वर्क- इन भी करना चाहिए| साईकिलिंग तो चल ही रहा है|
फरवरी के बाद रनिंग में कुछ गैप हुई और बाद में तो गर्मी शुरू होने से रनिंग अधिक नही हो पाया| लेकीन छोटे रन्स जारी रहे और बिल्कुल खण्ड की स्थिति नही आने दी| मेरे मित्र संजय बनसकर जी से विचार विमर्श कर नाईट मैरेथॉन का विचार छोड दिया| जून में बहुत गर्मी होती है और मैरेथॉन दौड़ना कठिन होगा, उन्होने समझाया| मैने हाफ मैरेथॉन के लिए जो शूज इस्तेमाल किए थे, उन्हे लाँग रन्स (२५ किमी +) के लिए रख कर छोटे रन के लिए बाजार में मिलनेवाले सबसे सस्ते शूज खरीदे| अब रनिंग में स्पीड बढ़ गई है और पेस कम हुई है (क्यों कि पेस याने प्रति किलोमीटर लगनेवाले मिनटस)! अब धीरे धीरे ६.१९, ६.२५ ऐसी भी पेस मिल रही है| मार्च से ले कर मई तक गर्मियों के कारण अधिक रनिंग नही हो पाई| साथ ही बीच बीच में लगातार कई दिनों तक साईकिल यात्रा भी हुई, उससे और उसकी तैयारी से भी रनिंग में गैप हुई| इस समय स्ट्रेंदनिंग बड़ा काम आया| और सिर्फ रनिंग ही नही, साईकिलिंग में भी स्ट्रेंदनिंग ने अच्छा लाभ दिया|
शुरुआत में लगता था, कि साईकिलिंग के साथ रनिंग करने से मै एक तरह से ऑल राउंडर तो बन रहा हूँ, पर डर था कि मेरा इरफान पठान तो नही हो जाएगा!? रनिंग के चक्कर में रनिंग और साईकिल दोनो में चूक जाने का डर था! लेकीन जब हाफ मैरेथॉन सफल रही और फिर स्ट्रेंदनिंग आदि करने लगा, तो हौसला आया कि नही, दोनो कर पाऊँगा! एक बॅटसमन को जब गेंदबाजी में सफलता मिलती होगी, तो क्या लगता होगा, इसका कुछ एहसास तब जा कर हुआ! अब अनुभव से कह सकता हूँ कि रनिंग और साईकिलिंग दो अलग कलाएँ जरूर हैं, लेकीन आपस में जुड़ी भी हैं| जैसे ये दोनों पानी की टंकियाँ हैं, लेकीन आपस में अच्छी जुड़ी भी हैं (और इन्हे स्ट्रेंदनिंग, योग, वॉक आदि माध्यम जोड़ते हैं)| ऐसी जुड़ी है कि अगर एक टंकी में अच्छा पानी हो, तो दूसरे में भी पानी मिलेगा| जैसे किसी का साईकिलिंग अच्छा हो, साईकिलिंग में एंड्युरन्स हो, तो उसे रनिंग में भी बहुत लाभ मिलेगा, रनिंग के लिए वह व्यक्ति तैयार होगा, बस उसे पॉलिश करने की बात होगी| खैर, यह मेरा अनुभव है, शायद दूसरों के लिए यह अलग भी हो सकता है|
रनिंग में मज़ा इतना आ रहा है, रनिंग अच्छा कर भी सकता हूँ, फिर भी साईकिलिंग की तुलना में रनिंग के लिए मन में एक तरह की झिझक है, एक तरह का डर भी है| और स्वाभाविक भी है| क्यों कि साईकिलिंग तो कई सालों से करता हूँ, और बचपन से कालेज तक साईकिल चलाई भी थी| रनिंग का वैसा नही है| इसलिए रनिंग एक तरह से मन के बाहरी हिस्से से अधिक सम्बन्धित है| मन की गहराईयों में अभी नही गई होगी| इसलिए अभी बहुत यात्रा करनी है| और जो डर है, उसे दूर करना हो तो जिससे डर लगता है, वही चीज़ करनी चाहिए| उसके लिए २५ किलोमीटर और उसके आगे दौड़ने के बारे में सोचने लगा|
अगला भाग: “भाग दौड़" भरी ज़िन्दगी ९: लाँग रन्स से दोस्ती
डिस्क्लेमर: यह लेख माला कोई भी टेक्निकल गाईड नही है| इसमें मै मेरे रनिंग के अनुभव लिख रहा हूँ| जैसे मै सीखता गया, गलती करता गया, आगे बढता गया, यह सब वैसे ही लिख रहा हूँ| इस लेखन को सिर्फ रनिंग के व्यक्तिगत तौर पर आए हुए अनुभव के तौर पर देखना चाहिए| अगर किसे टेक्निकल गायडन्स चाहिए, तो व्यक्तिगत रूप से सम्पर्क कर सकते हैं|
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फरवरी २०१८ में हाफ मैरेथॉन ईवेंट बेहतर तरीके से हुआ| अब निगाहें है फुल मैरेथॉन पर| लग रहा है कि जब सवा दो घण्टों में हाफ मैरेथॉन कर सकता हूँ, तो फुल मैरेथॉन भी कट ऑफ (७ घण्टे) के भीतर आराम से कर लूंगा| पहले तो फुल मैरेथॉन के डेटस देखे| पहला ओपन बूकिंग जून में था वो भी सातारा नाईट मैरेथॉन का| तब मेरे परिचित दिग्गज रनर्स का मार्गदर्शन लिया| और धीरे धीरे उनके मार्गदर्शन में कई सारी चीजें पता चली| और इसके साथ हाफ मैरेथॉन तक मेरी जो यात्रा बहुत अर्थ में ad hoc थी, वह धीरे धीरे व्यवस्थित होने लगी| मेरे रिश्तेदार और दिग्गज रनर परागजी जोशी ने मुझे विस्तार से बताया और कहा कि फुल मैरेथॉन के लिए मुझे पहले कोअर- स्ट्रेंदनिंग करना चाहिए| दौड़ने में शरीर के जो मुख्य अंग होते हैं- उन्हे मजबूत करना चाहिए| उसके लिए इंटरनेट पर विडियो देखे और जल्द ही वह करने लगा| स्टैमिना/ एंड्युरन्स सिर्फ ऊर्जा की नही, बल्की मसल्स मजबूत होने की भी बात है| इसके लिए उन मसल्स को सही व्यायाम दे कर तैयार करना जरूरी होता है|
शुरू में ये एक्सरसाईज बहुत कठिन लगे| लेकीन ७- मिनट के ये एक्सरसाईज धीरे धीरे ठीक से करने लगा| और कुछ दिनों में उनके परिणाम भी मिले| मानो ऐसा लगा कि अगर ये एक्सरसाईज नियमित अन्तराल से (हफ्ते में दो- तीन बार) करता रहूँ, तो रनिंग में कुछ गैप हुआ, तो भी वह महसूस नही हो रहा है| मै जो ७ मिनट के ७ एक्सरसाईजेस कर रहा था वे ये थे- ४५ सेकैंड के स्ट्रेंदनिंग- बॉडी वेट स्क्वॅटस, बॅकवर्ड लंज, साईड लेग रेझ, प्लँक, साईड प्लँक, ग्लूट ब्रिज, बर्ड- डॉग एक्सरसाईजेस| हर एक्सरसाईज के बाद १५ सेकैंड का विराम| इसमें बहुत विविधताएँ भी हैं, विकल्प भी हैं| मुझे जो ठीक लगे, वो मै करता गया| उसके साथ योग- प्राणायाम- ध्यान में भी नियमितता लाई| क्यों कि सिर्फ वर्क- आउट करना ठीक नही, उसे सन्तुलित करने के लिए वर्क- इन भी करना चाहिए| साईकिलिंग तो चल ही रहा है|
फरवरी के बाद रनिंग में कुछ गैप हुई और बाद में तो गर्मी शुरू होने से रनिंग अधिक नही हो पाया| लेकीन छोटे रन्स जारी रहे और बिल्कुल खण्ड की स्थिति नही आने दी| मेरे मित्र संजय बनसकर जी से विचार विमर्श कर नाईट मैरेथॉन का विचार छोड दिया| जून में बहुत गर्मी होती है और मैरेथॉन दौड़ना कठिन होगा, उन्होने समझाया| मैने हाफ मैरेथॉन के लिए जो शूज इस्तेमाल किए थे, उन्हे लाँग रन्स (२५ किमी +) के लिए रख कर छोटे रन के लिए बाजार में मिलनेवाले सबसे सस्ते शूज खरीदे| अब रनिंग में स्पीड बढ़ गई है और पेस कम हुई है (क्यों कि पेस याने प्रति किलोमीटर लगनेवाले मिनटस)! अब धीरे धीरे ६.१९, ६.२५ ऐसी भी पेस मिल रही है| मार्च से ले कर मई तक गर्मियों के कारण अधिक रनिंग नही हो पाई| साथ ही बीच बीच में लगातार कई दिनों तक साईकिल यात्रा भी हुई, उससे और उसकी तैयारी से भी रनिंग में गैप हुई| इस समय स्ट्रेंदनिंग बड़ा काम आया| और सिर्फ रनिंग ही नही, साईकिलिंग में भी स्ट्रेंदनिंग ने अच्छा लाभ दिया|
शुरुआत में लगता था, कि साईकिलिंग के साथ रनिंग करने से मै एक तरह से ऑल राउंडर तो बन रहा हूँ, पर डर था कि मेरा इरफान पठान तो नही हो जाएगा!? रनिंग के चक्कर में रनिंग और साईकिल दोनो में चूक जाने का डर था! लेकीन जब हाफ मैरेथॉन सफल रही और फिर स्ट्रेंदनिंग आदि करने लगा, तो हौसला आया कि नही, दोनो कर पाऊँगा! एक बॅटसमन को जब गेंदबाजी में सफलता मिलती होगी, तो क्या लगता होगा, इसका कुछ एहसास तब जा कर हुआ! अब अनुभव से कह सकता हूँ कि रनिंग और साईकिलिंग दो अलग कलाएँ जरूर हैं, लेकीन आपस में जुड़ी भी हैं| जैसे ये दोनों पानी की टंकियाँ हैं, लेकीन आपस में अच्छी जुड़ी भी हैं (और इन्हे स्ट्रेंदनिंग, योग, वॉक आदि माध्यम जोड़ते हैं)| ऐसी जुड़ी है कि अगर एक टंकी में अच्छा पानी हो, तो दूसरे में भी पानी मिलेगा| जैसे किसी का साईकिलिंग अच्छा हो, साईकिलिंग में एंड्युरन्स हो, तो उसे रनिंग में भी बहुत लाभ मिलेगा, रनिंग के लिए वह व्यक्ति तैयार होगा, बस उसे पॉलिश करने की बात होगी| खैर, यह मेरा अनुभव है, शायद दूसरों के लिए यह अलग भी हो सकता है|
रनिंग में मज़ा इतना आ रहा है, रनिंग अच्छा कर भी सकता हूँ, फिर भी साईकिलिंग की तुलना में रनिंग के लिए मन में एक तरह की झिझक है, एक तरह का डर भी है| और स्वाभाविक भी है| क्यों कि साईकिलिंग तो कई सालों से करता हूँ, और बचपन से कालेज तक साईकिल चलाई भी थी| रनिंग का वैसा नही है| इसलिए रनिंग एक तरह से मन के बाहरी हिस्से से अधिक सम्बन्धित है| मन की गहराईयों में अभी नही गई होगी| इसलिए अभी बहुत यात्रा करनी है| और जो डर है, उसे दूर करना हो तो जिससे डर लगता है, वही चीज़ करनी चाहिए| उसके लिए २५ किलोमीटर और उसके आगे दौड़ने के बारे में सोचने लगा|
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