Tuesday, July 2, 2019

“भाग दौड़" भरी ज़िन्दगी- १२: मुंबई मैरेथॉन की तैयारी

१२: मुंबई मैरेथॉन की तैयारी
 

डिस्क्लेमर: यह लेख माला कोई भी टेक्निकल गाईड नही है| इसमें मै मेरे रनिंग के अनुभव लिख रहा हूँ| जैसे मै सीखता गया, गलती करता गया, आगे बढता गया, यह सब वैसे ही लिख रहा हूँ| इस लेखन को सिर्फ रनिंग के व्यक्तिगत तौर पर आए हुए अनुभव के तौर पर देखना चाहिए| अगर किसे टेक्निकल गायडन्स चाहिए, तो व्यक्तिगत रूप से सम्पर्क कर सकते हैं|

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नवम्बर २०१८ में फिर एक बार लाँग रन्स शुरू किए| २० जनवरी २०१९ की मैरेथॉन के लिए तैयारी करनी है| उसके पहले एक बार ३६ किलोमीटर तक मुझे पहुँचना है| अगस्त- सितम्बर में जब लगातार हर हफ्ते २५- ३० किमी दौड़ा था, तो दिक्कत हुई थी और इंज्युरी भी हुई थी| इसलिए इस बार सोचा कि हर हफ्ते के बजाय हर पखवाड़े लाँग रन करूँगा और बीच बीच में छोटे रन ही करूँगा| इसके साथ मैरेथॉन के पहले कुछ चीजें भी थोड़ी ठीक करनी है| शूज का निर्णय लेना है और तकनीक भी थोड़ी ठीक करनी है| इसी समय मेरे रनिंग के मार्गदर्शक बनसकर सर ने मुझे अदिदास के शूज गिफ्ट किए| मेरे लिए वह बिल्कुल अच्छे लगे| अब इन शूज के साथ लाँग रन कर के देखना होगा| साथ ही एक तरह से २५ किलोमीटर के बाद जो दिक्कत आती है, उसे भी पार करना है|

कई रनर्स के साथ इसके बारे में चर्चा भी कर रहा हूँ| २५ किलोमीटर के बाद रनिंग करना कठिन होता है और चलना पड़ता है, इसके कई कारण हो सकते हैं| जैसे ठीक डाएट ना होना, रनिंग की तकनीक गलत होना या मानसिक अवरोध भी! उस तरह से कुछ बदलाव भी करता गया| प्रोटीन का इन्टेक बढ़ाया| कुछ और व्यायाम शुरू किए| इसी दौरान बनसकर सर ने मुझे पुश अप्स करने की ट्रिक भी बताई| पहले कभी भी पुश अप्स नही किए थे, इसलिए उन्हे करना बहुत कठिन लग रहा था| क्यों कि उसमें पूरे शरीर का आधा वजन दो हाथों पर उठाना होता है| तब सर ने मुझे एक बार रनिंग के बाद एक फूट या दो फूट ऊँची फर्श पर पुश अप करने के लिए कहे| वे मै कर पाया| उसी से धीरे धीरे वह ट्रिक आ गई और वह क्षमता भी आ गई| रनिंग के लिए कुछ जिम के अभ्यास, योग, प्राणायाम, चलना, साईकिलिंग बहुत उपयोगी है| मसल्स भी तैयार होते हैं, स्टैमिना भी बढ़ता है| इसी कारण इस दौरान बड़े बड़े वॉक भी किए और आगे भी करता रहा| इससे फास्ट वॉकिंग की स्पीड भी बढ़ गई और २५ किलोमीटर या ३० किलोमीटर की दूरी के बाद चलना भी पड़े तो आसानी से बाकी की दूरी पार कर लूँगा, यह हौसला मिला|




इसी के दौरान कुछ रन्स चढाई पर भी किए| और कुछ इन्डोअर रन भी किए| इस दौरान एक अलग बात हुई| इन्डोअर दौड़ते समय अपने आप टो- रनिंग हुआ| मतलब पैरों की उंगलियों पर दौड़ने लगा| बिना कुछ किए, पैर वैसे दौड़ने लगे| और वह बहुत अच्छा भी लगा| देखा जाए तो रनिंग की सही तकनीक टो- रन ही है| क्यों कि पूरा पैर लैंड करने के बजाय सिर्फ उंगलियाँ लैंड होती हैं तो पैर तुरन्त उठ सकता है, उसके लिए समय और ऊर्जा दोनों कम लगते हैं| इसलिए रेस के रनर्स ज्यादा तर उंगलियों पर ही दौड़ते हैं| इनडोअर में कोई दिक्कत नही आई| लेकीन जब बाद में शूज के साथ टो- रनिंग की कोशिश की तो दिक्कत आने लगी| फिर भी कई दिनों तक टो- रन और टो- वॉक करता रहा| अन्त में चलने की समस्या और स्पीड दोनों में इससे लाभ होगा, ऐसा लगा| लेकीन जब लगातार कई दिनों तक टो वॉक और टो रन किए, तब महसूस हुआ कि यह तरीका अच्छा तो है, मगर मेरे पैर इसके लिए तैयार नही है और इस वजह से नॉर्मल- सहज रन के बजाय अधिक समय भी लग रहा है और पैर भी दुख रहे हैं| और जब मेरी मैरेथॉन के लिए सिर्फ डेढ- दो महिने बाकी है, तब मुझे यह नही करना चाहिए| उंगलियों को तैयार करना होगा, अभ्यास देना होगा| शायद भविष्य में कभी टो- रन या टो- वॉक करूँगा| यह सोच कर लगभग दो- तीन हफ्तों तक टो रनिंग की कोशिश करने के बाद वह बन्द कर दिया| फिर से नॉर्मल रनिंग ही शुरू की- उसमें पैर लैंड होने से समय और ऊर्जा अधिक लगती है, लेकीन जब यही सहज है तो यही सही!





दिसम्बर में अब बड़े रन्स करने है| २५ किलोमीटर तो मै कभी भी कर सकता हूँ| इसलिए २५ की बजाय ३० किलोमीटर की दूरी तय की| उसके पहले कई बार छोटे रन्स जरूर किए| १६ दिसम्बर २०१८, मैरेथॉन के एक महिना पहले ३० किलोमीटर के लिए निकला| लाँग रन्स अक्सर सहज स्पीड से करने होते हैं, बिल्कुल आराम से करने होते हैं| साथ ही मै पानी- एनर्जाल- चिक्की आदि ले कर दौड़ता हूँ| इससे स्पीड कम ही होती है| लाँग रन्स मुझे टेस्ट क्रिकेट की बल्लेबाज़ी जैसे लगते हैं| शॉर्ट रन्स जैसे ५-६ या कभी १०- १५ किलोमीटर भी लिमिटेड ओव्हर्स क्रिकेट जैसे लगते हैं| साथ में कुछ भी रखने की जरूरत नही, बस भागते रहो| इसी प्रकार लाँग रन शुरू किया और जब ३० किलोमीटर पूरे हुए, तो पहली बार पहला और तीसवा किलोमीटर एक ही पेस से दौड़ पाया! इससे बहुत खुशी हुई| एक तो पहली बार २५ के बाद भी दौड़ पाया, शूज ने भी कोई तकलीफ नही दी! इस तरह मेरी दो मुख्य समस्याएँ सुलझ गई! लगभग ३:४६ टायमिंग में ३० किलोमीटर पूरे किए| अगर बाकी के १२ किलोमीटर चला भी, तो लगभग साढ़ेपाँच घण्टों में मैरेथॉन पूरी कर लूँगा!

दो हफ्तों बाद ३६ किलोमीटर दौड़ने के लिए निकला| इसमें फिर कुछ गलतियाँ की| रात जल्दी सो नही पाया था| बीच के दिनों में लगातार रनिंग नही की थी| इससे कुछ गैप भी हुई| इस कारण ३६ किलोमीटर नही दौड़ पाया और २९ किलोमीटर के बाद चलना पड़ा और बाद में पैर को तकलीफ भी हुई| इसलिए ज्यादा रिस्क लिए बिना ३१ किलोमीटर पर रूक गया| अब मैरेथॉन को सिर्फ २० दिन ही बचे हैं! मेरे कुछ मित्रों ने मैरेथॉन के पहले ४२ किलोमीटर की दौड़ भी की, एक ने तो ५० किलोमीटर की दौड़ भी की (ट्रेनिंग ज्यादा कठिन हो, यह उसका लॉजिक था)! मै ३६ किलोमीटर नही दौड़ पाया, लेकीन पीछली बार जो स्थिर गति से ३० किलोमीटर दौड़ा था, उससे बहुत हौसला मिला| जनवरी के शुरुआती दिनों में कई बार ११ किलोमीटर के वॉक किए| साईकिल चलाने में अनुभव किया था कि लगातार पाँच- छह दिन साईकिल चलाने से बाद में एक टेंपो आ जाता है और साईकिल चलाना बिल्कुल सरल हो जाता है| इसलिए मैरेथॉन के पहले हफ्ते में भी रनिंग बन्द नही की| बल्की छोटे पाँच- छह किलोमीटर के रन्स करता रहा| इससे गैप नही आएगी, एक मूमेंटम बनता रहेगा, मसल्स तैयार रहेंगे| इस तरह मैरेथॉन की तैयारी की| अब रनिंग का उतना प्रेशर नही लगता है| लेकीन ईवंट का, वहाँ जा कर दौड़ने का थोड़ा प्रेशर जरूर लग रहा है| लेकीन कुछ भी हो जाए, जो भी टायमिंग आएगा, मेरा पर्सनल बेस्ट ही होगा| और कुछ दिक्कत हुई, तो प्लैन बी है मेरे पास- मै १२ या १५- १८ किलोमीटर भी चल के पार कर लूँगा, उतनी मन की तैयारी भी है! देखते हैं|

अगला भाग: “भाग दौड़" भरी ज़िन्दगी- १३: मुंबई मैरेथॉन के अन्य पहलू

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