Tuesday, September 22, 2020

लव यू ज़िन्दगी: अदू का तीसरा जन्म दिन!!!!

पहले जन्म दिन का पत्र: एक प्रेमपत्र 

दूसरे जन्म दिन का पत्र: बच्चे मन के सच्चे


आज तुम बहुत बड़ी यानी तीन साल की हो गई हो! पीछले जन्म दिन को तुमने जो पर पहने थे, वैसे पर अब तुम्हारे फूट गए हैं! तुम्हारा जन्मदिन तुमने बहोत एंजॉय किया! दिन भर 'हॅपी बर्थडे टू यू' कहती रही! पीछले एक साल में तुम्हारा बढ़ना आश्चर्य से भर देता है! अभी अभी तो तुम बड़े लोगों जैसे बोलने लगी हो! सुना हुआ लगभग हर शब्द तुम्हे याद रहता है और बाद में अचानक ही तुम वह शब्द होनेवाला वाक्य बोलती हो! तुम्हे छोटी छोटी चीज़ें बारीकी से याद रहती है! लोग बहुत अच्छे याद रहते हो!

विगत साल की बेशुमार यादे हैं! अब भी तुम आईने जितनी ही निर्मल हो| अब भी तुम हमारा उतना ही लाड़ प्यार करती हो! सभी चीजों को खुशी से अपनाती हो| इस साल तो तुम्हारी स्कूल भी शुरू हुई! उसको लेकर मेरे मन में बहोत डर था| क्या तुम्हे स्कूल पसन्द आएगी, बस से वहाँ तुम जा सकोगी? क्या वहाँ एडजस्ट कर सकोगी? लेकीन तुम सब कुछ बहुत आसानी से और आनन्द से करती हो| स्कूल के पहले दिन से ही तुमने हिम्मत की| तीन साल की होने के पहले ही बस से स्कूल जाने लगी| सामने जो कुछ होता हो, उसे तुम खुशी से अपनाती हो- फिर वो माँ- पिता का दिन भर सामने न होना हो; बीच बीच में दूर जाना हो; स्कूल का माहौल हो; पास पडौस का वातावरण हो| पानी में जैसा गुण होता है- जिस पात्र में उसे डालते हैं, उसी का आकार वह धारण करता है; ठीक वैसी ही तुम हो!

तुम्हारी साथ अखण्ड रूप से साथ होती है- सभी मायनों में

“तू बिन बताए मुझे ले चल कहीं जहाँ
तू मुस्कुराए मेरी मन्जिल है वही"

ठीक इसी तरह से हम जो करते हैं; तुम्हे जो देते हैं; जो वातावरण देते है; जो परिस्थिति देती है; उसमें तुम उतनी ही‌ खुश होती हो| इस दृष्टि से बच्चा यह पालकों का प्रतिबिम्ब होता है| पालक जो देते है; उन सभी चीज़ों का रिफ्लेक्शन उसमें आता है| इसलिए वास्तव में बच्चे को निर्मल- निष्पाप रखना हो, तो पालकों को भी खुद को उतना ही शुद्ध रखना आवश्यक होता है| क्यों कि बच्चे को सबसे ज्यादा मिलनेवाला वातावरण परिवार ही होता है| यहीं पर बच्चा जो सुनता है, वो सब आत्मसात करता है| इसलिए खुद निर्मल और शुद्ध रहना, यह वास्तव में पालकों की जिम्मेदारी है| यह आदर्श पालकत्व है| आदर्श शब्द का मूल अर्थ आईना होता है| आईना माने ऐसी चीज़ जो खुद का कोई भी हस्तक्षेप किए बिना निर्मल और पारदर्शी पानी जैसा शुद्ध माध्यम होता है| अगर पालक ऐसे प्रमाणिक और निर्मल होंगे; तो ही वे बच्चे को वैसे वातावरण दे सकेंगे|

अदू, तुम्हारे ये कुछ नाम- साखर (शक्कर), लाडू, बर्फी, स्वरा, टिंकूडी, बबडी! और तुम्हारे वे प्यारे मिठे बोल! इन मिठे स्वरों में अब स्कूल के गाने भी जुड़ गए हैं| स्कूल का किताब खोल कर तुम गाना शुरू करती हो और ठीक वही पन्ना निकालती हो! कैसे क्या तुम यह कर सकती हो! अब तुम अंग्रेजी अक्षर भी बहुत अच्छा पहचानने लगी हो| कई गाने तुम्हे याद हो गए है| तुम्हारा वो लम्बे लम्बे वाक्य बोलना और बड़ों जैसा समझाना! और अखण्ड अन्दरूनी ऊर्जा और मस्ती! आज का दिन भी तुमने पूरा एंजॉय किया| 'मुझे केक लाईए ना, चलो, केक लाते है' कह कर तुम जिद कर रही थी! बाद में नॉन स्टॉप मस्ती की| दिन भर तुम ऊर्जा से भरपूर थी| अब तुम्हे बहोत सी चीजों का काफी कुछ समझ आता है! वे प्राणी होंगे, खिलौने होंगे, गाने होंगे या हमारी पसन्द की चीजें होंगी!

मेरे रंग में रंगनेवाली परी हो या हो परियों की रानी!

पालक के तौर पर तुम्हे उचित दिशा और वातावरण देना बहुत जरूरी है| लेकीन अक्सर यह होता है कि हमारे रहन- सहन में और घर के वातावरण में होनेवाली ऐसी कुछ चीज़ें तुम देखती हो और उनका अनुसरण करती हो और उसके बाद हम तुमपर क्रोध करते हैं| पर इसमें गलती तुम्हारी नही होती है| क्यों कि तुम तो शुद्ध प्रतिबिम्ब हो; प्रतिध्वनि हो| अगर हमें तुमपर क्रोध आता हो, तो उसका अर्थ इतना ही है कि हममें ही कहीं उसका कारण छिपा है|

पर इतका अर्थ यह बिल्कुल भी नही कि पालकों ने कभी कभी सख़्त नही होना चाहिए| जीवन के हर क्षेत्र में, हर रिश्ते- नाते में, हर अभिव्यक्ति में सभी तरह के रंग और भाव होते हैं| जीवन सब विपरित सीरों से मिल कर बनता है| वह एक जैसा कभी भी नही होता है| और अगर एक जैसा होता है, तो उसमें से रस निकल जाता है| सिर्फ उजाला या सिर्फ अन्धेरा, यह जीवन की परिभाषा ही नही है| वहाँ रात आएगी ही| क्यों कि रात यह दिन की ही other side of the coin है| जीवन में सभी चीजें इसी विपरित छोर के साथ होती हैं| पर हम अक्सर सिक्के के एक तरफ ही देख पाते है और ऐसा लगता है की उसे दूसरा छोर ही नही होगा| और इन दोनों छोर के कारण ही जीवन सन्तुलित होता है और उसमें विविधता आती है| इसलिए एक तरफ जब पालकों द्वारा प्यार, ममता, सॉफ्ट कॉर्नर देना चाहिए, उसी के साथ सख़्त भी होना चाहिए| क्यों कि सिर्फ सॉफ्ट कॉर्नर देना एकतरफा होता है| बाहर की दुनिया तो सर्वांगीण है| वहाँ कठोरता भी है, कई नकारात्मक चीज़ें भी हैं| इसलिए अगर बच्चे को जीवन के सभी पहलूओं से परिचित कराना हो, और उसके लिए उसे तैयार करना हो, तो कठोर भी होना होगा| ऐसा पालकत्व ही सन्तुलित होगा|

इसलिए कुछ विशेषज्ञ कहते हैं कि बच्चों को सब कुछ रेडीमेड और सुसज्ज मत दीजिए| ऐसी कुछ चीजें होनी चाहिए जो उनके लिए दिक्कत की हो| ऐसा कुछ चाहिए जिससे वे कभी कभी संघर्ष भी करते हो| इससे बच्चों में दृढता और दृढनिश्चय बढ सकता है| उनके मन की तैयारी होती है, वे सीखते हैं| इस दृष्टि से उपर से देखते हुए जो चीज़ें बच्चों के लिए विपरित एवम् नकारात्मक हैं, वे भी उनके लिए हितकर ही हैं| क्यों कि कल का जीवन भी वैसा ही होनेवाला है- विविधांगी और सभी भावनाओं का कैनवास होनेवाला इन्द्रधनुष| इसलिए शुरू से ही हर चीज़ की पहचान होना उस दृष्टि से उपयोगी ही है|


बापू सेहत के लिए तू तो हानिकारक है!!!

अदू, एक कहानी याद आती हैं| तुम्हे अभी ही बता कर रखता हूँ| प्राचीन समय में घर का एक छोटा बच्चा शिक्षा के लिए बाहर जानेवाला था| उसकी उम्र थी सिर्फ सात साल| उसके पिता ने उसे कहा, "आज तक हमारे घर से जो भी पढने के लिए बाहर जाता है, वो कभी भी शिक्षा पूरी करने के पहले घर लौटते नही है| और हमारे घर का रिवाज है कि जब जब कोई छोटा बच्चा सीखने के लिए निकलता है, तब वह कभी भी पीछे मूड कर नही देखता है| जब मै घर छोड़ कर जा रहा था, तब मेरे पिता ने मुझे कहा था कि बाहर जाते समय आँखें गिली नही होनी चाहिए, क्यों कि अगर आँसूं आते हैं, तो वह हमारी परंपरा के अनुसार नही होगा और फिर तुम्हे इस परिवार की परंपरा में रहना सम्भव नही होगा| क्यों कि हमारे परिवार में रोनेवालों को स्थान नही है| कल तुम भी जानेवाले हो, इसलिए मै भी तुमसे वही कहूँगा| कल भोर को चार बजे तुम विदा होगे| एक व्यक्ति तुम्हे घोडे पर बिठा के ले जाएगा| एक किलोमीटर दूरी पर सड़क मुडेगी जहाँ से तुम घर देख सकोगे| पर तुम्हे मूड के देखना नही है| हम छत पर खड़े होंगे और देखेंगे कि कहीं तुम मूड़ के तो नही देख रहे हो| क्यों कि जो पीछे मूड़ कर देखता है, वह धैर्यवान नही होता है| उस पर भरोसा नही किया जा सकता है| इसलिए पीछे मूड़ कर देखना ही नही है|" पिता ने बच्चे को यह कहने के बाद वह डरा| पर उसकी माँ ने उसे समझाया कि डरो मत, हमेशा ऐसे ही हुआ है| जो पीछे मूड कर देखते हैं, वे परिवार में नही रहते हैं| इसलिए पीछे मूड कर मत देखना|

वह बच्चा रातभर सो नही सका| क्यों कि कल सवेरे निकलने का विचार उसे नीन्द ही लगने नही दे रहा था! जाना तो है ही और पीछे मूड कर देखना भी नही है और आँखों में आँसूं की एक बून्द भी‌ नही होनी चाहिए! सात साल के बच्चे से इतनी अपेक्षा! अगर हम उसके जगह होते तो हमें तो लगता था कि पालक बहुत कठोर है, कितने दुष्ट हैं! वहाँ हम होते तो हम लाड़ प्यार करते थे, चॉकलेट देते थे| हम भी शायद रोते, उसे भी रोना आता और हम भी प्यार में खो गए होते|

पर एक तरफ से देखा जाए तो यह प्रेम नही है| यह तो उस लड़के की संकल्प शक्ति को कम करना हुआ| क्यों कि एक तरफ सब को लगता है कि बच्चों को ज्यादा से ज्यादा सुरक्षित माहौल दिया जाना चाहिए, उनके प्रति ज्यादा सॉफ्ट कॉर्नर होना चाहिए, पर इससे बच्चे में दृढनिश्चय कैसे आएगा? उसके व्यक्तित्व की बुनियाद कैसे ठोस बनेगी?

पर वो बच्चा निकला- घने अन्धेरे में, सुबह चार बजे| उसके माँ- पिता उसे छोड़ने के लिए दरवाजे तक भी नही आए| क्या वे इतने कठोर और दुष्ट थे? उस बच्चे को घोड़े पर बिठा कर एक नौकर उसके साथ निकला| भोर का अन्धेरा, सुनसान माहौल और ठण्डी हवा|‌ नौकर ने उससे कहा कि बच्चे, अब पीछे मूड़ कर मत देखो| अब तुम बड़े हो गए| तुमसे बहुत उम्मीदें हैं| जो पीछे मूड़ कर देखेगा, उससे कौनसी उम्मीदें की जा सकेंगी? तुम्हारे पिता छत से तुम्हे देख रहे हैं| अगर तुम पीछे मूड कर नही देखते हो, तो उन्हे खुशी होगी कि इतने दूर आने पर भी तुम्हे मूडने की इच्छा नही हुई|

उस बच्चे की स्थिति क्या हुई होगी! सांत साल का छोटा बच्चा| पर जैसे तैसे बिना मूड़ के देखे वह सामने निकल गया| और यहीं पर उसके संकल्प शक्ति का जन्म हुआ- एक छोटा कदम मै ले सकता हूँ, यह आत्मविश्वास उसे मिला! जब वह विद्यालय पहुँचा- जब भिक्षु के आश्रम में‌ पहुँचा, तब वे भिक्षु उसे दरवाजे पर ही मिले| उन्होने कहा कि प्रवेश लेने के कई नियम है| किसी ऐसे गैरे को यहाँ प्रवेश नही मिलता है| अगर तुम्हे प्रवेश लेना हो तो यहीं पर दरवाजे के सामने आँखें बन्द कर के बैठो| जब तक मै वापस आ कर तुमसे बात नही करूँगा, तब तक तुम्हे आँख बन्द ही रखनी है| उठने के बारे में सोचो भी मत| अगर मेरे आने के पहले तुमने आँख खोली, जरा सा हिले तो भी तुम्हे वापस घोड़े पर बिठा कर हम वापस भेजेंगे| देखो, तुम्हारे घर का नौकर इसके लिए यहीं पर रूका हुआ है| और ध्यान रखो कि तुम्हारे परिवार से अब तक कोई भी इस तरह लौट के गया नही है|‌ इसलिए प्रवेश चाहते हो तो आँखें बन्द कर मेरे आने तक बैठे रहो, यही तुम्हारी एंट्रन्स टेस्ट है|

सांत साल का वह छोटा सा बच्चा बैठा रहा| किसी ने भी उसकी हालचाल नही पूछी| किसी ने भी उसे कहा नही कि बेटे, तुम्हारे माता- पिता चिन्तित होंगे| चलो, इधर बैठो| किसी ने बात ही नही की| उसका घोड़ा और सामान के साथ उसका नौकर बाहर ही रूका| बच्चा आँखें बन्द कर बैठा रहा| क्या वे गुरू भी इतने ही क्रूर और कठोर थे? लेकीन वास्तव में उसके माता- पिता और गुरू भी दयालु ही थे|

वह बच्चा बैठा रहा| गुरू कुल के अन्य छात्र आने लगे| किसी ने उसे धक्का दिया, किसी ने पत्थर मारा| किसी ने उसका मज़ाक उडाया| पर उसे तो आँखें बन्द ही रखने हैं| चाहे कुछ भी हो| क्यों कि आँखें खोली तो वापस जाना पड़ेगा| और किस मुंह से तो परिवार के सामने जाएगा, जहाँ पर कभी भी ऐसा कोई लौट के नही आया हो? धीरे धीरे गर्मी बढ़ती गई| उसके आसपास मख्खियाँ आने लगी| उसे भूख लगी| प्यास लगी| लेकीन बिना कुछ किए वह आँखें बन्द कर बैठा ही रहा| आँखें भी खोलनी नही हैं और उठना भी नही है| दोपहर हुई| एक एक मिनट बहुत लम्बा गया होगा| उसके मन में सवालों का बवंडर मचा होगा| क्या हुआ, अभी तक कोई क्यों नही आया? मुझसे कोई भी क्यों बात नही कर रहे हैं? पर उसने आँखें खोली नही| एक सेकैंड भी चोरी छिपे आँख खोल कर देखा नही|

शाम हुई| सूरज डूबने का समय हुआ| भूख- प्यास से वह व्याकुल हुआ था| तब जा कर गुरू और कुछ दस भिक्षु आते हैं| वे उसे उठा लेते हैं और कहते हैं कि तुम एंट्रन्स टेस्ट में पास हुए! तुम्हारे पास संकल्प शक्ति है! अब निश्चित रूप से तुम कुछ बन सकते हो| अब अन्दर आओ! जब बाद में उसका अध्ययन पूरा हुआ, तब उसने उसके कठोर लगनेवाले पालक और गुरू को धन्यवाद दिया और कहा कि उनकी करूणा अद्भुत थी!

यह कहानी बहुत सच्ची है| हम 'एंटर न्यू ड्रैगन' जैसा चित्रपट देखते हैं या ज्युदो जैसी विद्या देखते हैं| लेकीन ऐसी कला के पीछे साधना भी उतनी ही बड़ी होती है|‌ और साधना की शुरुआत ही ऐसे संकल्प से ही होती है| सोने को भी आग में से गुजरना होता है| एक तरफ पालकों को जिस प्रकार मृदु होना चाहिए, उसी‌ तरह दूसरी तरफ कठोर भी होना चाहिए| तब जा कर बच्चे का व्यक्तित्व सन्तुलित और परिपक्व होगा| और जो सुरक्षित, प्रोटेक्टेड माहौल पालकों द्वारा बच्चों को दिया जाता है, वह कितने दिनों तक टिकनेवाला है? कल जब जीवन का अश्व चारों तरफ दौड़ेगा, तब रुखे रेगिस्तान से ले कर तप्त अग्नि की ज्वालाएँ- सब कुछ उसके रास्ते में आनेवाला ही है| उस समय इतना protected upbringing शायद सबसे बड़ी अडचन ही होगी| आज व्यवहार के जगत में भी हम यही देखते हैं कि धनवान या बहुत अमीर परिवारों के बच्चे व्यवहार में कुछ विशेष करते नजर नही आते हैं| वे कुछ विशेष 'साध्य' नही करते हैं| लेकीन स्ट्रगल कर आए या असफल हो कर संघर्ष करनेवाले लोग ही अक्सर कई "विशेष" चीज़ें करते नजर आते हैं|

और जो बात secure environment की है, वही सख़्त नियमों की है| बाहर से थौपें गए नियम उपरी सतह पर ही रह जाते हैं| जब आगे परिस्थिति बहुत बदलती है, तब ये नियम जंजीरें बन जाते हैं| जैसे किसी को बताया कि चाय बनाते समय तुम ठीक आधा चम्मच चाय पत्ती, एक चम्मच शक्कर, आधा ग्लास पानी ही इस्तेमाल करते जाना| तब कल क्या होगा? अगर उसे कभी खुले मैदान में चाय करने की जरूरत हुई तो क्या होगा? वहाँ चम्मच तो नही होगा, पर चाय के पत्ते होंगे| वहाँ ये फिक्स किए नियम अड़चन ही बनेंगे| इसलिए बल नियम के बजाय नियमों से होनेवाले बल पर दिया जाना चाहिए| आधा चम्मच चाय पत्ती यानी इतनी पत्ती इस तरह| नियम होने चाहिए, लेकीन वे समझ और सजगता देनेवाले होने चाहिए... खैर|

अदू, तुम्हारे साथ आगे बढ़ते हुए यह बहुत बड़ा फर्क यह महसूस होता है कि अब तुम्हारा consciousness हमारे साथ है| याने हमेशा यह ध्यान में रहता है कि तुम कोई‌ चीज़ किस नजरिए से करती हो| अगर ऐसा कुछ तुमने देखा होता, तो तुम्हे क्या महसूस हुआ होता, यह ध्यान में आता है| एक अर्थ में तुमने हमें मृदु किया है| अब आसानी से कोई हिंसायुक्त चित्रपट देखा नही जा सकता है| उस समय तुम्हारा consciousness साथ होता है| किसी के साथ इतनी सख़्ती से बर्ताव नही किया जा सकता है! और उसके साथ ही छोटी छोटी चीजों का आनन्द भी डिकोड होता है! तुम्हारा spontaneous जीना और हंसना बहुत ही contagious है! कुर्सी में बैठने पर पैर कोई हिला रहा हो तो तुरन्त तुम पैरों पर चढ़ती हो और खुशी से झूम कर कहने लगती हो- सी सॉ अप अँड डाउन! वह तुम्हारा आनन्द! उस आनन्द का आविष्कार! या एक बार कमरे में गुब्बारे लाए थे तब उन्हे देख कर तुम खुशी से चिल्लाने लगी और गाना ही शुरू किया! तुम्हे इतना आनन्द होता है कि वह तुम्हारे मन में समाता नही है और तुम नाचने लगती हो! और तुम्हारे कारण ही तुम्हे गोदी में उठा कर मैने किया हुआ सैराट डान्स!! और नाच कर भी तुम्हारा आनन्द समाता नही है और इसलिए खुशी से तुम चिल्लाती रहती हो! या कभी कभी तुम शान्त हो कर गले लगती हो!! क्या क्या कहूं! तुमसे जो आत्मीय अनुभव मिलता है, जो ममता मिलती है, जो लाड़- प्यार तुम करती हो, उससे सिर्फ और सिर्फ नतमस्तक होता हूँ...

3 comments:

  1. शुभकामनाएं अदू के लिये और आप के लिये भी।

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  2. धन्यवाद सर! उसका छटवा जन्मदिन अभी अभी हुआ| यह दूसरे जन्म दिन का पत्र था!

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