१४ (अन्तिम): जीवनशैलि में दौड़ने का अन्तर्भाव
डिस्क्लेमर: यह लेख माला कोई भी टेक्निकल गाईड नही है| इसमें मै मेरे रनिंग के अनुभव लिख रहा हूँ| जैसे मै सीखता गया, गलती करता गया, आगे बढता गया, यह सब वैसे ही लिख रहा हूँ| इस लेखन को सिर्फ रनिंग के व्यक्तिगत तौर पर आए हुए अनुभव के तौर पर देखना चाहिए| अगर किसे टेक्निकल गायडन्स चाहिए, तो व्यक्तिगत रूप से सम्पर्क कर सकते हैं|
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मुम्बई मैरेथॉन पूरी होने के बाद यह तय किया कि रनिंग तो जारी रखनी ही है, लेकीन महिने में एक लाँग रन करना है| तभी मैरेथॉन फिटनेस/ स्टैमिना बरकरार रहेगा| इसलिए जनवरी के बाद मार्च में एक बार २५ किलोमीटर दौड़ की और उसके बाद अप्रैल में २२ किलोमीटर दौड़ की| छोटे रन्स भी जारी रहे| और साईकिल चलाना, चलना, योग, स्ट्रेंदनिंग आदि तो अब जीवन का हिस्सा बन चुके हैं| और अब उन्हे 'करने की' जरूरत नही पड़ती है| बल्की अब उन्हे न किए बिना चलता ही नही है|
कोई भी बात जब तक हम सीखते हैं, तब तक तो ठीक है| लेकीन एक ना एक दिन उसे इंटर्नलाईज करना होता है| जीवनशैलि में उसका अंगीकार होना चाहिए| वह सिर्फ एक पृथक् गतिविधि नही रहनी चाहिए| जीवनशैलि और जीवनदृष्टि में उसका समावेश होना चाहिए| जैसे रनिंग के साथ जब चलने को एक व्यायाम के तौर पर शुरू किया, तब धीरे धीरे छोटे और बाद में बड़े अन्तर के लिए भी लिफ्ट या रिक्षा लेना कम हुआ| चलने का मज़ा भी आने लगा| और बाद में तो जैसे मै साईकिल से नई जगहों पर घूमने जाता था, उसी प्रकार चल कर भी दूर तक घूमने लगा| नए स्थान चल कर भी एक्स्प्लोर करने लगा| रोजमर्रा के जीवन में जहाँ जहाँ चलने का मौका मिले, उसे दोनों पैरों से लेने लगा| और ऐसे मौके अक्सर होते हैं| चलना तो स्वर्णिम व्यायाम है- कहीं भी, कभी भी| घर में कमरे में बात करते हुए भी, कहीं वेट करते हुए भी| और इसके लाभ भी रनिंग जैसे ही हैं| और हमारे पास सजगता हो, तो हर कोई चीज़ रुपान्तरित हो सकती है| जैसे भगवान बुद्ध ने चलने को भी ध्यान दिया था| विपश्यना में जैसे आनेवाली और जानेवाली साँस को देखते हैं, वैसे ही चलने के ध्यान में पैर के होनेवाले सन्तुलन को देखते हैं| कब सन्तुलन एक पैर पर है और कब दूसरे पैर पर है| यह देखते देखते जब सन्तुलन दोनों पैरों के मध्य में होता है, उस सूक्ष्म पल को भी हम देख सकते हैं और यह भी विपश्यना ही है| खैर!
एक हाफ मैरेथॉन और फिर फुल मैरेथॉन करने के बाद अब कोई ईवेंट की इच्छा नही होती है| क्यों कि उसमें ईवेंट में जाने जैसा कुछ लगता नही है| जब भी मुझे जितना दौड़ना हो, उतना मै दौड़ सकता हूँ| मेरे लिए टायमिंग या लोगों को दिखाने के बजाय उसकी प्रोसेस ही बहुत सन्तोषजनक है| बिल्कुल सोलो सायकलिंग की तरह! तल्लीनता के साथ अकेले रनिंग करने में भी मुझे उतना ही मज़ा आता है| शायद कई लोगों को ऐसा मज़ा ईवेंट में भी आता होगा| अपनी अपनी रुचि और अपनी शैलि है|
मेरे विचार से रनिंग सिर्फ रनिंग नही होता है| उसमें एक स्वस्थ जीवनशैलि भी समाविष्ट है| सिर्फ व्यायाम नही, आहार के प्रति सजगता, व्यायाम के मानसिक पहलूओं पर भी ध्यान दिया जाता है| मेरे लिए रनिंग की यह बड़ी देन है| रनिंग से एक आत्मविश्वास मिला, एक हौसला मिला जो साईकिलिंग में तो काम आया ही, जीवन के अन्य पहलूओं में भी उपयोगी हुआ|
मार्च- अप्रैल के बाद बड़े रन तो नही हो सके| लेकीन रनिंग का एक और अनुभव आया| मैरेथॉन के बाद ही साईकिलिंग- वॉकिंग आदि सब जारी रहा| उससे रनिंग में सुधार आता गया| और अप्रैल के बाद तो रनिंग का पेस भी बढ़ गया या कहिए कम हुआ (क्यों कि एक किलोमीटर दौड़ने के लिए कम समय लगने लगा)| पहली बार पाँच किलोमीटर आधे घण्टे के भीतर और बाद में दस किलोमीटर एक घण्टे के भीतर पूरे किए| वाकई, एक रनर और एथलीट के तौर पर यह बहुत सन्तोषजनक रहा|
रनिंग का स्पीड बढ़ने में और एक कारण भी सामने आया जो मेरे रनिंग के मार्गदर्शक संजय बनसकर सर ने बताया| उन्होने समझाया कि मार्च- अप्रैल में जब हवा पतली हुई है और मौसम साफ है (बादल, आर्द्रता का अभाव है), तब साँस शरीर को ज्यादा ऊर्जा देती है| इसलिए रनिंग में ज्यादा फोर्स मिलता है जो की भारी हवा के दिनों (जैसे बरसाती मौसम या ठण्ड का मौसम) में नही मिलता है| लेकीन मार्च- अप्रैल में गर्मी भी होती है| इससे दूसरी मज़े की बात यह होती है कि ज्यादा फास्ट तो दौड़ना हुआ, लेकीन बड़े रन करने में कठिनाई हुई| बहुत जल्द गला सूखने लगा, शरीर पसीने से लथपथ होने लगा| रनिंग के ये बारिकियाँ अब भी सीख रहा हूँ, समझ रहा हूँ| फिलहाल तो कोई उद्देश्य सामने नही है| बीच बीच में ज्यादा साईकिल चलाऊँगा, तो रनिंग में थोड़ी गैप भी आएगी| लेकीन कोशिश रहेगी की पूरी गैप न आए| कम से कम छोटे रन तो जारी ही रहेंगे|
इस लेखमाला को पढ़ने के लिए आपका बहुत धन्यवाद और रनिंग, वॉकिंग या अन्य किसी भी फिटनेस गतिविधि/ व्यायाम के लिए/ उसे जारी रखने के लिए आपको भी शुभकामनाएँ!
डिस्क्लेमर: यह लेख माला कोई भी टेक्निकल गाईड नही है| इसमें मै मेरे रनिंग के अनुभव लिख रहा हूँ| जैसे मै सीखता गया, गलती करता गया, आगे बढता गया, यह सब वैसे ही लिख रहा हूँ| इस लेखन को सिर्फ रनिंग के व्यक्तिगत तौर पर आए हुए अनुभव के तौर पर देखना चाहिए| अगर किसे टेक्निकल गायडन्स चाहिए, तो व्यक्तिगत रूप से सम्पर्क कर सकते हैं|
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मुम्बई मैरेथॉन पूरी होने के बाद यह तय किया कि रनिंग तो जारी रखनी ही है, लेकीन महिने में एक लाँग रन करना है| तभी मैरेथॉन फिटनेस/ स्टैमिना बरकरार रहेगा| इसलिए जनवरी के बाद मार्च में एक बार २५ किलोमीटर दौड़ की और उसके बाद अप्रैल में २२ किलोमीटर दौड़ की| छोटे रन्स भी जारी रहे| और साईकिल चलाना, चलना, योग, स्ट्रेंदनिंग आदि तो अब जीवन का हिस्सा बन चुके हैं| और अब उन्हे 'करने की' जरूरत नही पड़ती है| बल्की अब उन्हे न किए बिना चलता ही नही है|
कोई भी बात जब तक हम सीखते हैं, तब तक तो ठीक है| लेकीन एक ना एक दिन उसे इंटर्नलाईज करना होता है| जीवनशैलि में उसका अंगीकार होना चाहिए| वह सिर्फ एक पृथक् गतिविधि नही रहनी चाहिए| जीवनशैलि और जीवनदृष्टि में उसका समावेश होना चाहिए| जैसे रनिंग के साथ जब चलने को एक व्यायाम के तौर पर शुरू किया, तब धीरे धीरे छोटे और बाद में बड़े अन्तर के लिए भी लिफ्ट या रिक्षा लेना कम हुआ| चलने का मज़ा भी आने लगा| और बाद में तो जैसे मै साईकिल से नई जगहों पर घूमने जाता था, उसी प्रकार चल कर भी दूर तक घूमने लगा| नए स्थान चल कर भी एक्स्प्लोर करने लगा| रोजमर्रा के जीवन में जहाँ जहाँ चलने का मौका मिले, उसे दोनों पैरों से लेने लगा| और ऐसे मौके अक्सर होते हैं| चलना तो स्वर्णिम व्यायाम है- कहीं भी, कभी भी| घर में कमरे में बात करते हुए भी, कहीं वेट करते हुए भी| और इसके लाभ भी रनिंग जैसे ही हैं| और हमारे पास सजगता हो, तो हर कोई चीज़ रुपान्तरित हो सकती है| जैसे भगवान बुद्ध ने चलने को भी ध्यान दिया था| विपश्यना में जैसे आनेवाली और जानेवाली साँस को देखते हैं, वैसे ही चलने के ध्यान में पैर के होनेवाले सन्तुलन को देखते हैं| कब सन्तुलन एक पैर पर है और कब दूसरे पैर पर है| यह देखते देखते जब सन्तुलन दोनों पैरों के मध्य में होता है, उस सूक्ष्म पल को भी हम देख सकते हैं और यह भी विपश्यना ही है| खैर!
एक हाफ मैरेथॉन और फिर फुल मैरेथॉन करने के बाद अब कोई ईवेंट की इच्छा नही होती है| क्यों कि उसमें ईवेंट में जाने जैसा कुछ लगता नही है| जब भी मुझे जितना दौड़ना हो, उतना मै दौड़ सकता हूँ| मेरे लिए टायमिंग या लोगों को दिखाने के बजाय उसकी प्रोसेस ही बहुत सन्तोषजनक है| बिल्कुल सोलो सायकलिंग की तरह! तल्लीनता के साथ अकेले रनिंग करने में भी मुझे उतना ही मज़ा आता है| शायद कई लोगों को ऐसा मज़ा ईवेंट में भी आता होगा| अपनी अपनी रुचि और अपनी शैलि है|
मेरे विचार से रनिंग सिर्फ रनिंग नही होता है| उसमें एक स्वस्थ जीवनशैलि भी समाविष्ट है| सिर्फ व्यायाम नही, आहार के प्रति सजगता, व्यायाम के मानसिक पहलूओं पर भी ध्यान दिया जाता है| मेरे लिए रनिंग की यह बड़ी देन है| रनिंग से एक आत्मविश्वास मिला, एक हौसला मिला जो साईकिलिंग में तो काम आया ही, जीवन के अन्य पहलूओं में भी उपयोगी हुआ|
मार्च- अप्रैल के बाद बड़े रन तो नही हो सके| लेकीन रनिंग का एक और अनुभव आया| मैरेथॉन के बाद ही साईकिलिंग- वॉकिंग आदि सब जारी रहा| उससे रनिंग में सुधार आता गया| और अप्रैल के बाद तो रनिंग का पेस भी बढ़ गया या कहिए कम हुआ (क्यों कि एक किलोमीटर दौड़ने के लिए कम समय लगने लगा)| पहली बार पाँच किलोमीटर आधे घण्टे के भीतर और बाद में दस किलोमीटर एक घण्टे के भीतर पूरे किए| वाकई, एक रनर और एथलीट के तौर पर यह बहुत सन्तोषजनक रहा|
रनिंग का स्पीड बढ़ने में और एक कारण भी सामने आया जो मेरे रनिंग के मार्गदर्शक संजय बनसकर सर ने बताया| उन्होने समझाया कि मार्च- अप्रैल में जब हवा पतली हुई है और मौसम साफ है (बादल, आर्द्रता का अभाव है), तब साँस शरीर को ज्यादा ऊर्जा देती है| इसलिए रनिंग में ज्यादा फोर्स मिलता है जो की भारी हवा के दिनों (जैसे बरसाती मौसम या ठण्ड का मौसम) में नही मिलता है| लेकीन मार्च- अप्रैल में गर्मी भी होती है| इससे दूसरी मज़े की बात यह होती है कि ज्यादा फास्ट तो दौड़ना हुआ, लेकीन बड़े रन करने में कठिनाई हुई| बहुत जल्द गला सूखने लगा, शरीर पसीने से लथपथ होने लगा| रनिंग के ये बारिकियाँ अब भी सीख रहा हूँ, समझ रहा हूँ| फिलहाल तो कोई उद्देश्य सामने नही है| बीच बीच में ज्यादा साईकिल चलाऊँगा, तो रनिंग में थोड़ी गैप भी आएगी| लेकीन कोशिश रहेगी की पूरी गैप न आए| कम से कम छोटे रन तो जारी ही रहेंगे|
इस लेखमाला को पढ़ने के लिए आपका बहुत धन्यवाद और रनिंग, वॉकिंग या अन्य किसी भी फिटनेस गतिविधि/ व्यायाम के लिए/ उसे जारी रखने के लिए आपको भी शुभकामनाएँ!
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (25-07-2019) को "उम्मीद मत करना" (चर्चा अंक- 3407) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
यह लेखमाला रोचक रही। मैं बीच बीच में कुछ कुछ कड़ियाँ पढ़ता रहा और उनका आनंद लेता रहा। अब मौका लगते ही शुरू से आखिर तक पढूँगा। अगली लेखमाला का इंतजार रहेगा।
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